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Monday, 23 December, 2024
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‘फडणवीस कैंप’ बनाम भाजपा के बुजुर्ग नेता- कोई खुली बगावत नहीं, लेकिन नाराजगी के सुर तेज

फडणवीस के पास 6 साल तक महाराष्ट्र भाजपा का नियंत्रण था लेकिन अब उनके खिलाफ, खासकर पिछले हफ्ते वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे के इस्तीफे के बाद से असंतोष की सुगबुगाहट शुरू हो गई है.

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मुंबई: 2014 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की महाराष्ट्र इकाई पर काफी हद तक दो गुटों का नियंत्रण था- एक का नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे करते थे और दूसरे का नितिन गडकरी. वर्चस्व की जद्दोजहद में अक्सर दोनों खेमों में टकराव भी होता रहता था.

हालांकि, 2014 के बाद इसकी प्रासंगिकता खत्म हो गई क्योंकि उसी वर्ष मुंडे का निधन हो गया और गडकरी केंद्रीय मंत्री के रूप में केंद्र में चले गए. यही वह वर्ष भी था जब भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने, इसके साथ ही ‘फडणवीस कैंप’ के तौर पर पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के भीतर एक नए नेतृत्व के बीज पड़े. इसे भाजपा के ‘मोदी-शाह’ वाले केंद्रीय नेतृत्व का आशीर्वाद हासिल था.

छह साल बाद मुंडे और गडकरी दोनों खेमे कमजोर पड़ चुके हैं और पार्टी में मोटे तौर पर दो खेमों के बीच एक हल्की रेखा खिंच चुकी है, एक वे ‘फडणवीस खेमे’ में हैं और दूसरे जो इसमें नहीं हैं, दूसरे वाले खेमे में ज्यादातर पार्टी के बुजुर्ग नेता शामिल हैं.

मुंडे और गडकरी शिविरों के बीच टकराव के विपरीत इन दो नए गुटों के बीच बहुत ज्यादा मतभेद नहीं हैं. लेकिन कभी-कभार ऐसी घटनाएं होती हैं जिसे लेकर नाराजगी के सुर तेज हो जाते हैं- हाल में भाजपा के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे का इस्तीफा एक ऐसी ही घटना है. 2016 में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद एक सशक्त राज्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने को मजबूर हुए खडसे ने भाजपा छोड़ने के लिए पूरी तौर पर फडणवीस को जिम्मेदार ठहराया है.


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बुजुर्ग नेताओं में आक्रोश

हालांकि, फडणवीस के खिलाफ कोई खुली बगावत नहीं हुई है लेकिन पार्टी के ऐसे वरिष्ठ नेताओं के बीच असंतोष की सुगबुगाहट तेज हो गई है जिनकी महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार करते हुए फडणवीस को आगे बढ़ाया गया था.

राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखने वालों का कहना है कि फडणवीस ने 2014 में मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभालने के बाद ही सुव्यवस्थित तरीके से अपने लिए चुनौती बनने वाले वरिष्ठ पार्टी नेताओं के पर कतरने शुरू कर दिए थे. मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा रखने वाले खडसे इसी का उदाहरण हैं. पिछले सप्ताह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल होने वाले इस नेता को भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण इस्तीफा देना पड़ा था.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई कहते हैं, ‘जब वे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने (फडणवीस) अपनी पार्टी या शिवसेना के मंत्रियों को कोई अधिकार दिए बिना हर बड़ा फैसला खुद ही लिया. यह मोदी मॉडल था, जिसमें औद्योगिक नीति से लेकर कृषि और कर्ज माफी तक की नीतियां शामिल थीं. विनोद तावड़े के पर तब कतरे गए जब उन्होंने ऐसे बयान देने शुरू किए कि वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रमुख नेता रहे हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन हासिल हैं. सुधीर मुंगंटीवार को भी दरकिनार किया गया.’

पूर्व मुख्यमंत्री ने एक तरफ जहां खडसे से इस्तीफा देने के लिए कहा था, वहीं उन्होंने तावड़े और गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे जैसे मंत्रियों से कुछ विभाग छीन लिए थे. तावड़े और चंद्रशेखर बावनकुले जैसे वरिष्ठ नेताओं को भी दरकिनार किया गया क्योंकि उन्हें 2019 के विधानसभा चुनावों के लिए टिकट नहीं मिला था.

