लखनऊ: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में दो औद्योगिक क्षेत्रों में 72 भूखंड 10 साल पहले एक राज्य मंत्री को आवंटित किए गए थे – जब वह उस निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के सांसद थे और राज्य में उस वक्त पार्टी की सरकार थी. सभी प्लॉट अनुपयोगी पड़े हुए हैं, उनके खिलाफ कोई लीज डीड नहीं है और न ही उनके खिलाफ एक रुपए का भुगतान किया गया है.
इसके बारे में राज्य सरकार द्वारा हाल ही में संपन्न ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (जीआईएस) 2023 से पहले खाली भूखंडों की पहचान करने के बाद पता चला, जब एक गैर-लाभकारी संगठन ने बताया कि कैसे भूखंड एक दशक पहले आवंटित किए जाने के बाद से अनुपयोगी पड़े हुए हैं. जो कि सारे के सारे वर्तमान सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री राकेश सचान को दिए गए थे.
लघु उद्योग भारती (एलयूबी) की फतेहपुर इकाई के अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने आयुक्त और निदेशक (उद्योग), यूपी, मयूर माहेश्वरी और फतेहपुर की जिलाधिकारी श्रुति शर्मा को 11 फरवरी को लिखे अपने पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उक्त औद्योगिक इकाइयां सुविधाओं की कमी की वजह से काम नहीं कर रही हैं. LUB एक अखिल भारतीय संगठन है जो 1994 से सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिए काम कर रहा है.
सिंह ने कार्यरत औद्योगिक इकाइयों की संख्या के विरुद्ध आवंटित औद्योगिक भूखंडों की संख्या गिनाते हुए आरोप लगाया कि चखाना क्षेत्र के मिनी औद्योगिक क्षेत्र में 36 भूखंडों में से 32 सचान को आवंटित किए गए हैं, लेकिन इनमें से किसी पर भी यूनिट स्थापित नहीं की गई है. शिकायत में कहा गया है, “एक व्यक्ति – राकेश सचान – को बत्तीस प्लॉट आवंटित किए गए हैं, जिनका पते (एड्रेस) के बारे में जानकारी नहीं है.” इसी तरह इसमें आरोप लगाया कि सुधवापुर क्षेत्र में मिनी इंडस्ट्रियल एस्टेट में कुल 45 औद्योगिक प्लॉटों में से 40 आवंटित किए गए हैं, लेकिन वहां भी कोई औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं है. दिप्रिंट के पास शिकायत की कॉपी मौजूद है.
शिकायत में कहा गया है, “40 प्लॉट एक व्यक्ति राकेश सचान को आवंटित किए गए हैं, जिनके एड्रेल के बारे में जानकारी नहीं है.” कथित तौर पर सभी आवंटन 2012-13 में किए गए थे.
आवंटन के बारे में खबर वायरल होने के बाद, मंत्री ने शुक्रवार को फतेहपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की और दावा किया कि यह आवंटन अभिनव सेवा संस्थान को किया गया था. कानपुर के घाटमपुर में स्थित एक संगठन है जो इस क्षेत्र में एक इंटर कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थानों का मालिक है. संगठन की स्थापना सचान ने की थी जो अभी भी मैनेजिंग कमेटी का हिस्सा हैं.
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‘कोई शुल्क नहीं दिया, कोई लीज डीड नहीं’
सिंह ने अपने पत्र में कहा, “फतेहपुर अत्यंत पिछड़े जिलों की श्रेणी में आता है और जबकि जीआईएस-2023 में 848 करोड़ रुपये के एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं, इन एमओयू को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए औद्योगिक इकाइयों को विकसित करना बेहद जरूरी है.”
दिप्रिंट से बात करते हुए सिंह ने कहा कि ये 72 प्लॉट सचान को तब आवंटित किए गए थे जब वह समाजवादी पार्टी के फतेहपुर से सांसद थे, जिसकी कि आवंटन के समय यूपी में सरकार थी.
उन्होंने आरोप लगाया, “नियमों के अनुसार भूखंडों के लिए शुल्क के रूप में एक भी रुपये का भुगतान नहीं किया गया है और न ही किसी लीज डीड पर हस्ताक्षर किए गए हैं. मैंने इस मामले को छह महीने पहले उद्योग बंधु की एक बैठक के दौरान उठाया था – राज्य में उद्यमियों को निवेश करने में मदद करने के लिए एक सरकारी एजेंसी – जिसमें डीएम और एडीएम (वित्त) भी मौजूद थे. डीएम ने तुरंत जिला उद्योग केंद्र (डीआईसी) के महाप्रबंधक को मामले की जांच करने का निर्देश दिया था, लेकिन चूंकि यह विभाग एमएसएमई और निर्यात संवर्धन विभाग के अंतर्गत आता है, जिसके प्रमुख सचान हैं, किसी ने भी कुछ करने की हिम्मत नहीं की.”
