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Sunday, 5 May, 2024
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‘कैटल क्लास’ विवाद में थरूर का साथ दिया’, KPCC चीफ ने कहा- अब वह हमें बताते भी नहीं कहां दौरा कर रहे

तीन बार के सांसद थरूर का केरल दौरा जारी है, जो पार्टी की राज्य इकाई को नागवार गुजर रहा है. केपीसीसी प्रमुख के.सुधाकरन कहते हैं, 'हम उन्हें वापस चाहते हैं, कृपया उन्हें शिष्टाचार बनाए रखने के लिए कहें.'

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नई दिल्ली: विभिन्न समुदायों और प्रोफेशनल ग्रुप्स द्वारा आयोजित बैठकों में भाग लेने के दौरान तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर के केरल की यात्रा करने का फैसला कांग्रेस की राज्य इकाई के कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रहा है.

केरल कांग्रेस के पदाधिकारियों का आरोप है कि थरूर ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, उन जिलों में स्थानीय कांग्रेस नेताओं के साथ अपने यात्रा कार्यक्रम को साझा करने से इनकार कर दिया है, जहां वे जाने की योजना बना रहे हैं. वरिष्ठ नेताओं ने उस व्यक्ति के “खोने” का शोक व्यक्त किया जिसकी उन्होंने 2009 में तिरुवनंतपुरम में अपना पहला चुनाव जीतने में मदद की थी.

एआईसीसी में थरूर के प्रति अधिक सहानुभूति रखने वाले लोगों का दावा है कि उनके खिलाफ राज्य नेतृत्व के बयान, गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल की मौन सहमति से किया जा रहा है.

इस बीच, केरल कांग्रेस नेताओं का दावा है कि एआईसीसी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने थरूर से बात की है और उन्हें अपनी यात्रा के बारे में पार्टी को जानकारी देने के लिए कहा है, लेकिन पार्टी की राज्य इकाई को अभी भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है.

केरल कांग्रेस के प्रमुख के. सुधाकरन ने कहा कि उन्होंने थरूर को अपने जिले (कन्नूर) में एक से अधिक बार आमंत्रित किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन जब थरूर आखिरकार वहां गए तो वह चौंक गए क्योंकि उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं था.

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सुधाकरन ने दिप्रिंट को बताया, “उन्होंने मुझसे शिष्टाचार भेंट करने की भी ज़हमत नहीं उठाई. केपीसीसी (केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी) के अध्यक्ष के रूप में मेरे लिए यह बहुत शर्मनाक था. वह कभी पार्टी की बैठकों में भी नहीं आते हैं, हालांकि हम उन्हें सूचित करते हैं. उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में कितने ही आंदोलन होते हैं, लेकिन वह उनमें से किसी में भी नहीं जाते हैं. मेरे मन में उनके खिलाफ कुछ भी नहीं है. हम उन्हें पार्टी में वापस चाहते हैं. कृपया उन्हें बता दें.’

10 दिसंबर को थरूर की कन्नूर की यात्रा के दौरान, जिला युवा कांग्रेस ने वरिष्ठ नेताओं की आलोचना करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया, जो राज्य कांग्रेस नेतृत्व को बहुत नागवार गुजरा.

तिरुवनंतपुरम से तीन बार के सांसद, थरूर तब काफी चर्चा में आ गए जब उन्होंने पिछले अक्टूबर में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ चुनाव लड़ा – हालांकि असफल रहे.

थरूर ने तब से अपने गृह राज्य की कई यात्राएं की हैं, जिससे पार्टी की राज्य इकाई के भीतर काफी खलबली मच गई है जो दावा करती है कि इस पर ध्यान नहीं दिया गया है.

8 जनवरी को, उन्होंने यह घोषणा करके और भी हलचल मचा दी कि अगर जनता चाहेगी तो वे मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के लिए तैयार हैं. हालांकि, थरूर ने तीन दिन बाद अपना बयान वापस ले लिया.

सुधाकरन ने कहा कि एआईसीसी को थरूर और पार्टी संगठन के बीच मतभेदों से अवगत करा दिया गया है. “तारिक अनवर जी (केरल के प्रभारी महासचिव) ने उनसे बात की है और उन्हें पार्टी को साथ लेकर चलने के लिए कहा, लेकिन कुछ भी नहीं बदला है.”

दिप्रिंट ने सुधाकरन की शिकायतों पर प्रतिक्रिया के लिए थरूर को व्हाट्सऐप पर और एआईसीसी महासचिवों के.सी. वेणुगोपाल और तारिक अनवर को क्रमशः फोन और व्हाट्सएप पर संपर्क करने की कोशिश की. अगर उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो खबर को अपडेट किया जाएगा.


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‘अपने चहेतों को आगे बढ़ा रहे दिल्ली के नेता’

शिकायत करने वाले सुधाकरन ने थरूर के साथ अपने लंबे जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि कुछ हलकों द्वारा बनाई जा रही धारणा के विपरीत, पार्टी संगठन पूर्व केंद्रीय मंत्री के विरोध में नहीं है.

“मैंने कभी उनका विरोध नहीं किया. मैं हमेशा उनके साथ खड़ा रहा हूं, यहां तक कि जब उन्होंने विवादित कैटल क्लास वाला बयान दिया था, तब भी मैंने उनका समर्थन किया. वास्तव में, जयंती नटराजन ने समर्थन देने के लिए संसद के सेंट्रल हॉल में मेरी खिंचाई भी की थी.”

