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Saturday, 4 May, 2024
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एक नई किताब में प्रियंका गांधी कहती हैं- राहुल से सहमत हूं कि अगला कांग्रेस अध्यक्ष गैर-गांधी होना चाहिए

इंडिया टुमॉरो: कनवर्सेशन्स विद द नेक्स्ट जेनरेशन ऑफ पोलिटिकल लीडर्स नामक किताब में छपे इंटरव्यू में, प्रियंका गांधी वाड्रा ने ये भी कहा कि उन्हें ऐसे अध्यक्ष के नीचे काम करने में कोई हिचक नहीं है.

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नई दिल्ली: प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि वो अपने भाई राहुल गांधी से पूरी तरह सहमत हैं कि किसी ग़ैर-गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए.

प्रियंका ने कहा है, ‘शायद (त्याग) पत्र में तो नहीं लेकिन कहीं और उन्होंने कहा है कि हममें से किसी को पार्टी का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए और मैं उनके साथ पूरी तरह सहमत हूं’. उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे विचार में पार्टी को अपना रास्ता भी ख़ुद तलाशना चाहिए’.

प्रियंका का सब कुछ बताने वाला ये इंटरव्यू, इंडिया टुमॉरो: कन्वर्सेशन्स विद द नेक्स्ट जेनरेशन ऑफ पॉलिटिकल लीडर्स, नामक किताब में छपा है. 13 अगस्त को प्रकाशित हुई इस किताब के लेखक, प्रदीप छिब्बर और हर्ष शाह हैं.

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि पार्टी अध्यक्ष, भले ही वो गांधी परिवार से न हो, उनका बॉस होगा. उनका हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘अगर वो (पार्टी अध्यक्ष) कल मुझे कहते हैं कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि अंडमान व निकोबार में है, तो मैं ख़ुशी से अंडमान व निकोबार चली जाऊंगी’.

2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद, राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर, पार्टी की अंदरूनी बैठक में कथित रूप से ज़ोर देकर कहा था कि अगला अध्यक्ष किसी ग़ैर-गांधी को बनाया जाना चाहिए.

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लेकिन कुछ ही समय बाद, पिछले साल अगस्त में सोनिया गांधी को अंतरिम पार्टी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस के अंदर मांग उठ रही है कि कांग्रेस को पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने चाहिए.


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‘भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद एक एक लेन-देन अपने बेटे को दिखाया था’

इंटरव्यू में प्रियंका ने ये भी कहा कि 2013 में जब बीजेपी ने, उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने शुरू किए, तो उसके बाद उन्होंने अपना हर लेन-देन अपने बेटे रेहान को दिखाया था, जो उस वक़्त महज़ 13 साल का था.

प्रियंका को ये कहते हुए बताया गया है, ‘जब मेरे पति पर सारे आरोप लगाए गए तो सबसे पहले मैंने ये किया कि अपने बेटे के पास गई और एक एक लेन-देन उसे दिखाया’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने इस बारे में अपनी बेटी को भी समझा दिया. मैं अपने बच्चों से कुछ नहीं छिपाती, चाहे वो मेरी ग़लतियां हों, या कमियां हों. मैं उनके साथ बहुत खुली हुई हूं’.

कांग्रेस महासचिव ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय में उनके पति से होने वाली पूछताछ, जो ‘घंटों चलती थी’, और इस मामले में तमाम टीवी बहसों का, उनके बच्चों पर असर पड़ने लगा था.

किताब में वो कहती हैं, ‘मेरा बेटा लड़कों के बोर्डिंग स्कूल में था और इन चीज़ों की वजह से उसे बहुत परेशानियां पेश आतीं थीं’.

प्रियंका इस बारे में भी बात करती हैं कि जब उनके बच्चे छोटे थे, तभी से वो उनके साथ मीडिया रिपोर्ट्स पर बात करतीं थीं, जो उनके परिवार के बारे में चर्चा करतीं थीं. वो कहती हैं कि ऐसे ही एक लेख में आरोप लगाया गया था कि उनकी इतालवी नानी, सोनिया गांधी की मां, रूसी ख़ुफिया एजेंसी केजीबी की एजेंट थीं और प्राचीन वस्तुएं भारत से बाहर ले जाया करतीं थीं’.

