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Friday, 15 November, 2024
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तुरंत फैसले, बुनियादी ढांचे पर दबाव; लोकलुभावन वादें और उद्धव की आलोचना—शिंदे-फडणवीस सरकार का एक साल

महाराष्ट्र की शिंदे-फडणवीस सरकार ने पिछले साल तेज़ी से फैसले लेने को प्राथमिकता दी है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दीर्घकालिक दृष्टिकोण और रणनीति गायब लगते हैं.

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मुंबई: 28 जून को अपने कार्यालय में एक वर्ष पूरा करने से दो दिन पहले, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने मैराथन कैबिनेट बैठक की, जिसमें कम से कम 31 फैसले लिए गए.

जबकि कार्यवाही सामान्य से थोड़ी अधिक व्यस्त थी, सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि बुधवार की बैठक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की शासन शैली को प्रतिबिंबित करती थी.

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार तात्कालिकता की भावना से प्रेरित है, तेज़ी से फैसले ले रही है, जिसमें कई लोकलुभावन और राजनीतिक विविधताएं भी शामिल हैं.

उदाहरण के लिए उपरोक्त कैबिनेट बैठक में सरकार ने दो शोपीस इन्फ्रा परियोजनाओं का नाम क्रमशः हिंदू विचारक वीर सावरकर और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर और क्लीनिकों का एक सेट शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे के नाम पर रखने का फैसला लिया.

राज्य सरकार में एक महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “फैसले लगभग ऐसे लिए जा रहे हैं जैसे कि कल है ही नहीं.”

शिंदे-फडणवीस सरकार कैसे सत्ता में आई, इस पर विचार करते हुए अधिकारी का बयान उपयुक्त है.

एक साल पहले शिवसेना के शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, जिसमें अविभाजित शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस शामिल थी, जिससे 39 विधायकों के समर्थन से सरकार गिर गई थी.

शिंदे ने तब महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन किया और मुख्यमंत्री बने, जब राजनीतिक हलकों में कई लोगों को उम्मीद थी कि पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस शीर्ष पद संभालेंगे.

इस बीच फडणवीस, जिन्होंने शुरू में घोषणा की थी कि वे केवल बाहर से सरकार का समर्थन करेंगे, उन्हें भाजपा ने डिप्टी सीएम का पद संभालने का आदेश दिया था.

पिछले साल 30 जून को शपथ लेने के बाद से सरकार को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विपक्ष का दावा है कि इसका गठन असंवैधानिक है.

आखिरकार, मई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को राहत देते हुए स्पीकर राहुल नारवेकर, जो बीजेपी विधायक हैं, को शिंदे और उनके साथ बगावत करने वाले अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला लेने को कहा.

अगली चुनौती चुनाव में होगी. शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के पास अगले विधानसभा चुनाव से पहले सिर्फ एक साल से अधिक का समय है. इसे आगामी 15 स्थानीय निकायों और जिला परिषद चुनावों में भी अपनी ताकत साबित करनी है, 2024 के लोकसभा चुनाव की तो बात ही छोड़ दें.

मुंबई विश्वविद्यालय के नागरिक शास्त्र और राजनीति विभाग के एक शोधकर्ता डॉ. संजय पाटिल ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार का ध्यान अपने तुरंत फैसले लेने और लोगों से जुड़ने पर केंद्रित प्रतीत होता है, लेकिन ये पहल 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर की गई प्रतीत होती है.

उन्होंने कहा, “ये सभी प्रयास अल्पकालिक छवि-निर्माण और ब्रांडिंग के बारे में हैं. इस एक साल में सरकार की कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं दिखी है.”

अपने पहले वर्ष में शिंदे-फडणवीस सरकार को मीडिया में विज्ञापन और सरकारी आयोजनों की धूम मचाने, बिना किसी महिला के सीमित मंत्रिमंडल बनाए रखने, पड़ोसी राज्य गुजरात में बड़े निवेश खोने, पूर्व एमवीए सरकार द्वारा लिए गए कई फैसलों को पलटने, स्पष्ट राजनीतिक छाप के साथ फैसले लेने आदि के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा है.

इसके अलावा शिंदे-फडणवीस सरकार के दो सत्तारूढ़ सहयोगियों के बीच आंतरिक मनमुटाव भी स्पष्ट रहा है.


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लोकलुभावन, राजनीतिक, ध्रुवीकरण?

सीएम शिंदे ने अब तक राज्य विधानसभा में जो भी भाषण दिया है, उसमें विषय की परवाह किए बिना, उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया है कि कैसे उन्होंने ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार के खिलाफ विद्रोह किया और उसे गिरा दिया.

राजनीतिक टिप्पणीकार संजय जोग ने दिप्रिंट को बताया, “यह सरकार उद्धव ठाकरे को सबक सिखाने के बुलबुले से बाहर नहीं आ पाई है. सीएम अपनी छवि को नेता के रूप में पेश करने, संरक्षित करने में व्यस्त हैं और फडणवीस को अभी भी अपनी पदावनति से तालमेल बिठाना बाकी है.”

