नई दिल्ली: मध्यप्रदेश में वैसे तो विधानसभा चुनाव अभी दस महीने दूर है पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार को बचाने के लिए अभी से पूरी ताक़त लगा दी है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन बीजेपी विधायकों से मिलकर उन्हें अपना प्रदर्शन सुधारने को कहा है जिनके ख़िलाफ़ पार्टी के आंतरिक सर्वें में नकारात्मक टिप्पणी की गई है. प्रदर्शन नहीं सुधारने के हालात में टिकट कटने की संभावना से ऐसे विधायकों को अवगत करा दिया गया है.
पिछले दिनों कराए गए पार्टी के आंतरिक सर्वे में चालीस फ़ीसदी विधायकों का प्रदर्शन ख़राब बताया गया है, जिससे इनके चुनाव लड़ने की संभावना कम हो सकती है और इन पर टिकट कटने की तलवार भी लटक सकती है.
गुजरात विधानसभा के चुनाव में पार्टी ने 45 वर्तमान विधायकों के टिकट काटे थे जिसका ज़बर्दस्त फ़ायदा बीजेपी को मिला .
विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद पिछले तीन दिनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चार से अधिक ज़िलों के चालीस से अधिक विधायकों के साथ उनके सर्वे के साथ व्यक्तिगत बैठक की है, जो आने वाले सप्ताह में बाक़ी विधायकों से मिलने तक जारी रहेगा. कई विधायक जिनकी रिपोर्ट निगेटिव आई है या फिर जिनके काम काज से जनता खुश नहीं है, मुख्यमंत्री ने उन्हें सुधरने और अपने प्रदर्शन को सुधारने के लिए जोड़ देकर कहा है. मुख्यमंत्री ने उन्हें कहा है, ‘सुधरो वरना टिकट कट जाएगा.’
पार्टी के आंतरिक सर्वे में चालीस प्रतिशत विधायकों का प्रदर्शन ख़राब बताया गया है. सर्वे रिपोर्ट हर विधायक द्वारा पिछले चार वर्षों में अपने इलाक़े में कराए गए विकास के काम काज ,जनता के बीच विधायक की लोकप्रियता , योजनाओं के प्रचार प्रसार में उनके योगदान ,उनकी कमियां, विरोधियों के द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार और जनता के फ़ीडबैक के आधार पर तैयार की गई है. मुख्यमंत्री इसी रिपोर्ट को विधायकों से मुलाक़ात के दौरान सामने रखकर सवाल जबाब कर रहें हैं.
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‘वर्ना देर हो जाएगी’
मुरैना के आदिवासी इलाके से आने वाले एक विधायक जब मुख्यमंत्री से मिलने गए तो रिपोर्ट कार्ड को सामने रखते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘तुम्हारे ख़िलाफ़ शिकायत है कि तुम जनता से मिलते नहीं हो और अपने इलाक़े में सक्रिय नहीं हो ,अपना जनसंपर्क बढ़ाओ वरना टिकट कट जाएगा.’ मुख्यमंत्री ने बीजेपी विधायक को अपने प्रदर्शन सुधारने की हिदायत के साथ कहा, ‘वर्ना देर हो जाएगी.’
रीवा ज़िले के एक और विधायक जिन्हें मुख्यमंत्री ने मिलने के लिए बुलाया उन्हें भी मुख्यमंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र में जनसंपर्क बढ़ाने की सलाह दी है. विधायक दिप्रिंट को बताया, ‘मुख्यमंत्री ने जनता के बीच ज़्यादा से ज़्यादा समय रहने के साथ साथ अपने इलाके में खाद्यान्न की कोई कमी न होने पाये पर ध्यान देने को कहा है.’ उन्होंने आगे बताया, ‘पंचायत में सभी वर्गों के लोगों के बीच मिलने जुलने को कहा है.’
विधायक ने बताया, ‘कुछ विरोधियों ने मेरे खिलाफ जनता के बीच उपलब्ध नहीं होने की शिकायत की है. मुख्यमंत्री ने उस तरफ़ इशारा किया है फ़ीडबैक में मुझे काम करने को कहा गया है.’
मुरैना के जीरा विधानसभा से बीजेपी विधायक सूबेदार सिंह रजौधा को मुख्यमंत्री ने अपने इलाके के त्यागी जाति के गांवों पर ध्यान देने को कहा है. विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि बाक़ी सब रिपोर्ट कार्ड में कोई दिक़्क़त नहीं थी पर त्यागियों के कई गांवों में पिछली बार मतदान कम हुआ था उन गांवों में जनसंपर्क बढ़ाने और उनपर ध्यान केन्द्रित करने को मुख्यमंत्री ने कहा है.
गुना से बीजेपी विधायक गोपीलाल जाटव से मुंख्यमंत्री ने अपने ग्रामीण इलाक़ों पर फ़ोकस करने को कहा , जाटव के मुताबिक ‘शहरी इलाक़ों में पिछली बार भी बीजेपी को अच्छा वोट मिला था पर सर्वे में ग्रामीण इलाक़ों में चिंता व्यक्त की गई है, साथ ही उन्हें जितने भी कार्य पूरे हुए हैं और जिन योजनाओं को आगे पूरा होना है उनके फ़ीते काटने ,भूमि पूजन करने ,नारियल फोड़ने को कहा गया है जिनमें जनता की भी भागीदारी हो.’