प्रियंका कहती हैं, ‘…लेकिन मेरी नानी एक ठेठ इतालवी नानी हैं’. प्रियंका आगे कहती हैं, ‘वो अपना सारा समय किचन में पास्ता सॉस बनाने, घर साफ करने, कपड़े इस्त्री करने में गुज़ारती हैं और मेरे बच्चे ये जानते थे …हमें ख़ूब हंसी आई ये सोचकर, कि वो एंटीक्स की तस्करी करतीं थीं, रूसी भाषा में बात करतीं थीं और केजीबी के लोगों से कहीं छिपकर मिला करतीं थीं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इस सच्चाई से ये उनका पहला परिचय था कि अपने परिवार के बारे में, वो जो कुछ देखते या पढ़ते हैं, उस सब पर यक़ीन नहीं करना चाहिए’.

प्रियंका का इंटरव्यू किताब में छपने वाले, नई पीढ़ी के ऐसे बहुत से राजनीतिज्ञों के सिलसिलेवार इंटरव्यूज़ का एक हिस्सा है.

परिवार में हत्याएं

इंटरव्यू में, प्रियंका अपने परिवार में हुई दो हत्याओं की भी बात करती हैं- 1984 में उनकी दादी इंदिरा गांधी की और 1991 में उनके पिता राजीव गांधी की- जिन्होंने उनके बचपन को ज़बर्दस्त तरीक़े से प्रभावित किया.

प्रियंका का ये कहते हुए हवाला दिया गया है, ‘तो दो हत्याओं के बीच सात सालों में, हम दरअसल अपने पिता की हत्या के ख़तरे के साए में जीए’. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं तब तक सोती नहीं थी, जब तक उन्हें घर में वापस आते हुए सुन नहीं लेती थी. जब भी वो घर से बाहर जाते थे, मुझे लगता था कि वो वापस नहीं आएंगे’.

वो कहती हैं कि इसके नतीजे में, उन्होंने बहुत प्रयास किए हैं ये सुनिश्चित करने में कि उनके बच्चों को एक ‘सामान्य स्कूल’ मिले.

ये पूछे जाने पर कि उनके पिता के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है, उसका बोझ उनके बच्चों को ढोना पड़ेगा, प्रियंका कहती हैं, ‘वो इस तरह की इंसान नहीं हैं, जो यहां बैठकर कहेंगी कि कितनी दुखी ज़िंदगी है’.

‘मुझे भी हत्या का बोझ उठाकर चलना पड़ा, उन्हें भी अपने परिवार के खिलाफ राजनीतिक प्रचार का बोझ उठाकर चलना होगा, जैसे गांव में कोई बच्चा ग़रीबी का बोझ उठाकर चलता है’.

प्रियंका ने आगे चलकर ये भी बताया कि वो, ‘स्कूल में बेहद मिलनसार और प्रतियोगी बच्ची थीं’, लेकिन अपने बच्चों की निजता बनाए रखने के लिए, जीवन में आगे चलकर एकांतप्रिय हो गईं.

जब उनकी दादी प्रधानमंत्री थीं, तब वो जिन दबावों को झेलतीं थीं, उनके बारे में बोलते हुए प्रियंका कहती हैं कि स्कूल में उन्हें ‘हर चीज़ में डाल दिया जाता था’, क्योंकि ये माना जाता था कि उनकी दादी आकर देखेंगी.

वो कहती हैं, ‘तो इस तरह की दुनिया में पलकर बड़े होने में, एक चीज़ तो ये होती है कि आपके लिए ख़ुद का आंकलन करना मुश्किल हो जाता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘आपको नहीं पता कि आप जिम्नास्टिक्स की टीम में इसलिए हैं कि आप एक अच्छे जिम्नास्ट हैं, या फिर इसलिए कि आपकी दादी आकर आपके जिम्नास्टिक्स मुक़ाबले देखेंगी’.

