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Tuesday, 23 April, 2024
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NCP सहयोगी, मोदी समर्थक और अब मुंबई का ‘गॉडफादर’- राजनीतिक जमीन तलाशते राज ठाकरे

मनसे ने पिछले तीन साल में खुद को स्थापित करने की कवायद में कई बार अपने राजनीतिक रुख में अप्रत्याशित बदलाव किए हैं.

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मुंबई: एक मोदी समर्थक, शिवसेना का संभावित सहयोगी, एनसीपी के लिए एक उपयुक्त सहयोगी, संभावनाएं ढूंढ़ता एक राजनेता और हिंदुत्व का पैरोकार. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने अपनी पार्टी का चुनावी भविष्य तलाशने की कवायद के दौरान पिछले दो वर्षों में तमाम प्रयोग किए हैं.

अब जबकि मुंबई के निकाय चुनावों में 16 महीने बाकी रह गए हैं, मराठी गौरव का अपना चिरपरिचित और आजमाया हुआ राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाने के साथ ठाकरे एक और राजनीतिक फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं— अपने चाचा शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की तरह ही एक ऐसा ‘गॉडफादर’ बनना जो लोगों की समस्याओं को सुनता है और उन्हें सुलझाता है.

पिछले महीने ठाकरे मुंबई के डब्बावालों, शहर के मछुआरों, पुस्तकालय प्रतिनिधियों और महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप जैसे कई समूहों की परेशानियां जानने और उन्हें राज्य सरकार तक पहुंचाने के लिए विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों से मिले.

एमएनएस के नेता सोशल मीडिया पर इन बैठकों का जिक्र शिवाजी पार्क स्थित ठाकरे के आवास के संदर्भ में ‘कृष्णकुंजवर न्याय मिलतो (कृष्णकुंज में न्याय मिलता है)’ और ‘मनसे डंका (मनसे का असर)’ जैसे हैशटैग के साथ करते हैं, यह ठाकरे को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करता है जो जरूरतमंदों की आवाज उठाता है और उन्हें न्याय दिलाता है.

पार्टी के नेता स्थानीय दुकानों और बड़ी कंपनियों तक यह संदेश पहुंचाने में भी जुट गए हैं कि मराठी में लेनदेन करें.

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पार्टी सूत्रों का कहना है कि मनसे फरवरी 2022 में होने वाले बृहन्मुंबई नगर निगम चुनाव के लिए अभी से जमीन तैयार करने में जुट गई है.

मनसे के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुंबई में शिवसेना के पारंपरिक मतदाता, अगड़ी जाति के मराठी, संभ्रांत वर्ग, पार्टी के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन तोड़ने और प्रतिद्वंदियों कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ हाथ मिलाने के बाद से उससे छिटक गए हैं. मतदाताओं का शिवसेना से मोहभंग होना हमारे लिए एक अच्छा मौका है.’


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डॉक्टरों से लेकर डब्बावालों तक

मनसे प्रमुख समाज के विभिन्न वर्गों से मिलते रहे हैं, उनकी पार्टी यह दावा भी करती है कि वह उनकी कुछ शिकायतें दूर करने में सफल रहे हैं.

मनसे के एक पदाधिकारी संतोष धुरी ने कहा, ‘लोग लगातार राजसाहेब (ठाकरे) के पास अपने मुद्दे लेकर आते रहते हैं और हमने हमेशा उनकी मदद की है. अब मनसे से लोगों की उम्मीदें बढ़ गई हैं. राजसाहेब उन्हें सुनते हैं और हम एक रचनात्मक विपक्ष के नाते अपनी बात राज्य सरकार के सामने रखते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें कुछ सफलताएं भी मिली हैं जिसमें राज्य सरकार ने मनसे की तरफ से उठाए गए किसी मुद्दे पर अपेक्षित फैसला भी लिया.’

मिसाल के तौर पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार ने कुछ दिनों पहले मुंबई के प्रसिद्ध डब्बावालों को लोकल ट्रेनों से यात्रा की अनुमति दे दी थी, जो पहले केवल कुछ आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों और महिलाओं के लिए ही चल रही थीं. डब्बेवालों के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस मांग को लेकर राज ठाकरे से मुलाकात की थी.

इसी तरह मुंबई में लाइब्रेरी के प्रतिनिधियों ने इसी महीने मनसे प्रमुख से उनके आवास पर मिलकर लॉकडाउन के बाद से ही बंद पुस्तकालयों को खोलने के लिए राज्य सरकार की अनुमति दिलाने में हस्तक्षेप का आग्रह किया था. एक हफ्ते बाद राज्य सरकार ने पूरे महाराष्ट्र में पुस्तकालय खोलने का फैसला किया.

