नई दिल्ली : अपनी राजस्थान इकाई में गुटबाजी से जूझ रही भाजपा इसे शांत करने में व्यस्त है, जो पिछले सोमवार को चुनावी राज्य के लिए जारी की गई पार्टी की 41 उम्मीदवारों की पहली सूची के बाद विरोध प्रदर्शन के तौर पर भड़क उठी है.
हालांकि पार्टी ने “कमजोर” मानी जाने वाली सीटों पर सात सांसदों को मैदान में उतारा है, लेकिन सूची से प्रमुख नाम पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे; पूर्व सीएम भैरो सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी और राजे के वफादार राजपाल सिंह शेखावत का नाम गायब है.
पिछले सप्ताह भर से, कम से कम एक दर्जन भर सीटों पर लड़ाई छिड़ी हुई है, खासकर उन सीटों पर जहां पर सांसदों को उतारा गया है, इसमें विद्याधर नगर, झोटवाड़ा, किशनगढ़, नागर, टोंक, सांचौर और कोटपुतली शामिल हैं.
बीजेपी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि टिकट के दावेदार असंतुष्ट लोग और उनके समर्थक, शांति स्थापित करने, आधिकारिक उम्मीदवार के लिए मिलकर काम करने के लिए राज्य के नेताओं के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं.
सूत्रों ने कहा, चूंकि उम्मीदवारों की दूसरी सूची की घोषणा होने वाली है, इसलिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा नाराजगी को रोकने के लिए खुद आगे आए हैं. उन्होंने सोमवार को उदयपुर और जोधपुर में राजस्थान इकाई के नेताओं से मुलाकात की और उनसे पार्टी के अंदर (घर को) व्यवस्थित करने और विद्रोह को जल्द से जल्द रोकने के लिए कहा.
बीजेपी के चुनावी प्रबंधन कमेटी के प्रमुख नारायण सिंह पंचारिया ने दिप्रिंट को बताया : “पार्टी ने नाराज लोगों को मनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में कई नेताओं को लगा दिया है और हमें उम्मीद है कि वे कांग्रेस (वर्तमान में सत्ता में मौजूद) को हराने के लिए सीनियर नेताओं की सुनेंगे.”
हालांकि, राजस्थान के एक पूर्व बीजेपी अध्यक्ष ने ठीक इस तरह का आशावाद नहीं जाहिर किया.
उन्होंने कहा, “इस तरह की बगावत के पीछे की वजह बीजेपी के राज्य नेताओं का घटता कद और निर्णय लेने में उनकी भूमिका कम (थोड़ा) होना है.” “क्यों स्थानीय नेता राज्य नेताओं की सुनेंगे जब (केंद्रीय) हाई कमान टिकट को लेकर फैसले ले रहा है?”
उन्होंने कहा, “राज्य के नेता अब केंद्रीय नेताओं को अपनी बात मनवा नहीं सकते और जन नेताओं के मामले में एक शून्यता है, जो कई राज्यों में इस तरह के विद्रोह को बढ़ावा दे रहा है. टिकटों के लिए वसुंधरा राजे अब अंतिम पड़ाव (आखिरी फैसला लेने वाली) नहीं हैं, इसलिए गुस्सा जाहिर करने के लिए सभी स्वतंत्र हो गये हैं.”
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कई सारे विरोध-प्रदर्शन
विद्रोह का सामना करने वाली एक प्रमुख सीट देवली उनियारा है, जहां गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को मैदान में उतारा गया है. यहां, 2018 में भाजपा उम्मीदवार राजेंद्र गुर्जर के समर्थकों ने राज्य के विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ के सामने टायर में आग लगाकर विरोध प्रदर्शन किया, जिन्होंने गुस्से को शांत करने के लिए इस सप्ताह के अंत में निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया था.
सांचौर में बगावत सबसे खराब बताई जा रही है, जहां बीजेपी ने सांसद देवजी पटेल को मैदान में उतारा है.
दो कट्टर विरोधियों और टिकट के दावेदारों, दानाराम चौधरी और जीवाराम चौधरी ने पटेल की उम्मीदवारी का विरोध करने के लिए हाथ मिलाया है और स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की धमकी दी है. दोनों के समर्थकों ने विरोध में निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी रैलियां कीं.
बीजेपी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सांचौर जिला इकाई के ज्यादातर सदस्यों ने चुनाव होने से एक महीने पहले विरोध में इस्तीफा दे दिया था, और दानाराम के समर्थन में जिले के 18 महासचिवों ने पद छोड़ दिया था.
सूत्रों ने कहा, “पटेल और उनके भाई जीवाराम के समर्थकों से मिले लेकिन उन्होंने दो टूक कहा कि, “निर्वाचन क्षेत्र के सदस्य, उम्मीदवार का फैसला करेंगे.”
जिन सीटों पर पार्टी ने अपने सांसद उतारे हैं वहां भी घमासान देखने को मिल रहा है.
तिजारा में सांसद बालकनाथ को मैदान में उतारा गया है. पहली सूची जारी होने के बाद जब वह निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचे तो उन्हें निराशाजनक स्वागत का सामना करना पड़ा. साधु बालकनाथ की आरएसएस और भाजपा में गहरी पकड़ है और उन्हें राजस्थान के योगी के रूप में जाना जाता है.
पूर्व विधायक ममन यादव ने घोषणा की है कि वह बालकनाथ के खिलाफ लड़ेंगे और कहा जा रहा है कि उन्हें क्षेत्र के लोगों का समर्थन मिल रहा है.