प्रियंका और चुनाव

प्रियंका ने इस बारे में भी बात की है कि कैसे 1999 में एक विपासना केंद्र में कुछ समय बिताने के बाद उन्होंने राजनीति में नहीं आने का फैसला किया था.

वो याद करती हैं, ‘1999 में, एक सवाल था कि क्या मुझे चुनाव में खड़ा होना चाहिए और मैंने सोचा कि यहां रहकर मैं अपना मन नहीं बना पाऊंगी, क्योंकि हर कोई मुझे बताएगा कि उनके ख़याल में, मुझे क्या करना चाहिए’.

प्रियंका कहती हैं कि पिता की हत्या पर वो अभी भी, पीड़ा और ग़ुस्से में थीं, और इसी रिट्रीट में उन्होंने अपनी भावनाओं को, प्रॉसेस करना शुरू किया.

लेकिन, उसके दो दशक बाद, 2019 के लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, प्रियंका आधिकारिक रूप से राजनीति में शामिल हो गईं- और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी के तौर पर, कांग्रेस महासचिव का पद संभाल लिया.

प्रियंका कहती हैं, ‘हर चीज़ को तबाह होते देखकर, जो हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने लड़ाई लड़कर बनाईं थीं’, उन्होंने आख़िरकार राजनीति में आने का फैसला किया.

किताब में उनके हवाले से कहा गया है, ‘अपने आसपास ये सब होते देखकर, ऐसा करना नामुमकिन हो गया कि आप अपने बच्चों की देखभाल करते हुए ये ढोंग करते रहें कि आपका इससे कोई वास्ता नहीं है. मैं अब ये और नहीं कर सकती थी’.

अपनी दादी से की जाने वाली तुलना, ख़ासकर उनकी कम्युनिकेशन स्किल्स और शख़्सियत पर बात करते हुए, प्रियंका कहती हैं कि उनके अंदर, अपने परिवार के सभी सदस्यों की ख़ासियतें मौजूद हैं.

वो आगे कहती हैं, ‘अगर आप मुझे किसी पार्टी में ले जाएं, तो मैं किसी कोने में बैठी होंगी, और किसी से बात नहीं कर रही होंगी. अगर आप मुझे किसी गांव में ले जाएं, तो मैं हर किसी से बात कर रही होंगी’.

राहुल गांधी, उनके ‘सबसे अच्छे दोस्त’

प्रियंका ने अपने भाई, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अपने रिश्तों और दोनों के बीच ‘बुनियादी अंतर’ पर भी बात की है.

प्रियंका कहती हैं, ‘मेरे मुक़ाबले, वो ज़्यादा दूर की सोचते हैं. मैं वर्तमान में जीती हूं’. वो आगे कहती हैं, ‘वो 15 साल आगे की सोचते हैं, लेकिन अगर आप मुझसे 15 साल आगे का पूछेंगे, तो मैं तो अगले पांच दिन का ही सोचती रह जाऊंगी, और इतनी दूर की सोच ही नहीं पाऊंगी’.

वो आगे कहती हैं, ‘अगर मेरे अंदर ग़ुस्से के कोई अवशेष बचे हैं तो उनमें उससे भी कम हैं. वो यक़ीनन मुझसे ज़्यादा समझदार हैं’.

प्रियंका कहती हैं कि बड़े होते हुए, वो दोनों ‘घर तक सीमित’ थे, और कई बार ‘ऐसा लम्बा अकेलापन होता था, जिसमें बस हम दो एक ख़ाली घर में घूम रहे होते थे और पैरेंट्स काम के सिलसिले में अक्सर बाहर घूमते रहते थे’.

प्रियंका ये भी कहती हैं कि बड़े होते हुए, वो दोनों बहुत लड़ते थे. ‘अब, मैं कहूंगी कि वो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं’.

‘सच कहूं, तो मुझे याद किए जाने की ज़रूरत नहीं है’

प्रियंका कहती हैं कि वो ‘विरासत के बहुत खिलाफ’ हैं, और वो सियासत में इसलिए नहीं हैं कि उन्हें किसी विरासत को बनाए रखना है.

