नई दिल्ली: 2011 में, सैनिक से सामाजिक कार्यकर्ता बने अन्ना हजारे के नेतृत्व में अन्ना आंदोलन के नाम से लोकप्रिय भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार को हिलाकर रख दिया और लाखों भारतीयों को एकजुट कर दिया.
जन लोकपाल या भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल की अपनी प्रमुख मांग के साथ, आंदोलन ने सभी क्षेत्रों के लोगों को अपनी और खींचा, “अरब स्प्रिंग” के साथ इसकी तुलना की गई, और नई दिल्ली के जंतर मंतर पर यह सारा मुद्दा केंद्रित हो गया.
एक साल बाद, आंदोलन के प्रमुख सदस्यों के बीच मतभेद के कारण एक राजनीतिक दल, आम आदमी पार्टी (आप) का जन्म हुआ, जिसने देश की दिलो-दिमाद पर कब्जा कर लिया और बाद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सत्ता में आ गई.
एक दशक बाद – आप के दो प्रमुख नेता मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं और सलाखों के पीछे हैं.
5 अप्रैल 2011 को, हजारे ने घोषणा की कि वह जंतर-मंतर पर एक कड़े भ्रष्टाचार विरोधी कानून को लागू करने के लिए भूख हड़ताल पर बैठे हैं. उनके साथ इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) सिविल सोसाइटी ग्रुप के प्रमुख सदस्य जैसे कि वर्तमान में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, एक पूर्व IPS अधिकारी, कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया शामिल हुए. इनमें से कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया दोनों आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं लेकिन कुमार विश्वास अब पार्टी को अलविदा कह चुके हैं.
हजारे ने 9 अप्रैल को अपना पहला अनशन समाप्त किया लेकिन अपनी मांगों को लेकर अनशन जारी रखा. अगले वर्ष, पूरे भारत में सड़कों पर हजारे को अलग अलग क्षेत्रों के लोगों – कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, अभिनेताओं – का समर्थन मिलना जारी रहा.
भले ही आंदोलन लोकपाल कानून के संबंध में प्रमुख मांगों पर सरकार को सहमत करने में सफल रहा, लेकिन केजरीवाल ने जोर देकर कहा कि बदलाव लाने के लिए राजनीतिक भागीदारी जरूरी है. हजारे राजनीति से दूर रहना चाहते थे.
इससे अन्ना आंदोलन के कोर ग्रुप में दरार पड़ गई. अगस्त 2012 में, हजारे अपनी टीम को भंग करने की घोषणा कर दी और उसी साल नवंबर में एक नई टीम अन्ना 2.0 का गठन किया. और दूसरी ओर केजरीवाल ने उसी महीने आम आदमी पार्टी को लॉन्च किया. कई लोग उनके साथ रहे जबकि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का हिस्सा रहे अन्य लोग अलग-अलग रास्तों पर चलते रहे.
उदाहरण के लिए, आप के लोगो डिजाइनर सुनील लाल ने पार्टी छोड़ दी और बाद में केजरीवाल को नोटिस देकर कहा कि आप वेबसाइट सहित सभी आधिकारिक कार्यों से लोगो हटा लें. लाल ने कहा कि “पार्टी और उसकी विचारधारा में उनका विश्वास खत्म हो गया है.”
आंदोलन के एक अन्य समर्थक, ब्रिटेन-बेस्ड एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, जिन्होंने आप को एक नीले रंग की वैगन-आर कार उपहार में दी थी और जिसमें केजरीवाल अक्सर यात्रा किया करते थे, उन्होंने अपनी कार को वापस मांगा क्योंकि वह टीम में आई दरार से परेशान थे.
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हम आपको बताते हैं कि आंदोलन के अन्य समर्थकों ने सालों में कैसा प्रदर्शन किया.
पी.वी. राजगोपाल
जब कुछ सदस्यों ने राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला किया तो एक गांधीवादी कार्यकर्ता, राजगोपाल आईएसी से बाहर हो गए. उनका निर्णय 2011 के अंत में हिसार उपचुनाव में ग्रुप द्वारा कांग्रेस विरोधी अभियान से शुरू हुआ था, जिस पर राजगोपाल ने आरोप लगाया था कि कोर-कमेटी की बैठकों में सहमति नहीं थी.
वह वर्तमान में भूमि अधिकारों के लिए एक जन आंदोलन एकता परिषद के प्रमुख हैं, जिसने कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 के आंदोलन के दौरान किसानों और मोदी सरकार के बीच मध्यस्थता करने की भी पेशकश की थी.
