नई दिल्ली: राजस्थान भाजपा अंदरूनी कलह सार्वजनिक तौर पर उजागर करने और ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल’ पार्टी सदस्यों पर ‘लगाम कसने’ के इरादे से उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की योजना बना रही है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, राजस्थान भाजपा प्रमुख सतीश पूनिया ने पिछले हफ्ते जब उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह सहित अन्य केंद्रीय नेताओं के साथ बैठक के लिए दिल्ली का दौरा किया तो यह मुद्दा उनके एजेंडे में सबसे ऊपर था.
उनका यह दौरा ऐसे समय पर हुआ जब राज्य भाजपा इकाई की तरफ से राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी माने जाने वाले राजस्थान के पूर्व मंत्री रोहिताश्व कुमार शर्मा को नोटिस थमाया गया था, जो राज्य में पार्टी के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं.
शर्मा ने राज्य के केंद्रीय भाजपा नेताओं की कोविड संकट के बीच कथित तौर पर अपने जिलों का दौरा न करने के लिए आलोचना की है और साथ ही राजस्थान की भाजपा इकाई पर कुर्सी की राजनीति करने का आरोप लगाया है. उन्होंने इस साल के शुरू में दो विधानसभा सीटों के उपचुनावों में पार्टी की हार के लिए भी संगठन के कामकाज के तरीके को जिम्मेदार ठहराया है और वह कहते हैं कि राज्य का कोई भी नेता कद में राजे की बराबरी नहीं कर सकता. दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में शर्मा ने अपने बयानों का बचाव किया, साथ ही कहा कि उन्होंने यह बात एक एक उचित मंच पर उठाई थी और उस बैठक का ऑडियो ‘लीक’ होने के बाद यह पब्लिक डोमेन में आई.
पिछले महीने उन्हें नोटिस जारी होने के तुरंत बाद पूनिया द्वारा राज्य भाजपा इकाई की आलोचना करते हुए 22 साल पहले लिखा गया एक पत्र वायरल हो गया, जो 1999 में तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष गुलाब चंद कटारिया को भेजा गया था.
नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करने वाले भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि पार्टी के कुछ सदस्य ‘वरिष्ठ नेताओं’ के इशारे पर ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ में शामिल हैं. उन्होंने दावा किया कि कुछ भाजपा सदस्यों ने उपचुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया.
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘इस साल की शुरुआत में हुए उपचुनावों में हमने पाया कि कुछ भाजपा नेता पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं. साथ ही महसूस किया गया कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के इशारे पर पार्टी विरोधी गतिविधियां जारी हैं और ऐसे में उनके खिलाफ कार्रवाई कर मिसाल कायम किए जाने की जरूरत है.’
हालांकि, नेता ने आगे जोड़ा कि इन नेताओं में ‘पूर्व सांसद, विधायक और एक मौजूदा विधायक’ शामिल हैं, और कोई भी कार्रवाई किए जाने से पहले केंद्रीय नेतृत्व की मंजूरी मिलना जरूरी है.
एक दूसरे नेता ने कहा, ‘राज्य इकाई उन सब पर नजर रखे है जो इस तरह की गतिविधियों में शामिल रहे हैं. नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से उन्हें केवल प्रोत्साहन ही मिलता है. सतीश पूनिया ने वरिष्ठ नेताओं के साथ मुलाकात की है और उन्हें मौजूदा स्थिति से अवगत कराया है और कोई भी कार्रवाई करने से पहले केंद्रीय नेतृत्व की राय ली है.’
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टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए पूनिया ने कहा कि उन्होंने ‘संगठनात्मक मसलों’ पर चर्चा के लिए केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात की थी. उन्होंने कहा, ‘केंद्रीय नेतृत्व ने मुझे नहीं बुलाया था. मैं केंद्रीय नेतृत्व के साथ संगठनात्मक मुद्दों पर चर्चा के लिए दिल्ली आया था. मैंने उन्हें राज्य की राजनीतिक स्थितियों की जानकारी दी और बताया कि कैसे गहलोत सरकार हर मोर्चे पर लड़खड़ा रही है.’
पिछले माह भाजपा के राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह ने पार्टी नेताओं को चेतावनी दी थी कि पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
उन्होंने 23 जून को पार्टी की राज्य कार्यकारी परिषद की बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में कहा, ‘बहुत हो गया. मैंने प्रदेश नेतृत्व से ऐसे नेताओं की सूची तैयार करने को कहा है. हम उन्हें समझा लेंगे और अगर फिर भी नहीं माने तो पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी.’
बढ़ती दूरियां
तीन विधानसभा उपचुनावों—सहदा, सुजानगढ़ और राजसमंद—के नतीजे 2 मई को घोषित किए गए थे. पहली दो सीटें कांग्रेस ने जीतीं और तीसरी भाजपा के खाते में आई थी. दोनों ही पार्टियों ने इस उपचुनाव में अपनी सीटों को बरकरार रखा था, जहां मौजूदा प्रतिनिधियों के निधन के कारण उपचुनाव जरूरी हो गया था.
एक तीसरे भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी ‘इनमें बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी लेकिन कुछ ऐसी जानकारियां सामने आई हैं कि हमारी ही अपनी पार्टी के नेताओं ने भाजपा की हार में अहम भूमिका निभाई.’
उक्त नेता ने आगे कहा, ‘इस समय अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई करना बेहद जरूरी है. इनमें से कुछ नेता राजे खेमे से ताल्लुक रखते हैं और इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले राज्य इकाई केंद्रीय नेतृत्व की राय जानना चाहती है.’
राजस्थान भाजपा में दरार 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले गहराने लगी थी जिसमें राजे की अगुआई में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था, जिन्हें भाजपा के दिग्गज नेता एल.के. आडवाणी का करीबी माना जाता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह के साथ उनके संबंध कुछ असहजता वाले हैं.
बतौर मुख्यमंत्री 2018 तक उन्होंने राज्य के मामलों में केंद्रीय नेतृत्व को कोई हस्तक्षेप नहीं कर दिया. हालांकि, 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी में उन्हें दरकिनार कर दिया गया.
राज्य इकाई के तमाम लोगों का दावा है कि पिछले कुछ महीनों से राजे, जो पार्टी उपाध्यक्ष भी हैं, कोविड को लेकर कल्याणकारी पहल समेत कई मुद्दों एक ‘समानांतर व्यवस्था’ चलाने की कोशिश कर रही हैं, जिसका पूरा फोकस उन पर है न कि पार्टी पर.
राजे ने खुद ही पार्टी की अधिकांश बैठकों में भाग लेना बंद कर दिया है और पार्टी की राज्य इकाई की तरफ से आयोजित गतिविधियों में भी शामिल नहीं होती हैं. जनवरी में उनके समर्थकों ने ‘वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान’ का गठन किया और मांग की कि 2023 के चुनावों के लिए राजे को पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाए.
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