इसी तरह, राजपाल के समर्थकों ने पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को झारकोटा में काले झंडे दिखाए, जो कि इस सीट से लड़ रहे हैं. 2018 में राजपाल इस सीट से चुनाव जीतने में नाकाम रहे थे.
पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, प्रदर्शन करने वालों को राठौड़ का मिठाइयां ऑफर करना काम नहीं आया, और राजपाल के समर्थक हर दिन बैठकें और कैंडल मार्च निकाल रहे हैं. सीनियर नेता सीपी जोशी की, गुस्से को शांत करने की कोशिश भी मनमुताबिक परिणाम नहीं हासिल कर सकी.
किशनगढ़ से पार्टी ने सांसद भगीरथ चौधरी को टिकट दिया है, जिसका विकास चौधरी विरोध कर रहे हैं, जिन्होंने 2018 में इस सीट से चुनाव लड़ा था, सफलता नहीं पाई थी.
पिछले सप्ताह अपने समर्थकों को संबोधित करने के दौरान विकास ने दुख जाहिर करते हुए कहा : “मैंने क्षेत्र में पिछले पांच सालों से काम किया है, लेकिन भगीरथ चौधरी ने मेरे करिअर की हत्या कर दी…उन्होंने कभी भी मेरा समर्थन नहीं किया.”
एक वीडियो में उन्हें कहते हुए सुना गया, “2018 में मुझे आखिरी क्षण में उतारा गया. हालांकि जीतना मुश्किल था, मैंने फिर भी चुनाव लड़ा. इस समय, मुझे राजनीतिक तौर से खत्म करने की रणनीति बनाई गई है.”
बीजेपी ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को श्री गंगानगर भेजा था, जहां से जयदीप बिहाणी चुनाव लड़ रहे हैं. टिकट के दावेदार पृथ्वीपाल संधू और सुरेंद्र पाल के समर्थक पूनिया के सामने भिड़ गए. इसी तरह, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत को अजमेर संसदीय क्षेत्र में विरोध का सामना करना पड़ा.
पिछले मंगलवार को बीजेपी ने बाड़मेर के सांसद और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के अधीन असंतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए एक कमेटी बनाई थी और उन्हें पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने से रोकने पर बागी नेताओं के समर्थकों के विरोध और नारेबाजी का सामना करना पड़ रहा है.
बीजेपी के उपाध्यक्ष सीआर चौधरी ने राज्य में विरोध-प्रदर्शन के बारे में बताते हुए दिप्रिंट से कहा कि, “इस तरह के विरोध-प्रदर्शन अभूतपूर्व हैं.”
उन्होंने कहा, “इस तरह की संस्कृति कांग्रेस में आम है लेकिन अब बीजेपी भी इसी तरह के विरोध और बगावत की स्थिति का सामना कर रही है. पार्टी बागियों को शांत करने के लिए वरिष्ठ नेताओं पर दबाव बना रही है.”
‘टिकट कटने के पीछे राजे से नजदीकी’
कुछ असंतुष्ट नेता ‘राजे से नजदीकी’ का दोष मढ़ रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें टिकट गंवाना पड़ा है.
राजपाल, जो कि राजे सरकार में मंत्री थे, इससे पहले दिप्रिंट को बताया था कि, “वह यह समझने में नाकाम हैं कि पार्टी ने उन्हें क्यों ड्रॉप कर दिया है.”
उन्होंने कहा, “मैं 1990 से कई बार विधायक रहा हूं. राठौड़ जूनियर हैं. हालिया एक न्यूजपेपर के सर्वे में मेरे निर्वाचन क्षेत्र में 62 फीसदी लोग मेरी उम्मीदवारी चाहते हैं…मैं नहीं जानता कि बीजेपी ने किस सर्वे का इस्तेमाल किया है.”
नागर में, जहां पार्टी ने जवाहर सिंह बेदाम को मैदान में उतारा है, अनिता सिंह गुर्जर ने यहां से मौका हाथ से जाने के लिए राजे के प्रति अपनी घनिष्ठता को जिम्मेदार ठहराया है.
अनीता ने पहले ही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि कुछ नेताओं ने उन्हें इस तरह का फैसला न लेने को कहा, “लेकिन जब पार्टी ने मेरी आवाज और मेरे संघर्ष को नहीं सुना तो मैंने लड़ने से इनकार कर दिया.”
पिछले सप्ताह एक फेसबुक पोस्ट में उन्होंने कहा: “कई लोग मेरी उम्मीदवारी के बारे में पूछताछ करने के लिए फोन कर रहे हैं. बीजेपी ने मुझे वसुंधरा जी से मेरी नजदीकी के कारण मुझे टिकट नहीं दिया है. बावजूद, उन्होंने ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया जो दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में 50,000 वोटों से हार गया था. यहां तो उसकी जमानत जब्त हो जाएगी.”
अन्य बीजेपी उपाध्यक्ष के मुताबिक, “असली परीक्षा तब होगी जब पार्टी उन सीटों के लिए टिकटों की घोषणा करेगी, जहां उसके अपने मौजूदा विधायक हैं.”
उन्होंने कहा, ”मजबूत नेताओं और तंत्र की गैरमौजूदगी में, असली परीक्षा सत्ता विरोधी वोटों के विभाजन को कम करने की होगी जो (सीएम और कांग्रेस नेता) अशोक गहलोत के पक्ष में हो सकते हैं.” उन्होंने कहा कि पार्टी उम्मीदवारों को विश्वास में लेने में विफल रही है और ऐसे नियमित संपर्क तंत्र को हाल के दिनों में कमजोर कर दिया गया था.”
(संपादन: इन्द्रजीत)
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