मुख्यमंत्री पद संभालने वाले राज्य के पहले पार्टी अध्यक्ष बने फडणवीस ने उसी समय गिरीश महाजन, पूर्व एनसीपी नेता प्रसाद लाड और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण दारेकर और राम कदम जैसे विश्वासपात्रों की अपनी टीम बनाई.

केवल राज्य भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल, जो खडसे के इस्तीफे के बाद तत्कालीन सरकार के मंत्रिमंडल में फडणवीस के बाद नंबर-2 की हैसियत रखते थे, ही अपनी जमीन बचाने में सफल रहे. पाटिल को अमित शाह का करीबी माना जाता है.

जब खडसे ने भाजपा छोड़ी तो गडकरी के करीबी रहे मुंगंटीवार ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह (खडसे) एक कद्दावर नेता थे, जिन्होंने दशकों तक पार्टी के लिए काम किया और महाराष्ट्र में पार्टी को आगे बढ़ाने में अहम जिम्मेदारी निभाई. अगर ऐसे किसी नेता को इस तरह की परेशानी हो रही हो कि वह इसे छोड़ने की हद तक चला जाए तो जरूर कुछ गंभीर मसला है जिसके बारे में पार्टी को निश्चित रूप से सोचने की जरूरत है.’

उन्होंने यह भी कहा कि 2014 के बाद से महाराष्ट्र भाजपा की चिंतन बैठक यानी राज्य के वरिष्ठ नेताओं के बीच होने वाला मंथन भी पूरी तरह बंद हो गया है.

पंकजा मुंडे के करीबी एक भाजपा पदाधिकारी ने कहा, ‘बीड में भाजपा कार्यकर्ता और जिला नेतृत्व पंकजा ताई को दरकिनार किए जाने से नाराज थे. वह राज्य विधान परिषद में जगह मिलने की उम्मीद कर रही थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसने पार्टी के अंदर उनके समर्थकों को नाराज कर दिया, लेकिन जबसे केंद्रीय नेतृत्व की टीम में उन्हें जगह मिली सब कुछ ठीक हो गया है.

भाजपा ने सितंबर में तावड़े और मुंडे को राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया था.

इस साल मई में राज्य विधान परिषद के लिए नामांकन को लेकर विवाद हो गया था क्योंकि इसमें फडणवीस की ही चली और तावडे, मुंडे और खडसे जैसे नेताओं की अनदेखी की गई.

भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री के करीबियों नागपुर के पूर्व मेयर प्रवीण दटके, धनगर नेता गोपीचंद पाडलकर और लिंगायत समुदाय के नेता अजीत गोपचेडे आदि को नामित किया. पार्टी ने रंजीत सिंह मोहिते पाटिल को भी नामित किया, जिनको फडणवीस पिछले साल एनसीपी से भाजपा में लेकर आए थे. राज्य विधान परिषद में नेता विपक्ष भाजपा के दारेकर को भी फडणवीस की कोटरी का माना जाता है.

दारेकर ने फडणवीस के खिलाफ राज्य इकाई में किस तरह की नाराजगी की बात से इनकार किया.

दारेकर ने कहा, ‘फडणवीस साहब के खिलाफ पार्टी के भीतर नाराजगी की बातों में किसी तरह कोई सच्चाई नहीं है. वह पार्टी में पुराने और नए लोगों को साथ लेकर चल रहे हैं और महाराष्ट्र में भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं. जहां तक खडसे की बात है तो वह अब दूसरी पार्टी में चले गए हैं, इसलिए उन्हें भाजपा के बारे में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘पंकजा मुंडे खेमे में मौन नाराजगी की बात करें तो कुछ महीने पहले ही उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का हिस्सा बनाया गया है, इसलिए उन्हें दरकिनार करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. लोगों की हर टिप्पणी को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाना सही नहीं है.’

मोदी-शाह का आशीर्वाद

अपना नाम न बताने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पिछले शासनकाल में राज्य में मुंडे, महाजन (प्रमोद महाजन) और केंद्र में अटलजी (अटल बिहारी वाजपेयी) और आडवाणी जी (लालकृष्ण आडवाणी) के साथ निर्णय लेने का तरीका ज्यादा लोकतांत्रिक था. अगर सोशल इंजीनियरिंग की गणना के कारण कोई सीट किसी को दी जानी थी, और वहां एक और मजबूत विश्वस्त पार्टी नेता है तो उस नेता को कहीं और समायोजित किया जाता था.

