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Friday, 3 May, 2024
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राजभर vs राजभर- UP की इस सीट पर कैसे अपने पूर्व सहयोगी को हराने में लगी है BJP

एसपी सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का यूपी के ज़हूराबाद चुनाव क्षेत्र में बीजेपी के कालीचरण राजभर और बीएसपी की शादाब फातिमा से मुकाबला है.

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नई दिल्ली: राजनीति में आने से पहले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, वाराणसी में एक ऑटोरिक्शा चलाया करते थे. आज, उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में समाजवादी पार्टी के एक प्रमुख सहयोगी की हैसियत से सूबे की राजनीति में सत्ता का खिलाड़ी होने के नाते, वो फिर से चालक सीट पर बैठ सकते हैं.

गाज़ीपुर ज़िले के ज़हूराबाद से मौजूदा विधायक राजभर, अपने घरेलू मैदान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की ओर से एक मुश्किल चुनौती का सामना कर रहे हैं.

बीजेपी ने अपने पूर्व सहयोगी ओपी राजभर के मुकाबले, पूर्व बीएसपी नेता कालीचरण राजभर को मैदान में उतारा है, जो उसी समाज से आते हैं. कालीचरण ज़हूराबाद के लिए कोई नए नहीं हैं, वो इस सीट को बीएसपी के टिकट पर दो बार- 2002 और 2007 में जीत चुके हैं.

इस बीच बीएसपी ने शादाब फातिमा को खड़ा किया है, जिन्होंने 2012 में ये सीट एसपी के टिकट पर जीती थी. अपेक्षा की जा रही है कि वो इस सीट से अधिकांश दलित वोट हासिल करेंगी और बहुत से मुस्लिम वोटों को भी आकर्षित करेंगी- वो वोट जिन पर एसपी और उसके सहयोगी ओपी राजभर भरोसा कर रहे हैं.

राजभर वोटों के कालीचरण और ओपी राजभर के बीच बटने का मतलब है कि बीजेपी को, जिसके मूल वोटर अपनी जगह कायम हैं, सामुदायिक और जातिगत लाइन पर हुए इस अपेक्षित विभाजन का फायदा मिल सकता है.

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न केवल राजभर, बीजेपी अपने ‘राजभर बनाम राजभर’ फॉर्मूले का इस्तेमाल, ओपी राजभर के बेटे अरविंद राजभर को निशाना बनाने के लिए भी कर रही है, जो वाराणसी ज़िले के शिवपुर से एसबीएसपी उम्मीदवार हैं. वहां, बीजेपी उम्मीदवार यूपी के काबिनेट मंत्री अनिल राजभर हैं.

राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के बाद, जो 33 सीटों पर लड़ रहा है, एसपी नेतृत्व के गठबंधन में 16 सीटों के साथ, एसबीएसपी का सीटों का हिस्सा सबसे अधिक है.


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ज़हूराबाद में भाजपा की योजना

ओपी राजभर के एसबीएसपी ने बीजेपी के साथ गठबंधन में 2017 के विधानसभा चुनावों में आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था और चार सीटें जीती थीं. राजभर कैबिनेट मंत्री बन गए लेकिन बीजेपी के साथ उनके रिश्तों में उस समय खटास आ गई, जब 2019 के संसदीय चुनावों में उन्होंने लोकसभा के लिए एक टिकट मांग लिया. 2019 में बीजेपी से अलग होने के बाद राजभर एसपी में शामिल हो गए और बीजेपी तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खुले आलोचक बन गए.

ज़हूराबाद में, जहां बहुत सारे मतदाता राजभर समाज से हैं, ओपी राजभर और कालीचरण की लड़ाई सबका ध्यान खींच रही है.

कालीचरण, जो 2002 और 2007 में बीएसपी टिकट पर ज़हूराबाद से विजयी रहे थे, 2012 के चुनावों में एसपी की शादाब फातिमा और 2017 में ओपी राजभर के हाथों परास्त हो गए.

ज़हूराबाद में बीजेपी का चुनावी गणित, बाकी जगहों की तरह ही मतदाताओं के जातिगत और सामुदायिक विभाजन पर टिका है.

पार्टी अनुमानों के अनुसार ज़हूराबाद में दलित मतदाताओं की संख्या करीब 70,000 है, राजभर भी लगभग 70,000 हैं, 30,000 मुसलमान हैं और 45,000 यादव हैं. फिर 30,000 चौहान मतदाता हैं, 30,000 राजपूत हैं और ब्राह्मण तथा वैश्य क्रमश: 25,000 और 20,000 हैं.

बीजेपी को उम्मीद है कि कालीचरण के पुराने बीएसपी संपर्क की वजह से उन्हें कुछ दलित वोट मिल जाएंगे और साथ ही अपने राजभर समुदाय का भी एक अच्छा हिस्सा मिल जाएगा. चौहान, ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य, बीजेपी के मूल वोट बैंक का हिस्सा हैं.

आखिर में, शादाब फातिमा की मौजूदगी की वजह से बीजेपी मुस्लिम वोटों के विभाजन पर भी निर्भर कर रही है. उसे उम्मीद है कि इस सब की वजह से ओपी राजभर के लिए जीतना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

बीजेपी ज़िलाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘ओपी राजभर के खिलाफ एक भारी विरोधी लहर है, क्योंकि उन्होंने इस क्षेत्र में विकास का कोई काम नहीं किया है और वो सिर्फ बड़े-बड़े वादे करते हैं. कालीचरण के बीएसपी अतीत की वजह से, हमें न केवल राजभर बल्कि दलित वोट भी मिलेंगे. अब ये चुनाव बीजेपी और बीएसपी की फातिमा के बीच है’.