यह मामला कैसे सामने आया, इस पर सिंह ने कहा कि राज्य सरकार जीआईएस-2023 के लिए राज्य भर में इंडस्ट्रियल प्लॉट्स की पहचान कर रही है. उन्होंने पूछा, “इसके बाद, दिसंबर में, कई आवंटन इसलिए रद्द कर दिए गए क्योंकि उन प्लॉट्स पर कोई यूनिट स्थापित नहीं की गई थी. लेकिन मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. क्या वह इसके अंतर्गत नहीं आते हैं?”
सिंह ने बताया कि सरकारी नियमों के अनुसार आवंटन के एक माह के भीतर 10 प्रतिशत शुल्क जमा नहीं करने पर औद्योगिक भूखंड का आवंटन स्वत: निरस्त हो जाता है. “शुल्क का भुगतान करने के बाद भी, यदि आवंटन के छह महीने के भीतर कोई लीज डीड नहीं है, तो यह रद्द हो जाती है. इसके अलावा, यदि किसी औद्योगिक इकाई में दो साल के भीतर उत्पादन शुरू नहीं होता है, तो आवंटन स्वतः रद्द हो जाता है.
‘जुर्माना भरो नहीं तो 15 दिन में लो लीज डीड’
15 फरवरी को, डीआईसी के महाप्रबंधक अंजनीश प्रताप सिंह ने मंत्री के संगठन, अभिनव सेवा संस्थान को पत्र लिखकर 15 दिनों में 10 प्रतिशत फीस का भुगतान करने या लीज डीड को पंजीकृत कराने और स्टैंप ड्यूटी देने के लिए कहा. मंत्री ने दिप्रिंट से इस बात की पुष्टि की.
उन्होंने कहा, “मेरे संगठन ने उसी दिन महाप्रबंधक (डीआईसी) को जवाब दिया कि चूंकि वहां पर दो शैक्षणिक संस्थान पास में आ गए हैं इसलिए उस जगह पर शैक्षणिक संस्थानों की कोई जरूरत नहीं है लिहाजा अब उसे जमीन की आवश्यकता नहीं हैं. उन्हें बता दिया गया है कि प्लॉट्स को विभाग को वापस कर दिया जाएगा.”
यह पूछे जाने पर कि क्या औद्योगिक इकाइयों की स्थापना में रुचि रखने वाले व्यवसायियों को भूखंडों का पुनर्वितरण किया जाएगा, सचान ने कहा कि अगर उचित लेने वाले होंगे तो यह उन्हें जरूर दिया जाएगा.
दिप्रिंट से बात करते हुए मंत्री ने विभाग पर दोष मढ़ा. उन्होंने कहा, “उन्होंने पहले ऐसा कोई पत्र क्यों नहीं दिया? यह उनकी ओर से बहुत बड़ी भूल है. मुझे इसके बारे में 15 फरवरी को पता चला जब पत्र आया.’
सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जब मामला यूपी सरकार के शीर्ष अधिकारियों तक पहुंचा तब आनन-फानन में सचान के संगठन को पत्र भेजा गया.
फतेहपुर के महाप्रबंधक (डीआईसी) अंजनीश प्रताप सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने यूपी के आयुक्त और निदेशक (उद्योग) से इस मामले में बात की है और उनसे मार्गदर्शन मांगा है कि इस मामले में कैसे आगे बढ़ा जाए. समाचार रिपोर्टों के बारे में पूछे जाने पर, जिसमें उनके हवाले से कहा गया था कि 10 प्रतिशत शुल्क की वसूली की प्रक्रिया शुरू की गई है, सिंह ने कहा कि वसूली इस तरह नहीं होती है और मंत्री ने खुद कहा है कि वे अब भूखंड नहीं रखेंगे.
उन्होंने कहा, ‘अब इस मसले पर मुख्यालय से मार्गदर्शन मांगा गया है.’
कौन हैं मंत्री सचान
कानपुर क्षेत्र के एक वरिष्ठ कुर्मी नेता माने जाने वाले, सचान कभी मुलायम सिंह यादव खेमे के करीबी थे. 2019 के आम चुनावों में सांसद का टिकट न मिलने पर उन्होंने सपा छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए. यही नहीं वह प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व वाले वरिष्ठ नेताओं के कोर ग्रुप का हिस्सा भी बन गए.
इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले, वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए और उन्हें योगी 2.0 में कैबिनेट मंत्री बना दिया गया.
लेकिन यह भूमि विवाद पहली बार नहीं है जिसकी वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पिछले साल अगस्त में, अवैध हथियार रखने के लिए 1991 में उनके खिलाफ शस्त्र अधिनियम के एक मामले में दोषी ठहराए जाने पर, कैबिनेट मंत्री ने कथित तौर पर अदालत के आदेश की फाइल ली और कानपुर की एक अदालत से “गायब” हो गए.
दो दिन बाद, उन्होंने अदालत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें 1500 रुपये के जुर्माने के साथ एक साल की कैद की सजा सुनाई गई. हालांकि, कुछ घंटे बाद उन्हें 50,000 रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी गई.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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