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Friday, 3 May, 2024
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IAS अफसरों को डेपुटेशन पर भेजने से मना नहीं कर सकते राज्य, मोदी सरकार का संशोधित प्रस्ताव आते ही टकराव बढ़ा

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही आईएएस (कैडर) नियमावली में प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ नाराजगी जताते हुए प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख चुकी हैं. अन्य विपक्षी दलों के शासन वाले राज्य भी इसी राह पर चल सकते हैं.

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नई दिल्ली: केंद्र में आईएएस अफसरों की भारी कमी से जूझ रही नरेंद्र मोदी सरकार ने काफी सख्त माने जा रहे नए नियम प्रस्तावित किए हैं, जिसके तहत डेपुटेशन पर अधिकारियों को दिल्ली भेजने के अनुरोध पर वीटो करने की राज्यों की शक्ति छिन जाएगी.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस तरह के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराकर विवाद को जन्म दे चुकी हैं, और अब अन्य गैर-भाजपा शासित राज्य भी इसी राह पर चल सकते हैं.

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने 12 जनवरी को सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को ‘आईएएस (कैडर) नियमावली, 1954 में संशोधन का प्रस्ताव’ शीर्षक से एक पत्र भेजा था जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार जिस भी अफसर को डेपुटेशन पर चाहती है वह अपने संबंधित कैडर से ‘रिलीव हो जाएगा’, भले ही संबंधित राज्य सरकार इससे असहमत हो या फिर निर्धारित समयसीमा में इस पर अपनी सहमति न दे.

दिप्रिंट ने इस मुद्दे पर टिप्पणी के लिए डीओपीटी के प्रभारी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह और विभाग के प्रवक्ता को विस्तार से प्रश्न भेजे हैं. उनकी तरफ से जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

ये पत्र तीन सप्ताह पहले राज्यों को भेजे गए संशोधन प्रस्ताव का ही अगला चरण है. पहले प्रस्ताव में केंद्र ने राज्यों से अधिकारियों की निश्चित संख्या तय करने को कहा था जिन्हें वे डेपुटेशन पर भेजने के लिए कार्यमुक्त करेंगे.

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दिप्रिंट ने विशेष तौर पर ये दोनों प्रस्ताव हासिल किए हैं.

केंद्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक, ये संशोधन 31 जनवरी से शुरू होने वाले संसद के आगामी सत्र में पेश किए जाएंगे. केंद्र की तरफ से राज्यों को 25 जनवरी से पहले जवाब देने को कहा गया है.

प्रस्तावित संशोधन

राज्यों को पहला संशोधन प्रस्ताव 20 दिसंबर को भेजा गया था, और इस पत्र पर उनसे 5 जनवरी तक जवाब देने को कहा गया था. इसके बाद जवाब देने के लिए रिमाइंडर 27 दिसंबर और 6 जनवरी को भेजे गए.

20 दिसंबर को भेजे गए पत्र के मुताबिक, प्रारंभिक मसौदा प्रस्ताव कहता है, ‘केंद्र में डेपुटेशन पर भेजे जाने वाले अधिकारियों की उपयुक्त संख्या केंद्र सरकार की तरफ से संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श के आधार पर तय की जाएगी.’

और संबंधित राज्य की तरफ से असहमति जताए जाने के मामले में इसमें कहा गया है, ‘ऐसे मामले में केंद्र सरकार का निर्णय मान्य होगा और संबंधित राज्य सरकारें एक निर्दिष्ट समय के भीतर केंद्र सरकार का निर्णय लागू करेंगी.’

हालांकि, ताजा पत्र में मोदी सरकार ने अपने मसौदा प्रस्ताव में बदलाव किया है. ताजा पत्र में कहा गया है, ‘विशिष्ट स्थितियों में, जहां जनहित में केंद्र सरकार को कैडर अधिकारियों की सेवाओं की आवश्यकता होती है, केंद्र सरकार की तरफ से केंद्र सरकार के अधीन पोस्टिंग के तहत इन अधिकारियों की सेवाएं ली जा सकती हैं…और संबंधित राज्य सरकार को निर्दिष्ट समयसीमा के भीतर केंद्र सरकार के निर्णय को प्रभावी करना होगा.’

इसमें कहा गया है, ‘…जहां भी संबंधित राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्णय को निर्दिष्ट समयसीमा के भीतर लागू नहीं करती हैं, अधिकारियों को केंद्र सरकार की तरफ से निर्धारित तिथि से उनके संबंधित कैडर से मुक्त माना जाएगा.’


