नई दिल्ली: गुजरात सरकार इस साल राज्य के ‘गुमनाम नायकों’ पर 75 किताबें ला रही है, जिनमें 25 का विमोचन मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और राज्यपाल आचार्य देवव्रत 1 मई को करेंगे, जब राज्य अपना स्थापना दिवस या 1960 में बांबे स्टेट के गुजरात और महाराष्ट्र के रूप में विभाजन की वर्षगांठ मनाएगा.
इन किताबों को ऐसे समय पर रिलीज किया जा रहा है जब भारत अपनी आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है और गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. गुजरात में फिलहाल भाजपा सत्तासीन है.
इन किताबों के प्रकाशक गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पंड्या ने दिप्रिंट को बताया कि वे ‘गुमनाम नायकों की जीवनी पर आधारित किताबें लाने के लिए काफी समय से काम कर रहे हैं, जिनमें कई समाज सुधारक हैं और कुछ ने आजादी की लड़ाई में मोर्चा संभाला था.
उन्होंने कहा, ‘पहली 25 किताबें 1 मई को रिलीज होंगी, जबकि बाकी अगले दो-तीन महीनों में जारी की जाएंगी. नई पीढ़ी को इन नायकों के बारे में बहुत कम जानकारी है, इसलिए इन नायकों का ऐतिहासिक महत्व बताना हमारा कर्तव्य है.’
इन ‘गुमनाम नायकों’ में समाज सुधारक मोतीलाल तेजावत, स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा, महात्मा गांधी के भतीजे और पत्रकार सामलदास गांधी—जिन्होंने जूनागढ़ पर भारत के कब्जे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, भगत आंदोलन को लोकप्रिय बनाने वाले समाज सुधारक ठक्कर बापा और वैष्णव जन तो के लेखक 15वीं शताब्दी के कवि-संत नरसिंह मेहता आदि शामिल हैं.
मोदी सरकार लंबे समय से देश के ‘गुमनाम नायकों’ को राष्ट्रीय महत्व और इतिहास की किताबों में जगह देने पर काम कर रही है.
राजनीतिक विशेषज्ञों ने गुजरात के बुक प्रोजेक्ट को ‘गुजराती समाज के उपयोगी नेताओं के इस्तेमाल का प्रयास’ बताया है जिन्होंने 1857 से पहले आदिवासियों और पाटीदारों के अधिकारों की लड़ाई का नेतृत्व किया, और बाद में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सामाजिक जागृति बढ़ाने का काम किया.
ऐसे ही एक टिप्पणीकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘यह आरएसएस-भाजपा का उपयुक्त नेताओं का चुनावी लाभ हासिल करने का एक प्रोजेक्ट है, क्योंकि गुजरात लंबे समय से हिंदुत्व की प्रयोगशाला रहा है. इन नायकों के बारे में लिखने और बात करने से भाजपा के राष्ट्रवाद के वोट बैंक में इजाफा होगा, क्योंकि उनमें से कई आदिवासी और पाटीदार समुदाय से हैं.’
टिप्पणीकार ने कहा, ‘चुनावी वर्ष में ये छोटे-छोटे कदम जातियों के ध्रुवीकरण की दिशा में काफी काम आएंगे’
आदिवासी नायकों पर काम करने वाले गुजरात यूनिवर्सिटी के इतिहास के प्रोफेसर अरुण वाघेला ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसे प्रोजेक्ट राजनीतिक लाभ देते हैं क्योंकि इतिहास और राजनीति का परस्पर गहरा संबंध है.
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पसंदीदा प्रोजेक्ट
आरएसएस पहले ही भारतीय इतिहास पर फिर से विचार करने और अब तक जो लिखा गया है उस पर बहस शुरू करने का अपना इरादा जाहिर कर चुका है. कई ‘गुमनाम नायक’ इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं, और शैक्षिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किताबों और वृत्तचित्रों में जगह बना रहे हैं.
गुजरात में भाजपा ने स्थानीय नेताओं और नायकों को लोकप्रिय बनाने का काम किया है, और पिछले कुछ समय से उसके प्रयास गति पकड़ रहे हैं.
