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Friday, 15 November, 2024
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‘अल्लूरी सीताराम राजू’ की मूर्ति का पीएम मोदी ने किया अनावरण, आंध्र को लुभाने की BJP की राजनीति

आदिवासियों के लिए शौर्य का प्रतीक बने क्षत्रिय स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू का जश्न मनाकर बीजेपी दो समुदायों की सद्भावना अर्जित करने की उम्मीद कर रही है.

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हैदराबाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में सोमवार को आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले में अल्लूरी सीताराम राजू की 30 फुट ऊंची कांस्य की मूर्ति का अनावरण किया.

अनावरण के मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि ऐसी धरती पर आकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं जहां बलिदान का इतिहास है, जज्जबे से भरी और आदिवासी नायकों की कहानियां हैं.

क्षत्रिय परिवार में जन्में राजू को मान्यम वीरुडु’ आसाना भाषा में जंगल का नायक कहा जाता है. पीएम मोदी ने भी अपने संबोधन में क्षेत्र में आदिवासियों को ‘बहादुर और साहस का प्रतीक’ बताया था.

पीएम मोदी द्वारा किया गया यह उद्घाटन ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ का हिस्सा था – आजादी के 75 साल मनाने और मनाने के लिए केंद्र सरकार की पहल. दूसरी बातों के अलावा, राजू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को उचित मान्यता देने और उनके काम के बारे में जागरूकता फैलाने पर केंद्रित रहा.

राजनीतिक विश्लेषक तेलकापल्ली रवि के मुताबिक, राजनीतिक रूप से, राजू की प्रतिमा के उद्घाटन को सत्तारूढ़ बीजेपी के आदिवासी आउटरीच एजेंडे के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है.

अपने भाषण में पीएम मोदी ने राजू के बारे में बात करते हुए कहा कि राजू ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का बेहतरीन उदाहरण हैं.

पीएम ने सरकार के जनजातीय समुदायों के उत्थान की दिशा में सरकार के प्रयासों के बारे में बात की. पीएम ने बताया कि 3,000 से ज्यादा वन धन विकास केंद्र और लगभग 50,000 वन गण स्वयं सहायता समूह आदिवासी उत्पादों और कला को आधुनिक अवसरों से जोड़ा जा रहा है.

उन्होंने यह भी कहा साल 2018 में मोदी सरकार द्वारा लॉन्च किया गया एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम जिसका लक्ष्य पूरे देश में अविकसित जिलों को बदलने का है, इससे आदिवासियों को भी बेहद फायदा होगा.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की बात करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे ‘दूरस्थ क्षेत्रों में एसटी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने’ के लिए सरकार द्वारा स्थापित 750 से अधिक एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय स्थापित किए जा रहे हैं, मूल भाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है, और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खरीद के तहत वन उत्पादों की संख्या 12 से बढ़कर 90 हो गई है.

हालांकि आदिवासियों की पहुंच पर मोदी का संदेश साफ था. विशेष रूप से ऐसे समय में जब एनडीए के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार, आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू हैं. राजू को सेलिब्रेट करने के कदम को भी एक तरह से उस क्षेत्र में क्षत्रियों की महत्वपूर्ण आबादी के लिए एक मिनी आउटरीच के रूप में देखा गया था.

आंध्र विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर कोल्लुरु सूर्यनारायण ने कहा कि राजू, एक क्षत्रिय है जो बहुत कम उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला प्रतिरोध के लिए जाना जाता था, 18 साल की उम्र से वह विशाखापत्तनम-गोदावरी आदिवासी इलाकों में रहता था.

उन्होंने कहा, राम राजू ने पूर्वी गोदावरी, पश्चिम गोदावरी और विशाखापत्तनम जिलों के आदिवासी क्षेत्रों की यात्रा की, इन क्षेत्रों में पूर्वी घाट के साथ पहाड़ियों में समय बिताया, और उन इलाकों में आदिवासियों के साथ भेदभाव और अत्याचार के स्तर से बहुत प्रभावित हुए.’


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जंगल का हीरो

सूर्यनारायण ने कहा कि राजू साल 1897 में पंड्रांगी नाम के गांव में पैदा हुए थे जो अब विशाखापट्टनम जिले का हिस्सा है.

सूर्यानारायण ने कहा, राजू के पिता एक फोटोग्राफर थे जो कम उम्र में हैजा के कारण मौत हो गई. पैसे की कमी के कारण राजू की पढ़ाई बीच में छूट गई. कहा जाता है कि उन्होंने राजमुंदरी और रामचंद्रपुरम सहित अन्य स्थानों में अध्ययन किया था. जब वे 18 वर्ष के थे तो उन्होंने अपना जीवन छोड़ दिया और आदिवासी क्षेत्रों में चले गए.”

वो बताते हैं कि अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों का शोषण, वन भूमि पर कड़े कानूनों के माध्यम से किया गया शोषण, जिससे उनके खेती के अधिकार, जबरन श्रम, और किराए, अप्रत्यक्ष करों के रूप में धन की निकासी की सुविधा के लिए खतरा पैदा हो गया इन सभी चीजों ने राजू को आदिवासियों ओर से लड़ने के लिए प्रेरित किया.

