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Wednesday, 8 May, 2024
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तावड़े को प्रमोशन, बावनकुले का नामांकन, महाराष्ट्र में इस तरह पुराने नेताओं को खुश करने में जुटी है भाजपा

महाराष्ट्र में पूर्व मंत्रियों विनोद तावड़े और चंद्रशेखर बावनकुले को 2019 के विधानसभा चुनावों में टिकट नहीं दिया गया था. अब तावड़े राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए हैं, जबकि बावनकुले का एमएलसी बनना तय माना जा रहा है.

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मुंबई: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले तीन दिनों में महाराष्ट्र के संबंध में दो महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिसके तहत विनोद तावड़े को प्रमोट करके राष्ट्रीय महासचिव का पद दिया गया है, और चंद्रशेखर बावनकुले को नागपुर से विधान परिषद चुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशी नामित किया गया है. बावनकुले ने सोमवार को नामांकन दाखिल किया.

राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह गलतियों को सुधारने एक कोशिश है, खासकर यह देखते हुए कि ऐसी धारणा बनती जा रही थी कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का प्रभाव बढ़ने के साथ पार्टी के पुराने दिग्गज नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है.

तावड़े और बावनकुले को 2019 के विधानसभा चुनावों में टिकट नहीं दिया गया था, लेकिन उनकी नई नियुक्तियों से भाजपा को जाति समीकरण साधने में मदद मिल सकती है, तावड़े मराठा समुदाय से हैं और बावनकुले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल तेली समुदाय से आते हैं.

राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक तरह से चीजें ठीक करने की कोशिश है. साथ ही फडणवीस के लिए एक साफ संकेत भी है कि पार्टी उनके बढ़ते प्रभाव पर नियंत्रण रखना चाहती है. इसके अलावा, यह संभव नहीं लग रहा कि शिवसेना और भाजपा के बीच फिर गठबंधन होगा. ऐसे में स्पष्ट है पार्टी को अपने बलबूते पर ही 105 से 145 विधायकों के आंकड़े तक पहुंचना होगा और पार्टी में नए चेहरों के साथ पुराने नेताओं की संगठनात्मक ताकत की भी जरूरत है. यह पुराने दिग्गजों की उपेक्षा नहीं कर सकती.’


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तावड़े का ‘धैर्य’ काम आया

मुंबई के मराठी गढ़ गिरगांव में जन्मे तावड़े अपने कॉलेज के समय से ही आरएसएस से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे हैं.

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अपने चार दशक लंबे राजनीतिक करियर के दौरान तावड़े ने एबीवीपी और भाजपा में विभिन्न पदों पर काम किया है, और कैडर तैयार करने और संगठनात्मक कौशल को उन्होंने अपनी ताकत बना लिया.

एबीवीपी के भीतर तावड़े ने बतौर कार्यकर्ता अपना सफर शुरू किया और मुंबई सेंट्रल जोन के आयोजन सचिव से लेकर अंततः संगठन के अखिल भारतीय महासचिव पद तक पहुंचे. 1995 में तावड़े ने महाराष्ट्र भाजपा के महासचिव का पदभार संभाला और 1999 में मुंबई भाजपा के अध्यक्ष बने. वह 2011 से 2014 तक महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता रहे और फिर मुंबई के बोरीवली निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने.

तावड़े फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर स्कूल, उच्च और तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा के साथ सांस्कृतिक मामलों के प्रभारी थे. उन्हें स्कूलों में अग्निशामक उपकरणों के लिए 191 करोड़ रुपये का ठेका देने को लेकर मानदंडों के उल्लंघन के आरोप का सामना करना पड़ा. 2016 में तावड़े मंत्री होने के बावजूद कथित तौर पर एक लाभकारी कंपनी से जुड़े होने को लेकर विपक्ष के निशाने पर रहे.

हालांकि, 2016 में फडणवीस ने आरोपों को लेकर तावड़े का बचाव तो किया लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग अपने करीबी माने जाने वाले गिरीश महाजन को आवंटित करके उनके पर कतर दिए. तबसे, तावड़े धीरे-धीरे राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में दरकिनार होते जा रहे थे और 2019 में तो विधानसभा चुनावों के लिए उन्हें पार्टी का टिकट तक नहीं दिया गया.

हालांकि, भाजपा के इस नेता, जिन्हें फिर से मुख्यधारा में लाने के लिए पंकजा मुंडे के साथ भाजपा राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है, को एक ऐसे पुराने दिग्गज के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने कई मौकों पर परोक्ष रूप से फडणवीस के नेतृत्व के खिलाफ असंतोष जताया.