पिछले साल राजगोपाल को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में देखा गया था.
अरविन्द गौर
एक प्रसिद्ध थिएटर निर्देशक, नाटककार और अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक, अरविंद गौर शुरुआती दिनों में अन्ना आंदोलन का हिस्सा बने और कई बार हजारे के साथ मंच पर देखे गए.
आंदोलन के दौरान, उन्होंने नुक्कड़ नाटकों के प्रदर्शन के लिए अभिनेताओं की टीमों का गठन करते हुए, IAC की कल्चरल विंग को संभाला. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने दावा किया कि उनके कई अभिनेताओं को 2015 के दिल्ली चुनाव लड़ने के लिए AAP द्वारा टिकट की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया.
गौर केजरीवाल और हजारे के बीच अनबन के बाद आंदोलन से अलग हो गए, और अन्ना की दूसरी टीम का हिस्सा थे, जब तक कि इसका प्रभाव अंततः बिल्कुल फीका नहीं पड़ गया. वह सामाजिक रूप से प्रासंगिक नाटकों को लिखना और निर्देशित करना जारी रखा और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित आगामी फिल्म इमरजेंसी में एक कैमियो भी किया.
रणवीर शौरी
बॉलीवुड अभिनेता रणवीर शौरी ने आंदोलन के दौरान कई बार मंच से बात की, और अपने समर्थकों के साथ कई बार तस्वीरों में कैद हुए. औपचारिक रूप से आंदोलन का हिस्सा नहीं होने के बावजूद, वह बॉलीवुड की प्रमुख आवाजों में से एक थे, जिन्होंने कार्यक्रम स्थल पर उपस्थित होकर अपना समर्थन दिखाया.
वह उन लोगों में भी शामिल थे जिन्होंने हजारे ग्रुप को भूख हड़ताल समाप्त करने के बाद सबसे पहले एक राजनीतिक पार्टी शुरू करने का सुझाव दिया था, जैसा कि उनके ट्वीट्स से जाहिर था.
शौरी ने कुछ समय के लिए केजरीवाल और आप का समर्थन करना जारी रखा, लेकिन 2017 में कहा कि केजरीवाल और “उनकी मंडली” ने आईएसी और जन लोकपाल आंदोलन का इस्तेमाल “राजनीति के बिजनेस में खुद को ऊपर उठाने” के लिए किया था.
So basically, Kejriwal & his coterie used the IAC & Janlokpal movement to parachute themselves into the business of politics. Unforgivable.
— Ranvir Shorey (@RanvirShorey) May 7, 2017
आजकल वह अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में ट्वीट करते हैं.
संतोष हेगड़े
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और आंदोलन के प्रमुख सदस्य, हेगड़े ने 2016 में कहा था कि जब आदोलन अपने चरम पर था तब वह और केजरीवाल 18 महीने तक साथ थे. उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि आप प्रमुख ने सत्ता में रहते हुए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कुछ नहीं किया.
वह तब से दिल्ली में केजरीवाल और उनकी सरकार के सक्रिय आलोचक रहे हैं.
आंदोलन के एक प्रमुख सदस्य के रूप में, हेगड़े ने टीम के सदस्यों द्वारा दिए गए बयानों से खुद को दूर कर लिया, जिसमें कश्मीर में जनमत संग्रह की आवश्यकता और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके 14 मंत्री सहयोगियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप शामिल थे.
श्री श्री रविशंकर
“अन्ना आंदोलन इतिहास बना रहा है” – यही आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने अगस्त 2011 में दिल्ली में कहा था, जब हजारे और उनकी टीम अनिश्चितकालीन उपवास के लिए एकत्र हुए थे. वह हजारे से मिलने तिहाड़ जेल भी गए थे, जहां गिरफ्तारी के बाद उन्हें रखा गया था.
जब केजरीवाल ने 2014 में दिल्ली में सत्ता में 49 दिनों के बाद सीएम पद छोड़ दिया था, तो रविशंकर ने इस कदम की आलोचना करते हुए एक लेख लिखा था और नरेंद्र मोदी के शासन के “गुजरात मॉडल” की प्रशंसा की थी. हाल के दिनों में, वह मोदी सरकार के द्वारा उठाए गए तमाम कदमों की सराहना करते हुए नजर आते हैं.
आशुतोष
पत्रकार से राजनेता बने आशुतोष लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी 2014 में आप में शामिल हुए और चार साल बाद 2018 में इस्तीफा दे दिया. 2014 में उन्हें चांदनी चौक लोकसभा सीट से पार्टी का टिकट दिया गया.
