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Saturday, 23 November, 2024
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भारतीय लोकतंत्र सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है: सोनिया गांधी

सोनिया ने हाल ही में सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों को ‘कृषि विरोधी काले कानून’ कहते हुए आरोप लगाया कि ‘हरित क्रांति’ से अर्जित किये गये फायदों को समाप्त करने की साजिश रची गयी है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रविवार को तीन कृषि कानूनों, कोविड-19 महामारी से निपटने, अर्थव्यवस्था की हालत और दलितों के खिलाफ कथित अत्याचार के मामलों पर सरकार पर निशाना साधते हुए दावा किया कि भारतीय लोकतंत्र अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है.

सोनिया ने हाल ही में सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों को ‘कृषि विरोधी काले कानून’ कहते हुए आरोप लगाया कि ‘हरित क्रांति’ से अर्जित किये गये फायदों को समाप्त करने की साजिश रची गयी है.

कांग्रेस महासचिवों और प्रदेश प्रभारियों की बैठक की अध्यक्षता करते हुए सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि देश में ऐसी सरकार है जो देश के नागरिकों के अधिकारों को मुट्ठीभर पूंजीपतियों के हाथें में सौंपना चाहती है.

पिछले महीने कांग्रेस में सांगठनिक स्तर पर बड़े फेरबदल के बाद सोनिया गांधी ने पहली बार महासचिवों और राज्य प्रभारियों की बैठक की अध्यक्षता की.

हाल ही में पारित कृषि कानूनों को लेकर सरकार को घेरते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा नीत सरकार ने इन कानूनों से भारत की लचीली कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की बुनियाद पर ही हमला किया है.

गांधी ने कहा, ‘हरित क्रांति से मिले फायदों को समाप्त करने की साजिश रची गयी है. करोड़ों खेतिहर मजदूरों, बंटाईदारों, पट्टेदारों, छोटे और सीमांत किसानों, छोटे दुकानदारों की रोजी-रोटी पर हमला हुआ है. इस षड्यंत्र को मिलकर विफल करना हमारा कर्तव्य है.’

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हाल ही में तीनों कानूनों- कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 को मंजूरी प्रदान की थी.

गांधी ने दावा किया कि संविधान और लोकतांत्रिक परंपराओं पर सोचा-समझा हमला किया जा रहा है.

उन्होंने बैठक में अपने आरंभिक उद्बोधन में कहा कि कोरोनावायरस महामारी में न सिर्फ मजदूरों को दर-बदर की ठोकरें खाने को मजबूर किया गया, बल्कि साथ-साथ पूरे देश को ‘महामारी की आग में झोंक दिया’ गया.

गांधी ने कहा, ‘हमने देखा कि योजना के अभाव में करोड़ों प्रवासी श्रमिकों का अब तक का सबसे बड़ा पलायन हुआ और सरकार उनकी दुर्दशा पर मूकदर्शक बनी रही.’

गांधी ने कहा, ‘कड़वा सच यह है कि 21 दिन में कोरोनावायरस को हराने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री ने अपनी जवाबदेही से मुंह फेर लिया है.’

उन्होंने हिंदी में दिए अपने भाषण में आरोप लगाया कि महामारी के खिलाफ इस सरकार के पास न कोई नीति है, न सोच है, न रास्ता है और ना ही कोई समाधान.

गांधी ने दावा किया कि केंद्र सरकार ने देश के नागरिकों की मेहनत और कांग्रेस सरकारों की दूरदृष्टि से बनाई गयी मजबूत अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया है.

उन्होंने कहा, ‘जिस प्रकार से अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिरी है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. आज युवाओं के पास रोजगार नहीं है. करीब 14 करोड़ रोजगार खत्म हो गए. छोटे कारोबारियों, दुकानदारों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की रोजी-रोटी खत्म हो रही है. लेकिन मौजूदा सरकार को कोई परवाह नहीं.’

उन्होंने कहा, ‘अब तो भारत सरकार अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों से भी पीछे हट गयी है. जीएसटी में प्रांतों का हिस्सा तक नहीं दिया जा रहा. प्रांतीय सरकारें इस संकट की घड़ी में अपने लोगों की मदद कैसे करेंगी? देश में सरकार द्वारा फैलाई जा रही अफरा-तफरी और संविधान की अवहेलना का यह नया उदाहरण है.’

उन्होंने देश में दलितों के दमन का आरोप लगाते हुए कहा कि देश की बेटियों को सुरक्षा देने के बजाय भाजपा नीत सरकारें अपराधियों का साथ दे रही हैं.

गांधी ने कहा, ‘पीड़ित परिवारों की आवाजों को दबाया जा रहा है. यह कौन सा राजधर्म है?’

उन्होंने पार्टी महासचिवों और प्रदेश प्रभारियों का आह्वान करते हुए कहा, ‘देश पर आई इन चुनौतियों का सामना करने का नाम ही कांग्रेस संगठन है. मुझे पूरा विश्वास है कि आप सब अनुभवी लोग इस कठिन समय में खूब मेहनत कर देश पर आए इस संकट का मुकाबला करेंगे और भाजपा सरकार के इन लोकतंत्र तथा देश विरोधी मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे.’


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