नई दिल्ली: भाजपा ने टोंक विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी व पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान को मैदान में उतारा है. इस सीट पर खान का मुकाबला कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट से होगा. यूनुस खान राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी के इकलौते मुस्लिम प्रत्याशी हैं. भाजपा ने अपनी अंतिम सूची में यूनुस खान का नाम टोंक सीट से शामिल किया.
भाजपा ने इससे पहले यहां से मौजूदा विधायक अजित सिंह मेहता को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की थी लेकिन कांग्रेस ने जब मुस्लिम बहुल टोंक सीट से पायलट को उतारने की घोषणा की तो उसने अपना प्रत्याशी बदल दिया.
पार्टी की राज्य ईकाई से जुड़े एक सूत्र का कहना था, ‘संघ परिवार टोंक विधानसभा से यूनुस खान को प्रत्याशी नहीं बनाना चाहता था. इसलिए पहले अजित मेहता का नाम घोषित किया था.’
टोंक पर पूरे देश की निगाहें
राजस्थान विधानसभा चुनाव में झालरापाटन के बाद टोंक पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. गौरतलब है कि बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह और वसुंधरा राजे झालरापाटन से चुनाव मैदान में हैं. वहीं, टोंक विधानसभा में बीते 46 साल की परंपरा को तोड़कर कांग्रेस ने राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को इस सीट से मैदान में उतारा है. इससे पहले कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम समुदाय का प्रत्याशी ही उतारती आई है.
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सचिन पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. सचिन 2004 में दौसा और इसके बाद 2009 में अजमेर से सांसद चुने गए थे. 2014 में वह हार गए थे.
टोंक विधानसभा में करीब 2 लाख 23 हजार मतदाता हैं. करीब 45 हजार मुस्लिम वोटर हैं. करीब 30 हजार गुज्जर समुदाय के मतदाता हैं. सचिन खुद गुज्जर समुदाय से आते हैं. 35 हजार एससी और 15 हजार सैनी समुदाय के वोट भी हैं.
कायमखानी मुसलमान हैं यूनुस
यूनुस खान सीकर जिले के गणेदी गांव से हैं. 1 अगस्त 1964 को जन्में खान ने डीडवाना से स्नातकोत्तर किया और एलआईसी में काम करने जयपुर चले गए. यूनुस कायमखानी मुस्लिम हैं जिनके बारे में कहा जाता कि वे राजपूत से इस्लाम में कनर्वट हुए थे.
जानकार बताते हैं कि 80 के दशक में यूनुस का संपर्क पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत की कैबिनेट में मंत्री रहे रमजान खान से हुआ जो इन्हें राजनीति में लेकर आए. एक समय शेखावत डीडवाना और लडनु क्षेत्रों से किसी कायमखानी मुस्लिम उम्मीदवार की तलाश कर रहे थे, क्योंकि ये इलाके मुस्लिम बहुल थे. रमजान खान ने शेखावत को यूनुस खान का नाम सुझाया. शेखावत ने 1998 में डीडवाना से यूनुस को मौका दिया लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. हालांकि 2003 में बीजेपी ने उन पर फिर भरोसा जताया. खान पार्टी के भरोसे पर खरे उतरे और कांग्रेस के रूपा राम डूडी को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचे. और वसुंधरा राजे सरकार में जूनियर मंत्री बने.
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हालांकि 2008 में वह रूपा राम डूडी से चुनाव हार गए लेकिन 2013 में फिर से इस सीट पर जीत हासिल की. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मंत्रिमंडल में पीडब्ल्यूडी मंत्री बने.
राजस्थान की राजनीति में नजर रखने वाले बताते हैं कि इस कार्यकाल में वह वसुंधरा राजे के नजदीकी रखने वाले शीर्ष दो या तीन मंत्रियों में शुमार थे. उनका दावा है कि यूनुस खान भाजपा की केंद्रीय राजनीति करने वाले मुस्लिम नेता शाहनवाज हुसैन के भी करीबी हैं. हुसैन और वसुंधरा की नजदीकी का फायदा यूनुस खान को मिला है.
खान को कैसे मिला टिकट?
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी होने के बावजूद विधानसभा चुनावों को लेकर जारी चार सूचियों में यूनुस खान का नाम नहीं शामिल हुआ था.
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया, ‘हालांकि, जब कांग्रेस ने राजे के खिलाफ मानवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा था, तब हमें भी इस पर सोचना पड़ा. पायलट के खिलाफ यूनुस खान की तुलना में बेहतर उम्मीदवार नहीं था क्योंकि तब तक हमने हमने एक मुस्लिम उम्मीदवार नहीं बनाया था. दूसरा उम्मीदवार होना सचिन पायलट को वाकओवर देने जैसा होता.’
वहीं दूसरी ओर अजीत मेहता को टिकट मिलने के बाद जिले के कई नाराज कार्यकर्ताओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया, ‘संघ की पसंद होने के बावजूद ये पदाधिकारी चाहते थे कि अजीत मेहता की जगह किसी दूसरे को टिकट दिया जाय. इसका कारण इस सीट का मुस्लिम बाहुल्य होना नहीं था बल्कि अजीत की छवि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एक अहंकारी आदमी की है. इस बात से वसुंधरा कैंप को मदद मिली जो कि यूनुस खान को इस सीट से लड़ाना चाह रहा था.’