उन्होंने कहा कि जहां एक तरफ सरकार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को आगे बढ़ा रही है, वहीं, सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के बीच “प्रतिस्पर्धी हिंदुत्व” के कारण ध्रुवीकरण भी बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा, “पूरे महाराष्ट्र में सांप्रदायिक झगड़े बढ़ रहे हैं और डिप्टी सीएम संभावित लव जिहाद कानून के बारे में बयान दे रहे हैं.”

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (ड्राइविंग सीट पर) और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दिसंबर 2022 में मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे पर ड्राइव के लिए तैयार | ट्विटर/@mieknathshinde

शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता संभालने के तुरंत बाद उन्होंने एमवीए सरकार द्वारा लिए गए कई फैसलों को रोक दिया, सरकारी प्रस्तावों को रद्द कर दिया और पिछली सरकार की परियोजनाओं और योजनाओं की जांच शुरू कर दी.

उदाहरण के लिए सरकार ने मुंबई के पहले अंडरग्राऊंड मेट्रो कॉरिडोर के लिए मेट्रो कार शेड को वापस गोरेगांव की आरे कॉलोनी में स्थानांतरित कर दिया, जिसे पिछली ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने खत्म कर दिया था. इसने ठाकरे के सीएम पद छोड़ने से पहले आखिरी कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव करने के पिछली सरकार के फैसले को भी पलट दिया.

बाद में उसने एक अन्य कैबिनेट बैठक में नाम बदलने के इन फैसलों को अपना मान लिया.

शिंदे-फडणवीस सरकार ने राजनीतिक रंग के साथ कई लोकलुभावन फैसलों को प्राथमिकता दी, जिसमें फडणवीस की पसंदीदा जल युक्त शिवार योजना को वापस लाना, इमरजेंसी के दौरान जेल गए लोगों के लिए पेंशन बहाल करना और दिवाली और गुड़ी पाड़वा पर गरीबों को मुफ्त राशन किट देना शामिल है.

नाम न छापने की शर्त पर एक दूसरे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि जब भी कोई नई सरकार आती है, तो वह पिछली सरकार की कार्यकुशलता पर संदेह व्यक्त करती है.

आईएएस ने अत्यधिक सब्सिडी वाले भोजन प्रदान करने की योजना और उद्धव ठाकरे की पसंदीदा परियोजना, शिव भोजन का उदाहरण देते हुए कहा, “इस सरकार ने भी ऐसा ही किया.”

उन्होंने कहा, “उन्होंने शिवभोजन जैसी योजनाओं पर सवाल उठाया और कहा कि इसका इस्तेमाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के सदस्यों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया था और सार्वजनिक रूप से जांच की घोषणा की गई थी. जांच करने के बाद सरकार को एहसास हुआ कि मामला ऐसा नहीं था.”

अधिकारी ने कहा कि खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग ने दक्षता में सुधार के लिए योजना की समीक्षा की है. उन्होंने कहा, “लेकिन हम पिछली सरकार में भी ऐसा करते थे.”

पहले आईएएस अधिकारी ने बताया कि एमवीए सरकार के तहत शुरू की गई कई योजनाएं, खासकर पर्यटन और पर्यावरण जैसे विभागों में, जो आदित्य ठाकरे के पास थीं, ठंडे बस्ते में डाल दी गई थीं.

हालांकि, शिंदे और फडणवीस जो 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के सीएम थे, उनके बीच भी दरार दिखाई देती है.

जोग ने कहा कि हालिया विज्ञापन विवाद ने इस तनाव को उजागर किया है.

इस महीने की शुरुआत में शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए फडणवीस पर शिंदे की लोकप्रियता दिखाने के लिए प्रमुख समाचार पत्रों में एक पूरे पेज का विज्ञापन प्रकाशित किया था. इस विज्ञापन ने गठबंधन में खलबली मचा दी और इसके बाद अगले दिन एक दूसरा विज्ञापन आया जिसमें फडणवीस और शिंदे की तस्वीर एक साथ थी.

बाद में द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए फडणवीस ने कहा कि उनके और शिंदे के बीच “परस्पर सम्मान” का रिश्ता था और एक विज्ञापन से इसमें कोई बदलाव नहीं आएगा.


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बुनियादी ढांचा और निवेश

पूरे एक साल के दौरान, शिंदे और फडणवीस की मेगा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निरीक्षण करते हुए कई तस्वीरें और वीडियो आए हैं, खासकर मुंबई में — उन 15 शहरों में से एक जहां इस साल या 2024 की शुरुआत में नागरिक चुनाव होंगे.

इन परियोजनाओं में महत्वपूर्ण मील के पत्थर अक्सर भव्य भूमिपूजन या उद्घाटन के साथ मनाए जाते हैं जिसमें सीएम या डिप्टी सीएम की उपस्थिति होती है और मीडिया हमेशा साथ रहता है.

