नई दिल्ली: कांग्रेस पर ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ को अपनाने के आरोपों का जवाब देते हुए पार्टी लीडर शशि थरूर ने कहा कि कांग्रेस हल्की-बीजेपी बनना बर्दाश्त नहीं कर सकती.
बुधवार को दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ, एक वर्चुअल ऑफ द कफ बातचीत में थरूर ने कहा कि कांग्रेस ‘किसी भी रूप या आकार में’ बीजेपी की तरह नहीं है.
थरूर ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि बहुत से उदारवादियों के बीच ये एक वास्तविक चिंता है लेकिन हम हल्की-बीजेपी बनना बर्दाश्त नहीं कर सकते’. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं बहुत समय से कहता आ रहा हूं कि पेप्सी-लाइट की तरह बीजेपी-लाइट बनने की कोशिश में हम आख़िर में कोक-ज़ीरो या कांग्रेस-ज़ीरो बन जाएंगे’.
उन्होंने आगे कहा, ‘कांग्रेस ‘किसी भी रूप या आकार में’ बीजेपी नहीं है. हमें उस चीज़ का हल्का रूप बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो हम नहीं हैं. और मैं तो कहूंगा कि हम दरअसल ये कोशिश कर भी नहीं रहे’. उन्होंने आगे कहा, ‘कांग्रेस हिंदू धर्म और हिंदुत्व में अंतर करती है. हिंदू धर्म का हम एक समावेशी और गैर-आलोचनात्मक धर्म के तौर पर आदर करते हैं, जबकि दूसरी ओर हिंदुत्व एक राजनीतिक धारणा है, और बहिष्करण पर आधारित है’.
तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद ने हाल ही में, अपनी ताज़ा किताब ‘द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग, एक्सप्लोरिंग आइडियाज़ ऑफ नेशनलिज़म एंड पेट्रियॉटिज़्म’ रिलीज़ की है.
थरूर ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, कांग्रेस लीडर राहुल गांधी के मंदिरों के दौरों का भी बचाव किया.
थरूर ने कहा, ‘बीजेपी के राजनीतिक संदेश का हलका रूप पेश करने की बजाय, कांग्रेस ये कह रही है कि एक निजी धर्म के तौर पर, आप हिंदू रह सकते हैं, मंदिरों में जाने में कोई हर्ज नहीं है’. उन्होंने आगे कहा, ‘जब राहुल गांधी मंदिरों में जाते हैं…तो उन्होंने ये भी कहा कि वो हिंदुत्व में यक़ीन नहीं रखते, चाहे वो सॉफ्ट हो या हार्ड हो’.
लीडर ने ये भी कहा कि वो भी अपने चुनाव क्षेत्र में, मंदिरों में जाते हैं और मस्जिदों और चर्चों में भी जाते हैं.
थरूर ने कहा, ‘एक राजनेता के नाते आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उन चीज़ों के प्रति सम्मान दिखाएं, जो आपके मतदाताओं के लिए क़ीमती हैं. जब तक आप बुनियादी तौर पर असहमत न हों, तब तक आप क्यों नहीं जाएंगे’.
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‘पत्र पर साइन करने वाले पक्के कांग्रेसी हैं’
थरूर ने उस पत्र की भी बात की, जो अगस्त में उनके समेत 23 कांग्रेस नेताओं ने लिखा था, जिसमें हस्ताक्षर करने वालों ने एक ‘पूर्ण-कालिक और कारगर नेतृत्व’ की मांग की थी. वो एक ऐसा नेतृत्व चाहते थे, जो फील्ड में ‘दिखे’ और ‘सक्रिय’ हो. उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की सदस्यता के लिए चुनाव कराए जाने चाहिए.
थरूर ने कहा कि पत्र पर दस्तख़त करने वाले सभी नेताओं ने कांग्रेस के हित में बात की थी और ये कोई बेवफाई नहीं थी.
थरूर ने कहा, ‘हम सब सौ फीसद कांग्रेसी हैं, ज़रा उनके नाम देखिए जिन्होंने पत्र पर साइन किए हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘किसी की भी बीजेपी जैसी सोच नहीं है. बल्कि इसके उलट ये वो लोग हैं, जो कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ मज़बूत होते देखना चाहते हैं’.
दस्तख़त करने वालों में अन्य प्रमुख नेता थे, ग़ुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी.
थरूर ने कहा, ‘हमारी चिंताएं पार्टी के हित में हैं; उनका मतलब किसी भी तरह से पार्टी से बेवफ़ाई नहीं है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘और मैं इस बात को फिर कहूंगा कि हम चाहते हैं कि पार्टी कामयाब हो, और फूले फले’.
पत्र के बाद एक सीडब्ल्यूसी मीटिंग में, शीर्ष नेतृत्व ने पत्र की टाइमिंग को लेकर हस्ताक्षर करने वालों को झिड़क दिया. थरूर ने कहा, ‘उस समय हमें पीछे धकेलने की कोशिश हुई’. उन्होंने ये भी कहा कि वो इस पर और गहराई में नहीं जाना चाहेंगे.
