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Wednesday, 1 May, 2024
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उत्तराखंड में 20 सालों में कोई भी CM नहीं बचा पाया अपनी सीट, पुष्कर सिंह धामी खटीमा से हारे

पुष्कर सिंह धामी खटीमा से कांग्रेस के भुवन चंद कापड़ी के हाथों परास्त हो गए लेकिन भाजपा अभी तक इस पर खामोश है कि क्या वो सीएम बने रहेंगे. राज्य के केवल एक सीएम अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे हैं.

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नई दिल्ली/देहरादून: जिस दिन भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में एग्ज़िट पोल्स की एक त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी गलत साबित कर दी और स्पष्ट बहुमत हासिल किया, उसी दिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने खटीमा चुनाव क्षेत्र से हार गए और उस कथित ‘बदकिस्मती’ को नहीं तोड़ पाए, जिसमें देखा गया है कि एक के बाद एक कोई भी सीएम, इस पहाड़ी प्रांत में अपनी सीट नहीं बचा पाया.

बृहस्पतिवार को धामी कांग्रेस के भुवन चंद कापड़ी के हाथों 6,000 से अधिक वोटों से हार गए लेकिन भाजपा अभी तक इस पर खामोश है कि क्या वो मुख्यमंत्री बने रहेंगे.

धामी के एक करीबी सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्रीय नेतृत्व ने संकेत दिया है कि उन्हें बनाए रखा जा सकता है.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘ये फैसला पार्टी आलाकमान द्वारा लिया जाएगा. एक बैठक तय की गई है और उसमें सभी मुद्दे उठाए जाएंगे’.


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‘बदकिस्मती’

भगत सिंह कोशियारी को छोड़कर, जो इस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, पिछले 20 वर्षों में उत्तराखंड का कोई सिटिंग मुख्यमंत्री खुद की सीट बचाने में कामयाब नहीं रहा है.

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कोशियारी खुद एक अंतरिम सरकार चला रहे थे, जब 2002 में उन्होंने नवगठित राज्य की पहली विधानसभा का चुनाव लड़ा था. फिर 2007 में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने चुनाव नहीं लड़ा था.

2012 में हुए अगले चुनाव में सिटिंग मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी कोटद्वार से अपनी सीट हार गए. इसी तरह 2017 में सीएम हरीश रावत उन दोनों सीटों पर हार गए, जहां से उन्होंने चुनाव लड़ा था.

दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री और सीएम उम्मीदवार भी इसी तरह हार का मुंह देख चुके हैं. 2008 में राजस्थान में, तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सीपी जोशी- जो सीएम पद के लिए एक प्रमुख दावेदार थे- केवल एक वोट से अपनी सीट हार गए.

2017 के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में, बीजेपी ने बहुमत जीतकर कांग्रेस सरकार को हटा दिया लेकिन पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल, सुजानपुर चुनाव क्षेत्र से हार गए.


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पुष्कर सिंह धामी

पिछले साल राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया था, जिसे बीजेपी नेतृत्व के एक चौंकाने वाले कदम के तौर पर देखा गया था.

पुष्कर की छात्र राजनीति की पृष्ठभूमि रही है. 1990 में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हो गए थे. 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन होने के बाद, वो बीजेपी की युवा विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा (बीजेवाईएम) के प्रदेश अध्यक्ष बन गए और 2008 तक इस पद पर रहे.

उन्हें पहली अधिकारिक ज़िम्मेदारी 2002 में मिली, जब तत्कालीन सीएम कोशियारी ने उन्हें तरक्की देकर अपना ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) बना लिया.

धामी की बड़ी परीक्षा तब हुई, जब 2012 के विधानसभा चुनावों में उन्हें बीजेपी उम्मीदवार नामांकित किया गया. उन्होंने कांग्रेस नेता देवेंद्र चंद को 5,000 से अधिक वोटों से हराकर वो सीट जीत ली.

2017 में धामी खटीमा से फिर जीत गए और इस बार उन्होंने कांग्रेस के बड़े स्थानीय नेता भुवन कापड़ी को परास्त किया- जिन्होंने 2022 में उनके बीच दोबारा हुए मुकाबले में नतीजे को पलट दिया.

मार्च 2021 में त्रिवेंद्र सिंह रावत को, जो 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से मुख्यमंत्री बने हुए थे, उनके ‘प्रेरणाहीन नेतृत्व’ की शिकायतों के बीच, पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से एक साल पहले ही पद छोड़ने के लिए कह दिया गया.

त्रिवेंद्र रावत के बाद लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को उनकी जगह बिठाया गया, जिन्हें चार महीने से कम समय में ही एक ‘संवैधानिक संकट’ का हवाला देते हुए इस्तीफा देना पड़ा- सीएम बने रहने के लिए उन्हें सितंबर तक उपचुनाव जीतकर सदन में आना था और इसे लेकर अनिश्चितता थी कि क्या समय रहते चुनाव हो पाएगा.

इसके परिणामस्वरूप, जुलाई 2021 में दो बार के विधायक धामी को मुख्यमंत्री पद के लिए चुन लिया गया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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