पटना: नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार द्वारा सोमवार को विवादास्पद पूर्व लोकसभा सदस्य आनंद मोहन सिंह को जेल से रिहा करने के आदेश जारी करने के कुछ घंटे बाद ही मारे गए आईएएस अधिकारी जी. कृष्णय्या की पत्नी उमा देवी ने दिप्रिंट से बातचीत की. उमा देवी ने दिप्रिंट को बताया कि वह इस फैसले से ‘हैरान और नाराज’ हैं.
आनंद मोहन सिंह 1994 में कृष्णैया की हत्या में शामिल होने के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे. जब उनकी हत्या हुई थी, उस वक्त जी. कृष्णय्या बिहार में गोपालगंज के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के रूप में कार्यरत थे. कृष्णय्या जब पटना से गोपालगंज जा रहे थे, उसी वक्त राज्य के मुजफ्फरपुर के पास ‘गैंगस्टर’ छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के दौरान भीड़ ने उन्हें पीट-पीट कर मार डाला था.
सिंह को अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने कथित तौर पर भीड़ को कृष्णैया को लिंच करने के लिए उकसाने के लिए मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में दिसंबर 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
उनकी रिहाई की उम्मीद तब से की जा रही थी जब बिहार गृह विभाग ने 10 अप्रैल को बिहार जेल मैनुअल 2012 के नियम 481 (1) (ए) को हटाने के लिए एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें एक लोक सेवक की हत्या के दोषी व्यक्ति की पहले रिहाई पर रोक लगा दी गई थी.
हालांकि यह बताया गया है कि राज्य के नौकरशाहों ने आनंद मोहन सिंह की रिहाई को आसान बनाने के लिए नियमावली में संशोधन का विरोध किया, लेकिन बाहर इस कदम का विरोध बहुत कम हुआ है. पूर्व सांसद की अपेक्षित रिहाई का विरोध राज्य के बाहर के दलित नेताओं ने अधिक किया है. कृष्णैया दलित समुदाय से ताल्लुक रखते थे.
सोमवार को, जैसा कि बिहार के कानून विभाग ने सिंह सहित पूरे बिहार की जेलों से 27 कैदियों की रिहाई का आदेश जारी किया, उमा देवी ने कहा, ‘यह एक अपराधी को जेल से राजनीति में वापस लाने का प्रयास है, यह घोर अन्याय है और सिर्फ वोट पाने के लिए किया गया है.’
बिहार के राजनीतिक हलकों में यह माना जाता है कि सिंह को रिहा करने का कदम नीतीश कुमार सरकार द्वारा राजपूत मतदाताओं को लुभाने का एक प्रयास है, जो कथित तौर पर राज्य में लगभग चार प्रतिशत मतदाता हैं. आनंद मोहन सिंह राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.
वर्तमान में आनंद मोहन अपने बेटे, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक चेतन आनंद की सगाई में शामिल होने के लिए पैरोल पर बाहर हैं.
पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा (एनडीए) के साथ अपनी पार्टी (जनता दल यूनाइटेड) के गठबंधन को समाप्त करने और राजद, कांग्रेस और अन्य के साथ हाथ मिलाने के बाद मोहन की रिहाई की चर्चा तेज हो गई थी.
चेतन जहां राजद के विधायक हैं वहीं उनकी मां पूर्व सांसद लवली आनंद भी राजद नेता हैं.
पिछले साल सरकार ने कथित तौर पर विधानसभा में कहा था कि आनंद मोहन सिंह को उनकी जेल की अवधि समाप्त होने से पहले रिहा नहीं किया जा सकता है क्योंकि बिहार जेल नियमावली सरकारी कर्मचारियों की हत्या के दोषियों की ऐसी रिहाई पर रोक लगाती है. लेकिन इस साल इसी महीने जेल नियमावली में संशोधन किया गया.
विधि विभाग के सचिव रमेश चंद मालवीय द्वारा जारी सोमवार के रिहाई आदेश में स्पष्ट किया गया है कि जिन कैदियों के नामों की जांच समिति ने सिफारिश की है और जो 20 साल या उससे अधिक जेल में बिता चुके हैं, केवल उन्हीं कैदियों को रिहा किया जा रहा है. आनंद मोहन सिंह, जिनकी उम्रकैद की अवधि भी 14 साल, 2008 से जेल में हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने पटना उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा था.
