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Wednesday, 20 November, 2024
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‘खराब प्रदर्शन, बढ़ती उम्र’ – 2024 के चुनावों से पहले 100 से अधिक भाजपा सांसद जांच के दायरे में क्यों हैं

पार्टी नेताओं का कहना है कि ऐसे सांसद खतरे की सूची में हैं और बीजेपी उनकी जगह नए चेहरों पर विचार कर रही है. वरुण और मेनका गांधी, गौतम गंभीर, किरण खेर, श्रीपद येसो नाइक के नाम इस सूची में बताए गए हैं.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक तीन प्रमुख राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में, जहां भारतीय जनता पार्टी इस महीने की शुरुआत में सत्ता में आई थी, अनुभवी नेताओं शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह को मुख्यमंत्री पद से वंचित करने के बाद, पार्टी अब 100 से अधिक सांसदों के भविष्य की समीक्षा कर रही है, जिन्हें 2024 के आम चुनावों के लिए मैदान में नहीं उतारे जाने का खतरा है.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी कम से कम 100 मौजूदा सांसदों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट पर नजर रख रही है, जिनका काम शुरुआती सर्वे में असंतोषजनक पाया गया है. सूत्रों ने कहा कि पार्टी इन सीटों के लिए राज्य के मंत्रियों और मौजूदा विधायकों को मैदान में उतारने का विकल्प भी तलाश रही है.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने नए चेहरों के लिए रास्ता बनाने के लिए 99 मौजूदा सांसदों को हटा दिया था.

एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, जो पार्टी के लोकसभा उम्मीदवारों के मूल्यांकन में शामिल रहे हैं, “पार्टी इन सांसदों की सर्वेक्षण रिपोर्ट का आकलन कर रही है और देख रही है कि इन सीटों पर कौन मजबूत उम्मीदवार हो सकता है. आम तौर पर, पार्टी कमजोर प्रदर्शन रिपोर्ट वाले मौजूदा सांसदों/विधायकों को टिकट देने से पहले या किसी सीट पर नया उम्मीदवार उतारने से पहले कई कारकों पर विचार करती है. दो तरह के सांसदों को हटाया जाता है- एक वे जो कई बार से जीतते आ रहे हैं और इसलिए नए चेहरे को मैदान में उतारने की जरूरत महसूस की जाती है, और दूसरे वे जिनका प्रदर्शन कमजोर रहा है और पार्टी के पास उस सीट पर एक मजबूत उम्मीदवार खड़ा करने का विकल्प है.”

बीजेपी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि चुनाव सर्वेक्षण करने वाली एक एजेंसी एसोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स (एबीएम) जमीनी स्तर से लेकर अन्य मापदंडों पर 100 सांसदों के प्रदर्शन का लोगों के बीच उनकी उपस्थिति और लोगों की उनके प्रति धारणा, सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति, उनके निर्वाचन क्षेत्र और केंद्र और राज्य सरकार की लाभार्थी योजना तक लोगों की पहुंच और संभावित विपक्षी कैंडीडेट के आधार पर आकलन कर रही है.

नाम न छापने की शर्त पर एक केंद्रीय भाजपा पदाधिकारी ने कहा, “प्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद, सौ मौजूदा सांसदों का प्रदर्शन वॉच लिस्ट में रहा है. उनमें से कई तो कई बार सांसद रहे हैं और ऐसा महसूस हो रहा है कि पीढ़ीगत बदलाव के लिए एक नए चेहरे की ज़रूरत है. हालांकि, उन पर अंतिम निर्णय लेने से पहले, कुछ अन्य फीडबैक लिए जाएंगे.”

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, एबीएम सर्वे के अलावा बीजेपी का अपना संगठन सांसदों के प्रदर्शन का आकलन कर रहा है.

उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया से पहले प्रधानमंत्री के आधिकारिक नमो (नरेंद्र मोदी) ऐप पर एक सर्वेक्षण भी शुरू किया गया है. सूत्रों के मुताबिक ऐप के दो करोड़ सब्सक्राइबर हैं.

इस सप्ताह की शुरुआत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शासन और नेतृत्व के विभिन्न पहलुओं पर जनता की प्रतिक्रिया जानने के लिए ऐप पर ‘जन मन सर्वेक्षण’ लॉन्च किया था. 14-प्रश्नों वाले सर्वेक्षण में केंद्रीय योजनाओं की लोकप्रियता, सांसदों का प्रदर्शन और प्रतिवादी के निर्वाचन क्षेत्र के बारे में विशेष बातें शामिल हैं.

2018 में ऐसे ही एक सर्वेक्षण के बाद मोदी सरकार ने पीएम-किसान सम्मान निधि लॉन्च की थी, जो किसानों को आय में सहायता प्रदान करती है. बीजेपी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सर्वेक्षण के फीडबैक का इस्तेमाल 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी के 35 प्रतिशत मौजूदा सांसदों को टिकट देने से इनकार करने में भी किया गया था.

नवीनतम सर्वेक्षण के बारे में बात करते हुए, NaMo ऐप के प्रभारी कुलजीत चहल ने कहा, “यह लोगों की नब्ज़ जानने के लिए सांसदों और कल्याणकारी योजनाओं की प्रतिक्रिया प्राप्त करने की एक निरंतर प्रक्रिया है.”

दिप्रिंट ने 2024 के चुनावों से पहले सांसदों के खतरे की सूची में होने के मुद्दे पर प्रतिक्रिया के लिए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा से भी फोन पर संपर्क किया, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


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2019 में क्या हुआ

भाजपा सूत्रों के अनुसार, पिछले महीने हुए चार राज्यों के चुनावों में 21 सांसदों को मैदान में उतारने का पार्टी का निर्णय – राजस्थान में सात, मध्य प्रदेश में सात, छत्तीसगढ़ में चार और तेलंगाना में तीन – 2024 के लोकसभा चुनाव में नए चेहरे लाने की उसकी रणनीति का हिस्सा था.