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सिविल सेवकों में कमी और अधिकार क्षेत्र का मुद्दा

वरिष्ठ सिविल सेवकों का कहना है कि इस संशोधन के साथ किसी आईएएस या आईपीएस अधिकारी की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति को वीटो करने या आपत्ति या अनापत्ति नोटिस जारी करने की राज्य की शक्ति ‘छिन’ जाएगी.

इन संशोधनों पर सिविल सेवकों के विभिन्न वर्गों से प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है.

एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘यह संशोधन वास्तव में अपने कैडर के अधिकारियों पर राज्य के अधिकार क्षेत्र पर सवाल खड़े करता है. आईएएस नियमावली कहती है कि केंद्र अधिकारियों की भर्ती करता है, लेकिन जब उन्हें उनका राज्य कैडर आवंटित कर दिया जाता है तो वे राज्य सरकार के अधीन आ जाते हैं. संघीय ढांचा इसी तरह काम करता है.’

अधिकारी ने कहा, ‘यदि केंद्र किसी अधिकारी को अपने कैडर में रखने की राज्य की शक्ति छीन लेता है, तो जब उसका मन करेगा तब किसी भी अधिकारी को वापस बुला सकता है. नया संशोधन तो यही कहता है. इसका उपयोग राजनीतिक हितों के लिए और राज्य कैडर के अधिकारियों को धमकाने के लिए किया जा सकता है.’

वहीं, अधिकारियों के एक अन्य वर्ग का मानना है कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय व्यवस्था को चलाने के लिए नौकरशाहों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित करने के लिए ये नियम प्रस्तावित किया है.

केंद्र सरकार के अधीन सेवारत एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘केंद्र आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की जबर्दस्त कमी का सामना कर रहा है क्योंकि राज्य अपने कैडर के अधिकारियों को आसानी से भेजना नहीं चाहते हैं. कुछ दिन पहले चेक करने के दौरान मैंने पाया कि केंद्र में आईपीएस अफसरों के लगभग 600 पद हैं, लेकिन उसके पास केवल 150 अफसर ही (वर्तमान में सेवारत) हैं. आईएएस कैडर के अधिकारियों के मामले में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है.’

आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘आईएएस कैडर नियमावली में यह संशोधन आईएएस अफसरों के लिए लागू होगा और फिर इसी तरह का संशोधन आईपीएस कैडर के लिए भी लाया जाना है.’

एक सेवारत वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि राज्यों को अपनी प्रतिक्रिया 25 जनवरी से पहले भेजनी है. अधिकारी ने कहा, ‘ये नियमावली अधीनस्थ कानून के तहत आती है, और इसे संसद सत्र में पारित कराने की आवश्यकता नहीं है. लेकिन संशोधन के मामले में कुछ तकनीकी पहलू शामिल हैं, जिसकी वजह से उन्हें सदन के समक्ष पेश करने की जरूरत पड़ सकती है.’

ममता ने जताया विरोध

इस बीच, विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने इस तरह के संशोधनों पर आपत्ति जताना शुरू कर दिया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो पहले पत्र में प्रस्तावित संशोधन पर ही अपना विरोध दर्ज कराने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख चुकी है. दिप्रिंट ने उनके पत्र को भी एक्सेस किया है.

संशोधन को ‘सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ’ करार देते हुए ममता ने लिखा, ‘संशोधन आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की पोस्टिंग के मामले में केंद्र और राज्यों के बीच मौजूद एक मजबूत सामंजस्यपूर्ण व्यवस्था की मूल भावना को प्रभावित करता है.’

इस पर जोर देते हुए कि संशोधन के जरिये केंद्र अपने कैडर के अधिकारियों पर राज्य के अधिकार को कैसे खत्म कर सकता है, उन्होंने कहा, ‘ऐसे संशोधन सहकारी संघवाद और परस्पर विमर्श वाले दृष्टिकोण की भावना को स्थायी तौर पर चोट पहुंचाते हैं.’

उन्होंने प्रस्तावित संशोधन को वापस लेकर/प्रभावी न बनाकर मौजूदा नियमों, जिनका ‘उल्लंघन’ हो रहा है, को बरकरार रखने के लिए प्रधानमंत्री से दखल देने की गुहार लगाई है.

बंगाल राज्य सचिवालय के सूत्रों का दावा है कि मुख्यमंत्री नए प्रस्ताव को लेकर शिकायती पत्र भी भेज सकती हैं, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह प्रकृति में ‘अधिक कठोर’ है.

बंगाल सीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि ममता पहले ही इस संबंध में विपक्षी दलों के शासन वाले कुछ राज्यों से बात कर चुकी हैं, और तमिलनाडु सरकार की तरफ से भी विरोध पत्र भेजे जाने की उम्मीद है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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