Maharashtra CM Shinde, Deputy CM Fadnavis inspect Mumbai Trans-Harbour Link work
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस | फोटो: ट्विटर/@mieknathshinde

राज्य सरकार के एक तीसरे अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नई सरकार के तहत काम अच्छी गति से आगे बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा, “जब यह सरकार आई, तो परिस्थितियां बदल गई थीं. हम कोविड-19 महामारी से बाहर आ चुके थे और काम तेजी से चल रहा था. इस सरकार को श्रेय देना चाहिए कि उसने चल रहे काम में कोई बाधा नहीं पैदा की. किसी भी बाधा को दूर करने के लिए वॉर रूम की बैठकें फिर से शुरू की गईं.”

जब फडणवीस सीएम थे तो उन्होंने ‘वॉर रूम’ की अवधारणा पेश की थी, जिसमें सभी विभागों के प्रतिनिधियों को एक कमरे में लाया जाता था और बाधाओं को तुरंत दूर किया जाता था.

हालांकि, सरकार को गुजरात में वेदांता-फॉक्सकॉन और टाटा एयरबस जैसे बड़े औद्योगिक निवेश खोने के लिए विपक्ष की काफी आलोचना का सामना करना पड़ा है.

शिंदे सरकार इस दावे के साथ आरोपों से जूझ रही है कि कैसे वह एक साल में उद्योगों पर कैबिनेट उप-समिति की पांच बैठकें कर चुकी है और नियमित रूप से करोड़ों परियोजनाओं को मंजूरी दे रही है.

सीएम कार्यालय के एक बयान के अनुसार, उप-समिति ने बुधवार को हुई नवीनतम बैठक में 40,000 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी है.

हालांकि, राज्य उद्योग विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार इसका पूरा क्रेडिट नहीं ले सकती.

नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “महाराष्ट्र में निवेश आ रहा है क्योंकि स्वाभाविक रूप से राज्य हमेशा औद्योगिक खिलाड़ियों को आकर्षित करेगा. हालांकि, महाराष्ट्र के लिए सक्रिय रूप से निवेश तलाशने के लिए पिछले साल कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया.”

इस अधिकारी ने कहा कि वेदांता-फॉक्सकॉन निवेश को खोना सरकार के लिए एक बड़ी जनसंपर्क आपदा थी, लेकिन यह राज्य के लिए पूरी तरह से खराब विकास नहीं था.

उन्होंने कहा, “राज्य सरकार द्वारा संयुक्त उद्यम को दी जाने वाली रियायतों की मात्रा को लेकर चिंताएं थीं.”


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कमजोर कैबिनेट, ‘कोई दीर्घकालिक दृष्टिकोण नहीं’

राज्य सरकार बनने के बाद लगभग 45 दिनों तक इसमें केवल दो सदस्यीय कैबिनेट थी — सीएम शिंदे और डिप्टी सीएम फडणवीस.

अंततः अगस्त 2022 में राज्यपाल ने 18 और मंत्रियों को शामिल किया — शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और भाजपा से नौ-नौ.

हालांकि, सरकार अभी भी दो-व्यक्ति के शो वाली ही बनी हुई है, जिसमें शिंदे और फडणवीस ने 20 विभाग अपने पास रखे हैं, जिनमें शहरी विकास, आवास, वित्त और गृह जैसे व्यापक विभाग शामिल हैं.

सीएम और डिप्टी सीएम दोनों ने कैबिनेट विस्तार के लिए कई समय सीमा तय की है, लेकिन अभी तक कोई भी समय सीमा पूरी नहीं हुई है.

भाजपा सूत्रों ने कहा कि कैबिनेट विस्तार काफी हद तक दोनों पक्षों से कितने और किन मंत्रियों को शामिल किया जाए, इस पर बातचीत के कारण अटका हुआ है. वे कहते हैं, भाजपा ने भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वाले कुछ कैबिनेट मंत्रियों को हटाने की भी मांग की है.

राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि कई विभाग रखने वाले मंत्रियों का दैनिक प्रशासन प्रभावित नहीं होता है, लेकिन एक छोटा मंत्रिमंडल दीर्घकालिक रणनीति और दूरदर्शी नेतृत्व के मामले में चुनौतियां पेश करता है.

वे कहते हैं कि विधायी सत्रों के दौरान एक सीमित कैबिनेट भी समस्याग्रस्त हो जाती है.

इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए, शिंदे सत्र की अवधि के लिए अस्थायी रूप से अन्य मंत्रियों को विभाग सौंपते हैं. हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि ये मंत्री आवश्यक रूप से इन विभागों के सभी विषयों से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं, जो सदन के पटल पर प्रभावी ढंग से जवाब देने की उनकी क्षमता में बाधा डालता है.

इस बीच फडणवीस, जो शिंदे जैसी रणनीति नहीं अपनाते, को निचले और ऊपरी सदनों के बीच चक्कर लगाते रहना पड़ता है.

पहले अधिकारी ने कहा, “अनुभवी मंत्री कई पोर्टफोलियो संभाल सकते हैं, लेकिन जिनके पास ज्यादा प्रशासनिक अनुभव नहीं है, उनके लिए एक से अधिक पोर्टफोलियो रखने का मतलब है कि अधिकांश समय बुनियादी दैनिक कार्यों में व्यतीत होता है. कोई दीर्घकालिक दृष्टिकोण नहीं है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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