हालांकि, मैदान में उतरे लोगों में से 12 ने जीत हासिल की, जबकि नौ सांसद राज्य चुनाव हार गए. जो लोग इसमें शामिल नहीं हो सके उनमें राजस्थान में देवजी पटेल, नरेंद्र कुमार और भागीरथ चौधरी, छत्तीसगढ़ में विजय बघेल और मध्य प्रदेश में फग्गन सिंह कुलस्ते और गणेश सिंह शामिल हैं. तेलंगाना में सांसद बंदी संजय, अरविंद धर्मपुरी और सोयम बापू राव चुनाव हार गए.

ऊपर जिस अधिकारी का जिक्र किया गया है उसने कहा, “तेलंगाना को छोड़कर, तीन राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) में पार्टी की जीत के बावजूद, इन सांसदों के कब्जे़ वाली अधिकांश संसदीय सीटों पर नए उम्मीदवार खड़े किए जाएंगे, लेकिन वे जीतने असफल रहे. इससे पता चलता है कि उन्होंने देश में मोदी लहर के कारण ही 2019 का लोकसभा चुनाव जीता था. पार्टी इन सीटों के लिए अन्य विकल्पों पर विचार करेगी.”

लोकसभा में सबसे अधिक संख्या में सांसद भेजने वाले राज्य यूपी में पंद्रह से अधिक मौजूदा भाजपा सांसदों पर 2024 में उम्मीदवारी खोने का खतरा है. उनमें से पांच ‘पचहत्तर वर्ष’ की आयु सीमा को पार कर रहे हैं जो बीजेपी में अघोषित सेवानिवृत्ति की उम्र है. जबकि दस के पास प्रभावशाली प्रदर्शन रिपोर्ट नहीं है.

जबकि कानपुर के सत्यदेव पचौरी, मथुरा की सांसद हेमा मालिनी, प्रयागराज की रीता बहुगुणा जोशी और बहराईच के अक्षय लाल गौड़ 75 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, सांसद दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’, बी.पी. सरोज, कौशल किशोर, केशरी देवी पटेल, संघमित्रा मौर्य, मुकेश राजपूत, उपेन्द्र सिंह रावत, संगम लाल गुप्ता, वरुण गांधी और मेनका गांधी के खराब प्रदर्शन ने उन्हें खतरे की सूची में डाल दिया गया है.

इसी तरह गुजरात के आठ, बिहार के 10, महाराष्ट्र के दस और मध्य प्रदेश के ग्यारह सांसद खतरे की सूची में बताए जा रहे हैं.

दिल्ली में गौतम गंभीर और हंस राज हंस के नाम इस सूची में बताए जा रहे हैं, जबकि माना जा रहा है कि पार्टी हर्ष वर्धन और मीनाक्षी लेखी के विकल्प पर भी विचार कर रही है. चंडीगढ़ से सांसद किरण खेर और केंद्रीय मंत्री और गोवा के सांसद श्रीपाद येसो नाइक भी खतरे की सूची में बताए जा रहे हैं.

भाजपा सूत्रों ने कहा कि 2019 में, पार्टी ने आंध्र प्रदेश में दो मौजूदा सांसदों में से दो, छत्तीसगढ़ में 11 में से नौ सांसदों, असम में सात मौजूदा सांसदों में से पांच, मध्य प्रदेश में 24 में से 12 मौजूदा सांसदों, 26 में से 13 सांसदों को टिकट देने से इनकार कर दिया. गुजरात में मौजूदा सांसदों में से दो, उत्तराखंड में पांच मौजूदा सांसदों में से दो, हिमाचल प्रदेश में चार मौजूदा सांसदों में से दो, बिहार में 21 मौजूदा सांसदों में से आठ, महाराष्ट्र में 22 मौजूदा सांसदों में से आठ, उत्तर प्रदेश में 68 मौजूदा सांसदों में से 22, राजस्थान में 22 मौजूदा सांसदों में से 6, झारखंड में 12 मौजूदा सांसदों में से चार और दिल्ली में सात मौजूदा सांसदों में से दो को टिकट देने से मना कर दिया था.

पार्टी ने तब अपने कुछ सबसे प्रमुख नेताओं को टिकट देने से इनकार कर दिया था, जिनमें दिग्गज लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, पूर्व सीएम बी.सी. खंडूरी और स्पीकर सुमित्रा महाजन शामिल थीं.

पार्टी के एक नेता ने कहा, “2019 का चुनाव अलग चुनाव था क्योंकि पार्टी वरिष्ठ नेताओं को सेवानिवृत्त करना चाह रही थी, क्योंकि प्रधानमंत्री पीढ़ीगत बदलाव चाहते थे और बिना किसी भार के अपनी नई टीम बनाना चाहते थे. अब वरिष्ठ नेताओं को जबरन सेवानिवृत्ति देने की ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन पार्टी को पीढ़ीगत बदलाव लाने की निरंतर प्रक्रिया जारी रखनी होगी और जीत जारी रखने के लिए सत्ता विरोधी लहर को हराना होगा. यह सच है कि संसद चुनाव में मतदाता पीएम मोदी को ध्यान में रखकर वोट करते हैं, लेकिन एक बड़े संगठन के लिए रोटेशनल नेतृत्व की आवश्यकता होती है. नए लोगों को अधिक अवसर देना ही नए क्षेत्रों में बढ़ने और विस्तार करने का एकमात्र तरीका है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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