पार्टी के प्रवक्ता से लेकर उसके सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय के सदस्य होने तक, आशुतोष को केजरीवाल के भरोसेमंद सहयोगी के रूप में देखा जाता था. उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया और वर्तमान में सत्यहिंदी नामक एक डिजिटल मीडिया आउटलेट चलाते हैं.
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वर्षों से, वह आप और उसकी राजनीति के सक्रिय आलोचक बन गए हैं, उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी में कोई आंतरिक लोकतंत्र नहीं है. पिछले साल उन्होंने ट्वीट कर पूछा था कि गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो के बलात्कारियों की जल्द रिहाई पर पार्टी चुप क्यों है.
Why @ArvindKejriwal @AamAadmiParty silent on Bilkis Bano issue ?
— ashutosh (@ashutosh83B) August 17, 2022
हालांकि, उन्होंने 2022 में AAP की पंजाब जीत के बाद लिखे NDTV के एक कॉलम में स्वीकार किया, कि AAP का “मुफ्त पानी और बिजली का वादा और इसकी सफल डिलीवरी ने राजधानी (दिल्ली) में लोगों का (पार्टी के प्रति) भरोसा बढ़ाया है.”
शशि कांत
किरण बेदी के बाद, पंजाब के पूर्व डीजीपी शशि कांत, जो राज्य में नशीली दवाओं के विरोधी अभियान के लिए प्रसिद्ध हैं, 2012 में सेवानिवृत्त होने के बाद, भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हजारे का समर्थन करने वाले दूसरे आईपीएस अधिकारी बन गए हैं.
उन्होंने पंजाब में आईएसी आंदोलन का नेतृत्व किया और जनवरी 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए, लेकिन एक महीने बाद ही पार्टी के शीर्ष नेताओं के “पहुंच में न” होने का हवाला देते हुए छोड़ दिया.
जनरल वी.के. सिंह
2012 में सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद, पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह हजारे के अनशन के दौरान कई बार मंच पर दिखे. वह उन 22 हस्ताक्षरकर्ताओं में से थे जिन्होंने हजारे से अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल समाप्त करने की अपील की थी और बाद में अन्ना हजारे ने अपने गैर-राजनीतिक गुट की कोर कमेटी का हिस्सा बनने के लिए भी उन्हें आमंत्रित किया था.
सिंह 2014 में भाजपा में शामिल हुए और लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए. उन्हें मोदी सरकार के दोनों कार्यकाल में राज्य मंत्री भी नियुक्त किया गया.
शाजिया इल्मी
एक पूर्व पत्रकार, शाज़िया इल्मी, अन्ना आंदोलन और बाद में आप के प्रमुख मुस्लिम चेहरों में से एक थीं. उन्होंने टीवी डिबेट्स में पार्टी की बात रखी. 2014 में, उन्होंने “आंतरिक लोकतंत्र और दिशा” की कमी का हवाला देते हुए पार्टी छोड़ दी और 2015 में भाजपा में शामिल हो गईं. वह वर्तमान में पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.
मेधा पाटकर
सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर अन्ना आंदोलन के प्रमुख सदस्यों में से एक थीं. वह उन 15 सदस्यीय समन्वय समिति का भी हिस्सा थीं जिसकी घोषणा हजारे ने केजरीवाल से नाता तोड़ने के बाद की थी.
पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाटकर ने केजरीवाल और उनकी टीम के राजनीति में शामिल होने के फैसले को “जल्दबाज़ी” बताया था. हालांकि, वह 2014 में आप में शामिल हुईं और उत्तर-पूर्वी मुंबई से पार्टी के टिकट पर उस साल का लोकसभा चुनाव भी लड़ा पर हार गईं. इसके एक साल बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी.
पिछले साल, पाटकर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुई थीं – जिसे भाजपा ने चुनावी मुद्दे के रूप में इस्तेमाल किया और पीएम मोदी ने एक रैली में पूछा था कि “कांग्रेस किस नैतिक आधार पर गुजरात में वोट मांग रही है जब उनकी यात्रा में एक ऐसी महिला शामिल हुई जिसकी वजह से तीन दशकों तक नर्मदा डैम प्रोजेक्ट रुका रहा.”
प्रशांत भूषण
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, हजारे की टीम के राजनीति में प्रवेश करने के प्रबल पक्षधर थे और उन्होंने आप को बनाने में मदद की. लेकिन कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों को लेकर 2015 में उन्हें पार्टी से निकाले जाने के तुरंत बाद ही बाजी पलट गई.