थरूर ने कहा, ‘आप तो जानते ही हैं कि वर्किंग कमेटी की एक बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी, और हम समझते हैं कि हमने जिन चीज़ों की मांग की थी, उनमें से कुछ को लागू करने पर काम चल रहा है, जिसमें निकट भविष्य में चुनाव कराना शामिल है, लेकिन हमें अधिकारिक रूप से सूचित नहीं किया गया है…मैं उम्मीद करता हूं कि हमें एक स्पष्ट संदेश मिलेगा’.
‘सीएए जिन्ना के उपमहाद्वीप के विचार की जीत है’
थरूर ने ये भी कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के साथ मिलकर, ‘सीएए जिन्ना के उपमहाद्वीप के विचार की जीत है’.
थरूर ने कहा, ‘गृहमंत्री का सीएए को देशव्यापी एनआरसी से जोड़ना, संविधान पर एक बुनियादी हमला था’. उन्होंने आगे कहा, ‘ये जिन्ना के उपमहाद्वीप के विचार की जीत है, ये हर उस चीज़ का उल्लंघन है, जिसके लिए संविधान खड़ा है’.
राष्ट्रवाद के अपने विचार को आरएसएस से अलग बताने के लिए, थरूर ने इसे भोजन की उपमा देकर भी समझाया.
उन्होंने कहा, ‘आरएसएस का एकता में अनेकता का विचार ये है, कि हम सब हिंदू हैं और बुनियादी रूप से हम एक खिचड़ी हैं. राष्ट्रवाद की मेरी धारणा थाली की तरह है, सभी व्यंजन अलग अलग कटोरियों में हैं, और ज़रूरी नहीं कि वो एक दूसरे में मिलें’.
थरूर ने आगे कहा, ‘सरकार के किसी ग़लत काम से असहमत होना, राष्ट्र-विरोधी होना नहीं है, ये देशभक्ति का सबसे ऊंचा रूप है’.
थरूर ने कहा, ‘देशभक्ति बुनियादी रूप से अपने देश से प्रेम करना है, चूंकि वो आपका है. जहां एक देशभक्त अपने देश के लिए मरने को तैयार रहता है, वहीं एक राष्ट्रवादी अपने राष्ट्र के लिए मारने को तैयार रहता है’.
कांग्रेस नेता ने ये भी कहा कि स्वीकार्यता, हिंदू धर्म का एक अहम पहलू रही है.
उन्होंने कहा, ‘हिंदुत्व विचार वाले वो लोग जो मुझसे कहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता भारत के हिंदू इतिहास से इनकार करती है, उनसे मैं कहता हूं कि हिंदुत्व, हिंदू धर्म के इस ज़रूरी पहलू से इनकार करता है, जो स्वीकार्यता है’.
‘उदारीकरण के बाद, कांग्रेस वामपंथी नहीं रही है’
कांग्रेस के वामपंथी पार्टी होने के सवाल का जवाब देते हुए थरूर ने कहा कि ये एक ग़लत चरित्र चित्रण है.
थरूर ने कहा, ‘उदारवाद के बाद कांग्रेस पार्टी पारंपरिक दक्षिणपंथी विचारों के खिलाफ नहीं है, जो विकास से हासिल होने वाले फायदों और आमदनियों को वितरित करने में विश्वास रखते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए देश में निजी क्षेत्र को विकसित होने दीजिए, लेकिन ये सुनिश्चित कीजिए कि इसके फायदे, वास्तव में कमज़ोर और उपेक्षित वर्गों तक पहुंचें’.
थरूर ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया, और पूर्व वित्तमंत्री पी चिदांबरम द्वारा सुझाए विचारों का हवाला दिया और कहा कि इन्हें वामपंथी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
थरूर ने कहा, ‘मनमोहन सिंह कहते हैं कि हां, हमें अर्थव्यवस्था को आज़ाद करना चाहिए, लेकिन वो ये भी कहते हैं कि इससे हमें जो भी हासिल होगा, वो मैं मनरेगा को दूंगा. मैं उपेक्षित लोगों को संरक्षण दूंगा. ये कोई क्लासिक वामपंथी विचार नहीं है’.
लेकिन थरूर ने ये भी कहा कि कुछ सैद्धांतिक मतभेद हैं, जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए, और जिनका पालन होना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘अगर आप धर्मनिरपेक्षतावादी हैं तो बीजेपी में नहीं रह सकते और इसी तरह हिंदुत्व से हमदर्दी रखते हुए, आप कांग्रेस में नहीं रह सकते’.
न्यूज़ मीडिया और ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट प्रोवाइडर्स समेत, सभी डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को, सूचना व प्रसारण मंत्रालय के आधीन लाने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये एक प्रशासनिक निर्णय है.
थरूर, जो कि सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं ने कहा, ‘हम जानते हैं कि ये एक प्रशासनिक निर्णय है, ये न तो कोई विनियामक निर्णय है, न ही कोई विधायी क्रिया है. इसका ज़ाहिरी असर ये होगा कि फिल्मों को लेकर आईएंडबी की नीतियों को विस्तार देकर, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर लागू कर दिया जाएगा’.
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