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Sunday, 28 April, 2024
होमराजनीति'रेल सुरक्षा में सुधार के नाम पर सरकार नाटक कर रही'- सामना ने बिहार ट्रेन हादसे को लेकर कसा तंज

‘रेल सुरक्षा में सुधार के नाम पर सरकार नाटक कर रही’- सामना ने बिहार ट्रेन हादसे को लेकर कसा तंज

इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ सालों से, मोदी सरकार रेलवे के सुरक्षा तंत्र में कथित ओवरहाल का नाटक कर रही है. अगर वाकई सिस्टम में सुधार किया गया है तो बार-बार रेलवे दुर्घटनाएं क्यों हो रही हैं?

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मुम्बई (महाराष्ट्र) : शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र सामना ने बुधवार रात को बिहार के बक्सर जिले में द नॉर्थ-ईस्ट एक्सप्रेस के 21 कोचों के पटरी से उतरने को लेकर रेलवे की कार्यशैली और यात्रियों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाया है, जिसमें 4 यात्रियों की मौत हो गई थी और 30 ज्यादा लोग घायल हो गए थे. संपादकीय में बालासोर हादसे का जिक्र किया गया है, जिसमें 295 यात्रियों की मौत हो गई थी.

शुक्रवार को प्रकाशित अपने ताजा संपादकीय में, सामना ने रेलवे संपत्तियों, सेवाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के दावों को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर कटाक्ष किया है.

सामना हिंदी संपादकीय ने ‘बढ़ती रेल की बलि’ शीर्षक नाम से छापे इस लेख में मोदी सरकार द्वारा भारतीय रेलवे में सुधार और सुरक्षा को लेकर उठाए कदमों को नाटक करार दिया है और बार-बार हो रही रेल दुर्घटना को लेकर सवाल उठाया है.

रेल दुर्घटनाओं को केंद्र सरकार की लापरवाही बताया

लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओं की मोदी सरकार की लापरवाही बताया गया है.

संपादकीय में कहा गया है, “हादसा हो या साजिश, लेकिन सबसे सुरक्षित यात्रा के रूप में जनता का विश्वास जिस रेल यात्रा का था, वह विश्वास पिछले कुछ वर्षों में डगमगा गया है, इसे मानना ही पड़ेगा.”

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इस लेख आखरि में लिखा गया है, “यात्रियों की जीवन यात्रा को ही समाप्त करने वाले इस बढ़ती ‘रेल बलि’ सरकार की लापरवाही ही है या रेल प्रशासन के आधुनिकीकरण की वजह, यह अब सरकार ही बताए!”

गौरतलब है कि जहां पर दुर्घटना घटी हैं उससे आगे कुछ ही दूरी पर रेल की पटरी कई जगह पर टूटी पाई गई है. इस वजह से इसे हादसा नहीं, बल्कि साजिश होने का संदेह जताया जा रहा है.


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‘रेल सुरक्षा तंत्र में सुधार के नाम पर सरकार नाटक कर रही’

संपादकीय में कहा गया है, “किसी भी रेल दुर्घटना के बाद कुछ दिनों तक संभावित कारणों पर चर्चा चलती रहती है, चाहे वह तकनीकी खामियां हों, मानवीय गलतियां हों या साजिश. एक जांच समिति या आयोग का गठन किया जाता है और एक रिपोर्ट पेश की जाती है. रेलवे विभाग की गलतियों को उजागर किया जाता है और सवाल उठाए जाते हैं. सुरक्षा उपायों पर भी सवाल उठाए जाते हैं. लेकिन जब तक ऐसी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है, तब तक एक नई दुर्घटना की सूचना आ जाती है और उसके बाद पूछताछ और रिपोर्ट की वही कठिन प्रक्रिया शुरू हो जाती है.”

संपादकीय में यह दावा करते हुए कि यह नौकरशाही प्रक्रिया खुद को दोहराती है क्योंकि फोकस एक रेलवे दुर्घटना से दूसरे पर चला जाता है, संपादकीय में कहा गया है, “पिछले कुछ वर्षों से, मोदी सरकार रेलवे के सुरक्षा तंत्र में कथित ओवरहाल का नाटक कर रही है. यदि सिस्टम वास्तव में, सुधार किया गया है, बार-बार रेलवे दुर्घटनाएं क्यों हो रही हैं? इससे पहले, बालासोर में तीन ट्रेनें आपस में टकराई थीं, जिसमें 295 यात्रियों की मौत हो गई थी. दुर्घटना के 28 अज्ञात शवों का चार महीने बाद बुधवार को अंतिम संस्कार किया गया.”

बिहार ट्रेन हादसे में मरने वालों की संख्या छह होने का हवाला देते हुए सामना के संपादकीय में कहा गया, ”बालासोर के इन लावारिस पीड़ितों की चिताएं खत्म होने से पहले ही, बिहार में नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस के 21 डिब्बे पटरी से उतर जाने से छह यात्रियों की जान चली गई. 100 से ज्यादा यात्री घायल हो गये. अब सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या ऐसी दुर्घटनाएं उसकी लापरवाही या यात्री सुरक्षा में ढिलाई का नतीजा हैं.”

जबकि रेलवे ने डिब्बों के पटरी से उतरने की जांच शुरू की है, लेख में कहा गया कि अभी तक इस बात का सबूत नहीं दिया गया है कि दुर्घटना तोड़फोड़ की वजह से हुई थी.

नॉर्थ-ईस्ट एक्सप्रेस दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल से निकली थी और असम के कामाख्या की ओर जा रही थी, जब बुधवार रात 9.35 बजे पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर डिवीजन के रघुनाथपुर स्टेशन के पास 21 डिब्बे पटरी से उतर गए.


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