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Friday, 22 November, 2024
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शिवराज ने सिंधिया और हाईकमान को कहा शुक्रिया, मंत्रिमंडल में उनके खेमे को अभी करना पड़ेगा इंतज़ार

भाजपा ने मध्यप्रदेश में पांच अलग अलग समुदायों से मंत्रियों को प्रतिनिधित्व देकर जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है. लेकिन यह देखना रुचिकर होगा कि कोविड-19 से लड़ाई में कितने सफल होते हैं शिवराज.

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नई दिल्ली: मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने 29 दिनों के बाद अपनी कैबिनेट बना ली. इस मिनी कैबिनेट में खास बात यह रही कि इसमें शिवराज सिंह चौहान अपने किसी भी भरोसेमंद व्यक्ति को जगह नहीं दिला सके. राज्य भाजपा में पहली बार यह देखने को मिला कि कै​बिनेट के गठन में न तो किसी विशेष गुट के नेता को महत्व ​दिया गया और ना ही किसी की पसंद और नापसंद को तवज्जो दी गई. शुरु से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि शिवराज के पंसदीदा को इस कैबिनेट में जगह मिलेगी. लेकिन भाजपा हाईकमान ने कयासों पर रोक लगा दी.भाजपा खेमे से मंत्री बने डॉ.नरोत्तम मिश्रा सीधे भाजपा हाईकमान से जुड़े हैं. वहीं अन्य दो मंत्री कमल पटेल और मीना सिंह की आरएसएस की पृष्ठभूमि रही है. इसके अलावा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट से आते है.भाजपा ने मध्यप्रदेश में पांच अलग-अलग समुदायों से मंत्रियों को प्रतिनिधित्व देकर जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है.

नरोत्त​म मिश्रा: सामान्य वर्ग और ब्राहण चेहरा हैं और दतिया से पार्टी के विधायक हैं. मिश्रा की गिनती पार्टी में बड़े नेताओं में होती है. वे शिवराज सरकार के पिछले तीन कार्यकाल में मंत्री भी रह चुके हैं. ग्वालियर चंबल संभाग में अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है. प्रदेश की सियासत में जब भी भाजपा पर संकट छाया तो मिश्रा ने हमेशा एक संकटमोचक की भूमिका निभाई. कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन भाजपा को सत्ता दिलाने में मिश्रा का अहम रोल रहा. मिश्रा आपरेशन लोटस के ​अहम किरदार थे.केंद्रीय नेतृत्व से अच्छे संबंध के चलते ही उन्हें कमलनाथ सरकार को गिराने और नई सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई है.मिश्रा का नाम राज्य के उपमुख्यमंत्री के तौर पर भी चला था ​लेकिन उन्हें फिर कैबिनेट मंत्री बनाया गया है.


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कमल पटेल भाजपा के हरदा से विधायक है. वे उमा भारती, बाबूलाल गौर और पहले भी शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री रह चुके हैं.पटेल ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. उनका विवादों से भी नाता रहा है. पटेल ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखते है. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के करीबी माने जाते हैं.उनके खिलाफ दुर्गेश जाट हत्याकांड मामले में सीबीआई ने भी जांच की थी. 2005 में जब मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी तब भी वो शिक्षा मंत्री बने थे. चार बार विधायक चुने जाने के बाद पटेल 2013 में विधानसभा चुनाव में हार गए थे. 2018 के चुनावों में पटेल ने जीत दर्ज की.

मीना सिंह उमरिया जिले की मानपुर से भाजपा की विधायक है. वे महिला और आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है. वे पार्टी में लंबे वक्त से उपेक्षा झेल रही थी. सिंह पहले की सरकारों में राज्यमंत्री भी रहीं लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया था. मीना सिंह पांच मंत्रियों में अकेली महिला मंत्री है.भाजपा ने उन्हें कैबिनेट मे लेकर दो निशाने साधे है एक तो महिला को स्था​न दिया दूसरा एक आदिवासी चेहरा को आगे किया.