इस साल गणतंत्र दिवस पर गुजरात की झांकी भी ‘गुजरात के आदिवासी क्रांतिकारियों’ पर केंद्रित थी. इस झांकी में एकी आंदोलन के नायक मोतीलाल तेजावत का प्रमुखता से दर्शाया गया था, जिन्होंने अंग्रेजों को कर देने के खिलाफ आदिवासियों को संगठित किया था.
जब मोदी मुख्यमंत्री थे, तब उत्तरी गुजरात के भील गांव में उस जगह तेजावत का स्मारक बनाया गया था, जहां 7 मार्च 1922 को अंग्रेजों द्वारा कथित तौर पर 1,200 आदिवासियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, और जिसे गुजरात का ‘जलियांवाला बाग’ कहा जाता है.
गुजरात इतिहास संकल्प समिति के हसमुख जोशी ने कहा, ‘हमने जनता को अपने महान गुमनाम नायकों की फिर याद दिलाने के लिए पिछले एक साल में कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं. हमने उनका योगदान याद करने के लिए राज्य के विश्वविद्यालयों में 30 कार्यक्रम आयोजित किए.
दूरदर्शन ने हाल ही में महात्मा गांधी के सहयोगी मणिभाई देसाई पर एक शार्ट क्लिप प्रसारित की थी, जिन्होंने पुणे के उरली में एक प्राकृतिक चिकित्सा आश्रम की स्थापना की. वहां महात्मा गांधी ने 1946 में कई दिन बिताए थे. देसाई को 1968 में पद्मश्री और 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.
इस साल 30 मार्च को मोदी ने गुजराती नायक श्यामजी कृष्ण वर्मा को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की थी—जिन्होंने इंडियन होम रूल सोसाइटी, इंडिया हाउस और इंडियन सोशियोलॉजिस्ट इन लंदन की स्थापना की थी. उन्होंने 2003 में जिनेवा से वर्मा की अस्थियां वापस लाने के समय को भी याद किया, उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
2003-2004 में गुजरात सरकार ने क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा कच्छ यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी.
भक्त कवि नरसिंह मेहता यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर धार्मिक नेताओं पर पांच किताबें लिख रहे हैं जो समाज सुधारों के अगुआ थे और जूनागढ़ के भारत के कब्जे में उनकी अहम भूमिका रही थी.
गुजरातियों का योगदान
कृष्ण के भक्त के तौर पर ख्यात और 750 से अधिक कविताएं लिखने वाले नरसिंह मेहता एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, लेकिन माना जाता है कि दलितों के साथ जुड़ाव के कारण उन्हें अपने समुदाय से बाहर निकाल दिया गया था. 2015 में गुजरात सरकार ने उनके नाम पर एक यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी. और जूनागढ़ में उनके नाम पर एक लाइट-एंड-साउंड शो शुरू किया गया.
राज्य के द्वारका क्षेत्र के जोधा मानक और मुलु मानक ऐसे ही गुमनाम नायक हैं जिन्होंने 1857 में ब्रिटिश सेना के खिलाफ विद्रोह किया था.
गोविंद गुरु गुजरात के आदिवासी बहुल सीमावर्ती क्षेत्रों के एक सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे. उन्होंने भील आदिवासियों को बंधुआ मजदूरी से इनकार करने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
सामलदास ने गुजराती दैनिक वंदे मातरम् की शुरुआत की थी. 1947 में जब जूनागढ़ के नवाब ने अपने राज्य को पाकिस्तान में मिला लिया, तो सामलदास ने जूनागढ़ के नागरिकों की निर्वासित सरकार, आरजी हुकूमत का नेतृत्व किया. इस अस्थायी सरकार ने 40 दिनों के भीतर 160 गांवों पर कब्जा कर लिया. जूनागढ़ नवंबर 1947 में भारत में शामिल हुआ, और इस कदम को 1948 में जनमत संग्रह के जरिये औपचारिक रूप दिया गया.
‘गुमनाम नायकों’ पर प्रोफेसर वाघेला ने कहा कि ‘बहुत कम लोग उन महिलाओं के बारे में जानते हैं जिन्होंने महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा को लिखना और पढ़ना सिखाया.’
उन्होंने कहा, ‘जब भारत की आदिवासी नीति गुजरात से तय की गई, तो कई आदिवासी क्षेत्रों का विकास हुआ और ऐसे नायकों के राजनीतिक और सामाजिक महत्व मिलने के कारण पर्यटन स्थल बने.’
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