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Saturday, 21 December, 2024
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कैसे अखिलेश की सपा, बसपा और कांग्रेस पार्टी के बागियों के लिए फेवरेट डेस्टिनेशन बन गई है

पिछले एक साल में दो दर्जन से अधिक बसपा के सीनियर नेताओं ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की है. अभी लगभग इतने ही शामिल होने की कतार में लगे हैं.

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लखनऊ: हाल ही में बहुजन समाज पार्टी के 7 विधायकों की सूबे के पूर्व सीएम व समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात और कांग्रेस की पूर्व सांसद अन्नू टंडन की पार्टी में ज्वाइनिंग के बाद एसपी हेडक्वॉटर के बाहर अचानक चहल पहल बढ़ गई है.

बसपा, कांग्रेस व अन्य छोटे दलों के नेता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने की जुगत में यहां पहुंच रहे हैं. सपा के नेताओं का दावा है कि पिछले एक हफ्ते में बसपा व कांग्रेस के दर्जनों नेता अखिलेश से मिलवाने की गुहार के साथ सपा के बड़े नेताओं से संपर्क साध चुके हैं.

खासतौर पर बीएसपी के विधायकों की अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद बीएसपी में भी काफी हलचल मची हुई है. बीएसपी से जुड़े सूत्रों की मानें तो कई अन्य नेताओं ने भी समाजवादी पार्टी में शामिल होने का मन बना लिया.

सूत्रों का तो यह भी कहना है कि अगले तीन महीने के भीतर बीएसपी में बड़ी टूट होने वाली है. ऐसा ही कुछ हाल कांग्रेस का भी है. पूर्व सांसद अन्नू टंडन और सलीम शेरवानी पिछले सप्ताह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. इसी तरह तमाम कांग्रेसी नेता सपा के संपर्क में हैं. खासतौर पर अपने-अपने दलों में बगावत करते दिख रहे नेताओं की पहली पसंद आज समाजवादी पार्टी बन गई है.

समाजवादी पार्टी के एमएलसी उदयवीर सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘लगातार बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस समेत तमाम दलों के नेता जॉइनिंग के लिए संपर्क साध रहे हैं लेकिन हमें भी देखना कौन समाजवादी पार्टी को कितना मजबूत बना सकता है, उसी के हिसाब से उनकी जॉइनिंग कराई जाएगी.’

उदयवीर सिंह आगे कहते हैं, ‘पिछले कुछ महीनों में बसपा के पूर्व सांसद त्रिभुवन सिंह, राम प्रसाद चौधरी, पूर्व विधायक बब्बू खां, एक दौर में मायावती के करीब माने जाने वाले सीएल वर्मा व पूर्व मंत्री रघुनाथ प्रसाद शंखवार, कानपुर देहात के कैप्टन इंद्रपाल और महराजगंज के जिलापंचायत अध्यक्ष प्रभु दयाल चौहान समेत दो दर्जन से अधिक पूर्व सांसद व विधायक समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं और स्थानीय स्तर लगभग इतने ही बड़े कद के नेता सपा ज्वाइन करना चाह रहे हैं.’

वर्क फ्रॉम होम मोड में अखिलेश की सेंधमारी

यूपी में अखिलेश यादव की सड़क पर आंदोलनों में सक्रियता पर अकसर सवाल उठते रहे हैं. हाथरस रेप केस के दौरान अखिलेश यादव के पीड़ित परिवार से मिलने के लिए न पहुंचने पर उनकी ‘एक्टिवनेस‘ को लेकर सवाल उठे थे लेकिन सपा से जुड़े सूत्रों का कहना है, ‘अखिलेश ने अपने ‘वर्क फ्रॉम होम’ मोड में कार्यकर्ताओं से लगातार संवाद किया और संगठन को मजबूत करने पर फोकस किया है.’

वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग व तमाम तरह से डिजिटल संवाद के जरिए लगातार सभी प्रमुख नेताओं के टच में रहते हैं. बसपा व कांग्रेस में सेंधमारी भी अखिलेश ने घर बैठे-बैठे ही की है.

अखिलेश के करीबी एक समाजवादी नेता की मानें तो अखिलेश यादव हर हफ्ते संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों के साथ ‘मीटिंग’ कर रहे हैं. आने वाले दिनों में बीजेपी के भी कुछ बागी विधायक अगर सपा में शामिल होते दिखें तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए.

सूत्र बताते हैं, ‘वहीं ग्राउंड पर एक्टिवनेस की बात है को अखिलेश अगले साल होली के बाद सड़कों पर उतरेंगे क्योंकि चुनाव के लिए माहौल अंत के 7-8 महीने में ही बनाया जाता है.’


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2022 का चुनाव BJP बनाम SP

बसपा से समाजवादी में शामिल हुए राम प्रसाद चौधरी का कहना है, ‘वह कुछ वक्त के लिए गुमराह हो गए थे लेकिन अब अपने घर लौट आए हैं. वह 1993 में समाजवादी पार्टी से ही पहली बार विधायक बने थे, बाद में बसपा में शामिल हो गए.’ चौधरी के मुताबिक, ‘भाजपा को मौजूदा हालातों में समाजवादी पार्टी ही रोक सकती है. यही एकमात्र विकल्प है.’

हाल ही कांग्रेस से सपा में शामिल हुए अंकित परिहार ने दिप्रिंट से विशेष बातचीत में कहा, समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने का मुख्य कारण अखिलेश यादव बताया. अंकित के मुताबिक, ‘2022 की सीधी लड़ाई योगी बनाम अखिलेश की होगी. ऐसे में स्थानीय नेताओं के पास दो ही मजबूत विकल्प हैं. बीजेपी में हम जा नहीं सकते क्योंकि हमारी लड़ाई ही बीजेपी के खिलाफ़ हैं. मायावती बीजेपी की बी-टीम बन चुकी हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी ही यूपी के लिए मजबूत विकल्प है.’

लखनऊ यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर और पॉलिटिकल एनालिस्ट कविराज राजनीतिक पार्टियों में चल रही इस जोड़ तोड़ पर कहते हैं, ‘यूपी में भले ही चार प्रमुख दल हों लेकिन हर दौर में फाइट दो के बीच ही दिखती है.’
वह बताते हैं, ’90 के दशक से पहले कांग्रेस बनाम सोशलिस्ट पार्टियों के बीच मुकाबला होता था. इसके बाद सपा व भाजपा के बीच मुख्य मुकाबला होने लगा. बीच में सपा व बसपा के बीच कुर्सी की जंग हुई. इस बार माहौल के हिसाब से बीजेपी बनाम समाजवादी पार्टी के मुकाबला दिख रहा है.’

लेकिन ये देखना अहम होगा कि बसपा व कांग्रेस किसका वोट काटते हैं. दोनों पार्टियों के कई बागी नेताओं के सपा ज्वाइन करने का कारण है कि बीजेपी के मुकाबले में फिलहास सपा ही दिखाई दे रही है. आमतौर पर राजनीति में ‘बागी’ नेता अक्सर उधर ही जाते हैं जिस ओर हवा मजबूत दिख रही होती है.


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