बेंगलुरु: अपने मात्र पांच महीने के कार्यकाल के दौरान तीन चुनावों, दो विधायी सत्रों का सामना कर चुके और कई बार नई दिल्ली का चक्कर लगाने वाले कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का कहना है कि पोस्ट, पोजीशन और यहां तक कि जीवन भी ‘स्थायी नहीं हैं.’
बोम्मई ने यह भावनात्मक टिप्पणी रविवार को अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र शिगगांव में एक पंचमसाली लिंगायत समुदायिक केंद्र के शिलान्यास के मौके पर आयोजित समारोह में अपने संबोधन के दौरान की.
मुख्यमंत्री के विरोधी जहां इसे ‘एग्जिट स्पीच’ बता रहे हैं, वहीं सरकार में शामिल लोगों का कहना है कि वह इस मौके पर थोड़ा ज्यादा भावुक हो गए थे और नेतृत्व परिवर्तन की कोई संभावना नहीं है. मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब बोम्मई को चुनावी मोर्चे पर नाकामी, भ्रष्टाचार के आरोपों, सामुदायिक नेता के तौर पर उभरने में चुनौतियों और कार्यकर्ताओं और सरकार के बीच बढ़ती दूरी के बीच खुद को मजबूत नेता के तौर पर स्थापित करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
मुख्यमंत्री के एक करीबी सूत्र ने कहा, ‘यह एक भावनात्मक पल था. हंगल विधानसभा सीट पर उपचुनाव में हार के बाद वह पहली बार अपने गृह क्षेत्र में किसी सभा को संबोधित कर रहे थे. स्वाभाविक तौर पर वह भावुक थे क्योंकि हंगल में हार के बाद पार्टी के भीतर ही कई लोगों ने बतौर नेता लिंगायतों के वोट खींचने की उनकी क्षमता पर सवाल उठाया था.’
‘भावुक हो गए, पद नहीं छोड़ रहे’
मुख्यमंत्री के राजनीतिक सचिव और होनाली से विधायक एम.पी. रेणुकाचार्य ने सोमवार को सुवर्णा सौधा के बाहर संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘क्या उन्होंने ऐसा कहा कि वह इस्तीफा दे रहे हैं? वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों की आत्मीयता से भावुक हो गए थे. केंद्रीय नेतृत्व, राज्य इकाई और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा की पसंद रहे मुख्यमंत्री बोम्मई को बदले जाने की कोई संभावना नहीं है.’
रविवार को आयोजित शिलान्यास समारोह में बोम्मई से पहले उद्योग मंत्री मुरुगेश निरानी मंच पर आए थे और उन्होंने मुख्यमंत्री के राजनीतिक भविष्य पर टिप्पणी भी की थी. निरानी ने वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘बोम्मई अपना कार्यकाल पूरा करेंगे. मीडिया में चल रही अफवाहों पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए. बोम्मई अपना कार्यकाल पूरा करेंगे और अपने कार्यकाल के बाद उनके भी अपने पिता की तरह ही केंद्रीय मंत्री बनने की संभावना है.’
हालांकि, निरानी के एक करीबी सूत्र ने मंत्री की टिप्पणी को ‘जुबान फिसल जाना’ करार दिया था.
पार्टी के अंदर जारी सुगबुगाहट की पुष्टि करते हुए सूत्र ने कहा, ‘निरानी को सार्वजनिक तौर पर ऐसी टिप्पणी नहीं कहनी चाहिए थी. सार्वजनिक मंच पर ऐसी चर्चा नहीं की जानी.’
मुख्यमंत्री पद की दौड़ में बोम्मई के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा में रहे निरानी की इस टिप्पणी ने अटकलों को बढ़ा दिया. नवंबर में एक अन्य वरिष्ठ मंत्री के.एस. ईश्वरप्पा ने अपने बयान में जोर देकर कहा था कि निरानी ‘जल्द ही मुख्यमंत्री बनेंगे.’
भाजपा में आखिर चल क्या रहा है
भाजपा में इस बात को लेकर सुगबुगाहट जारी है कि बोम्मई राज्य की राजनीति से बाहर हो जाएंगे और 2023 में विधानसभा चुनाव लड़ने से भी दूर रह सकते हैं.