वो कहती हैं, ‘मैं समझती हूं कि बच्चों के पास विरासत नहीं होनी चाहिए. हमें उनके लिए कोई विरासत नहीं छोड़नी चाहिए, अच्छी या बुरी. उन्हें आज़ाद होना चाहिए’.

‘और इसलिए, सच कहूं, तो मुझे याद किए जाने की ज़रूरत नहीं है’.


यह भी पढ़ें: युवा बनाम बुजुर्ग नहीं, कांग्रेस में असली लड़ाई दो खेमों में बंटे असफल नेतृत्व के बीच है


कांग्रेस ने नए मीडिया को देर से समझा

किताब में प्रियंका का ये कहते हुए हवाला दिया गया है कि कांग्रेस पार्टी को ‘कुछ समय लगा, ये समझने में कि नया मीडिया कैसा है’.

वो कहती हैं, ‘1980 के दशक में, अख़बार में कोई लेख छप जाता था, जिससे एक सम्मानित दूरी बनाकर आप अपना काम करते रहते थे. वो फॉर्मूला काम करता था’. वो आगे कहती हैं, ‘आज, ये काम नहीं करता, आज, जब तक आप न बोलें, आपकी बात वहां नहीं पहुंचती’.

प्रियंका कहती हैं कि कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी का प्रचार ‘अंदर तक घुसा हुआ’ रहा है.

वो कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि बीजेपी के प्रचार का प्रभाव इतना मज़बूत रहा है, और इतना अंदर तक घुसा है कि जो लोग हमारे क़रीब हैं, जो हमारे जीने के तरीक़े को देखते हैं, उन्होंने भी शायद चीज़ों पर सवाल उठाए हैं’.

‘ये प्रचार इतने अच्छे से आयोजित था, और इतने लंबे समय तक चला कि जब तक हमें समझ में आया कि हमें भी अपना पक्ष रखना चाहिए, तब तक नुक़सान पहुंच चुका था’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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2 टिप्पणी

  1. Wah Kya bat hai……dusro ki Zindagi tabah Karne bale log kitani asani se khud ke parivar ki bat karte hai…besharm kahi ke……kabhi in logo Socha ki modi ka b parivar hai…un logo ki b kast hota hoga …Jo in PR aaj Tak kitane ghatiya tarike se silesile war trike se Congressi or leftist propegenda chalaya gya……tab yadi Sonia Gandhi sochti ki modi b wk insan hai uska b parivar hai or modi ji ko personal y atteck na kre ……lekin congrats me sari man maryada bhul Kar …..besarmi ki sari had PR Kar di…aaj usi ka kukarm ma fal bhog rahi hai Congress ….duniya Mai nyay yahin pr hai

