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Tuesday, 18 March, 2025
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उत्तराखंड के वित्त मंत्री का इस्तीफा, ‘पहाड़ी बनाम मैदानी’ विवाद ने कैसे बढ़ाई भाजपा की मुश्किलें

शुरू में, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इस मुद्दे को कमतर आंकते हुए कहा कि ‘उत्तराखंड सभी का है’, लेकिन जैसे-जैसे यह मुद्दा बढ़ता गया, चीज़ें बदलने लगी.

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नई दिल्ली: उत्तराखंड विधानसभा में ‘पहाड़ी बनाम मैदानी’ मुद्दे पर अपनी विवादास्पद टिप्पणी के कुछ हफ्ते बाद, राज्य के वित्त और संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने रविवार को मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया.

उनका इस्तीफा — टिप्पणी और राज्य की भाजपा इकाई के भीतर की कलह का नतीजा — अचानक आई प्रतिक्रिया नहीं थी. राज्य के कई नेताओं ने उनके बयान को विभाजनकारी और पिछली दरारों को फिर से खोलने वाला माना. जानकारी मिली है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व, जो राज्य इकाई के खिलाफ जाने वाले प्रमुख नेताओं के मद्देनज़र राज्य मंत्रिमंडल में बदलाव करना चाहता था, उसने भावना को स्वीकार किया और उस पर कार्रवाई की.

अग्रवाल के इस्तीफे का कारण बनने वाला विवाद पिछले महीने तब शुरू हुआ, जब मंत्री ने राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट की एक टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने पूछा, “क्या उत्तराखंड सिर्फ पहाड़ी लोगों के लिए है? कुछ लोग मध्य प्रदेश से आए हैं, तो कुछ राजस्थान से. क्या आप लोगों को ‘कुमाऊंनी’, ‘गढ़वाली’, ‘पहाड़ी’ और ‘देसी’ में बांट रहे हैं? क्या हमने इस तरह लड़ने के लिए राज्य के लिए लड़ाई लड़ी? क्या इसीलिए हमने बलिदान दिया? क्या आप सिर्फ इसलिए (मेरे बोलने पर) आपत्ति जताएंगे क्योंकि मैं अग्रवाल हूं?”

उनके बयान के बाद कांग्रेस और सामाजिक संगठनों ने विधानसभा के अंदर और बाहर ‘पहाड़ी बनाम मैदानी’ का मुद्दा उठाया और अग्रवाल के पुतले जलाए. इसके बाद उत्तराखंड भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने अग्रवाल को पार्टी कार्यालय बुलाया, जहां भाजपा के संगठन सचिव अजय कुमार भी मौजूद थे.

अग्रवाल ने भट्ट के सामने अपने बयान का बचाव करते हुए दावा किया कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका कभी भी ‘पहाड़ी’ समुदाय को निशाना बनाने का इरादा नहीं था क्योंकि उन्होंने अलग राज्य बनाने के आंदोलन में उनके साथ भाग लिया था. भट्ट ने अग्रवाल को भविष्य में अपने शब्दों का चयन अधिक सावधानी से करने की हिदायत दी और उनसे माफी मांगने को कहा.

अग्रवाल ने बाद में खेद जताते हुए कहा कि उनका कभी भी किसी को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं था. उस समय अग्रवाल का बचाव करते हुए भट्ट ने कहा था, “उन्होंने साफ किया है कि चाहे जो भी बात हो, उनका आशय दूर-दूर तक ऐसा नहीं था. फिर भी, अगर कोई आपत्तिजनक शब्द था…तो वह पहाड़ों या मैदानों के बारे में नहीं था.”

उस समय उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इस मुद्दे को कमतर आंकते हुए कहा था कि “उत्तराखंड सभी का है”.

उन्होंने कहा, “राज्य में अलग-अलग क्षेत्र हैं, अलग-अलग जगहें हैं और सभी लोग मिलकर राज्य को आगे ले जाने का काम करेंगे.” हालांकि, स्थिति शांत नहीं हुई.

गैरसैंण में प्रदर्शनकारियों द्वारा प्रदर्शन किए जाने के बाद, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने विरोध के पीछे राजनीतिक मंशा का संकेत दिया. उन्होंने कहा, “2027 के चुनाव नज़दीक हैं और कुछ स्ट्रीट लीडर्स आंदोलन की योजना बना रहे हैं. अगर विरोध प्रदर्शन राज्य के विकास के उद्देश्य से होता, तो यह समझ में आता, लेकिन एक मंत्री को हटाने के लिए विरोध करना सही नहीं है.”

हालांकि, अग्रवाल के इस समर्थन के बावजूद, उनके इस्तीफे की मांग ने और जोर पकड़ लिया, खासकर तब जब प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया. नेगी के समर्थन ने विपक्ष को नई ताकत दी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भट्ट ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की, जिसमें अग्रवाल का समर्थन था, लेकिन नेगी की आलोचना करने से परहेज़ किया गया और उनके बयान को लोगों के बजाय राजनीतिक नेताओं के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में पेश किया.

जैसे-जैसे यह मुद्दा बढ़ता गया, पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी की बेटी स्पीकर रितु खंडूरी सत्तारूढ़ पार्टी के नेता अग्रवाल का पक्ष लेने के लिए जांच के घेरे में आ गईं. उन्होंने कांग्रेस विधायक लखपत सिंह बुटोला को सदन में इस मुद्दे पर अपनी बात रखने से रोक दिया, जिससे विपक्ष और अन्य संगठनों की ओर से विवाद और बढ़ गया और निंदा की गई. खंडूरी के पुतले जलाने के साथ ही कांग्रेस ने कथित पक्षपात के लिए स्पीकर से माफी की मांग की.