एमएनएस ने दोनों ही फैसलों का श्रेय लिया.

राज ठाकरे निजी डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल से भी मिले थे जिन्होंने कोविड के कारण जान गंवाने वाले अपने सहयोगियों को बीमा राशि मिलने में आ रही दिक्कतों को सामने रखा, मछली विक्रेता प्रवासी और अवैध मछली विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई चाहते थे और महिला स्वयं सहायता समूहों ने कर्ज माफ कराने में मदद मांगी.

इसके साथ ही मनसे मराठी भाषा पर जोर देने के अपने राजनीतिक एजेंडे को भी आगे बढ़ा रही है.

इस माह की शुरुआत में कुछ मनसे पदाधिकारियों ने दक्षिण मुंबई के कोलाबा में एक जौहरी की कथित तौर पर इसलिए पिटाई की क्योंकि उसने लेखक शोभा देशपांडे से मराठी में बात नहीं की थी.

पिछले हफ्ते मनसे नेता अखिल चित्रे ने फ्लिपकार्ट और अमेजन को अपने मोबाइल एप में पसंदीदा वैकल्पिक भाषा के तौर पर मराठी को शामिल न किए जाने के खिलाफ आंदोलन की धमकी दी थी.

इसी हफ्ते मनसे से इंडियन प्रीमियर लीग की कमेंटरी मराठी में भी उपलब्ध कराने के लिए डिज्नी हॉटस्टार को एक पत्र भेजा था.

राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई का मानना है कि व्यापक परिदृश्य में तो राज ठाकरे अभी यह तय ही नहीं कर पाए हैं कि क्या राजनीतिक रुख अपनाएं. देसाई ने कहा, ‘पूरे कोविड संकट के दौरान न तो उन्होंने सख्ती के साथ शिवसेना की आलोचना की और न ही भाजपा की ओर झुकाव माने जा रहे अपने नए रुख के अनुरूप हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर ही मजबूती से आगे बढ़ते दिखे. लेकिन मुंबई में निकाय चुनाव उनका तात्कालिक लक्ष्य है. पार्टी अब शिवसेना के मराठी जनाधार पर नज़र गड़ाए हुए है जिसकी छवि कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद ज्यादा धर्मनिरपेक्ष मानी जाने लगी है.


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बदलता रहा रुख

मनसे ने पिछले तीन साल में खुद को स्थापित करने की कवायद में कई बार अपने राजनीतिक रुख में अप्रत्याशित बदलाव किए हैं.

2017 के बीएमसी चुनाव के दौरान पार्टी ने अपनी प्रतिद्वंदी शिवसेना को मुंबई में बिना शर्त साथ चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया. हालांकि, शिवसेना ने इस प्रस्ताव को कोई तवज्जो नहीं दी.

फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी की तीखी आलोचना करनी शुरू कर दी जबकि 2014 में उन्होंने उनकी उम्मीदवारी का पुरजोर समर्थन किया था.

यहां तक कि उन्होंने एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के साथ नजदीकियां बढ़ाना तक शुरू कर दिया. 2018 में ठाकरे ने पुणे में पवार के साथ एक सार्वजनिक संवाद आयोजित किया, औरंगाबाद-मुंबई की उड़ान के दौरान एक घंटे तक उनकी मुलाकात चली और साथ ही एनसीपी प्रमुख के साथ उनकी कुछ अनौपचारिक बैठकें भी हुईं.

2019 की शुरुआत में ठाकरे ने एक संभावित गठबंधन पर पिछले दरवाजे से बातचीत के सिलसिले में एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजित पवार के साथ बैठक भी की थी.

हालांकि, एनसीपी नेता मनसे को साथ लेने को तैयार थे लेकिन कांग्रेस नेताओं ने यह कहते हुए मुखर रूप से इसका विरोध किया कि ऐसी पार्टी को शामिल करने का सवाल ही नहीं उठता जो मुंबई की उत्तर भारतीय आबादी, जो कांग्रेस का प्रमुख वोट बैंक है, के खिलाफ उग्र रवैया दर्शाती रही है. पार्टी ने अंततः 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा लेकिन तथ्यों और शोध के आधार पर पत्रकारिता वाली राह अपनाते हुए भाजपा के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाकर अपनी छाप छोड़ी.