“लेकिन हमने उनसे जो सामान्य बात कही, वह यह है कि वह जहां भी यात्रा कर रहे हैं वहां के स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व को सूचित करके केपीसीसी अध्यक्ष से अनुमति लेनी चाहिए. वह कांग्रेस के अभिन्न अंग हैं और यह शिष्टाचार की बात है. यहां तक कि अगर हम किसी सामाजिक समारोह में शामिल होते हैं, तो हम पीसीसी, ब्लॉक या मंडल अध्यक्षों को सूचित करते हैं.’

अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में, थरूर ने 2009 में विवाद खड़ा कर दिया था, जब केंद्र सरकार द्वारा ऑस्टेरिटी दिखाने के बाद, मंत्रियों सहित सभी पदाधिकारियों को कहा गया था कि वे हवाई जहाज के इकॉनमी क्लास में सफर करें. तब विदेश मामलों के राज्यमंत्री, थरूर ने ट्विटर पर अपनी एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा-“कैटल क्लास इन सॉलिडेरिटी विद होली काऊज़”.

इसके बाद हुए विवाद को देखते हुए थरूर को माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा. एआईसीसी नेतृत्व ने कथित तौर पर थरूर सहित केरल के सभी नेताओं को “शिष्टाचार बनाए रखने” के लिए कहा.

हालांकि, वेणुगोपाल ने खुद संकेत दिया कि लगातार दो चुनावी हार के बाद राज्य में वापसी करने के कांग्रेस पार्टी के प्रयासों को “विफल” करने का प्रयास किया जा रहा है.

दिल्ली में पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “इस गुटबाजी से हमें नुकसान ही होगा खासकर तब जब थरूर जैसे नेता की लोकप्रियता और आईयूएमएल (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) जैसे सहयोगियों के लिए उनकी स्वीकार्यता ने हमें आगे पहुंचाना चाहिए था. दिल्ली के नेता अपने चहेतों को आगे बढ़ा रहे हैं, यह पार्टी के लिए अच्छा नहीं है.

‘उनकी जीत के लिए तीन बार काम किया’

राज्य कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि थरूर के प्रतिरोध का मतलब केवल यह होगा कि न तो पार्टी और न ही उन्हें लाभ होगा क्योंकि दोनों साथ मिलकर काम कर सकते हैं न कि एक-दूसरे के विरोध में.

जब थरूर ने तिरुवनंतपुरम से अपना पहला चुनाव लड़ा था तब के पीसीसी अध्यक्ष रमेश चेन्निथला ने दिप्रिंट को बताया, “अन्य राज्यों के विपरीत, केरल में हमारा संगठन एक-दूसरे से काफी जुड़ा हुआ है. हम उन्हें पार्टी के लिए एक संपत्ति मानते हैं.”

उन्होंने कहा, ‘हम उनसे बस इतना ही कहते हैं कि वह मर्यादा बनाए रखें, पार्टी संगठन के माध्यम से जाएं और पार्टी नेताओं को सूचित करें. हमारे राज्य में यही व्यवस्था है. इसके बिना उनकी यात्रा से न तो उन्हें और न ही पार्टी को कोई फायदा होगा. उनके जैसा व्यक्ति पहली बार भीड़ को आकर्षित करेगा, लेकिन दूसरी बार और उसके बाद उनका प्रभाव घटता जाएगा. देख लो अभी भीड़ कम है.”

थरूर ने अब तक जितनी भी बैठकों में भाग लिया है, उनमें से एक की मेजबानी नायर सर्विस सोसाइटी (एनएसएस) ने की थी, जहां उन्होंने मुख्यमंत्री पद के बारे में बयान दिया था.

एनएसएस प्रमुख सुकुमारन नायर ने बाद में कहा कि थरूर प्रधानमंत्री बनने के काबिल हैं, न कि केवल मुख्यमंत्री. एनएसएस पारंपरिक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ जुड़ा हुआ है, हालांकि उनकी आधिकारिक नीति राजनीतिक दलों से समान दूरी बनाए रखने की है.

थरूर को एक बार “दिल्ली नायर” करार दिया गया था, लेकिन बाद में कई सालों बाद वह पहले कांग्रेसी नेता बने जिन्हें एनएसएस समारोह के लिए आमंत्रित किया गया था.

थरूर के पहले चुनाव के बारे में याद करते हुए चेन्निथला ने कहा कि राजनयिक से लेखक और राजनेता बने थरूर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) से ताज़ा-ताज़ा ही लौटे थे और सोनिया गांधी चाहती थीं कि उन्हें टिकट दिया जाए.

चेन्निथला ने दिप्रिंट को बताया, “हम सभी ने उनकी जीत के लिए तब और बाद में कड़ी मेहनत की. यह राज्य में वाम दलों से लड़ने और संसदीय चुनाव की तैयारी करने का समय है, न कि यह तय करने का कि मुख्यमंत्री कौन होगा. विधानसभा चुनाव चार साल दूर हैं. कौन जानता है कि क्या होने वाला है? दूसरी ओर, संसद चुनाव के लिए सिर्फ 400 दिन बाकी हैं.”

उन्होंने कहा कि एनएसएस कार्यक्रम में थरूर की घोषणा पर चर्चा के बाद, पार्टी की एक आंतरिक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी नेता एकतरफा रूप से यह घोषणा नहीं करेगा कि वे कौन सा चुनाव – राज्य या लोकसभा – लड़ेंगे या किसी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का इरादा रखते हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)


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