राजू ने प्रसिद्ध रम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसे मान्यम विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है, जो आदिवासियों द्वारा 1922 से 1924 तक विशाखापत्तनम-गोदावरी आदिवासी क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध था, ऐसा माना जाता है कि इसी दौरान उन्हें अंग्रेजों ने पकड़ लिया और मार डाला.

सूर्यनारायण ने बताया, ‘राजू आदिवासियों के बीच बहुत पॉपुलर थे उनकी एक आभा थी. वो उन्हें भगवान का अवतार मानते थे. उनमें से कई तो दशकों तक यह मानने से इनकार कर दिया कि उनकी मृत्यु हो गई है.’

‘उन्होंने उनके इलाज के लिए औषधियों का इस्तेमाल किया, वह साहसी थे और उनके नेतृत्व में, विद्रोहियों ने पुलिस स्टेशनों पर हमला किया और आंदोलन के लिए पुलिस वालों के हथियार तक ले लिए. उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि पुलिस को आंदोलन के लिए हथियार उन्होंने उठा लिए.’सूर्यनारायण ने कहा कि राजू का ‘तेलुगु धरती पर उनका हर वर्ग के लोगों में अलग तरह का करिश्मा था. क्षत्रिय हों या फिर आदिवासी दोनों ही उन्हें अपना बताते हैं. क्षत्रिय वो हैं जहां उन्होंने शिक्षा हासिल की.’ न्होंने कहा, ‘वह एक भावना है.’

मोदी सरकार की दोहरी पहुंच

राजू की मूर्ति एक स्वतंत्र संगठन क्षत्रिय सेवा समिति द्वारा स्थापित की गई है. यह 30 फीट ऊंची है तथा इसका वजन 15 टन है और इसकी लागत लगभग 3 करोड़ रुपये है.

उद्घाटन समारोह के दौरान, पीएम मोदी ने राजू के भतीजे, अल्लूरी श्रीराम राजू और क्रांतिकारी के करीबी लेफ्टिनेंट मल्लू डोरा, बोडी डोरा के बेटे को भी सम्मानित किया.

अल्लूरी का जन्मस्थान, पंडरंगी, भीमावरम से लगभग 300 किमी दूर है, जहां मूर्ति स्थापित की गई है. कुछ लोगों का मानना है कि अल्लूरी की जड़ें भीमावरम के पास मोगल्लु नाम के एक गांव में हैं.

तेलकापल्ली रवि ने दिप्रिंट को बताया, ‘मूर्ति की स्थापना के लिए जो क्षेत्र उन्होंने चुना वह गोदावरी जिले का भीमावरम है जहां उच्च जाति समुदायों, विशेष रूप से क्षत्रियों की बहुलता है. चुनावी रूप से उनकी गिनती बड़ी संख्या में भले न होती हो लेकिन वे यहां के बहुत प्रभावशाली समुदायों में शामिल हैं.’

पिछले साल राज्य में हुए उपचुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 0.5 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी हो गया है.

रवि ने कहा, ‘भाजपा के पास इस क्षेत्र में अतीत में तीन सीटें थीं, ज्यादातर गोदावरी जिले के बेल्ट में. इसलिए, अल्लूरी सीताराम राजू से संबंधित ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान चुनना, जिसमें एक महत्वपूर्ण क्षत्रिय आबादी भी है, एक रणनीतिक निर्णय था.’

उन्होंने इस ओर भी इशारा किया कि पिछले सप्ताह पड़ोसी राज्य तेलंगाना में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित करने के बाद भाजपा ने अपने ‘मिशन साउथ’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए उसके सिस्टर स्टेट आंध्र प्रदेश को नहीं छोड़ा.

रवि ने कहा, ‘आंध्र प्रदेश में भाजपा की गुडविल नहीं है क्योंकि केंद्र ने विभाजन के बाद इसे ‘विशेष राज्य का दर्जा’ देने से इनकार कर दिया है, लेकिन वे हमेशा ये कहने से नहीं चूकते हैं कि पार्टी राज्य के बारे में कितनी गंभीर है.’ इसलिए, अगर उन्होंने तेलंगाना में इतनी महत्वपूर्ण बैठक की और आंध्र को ध्यान में नहीं रखा, खासकर जब वे ‘मिशन साउथ’ होने का दावा करते हैं, तो इससे गलत संदेश जाएगा.’

आंध्र में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की आबादी ज्यादातर सत्तारूढ़ युवाजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के साथ है. इसने 2019 में सभी सात एसटी विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की, और अराकू क्षेत्र से एक एसटी लोकसभा सीट भी जीती.

2014 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की 4.94 करोड़ आबादी में, 17.6 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 5.3 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक क्षत्रिय संघ के एक सदस्य ने दिप्रिंट को बताया कि उनका अनुमान है कि इस समुदाय में राज्य की आबादी का लगभग 1.2 प्रतिशत हिस्सा है.

इस साल अप्रैल में, वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी सरकार ने आदिवासियों की लंबे समय से लंबित मांग को स्वीकार कर लिया और एक जिले का पुनर्गठन कर उसे अल्लूरी सीताराम राजू के नाम पर रखा.


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(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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