भाजपा के एक पूर्व पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘चर्चा तो यह भी है कि वह केवल विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करेंगे और 2024 में हावेरी से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. वह यहां मुख्यमंत्री रहने के बजाये एक केंद्रीय मंत्री बन सकते हैं.’
हालांकि, पार्टी के अन्य अंदरूनी सूत्रों की राय थी कि पार्टी के भीतर और साथ-साथ ही बाहर से आलोचनाएं झेल रहे बोम्मई कार्यक्रम में मिले सम्मान से अभिभूत होकर एक भावनात्मक टिप्पणी की थी.
बोम्मई के पद से हटने का इंतजार कर रहे लोगों का कहना है कि उन्हें बाहर करने के लिए उनके खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया जा सकता है क्योंकि वह काफी समय से घुटने के दर्द से पीड़ित है, जिसके लिए सर्जरी और सर्जरी के बाद के हफ्तों आराम करने की जरूरत होती है.
भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने दिप्रिंट से कहा, ‘बी.एस. येदियुरप्पा को हटाए जाने का स्पष्ट कारण भ्रष्टाचार और प्रशासन में उनके परिवार के सदस्यों के हस्तक्षेप पर काबू पाना था. लेकिन अब स्थिति फिर वही हो गई है. किसी पार्टी के लिए उसकी सरकार तभी सफल होती है जब उसके हर कार्यकर्ता को लगता हो कि उसकी पार्टी सत्ता में है. यहां वह स्थिति नहीं है.’
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि बिटकॉइन घोटाले के आरोप, ठेकेदारों की रिश्वतखोरी के दावों और बोम्मई के सत्ता संभालने के बाद से चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन ने उनकी छवि पर प्रतिकूल असर डाला है.
राष्ट्रीय महासचिव ने दिप्रिंट को बताया, ‘विधान परिषद चुनावों में हमने जो सीटें जीतने में सफलता हासिल की है, वह पूर्व में स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी के प्रयासों का नतीजा हैं, न कि मुख्यमंत्री की वजह से यह जीत मिली है.’ सत्तारूढ़ दल के रूप में भाजपा को कम से कम 14-15 सीटें जीतने की उम्मीद थी, लेकिन उसे कुल 25 सीटों में से सिर्फ 11 सीटें हासिल हुई हैं.
बोम्मई कैबिनेट के एक वरिष्ठ मंत्री ने दावा किया कि इस पूरे सियासी खेल के पीछे उन नवांगतुक भाजपा विधायकों का हाथ है जो 2019 में कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए, जिसके कारण गठबंधन सरकार गिर गई थी.
वरिष्ठ मंत्री ने मखौल उड़ाते हुआ कहा, ‘पुराने लोगों को शांति से बैठे रहने को बाध्य किया जाता है जबकि नए लोग पार्टी का पूरा शो चला रहे हैं. बोम्मई अपनी कार तक पहुंचे इससे पहले ही ये नवागंतुक अंदर बैठे मिल जाते हैं. बोम्मई के फ्लाइट में चढ़ने से पहले ही वे सीट पर उनका इंतजार कर रहे होते हैं.’
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‘उनकी कमजोरी ही उनकी ताकत’
बोम्मई के आलोचक जहां उनके बयान को ‘हार की स्वीकारोक्ति’ मानते हैं, वहीं राजनीतिक विश्लेषक इसे बोम्मई की राजनीति के विस्तार का संकेत बता रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक और स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के डीन प्रोफेसर नरेंद्र पाणि ने दिप्रिंट को बताया, ‘उनकी पूरी राजनीति कभी ताकतवर होने वाली राजनीतिक स्थिति की नहीं रही है. उनकी ‘कमजोरी’ ही उनकी ताकत है. बोम्मई राजनेताओं की उस जमात से आते हैं जो कभी किसी के लिए किसी तरह का खतरा नजर नहीं आते.’
हालांकि, प्रोफेसर पाणि ने इस पर सहमति जताई की कि हालिया चुनाव नतीजे संकेत दे रहे हैं कि कहीं कुछ समस्या है. उन्होंने कहा कि लेकिन ऐसा कोई संकेत नजर नहीं आता कि बोम्मई को बदला जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘भाजपा कर्नाटक में भी उत्तराखंड की पुनरावृत्ति में बहुत सक्षम है, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है.’
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