बीजेपी ने कभी ज़हूराबाद विधानसभा सीट नहीं जीती है, सिवाय 1996 के जब उसके उम्मीदवार गणेश यहां से विजयी रहे थे. उसके बाद से, यहां काफी हद तक बीएसपी और एसपी के बीच ही मुकाबला रहा है.


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‘लोगों को अभी भी मेरा काम याद है’

बीएसपी उम्मीदवार शादाब फातिमा को शुरू में एसपी से टिकट मिलने की उम्मीद थी लेकिन जब ये सीट एसबीएसपी के हिस्से में चली गई, तो पिछले हफ्ते वो पार्टी छोड़कर बीएसपी में शामिल हो गईं.

फातिमा, जो हिंदी/उर्दू कवि, उपन्यासकार और कथानक लेखक राही मासूम रज़ा (जिन्होंने टीवी सीरियल महाभारत की स्क्रिप्ट भी लिखी थी) की रिश्तेदार हैं, वहीं एसपी नेता शिवपाल यादव की करीब थीं. 2017 में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के अलग होने के बाद, उन्हें पार्टी से टिकट नहीं दिया गया. उससे पहले वो अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रह चुकी थीं.

उन्होंने 2007 के यूपी विधानसभा चुनावों में गाज़ीपुर सदर सीट से एसपी के टिकट पर चुनाव जीता था.

2012 के विधानसभा चुनावों में ज़हूराबाद से फातिमा ने कालीचरण को हरा दिया था, जबकि ओम प्रकाश राजभर तीसरे स्थान पर रहे. फातिमा को 67,012 वोट मिले, जबकि कालीचरण को 56,534 वोट मिले. राजभर के हिस्से में 48,865 वोट आए.

इस साल, फातिमा उम्मीद कर रही हैं कि मुस्लिम वोटों के एक बड़े हिस्से के अलावा उन्हें बीएसपी के परंपरागत वोट भी मिलेंगे. वो ओपी राजभर के खिलाफ विरोधी लहर पर भी भरोसा कर रही हैं.

फातिमा ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने अपने चुनाव क्षेत्र में बहुत विकास कार्य किए हैं…लोगों को आज भी अतीत में किया हुआ मेरा काम याद है. यहां मेरे लिए कोई लड़ाई नहीं है’.


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ज़हूराबाद में ओपी राजभर की रणनीति

लेकिन ओम प्रकाश राजभर के छोटे बेटे अरुण राजभर, बीजेपी और बीएसपी के इन दावों का खंडन करते हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘गाज़ीपुर में, मुसलमानों के लिए उनके नेता मुख़्तार अंसारी हैं और यादवों के नेता अखिलेश यादव हैं. गाज़ीपुर के मुसलमान फातिमा को वोट नहीं देंगे, राजभर वोट नहीं बटेंगे और हमें चौहानों के वोट भी मिलेंगे चूंकि (जनवादी पार्टी अध्यक्ष और एसपी सहयोगी) संजय चौहान हमारे गठबंधन में हैं. बीजेपी यहां कामयाब नहीं होगी’.

अरुण राजभर गाज़ीपुर के राजनीतिक रूप से प्रभावशाली अंसारी परिवार का ज़िक्र कर रहे थे, जिससे जेल में बंद गैंग्सटर से राजनेता बने मुख़्तार अंसारी का ताल्लुक है, जो बीएसपी नेता हैं और मऊ से पांच बार के विधायक हैं.

ओपी राजभर ने अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को मऊ से चुनाव मैदान में उतारा है, एक ऐसा कदम जो ज़हूराबाद में मुसलमान वोट हासिल करने के हिसाब से उठाया गया लगता है.

एक बीजेपी नेता ने नाम छिपाने की इच्छा के साथ कहा, ‘गाज़ीपुर के मुसलमानों के लिए मुख़्तार अंसारी एक हीरो हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी मुश्किल है चूंकि बीएसपी ने (मऊ से) अंसारी को टिकट नहीं दिया है, बल्कि ज़हूराबाद से ऐसी मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ा किया है, जिसकी एक अच्छी छवि है. अब, ओपी राजभर की एसबीएसपी ने मऊ से मुख़्तार अंसारी के बेटे को टिकट दिया है…इसका मकसद मुसलमान वोट हासिल करना है’.


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शिवपुर में अरविंद राजभर के सामने चुनौती

जहां ओपी राजभर ज़हूराबाद में अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं शिवपुर में उनके बेटे अरविंद का सामना बीजेपी के अनिल राजभर से है.

अनिल राजभर ने शिवपुर से 2017 का विधानसभा चुनाव जीता था, और उन्हें योगी आदित्यनाथ सरकार में एक कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. ओपी राजभर से अलग होने के बाद बीजेपी ने उन्हें अपने राजभर चेहरे के रूप में आगे बढ़ाया है.

अनुमान के मुताबिक शिवपुर सीट पर 60,000 राजभर वोट हैं, 50,000 यादव हैं, 30,000 मुसलमान हैं, जबकि ब्राह्मण मतादाताओं की संख्या 35,000, चौहानों की 30,000, मौर्य मतदाताओं की 25,000, तथा प्रजापति और दूसरी जातियां इसके अलावा हैं.

एसबीएसपी मुस्लिम, यादव और राजभर वोट मिलने की उम्मीद कर रही है, जबकि बीजेपी राजभर, चौहान और ब्राह्मण वोटों पर आस लगाए है.

शिवपुर से बीएसपी उम्मीदवार रवि मौर्य हैं. 2012 में बीएसपी के उदय लाल मौर्य इस सीट से विजयी रहे थे.

ज़हूराबाद और शिवपुर दोनों सीटों पर यूपी चुनावों के आखिरी चरण में 7 मार्च को मतदान होना है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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