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दोस्ताना व्यवहार

हालांकि, भाजपा के भीतर विभाजन तब और बढ़ गया जब पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार के सांसद त्रिवेंद्र रावत ने अग्रवाल की खुलेआम आलोचना की और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की. संयोग से प्रेमचंद अग्रवाल ऋषिकेश के विधायक हैं, जो रावत के लोकसभा क्षेत्र में आता है.

रावत ने कहा कि भाजपा ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है, लेकिन इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति है कि पार्टी इसे कैसे देखती है या निंदा या माफी में क्या शब्द होने चाहिए. उन्होंने कहा, “इस तरह की घटना पहली बार हुई है. केंद्र ने भी इसका संज्ञान लिया होगा या ले रहा है.”

अपने सीएम कार्यकाल के दौरान एक घटना को याद करते हुए उन्होंने दावा किया कि उन्हें एक महिला सहकर्मी के बारे में भाजपा विधायक की अनुचित टिप्पणी के लिए माफी मांगनी पड़ी थी. रावत ने स्पीकर खंडूरी की भी आलोचना की और उनके कार्यों की तुलना उनके पिता से की, जिनका नज़रिया ज़्यादा संतुलित था.

रावत के अलावा, भाजपा सांसद और मीडिया सेल प्रमुख अनिल बलूनी ने 8 मार्च को कोटद्वार में अग्रवाल के प्रति नाराज़गी जताई और कहा कि यह मुद्दा “दर्दनाक” और “दुर्भाग्यपूर्ण” था.

बलूनी ने कहा, “मैं पार्टी का मुख्य प्रवक्ता हूं और मुझे शिष्टाचार बनाए रखना है, लेकिन मैंने उचित मंचों पर इस मामले को मजबूती से उठाकर अपना कर्तव्य निभाया है.” उन्होंने संकेत दिया कि उन्होंने नेतृत्व को अपनी चिंताओं से अवगत करा दिया था और संभवतः इसी वजह से अग्रवाल पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ रहा था.

राज्य इकाई की अंदरूनी कलह और मामले को ठीक से न संभाल पाने के कारण इसकी मुश्किलें बढ़ गई.

उत्तराखंड भाजपा के एक मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अग्रवाल के इस्तीफे का मुख्य कारण राज्य इकाई द्वारा इस मुद्दे को तेज़ी से हल करने में विफलता रही. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्यों में, जहां छोटे निर्वाचन क्षेत्र हैं, जहां लोग अपने प्रतिनिधियों से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, यहां तक ​​कि छोटी-छोटी समस्याएं भी राज्यव्यापी समस्याओं का रूप ले सकती हैं.

“पहाड़ी बनाम मैदान” का विभाजन उत्तराखंड में विशेष रूप से संवेदनशील है, जो एक लंबे संघर्ष के बाद बना राज्य है. इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने बाहरी लोगों को उत्तराखंड में ज़मीन खरीदने से रोकने के लिए सख्त कानून लागू किए हैं.

उत्तराखंड भाजपा के मंत्री ने कहा, “अग्रवाल द्वारा जल्दी से माफी मांगने और अपनी टिप्पणी का बचाव करने में विफलता के कारण विरोध बढ़ गया और अगर उनका इस्तीफा नहीं होता, तो स्थिति और बिगड़ सकती थी, जिससे भट्ट और खंडूरी जैसे अन्य लोगों को नुकसान हो सकता था.”

एक अन्य भाजपा नेता ने बताया कि पांच खाली पदों के साथ आगामी कैबिनेट विस्तार ने राज्य के नेताओं को अपने समर्थन आधार दिखाने का मौका दिया था — जो अग्रवाल के निष्कासन का एक कारक भी था.

दिप्रिंट से बात करते हुए, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा कि अग्रवाल की टिप्पणी गलत थी और इसी के कारण विवाद हुआ. उन्होंने कहा, “केंद्रीय नेतृत्व इस मामले को और तूल नहीं देना चाहता था.”

भाजपा एक अन्य विधायक खजान दास ने दिप्रिंट से कहा, “अग्रवाल को सदन में बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए थी, जहां यह मुद्दा सबसे पहले उठा था.” उन्होंने कहा कि देरी ने विवाद को बढ़ाने में योगदान दिया. राज्य आंदोलन के समय से ही मौजूद “पहाड़ी बनाम मैदानी” विभाजन ने भाजपा नेतृत्व के कदम उठाने के फैसले को और मजबूत किया.

सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास मैदानी क्षेत्रों जितना आसान नहीं है और अतीत में राजनीतिक तनाव को अक्सर कुमाऊं बनाम गढ़वाल के रूप में पेश किया जाता रहा है. देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर कांग्रेस के ऐतिहासिक गढ़ रहे हैं, इसलिए भाजपा विभाजन को और भड़काने का जोखिम नहीं उठा सकती, खासकर 2027 के राज्य चुनावों के मद्देनज़र. भाजपा ने पिछले दो बार लगातार विधानसभा चुनाव जीते हैं.

संपर्क करने पर एक भाजपा नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो साल बाकी हैं, ऐसे में भाजपा पहाड़ी और मैदानी इलाकों के बीच विभाजन को बढ़ाने और कांग्रेस को इस मुद्दे पर लाभ उठाने का मौका देने का जोखिम नहीं उठा सकती.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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