मनसे ने उस साल विधानसभा चुनाव लड़ा और जनता के सामने खुद को एक मजबूत विश्वसनीय विपक्ष के रूप में पेश किया लेकिन उसे केवल एक सीट से ही संतोष करना पड़ा. बाद में खुद को मजबूत विपक्ष के तौर पर पेश करने के लिए उसने महा विकास अघाड़ी कैबिनेट की शैडो कैबिनेट भी बनाई. मनसे नेता जमीनी स्तर पर तो अपनी क्षमताओं के अनुरूप काम कर रहे हैं लेकिन मनसे की शैडो कैबिनेट की अभी तक एक भी बैठक नहीं हुई है.

मनसे की वरिष्ठ नेता शालिनी ठाकरे ने कहा, ‘कोविड ने हमारे काम में बाधा डाली. हम एक वर्कशॉप करने वाले थे जिसमें राजसाहेब हमें प्रशिक्षित करने जा रहे थे कि हमें कैसे कार्य करना है, किसी एजेंडे का मसौदा कैसे तैयार करना है लेकिन तभी लॉकडाउन हो गया. लेकिन हम सभी जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं और व्यक्तिगत रूप से राजसाहेब से मुलाकात कर रहे हैं.’

पिछले साल कांग्रेस-एनसीपी के सहयोगी बनने की इच्छा दर्शाने के बाद इस साल के शुरू में ठाकरे ने अपना रुख एकदम बदल लिया. जनवरी में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की जिससे यह अटकलें लगने लगीं कि मनसे भाजपा का सहारा तलाश रही है. हालांकि, फडणवीस ने सार्वजनिक रूप से इन संभावनाओं को खारिज कर दिया.

राज ठाकरे ने 23 जनवरी के अपने भाषण में हिन्दुत्व का मुद्दा उठाकर भाजपा तक संदेश पहुंचाने की एक और कोशिश की. पहली बार दक्षिणपंथी विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने मनसे के मंच पर जगह बनाई और पार्टी ने अपना झंडा नीले, सफेद, नारंगी और हरे रंग से बदलकर पूरी तरह केसरिया कर दिया.

मनसे के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘हमारे बदलते राजनीतिक रुख से मतदाताओं को भ्रम हो सकता है लेकिन हमारे सामने एक बात तो स्पष्ट है कि अकेले चुनाव लड़कर हम सफलता हासिल नहीं कर सकते. हमें किसी अन्य दल का सहयोगी बनना होगा.’

पदाधिकारी ने कहा, ‘हमने मुंबई चुनाव के लिए भाजपा के साथ संभावित गठबंधन का विकल्प खुला रखा है. भाजपा बीएमसी को लेकर आक्रामक ढंग से शिवसेना पर नजरें गड़ाए है. मनसे मध्य मुंबई के मराठी मतदाताओं को आकृष्ट करके भाजपा के लिए शिवसेना की कमी की भरपाई में मददगार हो सकती है.’

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बल ने कहा, ‘राज ठाकरे को समाज के किसी भी वर्ग का समर्थन नहीं मिल पा रहा है क्योंकि उनके पास कोई व्यवस्थित योजना नहीं है. वह पानी में लगातार कंकड़ फेंकने वाली जैसी स्थिति में हैं ताकि यह पता लगा सकें कि कब सही निशाना लगता है.’


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मनसे का गिरता ग्राफ

राज ठाकरे ने 2006 में उनकी जगह अपने पुत्र उद्धव को उत्तराधिकारी बनाने के बाल ठाकरे के फैसले के बाद शिवसेना छोड़कर मनसे का गठन किया था. इसने शुरू में ‘मराठी मानुष’ और ‘मराठी गौरव’ की विचारधारा को शिवसेना की तुलना में ज्यादा आक्रामक ढंग से अपनाकर तात्कालिक सफलता हासिल की और एक समय तो दादर और माहिम के जैसे गढ़ उससे छीनने में सफल रही.

2009 के लोकसभा चुनावों में इसने 11 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से कोई भी जीता तो नहीं लेकिन पार्टी कई सीटों पर शिवसेना का समीकरण बिगाड़ने वाले दल के रूप में सामने आई. उसी साल विधानसभा चुनाव में मनसे ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा और अपने इस पहले प्रयास में उसके 13 विधायक महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे.

हालांकि, इसके तुरंत बाद पार्टी की किस्मत की बाजी पूरी तरह उलट गई.

2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 10 उम्मीदवार मैदान में उतारे, सभी की जमानत तक जब्त हो गई. उसी साल विधानसभा चुनावों में पार्टी ने बड़ी अपेक्षाओं के साथ 288 में से 219 सीटों पर किस्मत आजमाई जिसमें से सिर्फ एक प्रत्याशी जीता और 209 सीटों पर जमानत जब्त हो गई.

2019 में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में हाथ न आजमाने का फैसला किया, उसने 101 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा और एक बार फिर सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर पाई.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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