जनसंपर्क में कमजोर ,योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में नाकामी ,छवि की दिक़्क़त
मध्यप्रदेश बीजेपी ईकाई के वरिष्ठ ने दिप्रिंट से कहा, ‘सर्वे की रिपोर्ट में जिन विधायकों की रिपोर्ट निगेटिव बताई गई है उन्हें पहले से आग़ाह किया जा रहा है ताकि वो बचे समय में अपना प्रदर्शन सुधार लें क्योंकि अभी टिकट बंटने में समय है पर उसकी प्रकियाशुरू हो गई है. जैसे गुजरात में पार्टी ने अपनी एंटी इनकम्बैंसी को कम करने के लिए बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया था जिसका अच्छा परिणाम देखने को मिला. हालांकि दोनों राज्यों की परिस्थिति में अंतर है हमारे पास हिमाचल का उदाहरण भी है जहां टिकट काटने का नुक़सान हुआ ,कांग्रेस मध्यप्रदेश में उतनी कमजोर नहीं है जितनी गुजरात में थी पर हमें एंटी इनकम्बैंसी को पाटने के लिए उन सारी रणनीति को अपनाना है जिससे सत्ता में वापसी हो सके.’
पार्टी के एक अन्य नेता बताते हैं, ‘कुछ विधायकों का जनसंपर्क उतना मज़बूत नहीं है यद्यपि वो अच्छा काम कर रहें है. वहीं कुछ विधायक अपने किए कामों और सरकार के कराए गए कामों को जनता तक पहुंचाने में नाकाम रहे है , कुछ विधायकों की छवि ख़राब हो गई है जबकि कुछ विधायक जनता से कट गए हैं, उन सबको अपनी कमियों को समय रहते ही सुधारने को कहा गया है.’ बता दें कि कि इस लिस्ट में कई मंत्री भी शामिल हैं जिन्हें विधायक दल की बैठक और मंत्रियों की संगठन मंत्री की बैठक में अवगत कराया गया है.’
हालांकि काम न करने वाले विधायकों को लगभग दस महीने पहले ही चेताया जाना अच्छी एक्सरसाइज हो सकती है. उज्जैन के सामाजिक संस्थान से जुड़े प्रोफेसर वाई एस सिसोदिया बताते हैं, ‘ निश्चित रूप से यह विधायकों को सचेत करने के लिए भारतीय जनता पार्टी का यह कदम अच्छा है. इससे विधायक सचेत होंगे और अपने अपने इलाके में काम भी करेंगे.’
हालांकि, इस एक्सरसाइज से कई विधायक विद्रोह भी कर सकते हैं इसपर सिसोदिया कहते हैं, ‘मध्यप्रदेश में विद्रोही विधायकों को कोई ख़ास सफलता नहीं मिली है यहां तक कि उमा भारती की पार्टी को भी जनता ने ठुकरा दिया था.’ लेकिन जब बात कांटे की टक्कर की हो तो कुछ वोटों का नुक़सान भी पार्टियां नहीं उठाना चाहेंगीं.’
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मालवा, महाकौशल और ग्वालियर गले की फांस
बीजेपी के लिए चिंता की लकीर मालवा, महाकौशल और ग्वालियर चंबल के इलाक़े हैं जो केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा का गृह ज़िला भी है. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का ख़राब प्रदर्शन रहा था. यहां तक की स्थानीय निकाय के चुनावों में भी पार्टी को यहां करारी मात मिली. बीजेपी ने इस इलाक़े की 138 सीटों में से 100 सीटें केवल इन तीन इलाक़ों से जीती थीं जो 2018 में घटकर 48 रह गई,
बीजेपी ने चंबल इलाक़े से 20 सीटों की तुलना में महज़ सात सीटें जीती तो महाकौशल इलाक़े में 2013 के 24 सीटों के मुक़ाबले 13 सीटें ही जीत पाई तो मालवा निमाड इलाक़े में 56 सीटों के मुक़ाबले 28 सीटें ही जीत पाई, पिछले चुनाव में पार्टी के 57 वर्तमान विधायक चुनाव हारे जिनमें 13 मंत्री शामिल थे.
मालवा जहां आदिवासियों की बहुतायत है वहां बीजेपी को भारी नुक़सान उठाना पड़ा. आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी अपने 2013 के 31 सीट से घटकर 16 सीटों पर लुढ़क गई. हालांकि, सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद कांग्रेस ग्वालियर चंबल के इलाक़े में कमजोर हुई है क्योंकि 2018 के चुनाव में सिंधिया ,दिग्विजय और कमलनाथ की तिकड़ी ने बीजेपी को बहुमत से पीछे धकेल दिया था . पर सच यह भी है कि 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में सत्ता में वापसी के बाद से कमलनाथ के 18 महीनों की सरकार को छोड़कर बीजेपी मध्यप्रदेश में लगातार सत्ता में है पर 2003 के बाद बीजेपी का वोट प्रतिशत और सीटें भी लगातार घट रही है. सिर्फ़ 2013 को छोड़कर जब शिवराज की लोकप्रियता सांतवें आसमान पर थी .
2003 में बीजेपी ने 173 सीटें जीती थी और कांग्रेस मात्र 38 सीटों पर सिमट गई थी पर 2008 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हुए चुनाव में 143 सीटें जो 2013 में बढ़कर 165 सीटें हो गई और कांग्रेस 58 सीट पर सिमट गई पर 2018 विधानसभा के चुनाव में शिवराज घटकर 109 सीटों पर आ गए और कांग्रेस 58 सीटों से बढ़कर 114 सीटों पर आ पहुंची .
आठ प्रतिशत के वोटों का फ़ासला महज़ 0.1 प्रतिशत पर आ टिका, बीजेपी में 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए हर बूथ पर 51 प्रतिशत मत प्रतिशत हासिल करने का संकल्प ले रखा है जिसे हासिल करने के लिए बीजेपी नेताओं के मुताबिक़ सरकार की सर्जरी और विधायकों के टिकट काटने की सख्त ज़रूरत है .
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
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