पांच बार की विधायक मीना सिंह भाजपा में कई अहम पदों पर रही है. इसके अलावा वे भाजपा सरकारों में आदिम जाति व अनुसूचित जाति कल्याण, महिला एवं बाल विकास, पंचायत और ग्रामीण विकास, नर्मदा घाटी विकास विभाग में राज्यमंत्री के पद पर रह चुकी है.


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तुलसी सिलावट की​ ज्योतिरादित्य सिंधिया के ही नहीं उनके परिवार के भी सबसे विश्वस्त माने जाते है. सिलावट कांग्रेस पार्टी में राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर में कई अहम पदों पर रहे है. अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले सिलावट शुरु से ही इंदौर में छात्रसंघ की राजनीति में सक्रिय रहे है. राज्य के मालवा क्षेत्र के बड़े नेताओं में गिने जाने वाले सिलावट कई बार विधायक भी रहे. सिलावट कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए थे.

मध्यप्रदेश में राइट टू हेल्थ कार्यक्रम की तैयारी भी उनके रहते ही की जा रही थी. तुलसी​ सिलावट ने कई बार पूर्व सीएम कमलनाथ पर आरोप भी लगाया था कि वो मंत्रियों की नहीं सुनते है. जिससे काम में रुकावटे आती हैं. सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद ही तुलसी ने भी कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम ​लिया. वहीं अब उन्हें शिवराज ने मंत्री पद से नवाजा है.सिलावट के भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी को अनुसूचित जाति वर्ग का एक बड़ा चेहरा मिल गया है.

गोविंद सिंह राजपूत मध्यप्रदेश के सागर जिले की सुरखी सीट से विधायक है. वे शिवराज सरकार का सवर्ण चेहरा है.राजपूत की गिनती भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास व्यक्ति में होती है. गोंविद सिंह ने भी छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. वे राज्य में कांग्रेस पार्टी के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे है. कमलनाथ सरकार में राजस्व और परिवहन मंत्री रह चुके राजपूत की बुंदेलखंड के बड़े ठाकुर नेताओं में गिनती होती है.सिंधिया खेमे के रसूखदार ठाकुर नेता होने की वजह से शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में इन्हें जगह दी गई है. सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद राजपूत भी कांग्रेस छोड़ भाजपा के सदस्य बन गए है.


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कोरोना संकट के बीच 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान ने सीएम पद की अकेले शपथ ली थी. वे लगातार 29 दिन से अकेले ही बिना मंत्रिमंडल के सरकार चला रहे थे. कोरोना संकट के कारण के चलते वो अपना मंत्रिमंडल नहीं बना सके थे. इसी के चलते इतने दिन अकेले सरकार चलाने का रिकार्ड भी शिवराज सिंह चौहान के नाम हो गया है. इसके पहले रिकॉर्ड 4 बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने रिकार्ड भी शिवराज ने नाम दर्ज है.

बड़े भाजपा नेताओं को नहीं मिली जगह

शिवराज सिंह की कैबिनेट में भाजपा के कई दिग्गज नेता नदारद रहे. विपक्ष के नेता रहे और वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव के अलावा भूपेंद्र सिंह, गौरीशंकर बिसेन, विजय शाह, यशोधरा राजे सिंधिया, राजेंद्र शुक्ला और रामपाल सिंह जैसे नेताओं को फिल्हाल मंत्री नहीं बनाया गया है. इन सभी नामों को अभी प्रतीक्षा में डाल दिया है. अगले कैबिनेट विस्तार में इन नामों को तवज्जो दी जा सकती है.

गौरतलब है कि राज्य में 230 सदस्यों की विधानसभा है.इस लिहाज से मंत्रिमंडल में अधिकतम 15 प्रतिशत यानी 35 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं.मंत्रिमंडल में अभी भी 29 जगह हैं. आने वाले दिनों में भाजपा और कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए लोगों को मंत्री बनाया जा सकता है.

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