भाजपा का पीडीपी गठबंधन से निकल जाने से संभावित हैं चार चीज़ें
नई दिल्ली: भाजपा का मेहबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन से बाहर होने से साफ़ है कि मुश्किलों को झेल रहे राज्य जम्मू-कश्मीर में यह तो होना ही था ।
मुफ़्ती की पीडीपी संपूर्ण रूप से कश्मीरी है जबकि भाजपा का कश्मीर से दूर-दूर का कोई नाता नहीं है और कई लोगों ने इस गठबंधन को अप्राकृतिक भी करार दिया था।
लेकिन जहाँ मुफ़्ती ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया है, ये चार विकल्प हैं जो बताएंगे अब राज्य में आगे क्या होगा
राज्यपाल शासन
बिना किसी लोकतान्त्रिक-सरकार की स्थिति में जहाँ बाकी राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू होता है वहीं जम्मू-कश्मीर में उसके विशेष दर्जे की वजह से राज्यपाल शासन लागू होगा। ऐसा होना संभावित है कम से कम एक छोटे समय के लिए ।
राज्यपाल एन एन वोहरा पहले भी राज्य का शासन कर चुके हैं । पिछले साल ही 2016 में जब पूर्व मुख्यमंत्री और मेहबूबा मुफ़्ती के पिता मोहम्मद सईद की मृत्यु हुई थी तब उन्होंने शासन संभाला था। वोहरा एक लोकप्रिय सरकार का विकल्प दिलवा सकते हैं।
वोहरा का आज रात में राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट भेजना अपेक्षित है और उब्लब्ध विकल्पों के बारे में भी वे उन्हें अवगत करा सकते हैं । क्योंकि इतने कम समय में किसी का भी सत्ता पर दावा करना संभव नहीं, राष्ट्रपति, वोहरा को प्रशासन संभालने का ज़िम्मा दे सकते हैं। इससे वोहरा के कार्यकाल की अवधि और लम्बी हो जाएगी जो इस महीने के अंत में ख़त्म होने वाली थी।
पीडीपी-एनसी-कांग्रेस सरकार बनाने का दावा कर सकती हैं :
यह विकल्प भी उपलब्ध है। 2014 के विधानसभा चुनावों के बाद पीडीपी-एनसी-कांग्रेस, जिनके पास 87 में से 68 सीटें थीं, ने उसी वक्त सरकार बनाने की उम्मीद दिख रही थी। कांग्रेस के कुछ नेता अब भी इस प्लान के बारे में सोच रहे हैं। पर जहां मेहबूबा अपनी राजनितिक पूँजी से इतना कुछ गँवा चुकी हैं, नेशनल कांफ्रेंस भला क्यों कोई पंगा लेगी? एनसी के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह समय से पहले चुनावों को देखकर गदगद महसूस कर रहे होंगे क्योंकि पीडीपी – उनकी कश्मीर में मुख्य प्रतिद्वंद्वी – को परेशानी हुई है । पर राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है
नए चुनाव सम्पन्न होने तक मेहबूबा बतौर केयर-टेकर सीएम बनी रह सकती हैं:
ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम है । और तो और जब वार्षिक अमरनाथ यात्रा सर पर है, ऐसी स्थिति में केंद्र मेहबूबा की बजाय राज्यपाल शासन पसंद करेगा । मेहबूबा भी केयर टेकर सीएम बनी रहना पसंद नहीं करेंगी क्योंकि अब कभी भी होने वाले चुनावों के लिए उन्हें अपनी पार्टी के चुनावी क्षेत्रों से जुड़े रहने के लिए कमर कसनी पड़ेगी ।
जल्द चुनाव:
पिछले लगभग दो सालों से केंद्र और राज्य सरकार अनंतनाग लोक सभा क्षेत्र के उपचुनाव को टाल रही है जो तब रिक्त हो गयी थी जब मेहबूबा मुफ़्ती ने अपने पिता की मृत्यु के बाद मुख्यमंत्री का पद संभाला था। अब जब सुरक्षा के हालात वापिस 1990 के स्तर पर पहुँच गए हैं, राज्य में जल्द ही चुनावों का सम्पन्न हो पाना मुश्किल है। यहाँ तक की भाजपा भी, इस चुनाव में विलम्ब देखना चाहेगी क्योंकि उसने भी इन चार सालों में अपनी राजनीतिक पूँजी गंवाई है और उसे वापिस पाने के लिए उसे समय चाहिए । जम्मू-कश्मीर को, परिणामस्वरूप, कम से कम 6 महीने तक राज्यपाल शासन देखना पड़ सकता है।
Read in English: What happens next in Jammu and Kashmir?