हैदराबाद: भारतीय जनता पार्टी की तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष बंडी संजय खुद को ‘हिंदू धर्म का रक्षक’ कहलाना पसंद करते हैं. राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान कारसेवक होने के दिनों से लेकर अब राज्य इकाई के प्रमुख और सांसद बन जाने तक संजय पार्टी की हिंदुत्ववादी विचारधारा के साथ मजबूती से खड़े रहे हैं.
पिछले सप्ताह संजय के मेगा वॉकथॉन (प्रजा संग्राम यात्रा) के पहले चरण के तहत हैदराबाद से हुजूराबाद (जहां उपचुनाव होना है) तक यात्रा की शुरुआत के मौके पर आयोजित एक सार्वजनिक सभा में करीमनगर के 50 वर्षीय सांसद ने घोषणा की, ‘आने वाले दिनों में…तेलंगाना का हर ‘हिंदू’ खुद को हिंदू कहने पर गर्व महसूस करेगा और भाजपा ऐसा माहौल बनाने की दिशा में काम करेगी.’
यह टिप्पणी आमतौर पर उनकी तरफ से की जाने वाली बातों से अलग नहीं थी. मार्च 2020 में राज्य इकाई की बागडोर संभालने के बाद से ही संजय ‘हिंदुओं’ के लिए अपनी लड़ाई के बाबत बोलने में कतई संकोच नहीं करते हैं. और अपनी अब तक की यात्रा में उन्होंने सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील कई बयान दिए हैं, जिनमें से ज्यादातर कभी निजाम शासित रहे हैदराबाद में की गई हैं.
उन्होंने अपनी ‘पदयात्रा’ की शुरुआत भाग्यलक्ष्मी मंदिर से की, जो शहर के पुराने इलाके में स्थित एक छोटा-सा मंदिर हैं और ऐतिहासिक स्मारक चारमीनार से सटा हुआ है. पिछले साल निकाय चुनावों के दौरान भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया था. संजय के कार्यकाल की एक सफल शुरुआत के साथ पार्टी ने इस चुनाव में पिछले चुनावों की तुलना में दस गुना बेहतर प्रदर्शन किया.
पदयात्रा शुरू करने के दौरान संजय ने कहा कि भाजपा असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम)- जो बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी के कारण तेलंगाना की राजधानी के पुराने इलाकों में अच्छा-खासा दबदबा रखती है और ‘तालिबान की विचारधारा’ साझा करने वाले इसके समर्थकों को खदेड़ देगी.
उन्होंने कहा, ‘भाग्यलक्ष्मी मंदिर किसका ‘अड्डा’ है? पुराना शहर हमारा है, तेलंगाना हमारा है- हम किसी भी ‘बस्ती’, किसी भी गली में जा सकते हैं, हमारे नेता नरेंद्र मोदी हैं… तालिबान की विचारधारा को साझा करने वाली एआईएमआईएम और जो इसका समर्थन करते हैं, उन्हें बाहर कर दिया जाएगा और यही भाजपा का लक्ष्य है.’
इस मौके पर केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी और पार्टी के राज्य प्रभारी तरुण चुग मौजूद थे.
पदयात्रा शुरू होने से पहले चारमीनार पर भाजपा के झंडे वाले पोस्टरों के कारण उनके और पार्टी के अन्य नेताओं के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी की गई. इसके बावजूद संजय ने कहा कि शहर के ऐतिहासिक स्मारक गोलकुंडा किले पर भी पार्टी का झंडा लगाया जाएगा.
पिछले साल हैदराबाद नगरपालिका चुनाव के दौरान प्रचार अभियान, जिसमें केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी हिस्सा लिया था, सबसे ज्यादा संजय के इन बयानों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा था कि म्यांमार के अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों और ‘पाकिस्तानियों’ को बाहर खदेड़ने के लिए शहर के पुराने इलाकों में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ होगी.
उन्होंने कहा था, ‘एक दिन ओवैसी ने अमित शाह से पूछा कि वह हैदराबाद में रोहिंग्या मुद्दे पर क्या कर रहे हैं. मैं उनसे कहना चाहता हूं कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए पुराने शहर में रह रहे रोहिंग्या, पाकिस्तानियों और अफगानों को खदेड़ दिया जाएगा. चुनाव इन वोटों से रहित होंगे.’
टिप्पणी ने राज्य के म्युनिसिपल मंत्री और सीएम के चंद्रशेखर राव के बेटे के.टी. रामा राव की त्योरियां चढ़ा दी थी और उन्होंने इसे ‘निंदनीय और घृणास्पद’ करार दिया था.
उसी समय भाजपा के राज्य प्रमुख ने लोगों से यह भी सवाल किया था कि क्या वे ‘हिन्दुस्तान में भाग्यनगर’ चाहते हैं या फिर पाकिस्तान की तरह हैदराबाद. बयान में हैदराबाद का नाम बदलकर ‘भाग्यनगर’ करने का चुनावी वादा भी किया गया था. बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसकी वकालत की थी.
मुख्यमंत्री राव के मुखर और कट्टर आलोचक संजय सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति और उसकी करीबी माने जाने वाली पार्टी एआईएमआईएम पर बार-बार यह कहकर निशाना साधते रहे हैं कि टीआरएस को वोट देने का मतलब होगा एआईएमआईएम को वोट देना.