  2. Date- 21/06/2019
    कांग्रेस समेत विपक्ष की लोकसभा चुनाव में हार और भाजपा के जीत का कारण :-
    पहले हम बात करते हैं भाजपा के जीत के कारण पर :-
    1- भाजपा के जीत का सबसे बड़ा कारण खासकर हिंदी भाषी क्षेत्र में भाजपा का मीडिया मैनेजमेंट.
    जिसके जरिये मोदी को एक मजबूत नेता के रूप में पेश किया गया. और उसमें वो सफल रहे.
    2- ध्रुवीकरण की राजनीति जिसके वजह भाजपा को काफी ज्यादा फायदा हुआ.जय श्री राम और वंदे मातरम जैसे शब्दों को उन्मादी बनाना भी उनके काम आ गया ,
    3- सोशल मीडिया का ब्यापक प्रयोग और फेक न्यूज़ का विस्तार और आम लोग को मुद्दे से गुमराह करना.देश की भोली जनता को लगातार रणनीति के तहत सच्चाई से दूर रखना.
    4- अमित शाह का चुनावी मैनेजमेंट के साथ कार्यकर्ता को भरोशे में लेना.और बूथ लेवल तक मजबूत संगठन बनाना.सोशल इंजीनियरिंग का सही मैनेजमेंट करना काफी फायदेमंद रहा.
    5- चुनावी प्रचार में पैसे का बेतहासा उपयोग.पैसे के दम पर बड़े बड़े इवेंट मैनेजमेंट जो लगातार मोदी जी को महान बताने के लिए किया गया.वो कार्यक्रम भी सफल रहा.
    6- सीबीआई, ईडी, आई टी ,ई सी,का सत्ता के लिए दुरप्रयोग करना.चुनावी समय मे विपक्षी दलों के यहाँ छापेमारी करके भ्रष्टाचारी साबित करने की कोशिश ,और कई बड़े नेताओं को इसी रणनीति से डराकर ,उनको भाजपा में शामिल कराया गया ,पार्टी को इसका भी फायदा हुआ.
    7- ब्यापक स्तर पर 2014 में सत्ता हासिल करने के बाद सदस्यता अभियान भी जीत का प्रमुख कारण रहा है.
    8- नरेंद्र मोदी का बनावटी ,दिखावटी और सजावटी चेहरा जिसपर लोगों ने विश्वास किया ,और मोदी जी लोगों को इमोशनल ब्लैकमेल करने में सफल हुए.
    9-झूठे नारे और स्लोगन का इस्तेमाल करना और जनता तक किसी ना किसी माध्यम उसे से पहुंचा देना.
    10- उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले सर्जिकल स्ट्राइक जैसे सफल प्रयोग के बाद बालाकोट में एयर स्ट्राइक का प्रयोग करके जनता को मीडिया मनेजमेंट के सहारे गुमराह करना और राष्ट्रवाद का खोखला ढोंग रचना ,और जनता को भृमित करना कि मोदी जी ही ऐसे फैसले ले सकते है और उनके ही हाथों में देश सुरक्षित रह सकता है ,यह कार्यक्रम भाजपा के लिए काफी फायदेमंद रहा.
    आप को लग रहा होगा की मैने तो भाजपा की किसी भी योजनाओं का जीत में जिक्र नही किया तो ,उसके लिए एक बात पहले समझनी होगी कि भाजपा के 2014 से 2019 वाले कार्यकाल में कोई भी योजना खास सफल नही रहीं ,आप इसका विश्लेषण खुद कर सकते हैं ,
    लगभग सभी योजनाओं की जमीनी हकीकत सामने आ चुकी है बस आपको सच्चाई से स्वीकार करनी है.
    अब हम बात करते हैं कांग्रेस समेत विपक्ष के हार के कारणों की :-
    पहले तो हम एक बात स्पष्ट करना चाहेंगे हार के लिए कोई और नही बल्कि कांग्रेस समेत सभी क्षेत्रीय दल स्वयं जिम्मेदार हैं.
    हम बात सिर्फ कांग्रेस की करते हैं जो शायद कुछ क्षेत्रीय दलों पर भी लागू होती है.
    1- अप्रेल 2011 में शुरू हुए अन्ना हजारे के आंदोलन के समय जो आक्रोश और अविश्वास कांग्रेस के खिलाफ जन्म लिया ,और भाजपा और आरएसएस ने जिस तरीके से उसका फायदा लिया ,कांग्रेस उसका सही काउंटर नही कर पाई ,कांग्रेस जनता को यह भी नही बता पायी की 2014 चुनाव में मोदी समेत भाजपा, कांग्रेस पर जितने आरोप लगा कर सत्ता में आई थी ,एक भी आरोप को सही साबित नही कर पायी,ऐसे गंभीर मामले जिससे जनता में कांग्रेस के प्रति भ्रष्टाचारी पार्टी की छवि बन गयी ,पार्टी इस छवि से बाहर नही आ पाई ,