मुंबई के एक भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट न दिए जाने के बाद तावड़े को पार्टी में सम्मानित पद दिया गया है, इसलिए यह कहना सही नहीं है कि उनका किसी खास नेता से मोहभंग हो गया था. संगठनात्मक कौशल उनकी ताकत रही है और राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर उनकी नियुक्ति का मतलब यही है कि पार्टी को कई प्रमुख राज्यों में चुनावों के मद्देनजर राष्ट्रीय योजनाओं के लिए उनकी जरूरत है.’

फडणवीस ने सोमवार को नागपुर में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि तावड़े की नियुक्ति ‘महाराष्ट्र के लिए गर्व की बात’ है.

फडणवीस ने कहा, ‘प्रमोद जी (पूर्व केंद्रीय मंत्री महाजन) और गोपीनाथ जी (पूर्व केंद्रीय मंत्री मुंडे) के बाद यह पहली बार है कि महाराष्ट्र को महासचिव पद का सम्मान मिला है. यह खुशखबरी है.’ महाजन और मुंडे को क्रमश: 1993 और 1999 में भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया था।

अपनी नियुक्ति के बाद रविवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान बेहद नपी-तुली प्रतिक्रिया देते हुए तावड़े ने अपनी पदोन्नति के पीछे अपने ‘धैर्य’ को एक बड़ी वजह बताया.

उन्होंने कहा, ‘यह मेरे जैसे कार्यकर्ताओं के स्वभाव में नहीं होता कि टिकट न मिलने पर तुरंत धैर्य खो दें और कहें कि ‘मैं पार्टी छोड़ रहा हूं.’ जो काम आपको दिया गया है उसे करें और अगर आप अपना काम करते रहेंगे तो उस पर गौर जरूर किया जाएगा. मेरे इस प्रमोशन से कार्यकर्ताओं के लिए यह बात और भी स्पष्ट हो गई है.’


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नागपुर में भाजपा को मजबूत कर सकते हैं बावनकुले

बावनकुले नागपुर के कैम्पटी विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे हैं. वह 1990 के दशक में भाजपा में शामिल हुए थे और भाजपा की नागपुर जिला इकाई के महासचिव और अध्यक्ष और राज्य इकाई के सचिव जैसे विभिन्न पदों पर रह चुके हैं.

बावनकुले फडणवीस सरकार में ऊर्जा मंत्री भी थे और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं. हालांकि, पार्टी ने 2019 में बावनकुले को टिकट देने से इनकार कर दिया था जिस पर उनके समर्थकों ने तीखी प्रतिक्रिया भी जताई थी.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इस कदम ने पार्टी के भीतर ही तमाम लोगों को चौंका दिया था क्योंकि तावड़े के विपरीत बावनकुले के फडणवीस के साथ अच्छे संबंध थे और मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उन पर कोई गंभीर आरोप भी नहीं लगा था. उन्हें दरकिनार किए जाने से नागपुर में ओबीसी समुदाय की भावनाएं भी आहत हो रही थीं क्योंकि बावनकुले तेली समुदाय के नेता हैं, जिन्होंने अपनी शुरुआत ऑटो-रिक्शा चालक के तौर पर की थी.

हालांकि, फडणवीस ने साफ किया था कि तावड़े और बावनकुले जैसे नेताओं को टिकट न देने का फैसला राज्य नेतृत्व का नहीं, बल्कि केंद्रीय संसदीय बोर्ड का था.

भाजपा के एक नेता ने कहा कि विधान परिषद के लिए बावनकुले का नामांकन नागपुर में भाजपा की ताकत को बढ़ाने में मददगार हो सकता है. नेता ने कहा, ‘इस साल जिला परिषद चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा है. बावनकुले भाजपा के अभियान का नेतृत्व कर रहे थे और विपक्ष लोगों को यह बता रहा था कि कैसे उनके पास लोगों की मदद के लिए कोई बड़ा पद या ताकत नहीं है.’

इस साल की शुरुआत में जिला परिषद चुनावों में भाजपा को नागपुर में हार का सामना करना पड़ा था, 13 तालुका की 16 सीटों में से केवल तीन पर पार्टी को जीत हासिल हुई थी, जबकि कांग्रेस ने नौ सीटें जीती थीं.

बावनकुले ने सोमवार को जब अपना नामांकन दाखिल किया तो भाजपा ने यह दिखाने की पूरी कोशिश की कि राज्य इकाई में सब कुछ ठीक है. उनके दाहिने तरफ गडकरी खड़े थे, और उनके बाईं तरफ फडणवीस.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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