दिप्रिंट ने एक टिप्पणी के लिए फोनकॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये उनसे संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.
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राजनीतिक सफर
बंडी संजय की राजनीतिक पृष्ठभूमि खास उल्लेखनीय नहीं है. वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं और उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध दक्षिणपंथी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से की थी.
उनके एक करीबी सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि वह 1990 के दशक की शुरुआत में 20 वर्षीय युवा कारसेवक के तौर पर राम जन्मभूमि आंदोलन का समर्थन करने अयोध्या गए थे.
संजय ने 2019 में करीमनगर से बतौर सांसद जीत दर्ज की- इससे पूर्व उन्हें पहली बड़ी जीत स्थानीय नगर पार्षद के तौर पर हासिल हुई थी. वह 2014 और 2018 दोनों में विधानसभा चुनाव हार गए थे.
करीमनगर में बतौर कॉरपोरेट अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें चर्चा में लाने वाली घटनाओं में ‘महाशक्ति’ मंदिर का योगदान रहा है जिसे उन्होंने लगभग एक दशक पहले शहर में बनवाया था. स्थानीय भाजपा नेताओं का कहना है कि अब भी जब वह करीमनगर पहुंचते हैं तो मंदिर जाते हैं और वहां लोगों से बातचीत करते हैं.
पार्टी नेता बेटी महेंद्र रेड्डी ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक आवासीय कॉलोनी में एक पार्क के लिए भूमि आवंटित की गई थी और उस पर अतिक्रमण किया जा रहा था. तभी संजय, जो उस समय कॉरपोरेटर थे, ने मामले में दखल दिया और उस जमीन पर अतिक्रमण रोकने के लिए मंदिर बनवा दिया. इसके लिए चंदा जुटाया गया और चूंकि कॉलोनी में ज्यादातर घर हिंदुओं के थे, इसलिए सब इस काम के लिए आगे आ गए. उनका विचार था कि अगर जमीन पर मंदिर बन जाता है तो कोई भी इसका अतिक्रमण नहीं करेगा.’
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क्या ध्रुवीकरण में मदद मिलेगी?
बंडी संजय के लिए सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील बयान देना कोई नई बात नहीं है. लेकिन वह अकेले नहीं है. अन्य पार्टियों पर भी यही आरोप लगते रहे हैं.
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी भी अपने बयानों को लेकर अक्सर विवादों में रहते हैं. सबसे ज्यादा विवाद उनके 2013 में दिए उस बयान पर हुआ था जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘अगर 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दी जाए तो हम (मुसलमान) 100 करोड़ हिंदुओं को खत्म कर देंगे.’ इस टिप्पणी के संदर्भ ने विधायक के खिलाफ 2019 में हेट स्पीच के इस्तेमाल को लेकर पुलिस केस दर्ज किया गया था.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेलंगाना और खासकर हैदराबाद में सभी पार्टियों की तरफ से ध्रुवीकरण की जबर्दस्त कोशिशें जारी हैं जो कि पहले कभी नहीं हुआ.
एक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘एआईएमआईएम हमेशा अल्पसंख्यकों की पार्टी रही है. लेकिन उसकी तरफ से भी पहले कभी इस तरह ध्रुवीकरण वाले बयान नहीं दिए जाते थे. पुराना शहर उनका गढ़ है.’
लेकिन क्या ‘हिंदुओं’ के लिए संजय की यह लड़ाई भाजपा को चुनावी फायदा पहुंचाएगी? इस पर विशेषज्ञों का मानना है कि शायद ही कोई प्रभाव पड़ेगा.
राजनीतिक पर्यवेक्षक सुरेश अलापति ने दिप्रिंट को बताया, ‘हैदराबाद के विपरीत तेलंगाना के ग्रामीण इलाके सांप्रदायिक रूप से इतने बंटे हुए नहीं हैं- इसलिए इस हिंदू अभियान का वहां शायद ही कोई प्रभाव पड़ेगा. हैदराबाद में भी ऐसा कुछ सीमित क्षेत्र में ही मुमकिन है.’
सुरेश ने कहा, ‘और पिछले सात वर्षों में केसीआर की पार्टी ने खुद को बहुत मजबूती से स्थापित किया है. अगर भाजपा उसे सत्ता से बाहर करना चाहती है, तो उन्हें जमीनी स्तर पर कैडर मजबूत करने से लेकर शीर्ष स्तर तक एक विस्तृत रणनीति अपनाने की जरूरत होगी. वैसे उस पार्टी के लिए पैसा कोई मुद्दा नहीं है.’
मुख्यमंत्री केसीआर भी पूर्व में कई ‘यज्ञों’ और ‘पूजा’ आदि के जरिये अपनी आस्तिक मान्यताओं को खुलकर जता चुके हैं. केसीआर ने पूरे यादाद्री मंदिर शहर (यादगिरिगुट्टा) को भव्य ढंग से संवारने के लिए लगभग 1200 करोड़ रुपये भी मंजूर किए हैं. यादगिरिगुट्टा तेलंगाना के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक है.
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