रिहा होने वालों की सूची में जद (यू) विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मंडल का नाम भी शामिल है, जो हत्या के एक आरोप में 2008 से जेल में बंद हैं.
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‘पीड़ित और अभी भी पीड़ित’
तेलंगाना से फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए मारे गए आईएएस अधिकारी जी. कृष्णय्या की पत्नी उमा देवी कहा कि उनके पति की मृत्यु के बाद बिहार सरकार ने उन्हें सेकेंड ग्रेड की नौकरी की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया और आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) में अपने गृहनगर लौटने का विकल्प चुना. उमा देवी अभी तेलंगाना में ही रहती हैं.
वह रसायन विज्ञान के लेक्चरर के रूप में हैदराबाद के एक सरकारी डिग्री कॉलेज में पढ़ाने लगी और 2017 में नौकरी से सेवानिवृत्त हो गईं.
उन्होंने कहा, ‘मेरी दो बेटियों को अकेले पालना दर्दनाक था. त्रासदी के समय मेरी छोटी बेटी इतनी छोटी थी कि उसे अपने पिता का चेहरा तक याद नहीं है. मेरी सबसे बड़ी बेटी, जो अब एक बैंक अधिकारी है, को अपने पिता के बारे में कुछ बातें याद हैं. मेरी दोनों लड़कियों की अब शादी हो चुकी है.’
जब बिहार सरकार ने बिहार जेल नियमावली में संशोधन किया, तो उमा देवी के पटना आने और सिंह की रिहाई के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में अपील करने की मीडिया में खबरे चल रही थी. हालांकि, यह भी अनुमान लगाया गया था कि कथित खतरे के कारण वह बिहार आने से डर सकती हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं किसी से भी नहीं, यहां तक कि मृत्यु से भी नहीं डरती. लेकिन मेरे पास वित्तीय संसाधन या कोई राजनीतिक समर्थन नहीं है. कृष्णाय्या और मैं कॉलेज स्वीटहार्ट थे. हमारी लव मैरिज हुई थी और उसने मेरे माता-पिता से एक पैसा भी दहेज नहीं लिया था.’
सिंह की रिहाई का विरोध करने के लिए अब उनकी उम्मीदें उनके पति के पूर्व आईएएस बैचमेट्स पर टिकी हैं.
उमा देवी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं इस दुखद घटना से पहले से ही पीड़ित थी, अब और भी पीड़ित हूं.’
‘पूरा देश देख रहा है’
बिहार सरकार के 10 अप्रैल को जेल नियमावली में संशोधन के बाद, पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने राज्य के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी.
हालांकि, बिहार आईएएस एसोसिएशन, राजनीतिक दलों और यहां तक कि चिराग पासवान जैसे दलित नेताओं ने भी इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयान देने से अब तक परहेज किया है.
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने सोमवार को मीडिया से बात करते हुए आनंद मोहन सिंह का बचाव तक कर दिया था. मांझी ने कहा, ‘आनंद मोहन जी अपराधी नहीं हैं. मुझे नहीं पता, उन्हें रिहा करने का कदम अच्छा है या बुरा.’
हालांकि कृष्णैया को राज्य से बाहर समर्थन मिल रहा है.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने रविवार को जारी एक बयान में नीतीश कुमार को ‘दलित विरोधी’ कहा तो वहीं पूर्व आईपीएस अधिकारी और बसपा की तेलंगाना इकाई के प्रमुख आर.एस. प्रवीण कुमार ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मांग की कि नीतीश कुमार जेल मैनुअल में संशोधन को वापस लें.
उन्होंने कहा, ‘मुझे दुख होता है कि पूरा देश देख रहा है कि हमारी आंखों के सामने और उस पर सरकार के सक्रिय निर्देशन में अन्याय हो रहा है. यह सिर्फ सिविल सेवकों के लिए ही नहीं, बल्कि इस देश के सभी विवाहेतर लोगों के लिए भी एक दुखद दिन है.’
(संपादन: ऋषभ राज)
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