भूषण ने बाद में कहा कि केजरीवाल “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी हाथ मिला सकते हैं” और वह “पूरी तरह से बेईमान” हैं.
2021 में, भूषण ने ट्वीट किया कि उन्हें “लोकपाल कैंपेन में केजरीवाल के साथ भागीदारी करने और प्रचार करने में शर्म आती है”.
Today, I am truly ashamed at having partnered with & promoted Kejriwal in the Lokpal Campaign. He used the campaign to become CM. Then junked the Lokpal; junked transparency of funding of AAP; junked alternative politics altogether;& now trying to outdo BJP in 'Hindu Nationalism' https://t.co/TfNlGmDv9U
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) March 15, 2021
भूषण को भारत जोड़ो यात्रा में भी भाग लेते देखा गया था.
Today, I am truly ashamed at having partnered with & promoted Kejriwal in the Lokpal Campaign. He used the campaign to become CM. Then junked the Lokpal; junked transparency of funding of AAP; junked alternative politics altogether;& now trying to outdo BJP in 'Hindu Nationalism' https://t.co/TfNlGmDv9U
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) March 15, 2021
योगेंद्र यादव
एक्टिविस्ट और एकेडमिक योगेंद्र यादव उन AAP नेताओं में शामिल थे, जिन्हें 2015 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. पंजाब विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर, योगेंद्र यादव IAC में शामिल हुए और बाद में AAP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने.
उन्हें केजरीवाल के साथ टीवी बहसों में, पार्टी के दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए और आप के लगभग हर महत्वपूर्ण कार्यक्रम में भाग लेते देखा गया.
आप से अपने निष्कासन के बाद, यादव ने 2021 में एक ओपिनियन पीस में लिखा था: “राजनीतिक पार्टी बनाना हमारी गलती नहीं थी बल्कि पार्टी द्वारा नैतिक तरीकों को सुनिश्चित न कर पाना हमारी गलती थी. जैसे ही हमें इस बात का अहसास हुआ, हमने इसका विरोध किया और हमें पार्टी से निकाल दिया गया. लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था.”
बाद में उन्होंने स्वराज अभियान और जय किसान आंदोलन की स्थापना की और 2020-2021 के किसान आंदोलन के साथ-साथ भारत जोड़ो यात्रा में सक्रिय भागीदार थे.
मयंक गांधी
एक्टिविस्ट मयंक गांधी मुंबई में अन्ना आंदोलन का चेहरा बने. वह IAC की कोर कमेटी के सदस्य और AAP के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य थे.
2015 में, उन्होंने “राजनीति में रुचि खत्म होने” पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया और बाद में आरोप लगाया कि केजरीवाल ने आप को एक लोकतांत्रिक पार्टी से निरंकुश पार्टी में बदल दिया है. 2018 में, उन्होंने पार्टी की पूरी जर्नी के बारे में बताते हुए उन्होंने आप एंड डाउन नाम की एक किताब लिखी.
अविनाश धर्माधिकारी
पूर्व आईएएस अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी टीम अन्ना 2.0 का चेहरा थे. एक पूर्व स्वतंत्र पत्रकार, धर्माधिकारी ने 1996 में सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और इसमें पूरी तरह से सक्रिय हो गए.
वह 2009 में शिवसेना में शामिल हुए थे, लेकिन अन्ना आंदोलन से ठीक पहले 2011 में शिवसेना छोड़ दी. पूर्व सिविल सेवक अपने द्वारा स्थापित कैरियर मार्गदर्शन, प्रतियोगी परीक्षाओं और व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में काम करने वाले एक धर्मार्थ ट्रस्ट, चाणक्य मंडल परिवार के निदेशक बने हुए हैं.
सुनीता गोदारा
1992 की एशियाई मैराथन चैंपियन, अन्ना आंदोलने के शुरुआती दिनों में इससे जुड़ी जब कई अन्य खिलाड़ियों ने उनका समर्थन किया था, लेकिन 2012 तक एक प्रमुख सदस्य के रूप में उनसे जुड़ी रहीं.
गोदारा आप में शामिल नहीं हुईं, और अब दिल्ली में स्थित अपना स्वयं का एनजीओ – हेल्थ फिटनेस ट्रस्ट एंड हेल्थ फिटनेस सोसाइटी चलाती हैं. गोदारा आप या भाजपा पर राजनीतिक बयानों से दूर रहती हैं.
