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Wednesday, 20 November, 2024
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पुरानी पेंशन योजना को वापस न लाना, HP विधानसभा चुनाव में बना BJP की हार का कारण – सुशील मोदी

दिल्ली में पीआरएस लेजिस्लेटिव के वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए, भाजपा के राज्यसभा सांसद और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम ने कहा कि, यह जनता ही हैं जिसे इस तरह की खैरात की कीमत चुकानी पढ़ती है.

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नई दिल्ली: बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और पार्टी नेता सुशील कुमार मोदी ने बुधवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को वापस नहीं लाई जिस कारण हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

दिल्ली में एक इंडिपेंडेंट लेजिस्लेटिव रिसर्च संस्थान, पीआरएस लेजिस्लेटिव के वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए, मोदी ने, यह कहकर अपनी टिप्पणी पर ज़ोर दिया कि यह जनता ही है जिसे अंततः इस तरह की खैरात की कीमत चुकानी पड़ती है.

भाजपा सांसद मोदी ने राज्यसभा में ‘स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंस’ सम्मेलन में बोलते हुए कहा, ‘क्योंकि हम पुरानी पेंशन योजना वापस नहीं लाए, कोई नयी घोषणा नहीं की और इसका परिणाम हमारे सामने है. हिमाचल प्रदेश में भाजपा को कीमत चुकानी पड़ी. अन्य कारण भी हो सकते हैं, लेकिन इस चुनाव में हार का मुख्य कारण पुरानी पेंशन योजना को वापस नहीं लाना ही हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि प्रतिस्पर्धी राजनीति में, ‘पार्टियां अधिक से अधिक लालच देने की कोशिश करती हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘एक 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा करता है, दूसरा 500 का वादा करेगा. जनता सोचती है कि इससे उन्हें ज्यादा फायदा होता है, लेकिन नुकसान भी उन्हें ही उठाना पड़ता है.’

यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब ‘रेवड़ी’ संस्कृति पर बहस जोर पकड़ रही है, यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस साल की शुरुआत में इस विषय पर सुनवाई शुरू कर दी है.

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के किए वादों में एक प्रमुख वादा, वन पेंशन स्कीम (ओपीएस) को वापस लाने का भी था.

इस योजना के तहत, कर्मचारी, पेंशन वाले, अपने अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत मासिक पेंशन के रूप में प्राप्त करते हैं. इसके अलावा महंगाई भत्ता या काम के पिछले 10 महीनों में उनकी औसत कमाई, जो सबसे ज्यादा हो वो भी उन्हें दिया जाता है. सरकारी नौकरी के प्रोत्साहन के रूप में भी सरकार द्वारा पेंशन दिया जाता है.

दिसंबर 2003 में वाजपेयी सरकार ने इस योजना को खत्म कर दिया था और अप्रैल 2004 में नई राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) लागू हुई थीं.

तुलनात्मक रूप से, एनपीएस एक स्वैच्छिक अंशदान पेंशन योजना है जिसके तहत खुद से जमा की गयी राशि पेंशन फंड में जमा होती है, और फंड मैनेजरों द्वारा अलग अलग पोर्टफोलियो, कॉर्पोरेट बिल और क्षेत्रों में इसे निवेश किया जाता है.

एनपीएस को पेंशन फंड रेगुलेटरी और विकास ऑथोरिटी (पीएफआरडीए) द्वारा नियंत्रित किया जाता है.


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जेनरैशनल कॉस्ट

मोदी और एन.के. सिंह 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष द्वारा बुधवार को इस सम्मेलन का संचालन किया गया.

तमिलनाडु के वित्त मंत्री पी. थियागा राजन भी सम्मेलन में बोलने वाले थे, लेकिन अन्य आधिकारिक जिम्मेदारियों के कारण शामिल नहीं हो सके.

पीआरएस लेजिस्लेटिव ने एक डॉक्यूमेंट भी पब्लिश किया था जिसमें बताया गया था कि कैसे ओपीएस वापस लाने पर इंटरजेनरेशनल कॉस्ट भी बढ़ेगी.

डॉक्यूमेंट में कहा गया कि, ‘कम समय के लिए पेंशन पर किये गए व्यय पर इस परिवर्तन का कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा.पेंशन का खर्च और भी कम हो सकता है, क्योंकि मौजूदा कर्मचारियों को सरकारी अंशदान का भुगतान करने की जरूरत नहीं है.’

‘हालांकि, एनपीएस के लागू होने के बाद ज्वाइन होने वाले कर्मचारी जब 2034 में रिटायर होने लगेंगे तब पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने का लाभ और अधिक स्पष्ट हो जाएगी. पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने से वर्तमान पीढ़ी के साथ साथ आने वाली पीढ़ियों को भी लाभ मिलने की उम्मीद हैं.’

पीआरएस लेजिस्लेटिव द्वारा साझा किए गए दस्तावेज़ में यह भी दिखाया गया है कि कैसे पेंशन और रिटायरमेंट लाभों पर खर्च ने राज्य सरकार की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ले लिया.

उदाहरण के लिए, 2022-23 में, हिमाचल प्रदेश ने अपने राजस्व का लगभग 21 प्रतिशत पेंशन और रिटायरमेंट लाभों पर खर्च किया – सभी राज्यों में सबसे अधिक – इसके बाद केरल (20 प्रतिशत) और तमिलनाडु (17 प्रतिशत) के स्थान पर आते हैं.

एन.के. सिंह ने कहा कि पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौटने का मतलब है ‘वर्तमान को ज्यादा लाभ देने की कीमत पर भविष्य को खराब करना’.

उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार में, यह अंतरपीढ़ी की पसंद है.’ ‘मुझे वास्तव में लगता है कि यह विश्वास का उल्लंघन भी है. नई पेंशन योजना बहुत विचार-विमर्श के बाद शुरू की गई थी, जिसे महत्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन और सुधारों के उपाय के रूप में राज्यों द्वारा सचेत रूप से अपनाया गया था.’

उन्होंने कहा कि यह एक ‘नैतिक विचार’ भी था.

उन्होंने कहा ‘2034 अभी दूर है, लेकिन आप युवा लोगों को देखिये। ‘क्या आपको सच में अपने वर्तमान को ज्यादा बेहतर बनाने की कीमत पर भविष्य पर बोझ डालना चाहिए?’

मोदी ने एक ‘सिंकिंग फंड’ का सुझाव दिया – ओपीएस के लिए एक अलग फंड जिसका उपयोग भविष्य में ऋण चुकाने के लिए किया जा सकता है – जिस पर सिंह सहमत थे कि पुरानी पेंशन योजना का चयन करना राज्यों के लिए एक उपयोगी तंत्र हो सकता है.

सिंह ने कहा, ‘जनरल सरकार (संघ और राज्यों) को व्यवस्थित तरीके से ऋण चुकाने के लिए के लिए सिंकिंग फंड की जरुरत है.’ ‘इस लिहाज से सुशील मोदी द्वारा दिए सुझाव पर विचार करना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद/संपादन: : अलमिना खातून)


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