उन्होंने आगे कहा, ‘उन्हें या तो राज्य विधान परिषद या राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया जाता था. अब ये निर्णय इस आधार पर भी किए जाते हैं कि कौन नेतृत्व की विचारधारा का प्रतिनिधित्व बेहतर ढंग से कर सकता है.’

हालांकि, नेता ने ऐसे संकेत भी दिए कि फडणवीस राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए निर्णयों को लागू करने के लिए सिर्फ एक चेहरा भर थे.

नेता ने कहा, ‘इससे पहले कोई फैसला लेने में राज्य की भागीदारी 70 प्रतिशत और केंद्र की 30 प्रतिशत होती थी. अब पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पहले से ही जानता है कि पार्टी में क्या चल रहा है. यह राज्य में किसी विशेष शिविर की बात ही नहीं है.’

नाम न बताने के इच्छुक मुंबई के एक भाजपा पदाधिकारी ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस के संबंध में भाजपा के भीतर किसी भी तरह की गुटबाजी के बारे में बात न करने का अलिखित आदेश दे रखा है.

उन्होंने कहा, ‘पार्टी नहीं चाहती है कि इसे लेकर संदेह का कोई माहौल बने कि महाराष्ट्र भाजपा के भीतर सब ठीक है या नहीं. पार्टी नेतृत्व की तरफ से हमें कहा गया है कि फडणवीस के खिलाफ नाराजगी की बात को लेकर कतई कुछ न बोलें.’


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फडणवीस का कद बढ़ा

महाराष्ट्र में भाजपा के चेहरे के रूप में फडणवीस का उदय 2013 में उन्हें राज्य भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने के साथ हुआ जब मुंडे और गडकरी अपने करीबियों को उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे और केंद्रीय नेतृत्व ने फडणवीस को चुना क्योंकि वह किसी खेमे में नजर नहीं आते थे और स्वभाव से विनम्र और मिलनसार थे.

2014 में जब गडकरी खेमे में यह सुगबुगाहट तेज थी कि केंद्रीय मंत्री को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से फडणवीस को चुने जाने को गडकरी के मोदी के समानांतर सत्ता का एक केंद्र बनने से रोकने वाले कदम के तौर पर देखा गया. बीतते सालों के साथ गडकरी धीरे-धीरे महाराष्ट्र में पार्टी के मामलों में सक्रिय भागीदारी से पीछे हट गए. नागपुर के सांसद जुलाई में पार्टी की राज्य कार्यकारी समिति की बैठक से भी दूर रहे.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार नहीं बना पाने के बाद फडणवीस पर मोदी-शाह का भरोसा अस्थायी रूप से कुछ घट गया है. हालांकि, विधान परिषद के लिए नामांकन या पूर्व मुख्यमंत्री को इस साल बिहार चुनाव जिताने की जिम्मेदारी देने जैसे हालिया घटनाक्रम से पता चलता है कि फडणवीस अभी भी पार्टी नेतृत्व के करीब बने हुए हैं.

इस बीच, खडसे के भाजपा छोड़ने से उपजे हालिया विवाद के बाद फडणवीस ने उदार राजनीति के जरिये पार्टी के भीतर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है. पिछले सप्ताह महाराष्ट्र में बाढ़ प्रभावित जिलों के अपने दौरे के दौरान उन्होंने उन लोगों के साथ कई बैठकें, दोपहर का भोजन और रात्रिभोज किया, जिन्हें उन्होंने पिछले साल लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले प्रतिद्वंद्वी दलों से पार्टी में शामिल किया था.

उन्होंने हर्षवर्धन पाटिल, जयकुमार गोरे और रंजीत सिंह निंबालकर समेत अन्य लोगों से मुलाकात की और पंकजा मुंडे के साथ परभणी जिले के गांवों का दौरा किया. परली, बीड में विपक्षी नेता की कार पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के बिना ही गोपीनाथ मुंडे के स्मारक गोपीनाथ गढ़ की ओर मुड़ गई.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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