राजेन्द्र सिंह
जल संरक्षणवादी और पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह, जिन्हें “वॉटरमैन ऑफ इंडिया” के नाम से जाना जाता है, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से अलग होने वाले पहले लोगों में से एक थे.
उन्होंने अक्टूबर 2011 में इससे अलग होने का फैसला किया, जब हजारे ने हिसार उपचुनाव से पहले हरियाणा जनहित कांग्रेस-बीजेपी गठबंधन के उम्मीदवार कुलदीप बिश्नोई को आईएसी ग्रुप के कांग्रेस-विरोधी कैंपेन के तहत समर्थन देने की घोषणा की.
हालांकि, सिंह ने महाराष्ट्र में 2019 की भूख हड़ताल के दौरान हजारे से मुलाकात की.
अखिल गोगोई
असमिया आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने इसके कुछ सदस्यों के राजनीति में शामिल होने के बाद आईएसी से नाता तोड़ लिया था.
गोगोई ने असम में बांधों और भू-माफिया के खिलाफ राज्यव्यापी आंदोलन का नेतृत्व किया था. उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम का भी विरोध किया और 2019 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने 2020 में एक राजनीतिक संगठन, रायजोर दल की स्थापना की और जेल में रहते हुए शिवसागर निर्वाचन क्षेत्र से 2021 का असम विधानसभा चुनाव जीता.
इस साल मार्च में, गोगोई ने 2024 के लोकसभा चुनावों पर नज़र रखने के लिए गुवाहाटी में कांग्रेस द्वारा बुलाई गई विपक्षी नेताओं की बैठक में भाग लिया.
अंकित लाल
अंकित लाल, तकनीकी विशेषज्ञ और IAC के पूर्व सोशल मीडिया प्रमुख, अपने शुरुआती दिनों में आंदोलन से जुड़े थे और IAC के आधिकारिक ईमेल पते पर “किसी भी दिन” आने वाले “400 से 500 ईमेल” का जवाब देते थे. 2012 में, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और AAP में पूरी तरह से शामिल हो गए. 2020 में पोलिटिकल कन्सलटिंग शुरू करने से पहले उन्होंने सोशल मीडिया और आईटी विंग का नेतृत्व किया.
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आनंद कुमार और अजीत झा
समाजशास्त्र के सेवानिवृत्त जेएनयू प्रोफेसर आनंद कुमार ने 2014 का लोकसभा चुनाव आप के टिकट पर पूर्वोत्तर दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से लड़ा था, लेकिन भाजपा उम्मीदवार मनोज तिवारी से हार गए थे. एक अन्य एकेडमिक अजीत झा भी आप के एक प्रमुख सदस्य थे, जिन्हें कुमार, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ पार्टी से निकाल दिया गया था. कुमार बाद में स्वराज अभियान से जुड़े.
अंजलि दमानिया
एक्टिविस्ट अंजलि दमानिया 2011 में अन्ना आंदोलन और बाद में आप में शामिल हुईं. उन्होंने नागपुर से भाजपा नेता नितिन गडकरी के खिलाफ 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और आप की महाराष्ट्र इकाई का नेतृत्व किया. हालांकि, उन्होंने 2015 में पार्टी छोड़ दी थी.
दमानिया ने तब से अपनी सक्रियता जारी रखी है. बाद में 2016 में लैंड डील के एक मामले को लेकर उन्होंने भूख हड़ताल पर जाकर भाजपा नेता एकनाथ खडसे, जो उस समय महाराष्ट्र में मंत्री थे, के इस्तीफे की मांग की थी.
आशीष खेतान
आशीष खेतान एक पत्रकार थे, जिन्होंने आप में शामिल होने के बाद राजनीति की ओर रुख किया, लेकिन अंततः 2018 में यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि वह “केजरीवाल की राजनीति से निराश हैं”.
आप के सदस्य के रूप में, उन्होंने मीनाक्षी लेखी के खिलाफ नई दिल्ली सीट से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. “दिल्ली डायलॉग” कॉन्सेप्ट के पीछे खेतान का दिमाग था, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसने आप को मतदाताओं से जोड़ने में मदद की थी. 2015 से 2018 तक, उन्होंने दिल्ली सरकार के पॉलिसी मेकिंग बॉडी और दिल्ली के थिंक टैंक डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया.
आप छोड़ने के एक महीने बाद खेतान ने मोदी सरकार की आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की सराहना की थी.
वह वर्तमान में जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में प्रोफेसर हैं.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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