    2- कांग्रेस के प्रति आक्रोश और अविश्वास को पुनः कांग्रेस के प्रति विश्वास में ना बदल पाना हार का एक बड़ा कारण है
    4- जनता से लगातार चुनाव के एक साल पहले तक दूर रहना.सिर्फ चुनावी दौरा करके भाजपा के सभी अस्त्र शस्त्र सीबीआई, ईडी,आई टी, गोदी मीडिया से नही जीत सकते ,इसके लिए लगातार काम करना होता है
    5- कांग्रेस के नेताओं में अहम और अपने ही दूसरे कार्यकर्ता को दबाने की प्रवित्ति,जिस वजह से नए कार्यकर्ता या गैरराजनीतिक घराने के लोग पार्टी के साथ ना तो जुड़ पाते है ना ही पार्टी उनको सही स्थान दे पाती है
    6- कमजोर संगठन और कमजोर कार्यकर्ता और कमजोर लीडरशिप होने के बाद भी उसे मजबूत ना करना भी एक बड़ा कारण है
    7- पार्टी में गुटबाजी और सभी नेता के सिर्फ अपनी नेतागीरी में मस्त रहना.और पार्टी में नेताओं की मनमर्जी
    8- सदस्यता अभियान के साथ बूथ लेवल तक के कार्यक्रम का अभाव ,नए वोटर के साथ युवाओं को पार्टी से ना जोड़ने की कोशिश भी पार्टी के लिए समस्या पैदा किया है
    9- पार्टी में अनुशासन का अभाव और जिम्मेदारी का सही प्रयोग ना करना भी हार का कारण है
    10- जमीनी राजनीति के साथ राज्य ,भाषा ,क्षेत्र के साथ जनता के लोकल मुद्दों और उनके भावनाओं से ना जुड़ना हार का बहुत बड़ा कारण है.चुनावी रैलियों और भाषणों में लोकल मुद्दों का अभाव भी आम जनता को पार्टी से नही जुड़ने दिया
    11- भाजपा समेत दूसरे दलों द्वारा लगाए गए किसी भी आरोप को TV या PC से बाहर आकर जनता तक किसी भी माध्यम से काउंटर करने में भी पार्टी सफल नही रही या हम कह सकते हैं की पार्टी ने कोशिश ही नही किया
    12- कांग्रेस की लड़ाई सिर्फ भाजपा से ना थी ना है और ना ही होने वाली है ,कांग्रेस की सीबीआई, ईडी, आई टी, ई सी और गोदी मीडिया से थी और अभी भी है , और शायद एक साथ इनसे लड़ना कांग्रेस के लिए मुश्किल हुआ है इसके लिए एक ब्यापक रणनीति की जरूरत है जो लोगों का विश्वास वापस ला पाए
    13- इतनी सारी खामियो के बाद भी चुनाव के लिए सही तैयारी ना होना, सही समय पर दूसरे दलों से गठबंधन ना होना ,या समय पर या समय के पहले प्रत्याशियों के नाम की घोषणा ना होना भी ,हार का एक प्रमुख कारण है
    14-शीर्ष नेतृत्व का विपक्ष की मजबूत भूमिका ना निभा पाना, अपने ही कार्यकर्ता से सही फीडबैक ना लेना ,जनता से लगातार ना जुड़ना, या कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन ना करना या उनको पार्टी में सही स्थान ना देना ,हार का बड़ा कारण रहा है
    15- कांग्रेस के ऊपर लगे 70 साल की नाकामी वाले स्लोगन का पार्टी ने सही से जबाब नही दिया जबकि कांग्रेस के पास 70 साल का एक गौरवशाली इतिहास रहा है ,लोगों का जीवन स्तर सुधरा है अलग अलग क्षेत्र में कांग्रेस ने विश्वस्तरीय काम किया है
    लेकिन पार्टी और उसके कार्यकर्ता इस मुद्दे पर मौन रहे हैं ,अपनी ही उपलब्धि को बताने में असफल रहे हैं जो हार का एक बड़ा कारण है
    16- कांगेस का अपना खुद का वोटबैंक और जनाधार खोना और पुनः ना हासिल करना एक बड़ा कारण है
    कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता के लिए सलाह:-
    1- कांग्रेस को उपरोक्त कमियों पर ध्यान देना चाहिए और उस पर तुरन्त सुधार करना चाहिए, बड़े स्तर पर सदस्यता अभियान चलाना चाहिए ,कांग्रेस पार्टी या उसके खिलाफ सोशल मीडिया में फैलाये जा रहे झूठ का ,फैक्ट चेकर ,TV या सोशल मीडिया के जरिये सही काउंटर करना चाहिए,70 साल में कांग्रेस की उपलब्धि जो हमारे नौजवानों और युवायों ने नही देखा है या नही समझा है ,पार्टी को उनको जरूर बताना चाहिए ,1947 के भारत और 2014 तक के भारत के बारे में लोगो को बताना चाहिए ,मैं दावे से कह सकता हूँ जिसे भी का कांग्रेस के द्वारा किये गए काम का पता लगेगा ,उसमे कांग्रेस के प्रति विश्वास पैदा होगा.कांग्रेस के सभी छोटे बड़े नेता को जनता से जुड़ने, और उनके सुख दुख में साथ देने के साथ जनता के मुद्दे को प्राथमिकता देने का निर्देश जारी करना चाहिए
    2- अच्छे काम करने वाले कार्यकर्ता को आगे बढ़ाना चाहिए,इससे और लोगों में भी कांग्रेस के प्रति आकर्षण होगा. और लोग कांग्रेस से जुड़ना चाहेंगे
    प्रियंका गांधी के एक बहुत ही मजबूत स्लोगन #जागरूक_बनें को मजबूती से लागू करके जनता को जागरूक करना चाहिए और सत्ता की नाकामी के साथ 70 साल के अपने काम को बताना चाहिए,
    3- इस लोकसभा चुनाव में हमने देखा है कि जनता को बहुत सारे कांग्रेस प्रत्याशी के नाम का भी पता नहीं था,और प्रत्याशी परिणाम के पहले ही अपने आप को हारा हुआ समझकर चुनाव लड़ रहे थे मतलब सिर्फ नाम कर रहे थे , कांग्रेस के बहुत कम ऐसे प्रत्याशी होंगे जो पूरे लोकसभा चुनाव क्षेत्र का घर घर जाकर दौरा किये हों ,जनता से जनसमर्थन की अपील किये हो ,क्योंकि ना तो उनके पास समय था ना ही प्रत्याशी के पास क्षमता थी और ना ही चुनाव लड़ने का साहस था, उत्तरप्रदेश में आपको कई ऐसे लोकसभा प्रत्याशी मिल जाएंगे, पार्टी यदि कोई सर्वे के जरिये इस बात की जानकारी करना चाहे की जनता लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का नाम बता दे तो शायद जनता के लिए ही मुश्किल होगा ,क्योंकि जनता से ना तो प्रत्याशी मिला है ना जनता को नाम पता है ,इसके साथ ही कार्यकर्ताओं की गुटबाजी को जल्द से जल्द खत्म करना चाहिए
    4- कांग्रेस के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह है
    नरेंद्र मोदी और भाजपा जनता से इमोशनली कनेक्ट होते हैं ,लेकिन कांग्रेस या राहुल गांधी जी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को जनता से पर्सनली कनेक्ट होना पड़ेगा और शायद यही कांग्रेस का इतिहास रहा है ,कांग्रेस के सभी पुराने बड़े नेता इंदिरा जी सहित सभी लोग गांव गांव तक जनता से मिलती थी , मैं अपने क्षेत्र के कुछ ऐसे लोगों को जानता हूँ जिनके यहां गांव में इंदिरा जी जाती थी ,कांग्रेस को पुराने कल्चर को जिंदा करना होगा.फिर परिणाम आपके सामने होगा ,
    पर्सनल कनेक्शन इमोशनल कनेक्शन पर भारी पड़ेगा ,क्योंकि जनता में पर्सनल लोगों के प्रति ज्यादा भरोशा होगा.मुझे ऐसा लगता है परसेप्शन की लड़ाई में पर्सनल कनेक्शन कांग्रेस के लिए बड़ी भूमिका अदा करेगा.
    5-कांग्रेस के लिए अब करो या मरो की लड़ाई है ,सवाल कांग्रेस के अस्तित्व का है ,कांग्रेस का कम होता जनाधार और जनता में कांग्रेस के प्रति अविश्वास के माहौल को युद्ध स्तर पर काम और संघर्ष करके करना होगा, प्रभावशाली लोगों और सामाजिक लोगों को प्राथमिकता से पार्टी से जोड़कर आम नागरिकों तक पहुंच बनाना होगा,
    6- कम से कम ऐसे राज्य जहां कांग्रेस की सरकार है उस राज्य को किसी भी कीमत पर एक आदर्श राज्य का स्थान दिलाना होगा,और वहां के लोगों में मजबूत विश्वास पैदा करना होगा, तथा जहाँ कांग्रेस सीधे लड़ाई में है वहाँ प्रभावी तरीके से काम करना होगा
    7- नया जनाधार तैयार करने के साथ अपने मिले जनाधार को संभालना होगा, चुने हुए जो भी नए सांसद हैं उनको अपने लोकसभा क्षेत्र में पूरे मेहनत के साथ काम करके आस पास के लोकसभा क्षेत्र में भी प्रभाव स्थापित करना होगा.कांग्रेस को इंदिरा जी की उस कहानी को जरूर याद करना चाहिए जिसमें उन्होंने अशोक गहलोत को मंच से बोल दिया था कि आप चुनाव की तैयारी करिये ,जबकि गहलोत समय सामान्य नागरिक की तरह सभा में आये थे ,उसके बाद गहलोत साहब का काम और उनका राजनीतिक कद आज किसी पहचान का मोहताज नही है ,पार्टी को अच्छे लोगों की पहचान करनी होगी और पार्टी से जोड़ना होगा
    8-जो राज्य अभी हाल फिलहाल में कांग्रेस के हाथ से निकले हैं वहां प्रभावाली तरीके से काम करके जनता का विश्वास पुनः स्थापित करना होगा और नेताओं को घर से बाहर आकर काम करना होगा ,और पारिवारिक मोह छोड़कर नए लोगो को पार्टी में सही स्थान देकर उनका समर्थन करना होगा
    9- सोशल मीडिया के साथ सोशल इंजीनियरिंग का सही और प्रभावी पउपयोग करना होगा,
    दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक के घिसे पीटे राग से बाहर आकर सबका विश्वास जीतना होगा ,उत्तर भारत के सवर्ण मतदाता जो कांग्रेस में बिल्कुल भरोशा नही कर रहे हैं या नाम मात्र के लोग पार्टी से जुड़ना चाहते हैं , ऐसे सवर्ण मतदाता का विश्वास फिर से जीतना होगा
    10- क्षेत्रीय दलों के कम होते प्रभाव के बीच जिस तरीके से अधिकतर दलों का वोट शिफ्ट भाजपा की तरफ हो रहा है ,उसको समझ कर कांग्रेस की तरफ करना होगा, यह प्रयास बंगाल में आप कर सकते हैं ,जो त्रिपुरा में पार्टी नही कर पाई
    लेफ्ट का पूरा जनाधार बैचारिक असमानता होने के बाद भी जिस तरीक़े से भाजपा के साथ जा रहा है उसे कांग्रेस अपनी तरफ कर सकती है , जबकि केरल में पार्टी सफल रही है
    11-ऐसे सभी परिवार या सदस्य जो कभी भी कांग्रेस के साथ रहे हैं ,जिनके पूर्वज कांग्रेस के साथ रहे है ,जो स्वतंत्रता की लड़ाई लड़े परिवार हैं, ऐसे सभी परिवार और सम्मानित लोगों को एक विशेष रणनीति के तहत राहुल गांधी जी के जरिये निमंत्रण पत्र भेजकर कांग्रेस से पुनः जुड़ने का आग्रह करना चाहिए, ऐसे लोगों के जरिये आम लोगों में पार्टी के प्रति विश्वास पैदा होगा ,और कांग्रेस परिवार फिर से मजबूत होगा
    नोट– उपरोक्त बातों पर शीघ्रता से काम करना होगा, लगातार बिना थके और बिना रुके पार्टी और कार्यकर्ताओं को कठिन परिश्रम करना होगा.यदि ईमादारी से काम किया गया तो सुखदायी परिणाम होगा.
    अंकुश कुमार शुक्ला
    कांग्रेस समर्थक
    गुड़गांव MNC में कार्यरत(R&D)
    Mob- 9867570463
    Email Id- ankus1008@gmail.com

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