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Sunday, 28 April, 2024
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51 गौ विश्वविद्यालय, पुरानी पेंशन योजना- 2023 के बजट में क्या चाहते हैं RSS के सहयोगी संगठन

संघ से जुड़े संगठनों की आगामी 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से पेश किए जाने वाले बजट से सबसे बड़ी अपेक्षा यही है कि कल्याणकारी योजनाएं शुरू की जाएं और ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा मिले.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध विभिन्न संगठन 2023-24 के बजट के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को अपनी विशलिस्ट पेश करने में पीछे नहीं रहे हैं. सीतारमण अगले साल 1 फरवरी को बजट पेश करेंगी.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, 51 काऊ-सेंट्रिक यूनिवर्सिटी स्थापित करना, पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन आय में मुद्रास्फीति के आधार पर वृद्धि, चीनी आयात को हतोत्साहित करने के उपाय, ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन आदि उन मांगों की एक बानगी भर है जो 21 से 28 नवंबर के बीच विभिन्न हितधारक समूहों के साथ बजट-पूर्व विचार-विमर्श के दौरान संघ परिवार से जुड़े संगठनों की तरफ से सीतारमण के समक्ष उठाई गईं.

यद्यपि आरएसएस सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वैचारिक स्रोत है, संगठन और उसके सहयोगी अक्सर ही सरकार की राजकोषीय नीतियों से पूरी तरह सहमत नहीं रहते हैं और कभी-कभी उन्हें पुनर्निर्धारित करने पर भी जोर देते हैं.

उदाहरण के तौर पर, आरएसएस ने पिछले साल बेरोजगारी संकट दूर करने, घरेलू उद्योगों को प्रोमोट करके आत्मनिर्भरता को बढ़ाने, और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर निर्भरता घटाने के उद्देश्यों से ‘भारतीय आर्थिक मॉडल’ पर एक प्रस्ताव पारित किया था.

इस प्रस्ताव के कुछ बिंदुओं को आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (श्रमिक संघ), भारतीय किसान संघ (किसानों के हितों का प्रतिनिधित्व करते वाला संगठन), और स्वदेशी जागरण मंच (जो आर्थिक आत्मनिर्भरता को प्रोमोट करता है) आदि संगठनों ने इसी माह सरकार के समक्ष पेश किया था.

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किसानों के कल्याण, ग्रामीण विकास पर जोर

22 नवंबर को कृषि संगठनों के साथ सीतारमण की परामर्श बैठक के दौरान भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने किसानों की मुश्किलें दूर करने और कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए अपनी मांगों की एक लंबी-चौड़ी सूची पेश की.

बैठक में मौजूद रहे बीकेएस के महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि संगठन ने यह बात उठाई कि किसान भोजन के उत्पादक हैं, लेकिन उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले कई इनपुट पर जीएसटी के तहत टैक्स लगता है. इसके अलावा, उन्हें कोई इनपुट टैक्स क्रेडिट भी नहीं मिल रहा.

मिश्रा ने कहा, ‘किसानों की आय कैसे बढ़ाई जा सकेगी जब हम उन्हें पेश आने वाली दिक्कतों को दूर नहीं करेंगे?’ साथ ही जोड़ा कि बीकेयू ने किसानों के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट और कृषि इनपुट के लिए जीएसटी हटाने जैसे प्रावधान करने की मांग की है.

मिश्रा ने आगे कहा कि इसके साथ ही सरकार को उर्वरक निर्माताओं के माध्यम से सब्सिडी देने के बजाये, उसे सीधे लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के तौर पर किसानों को देना चाहिए.

बीकेएस की तरफ से एक और मांग की गई कि पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को प्रतिवर्ष मिलने वाली 6,000 रुपये की न्यूनतम आय समर्थन को मुद्रास्फीति से जोड़ा जाना चाहिए और समय-समय पर इसे बढ़ाया जाना चाहिए.

मिश्रा ने कहा, ‘यह एक अत्यधिक लोकप्रिय योजना है, जिसे 2018-19 में शुरू किया गया था. तबसे, मुद्रास्फीति के कारण कृषि लागत में काफी वृद्धि हुई है. छोटे किसानों को तनाव से उबारने के लिए इसकी सीमा बढ़ाई जानी चाहिए.’

बीकेएस ने किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने की भी वकालत की है. साथ ही कहा है कि कार्ड धारकों को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के सर्टिफिकेट की अनिवार्यता के बिना ही माइक्रो-प्रोसेसिंग खाद्य इकाइयों को स्थापित करने का लाइसेंस दिया जाना चाहिए.

इस संदर्भ में मिश्रा का तर्क है, ‘एफएसएसएआई प्रमाणन हासिल करना एक लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है. सरकार के पास पहले से ही किसान क्रेडिट कार्ड धारकों का डेटा है और इसके आधार पर उन्हें उद्यमी बनने के लिए लाइसेंस दिया जाना चाहिए. यह रोजगार बढ़ाने में मदद करेगा.’

संघ के किसान संगठन ने इसके अलावा, जैविक खेती को बढ़ावा देने में मदद के लिए कुछ सुझाव दिए हैं. इसमें बताया गया है कि मोदी ने इसे आर्थिक सफलता का आधार बताया था.

इसके लिए, बीकेएस ने ‘गायों पर केंद्रित’ जैविक खेती को लेकर अनुसंधान और नॉलेज बढ़ाने के उद्देश्य से देशभर में 51 यूनिवर्सिटी स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है. मिश्रा ने दावा किया कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमशीलता की सुविधा को भी बढ़ावा मिलेगा.

इसके अलावा, बीकेएस ने ग्रामीण कृषि बाजारों (जीआरएएम) में 22,000 हाटों को विकसित करने की योजना में सुस्ती का मुद्दा भी उठाया. इस योजना की घोषणा दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में 2,000 करोड़ रुपये के बजट आवंटन के साथ की थी.

बीकेएस के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस आवंटन का अधिकांश हिस्सा खर्च नहीं हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने के लिए इस योजना को नए सिरे से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.


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पुरानी पेंशन योजना, वरिष्ठ नागरिकों की एफडी सीमा बढ़ाने की मांग

आरएसएस का श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) 28 नवंबर को ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों के साथ बजट पूर्व बैठक का हिस्सा था.

सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की वापसी बीएमएस की प्रमुख मांगों में से एक रही. गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने इसे अपने चुनावी वादों में शामिल कर रखा है.

ओपीएस को 2004 में समाप्त कर दिया गया था और इसे राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) में बदल दिया गया था, जिसके कारण कई आंदोलन हो चुके हैं क्योंकि नई योजना में कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ घटे हैं.

बीएमएस के महासचिव रवींद्र हिमते ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि संगठन ने नीतिगत ढांचे के माध्यम से सभी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम स्वास्थ्य कवर और पेंशन लाभ की भी मांग की है.

हिमते ने कहा, ‘ई-श्रम पोर्टल पर सरकार के पास असंगठित क्षेत्र के लगभग 28 करोड़ श्रमिकों का डेटा है…उनके लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए धन के आवंटन की आवश्यकता है. असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए उन्हें सबसे आखिर में मिलने वाले वेतन की 50 प्रतिशत पेंशन आवंटित की जा सकती है.

उनके मुताबिक, बजट का फोकस असंगठित क्षेत्र के लिए कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ गांव-आधारित, सूक्ष्म और लघु उद्योगों को बढ़ावा देने पर भी होना चाहिए.

बीएमएस ने यह भी दावा किया कि हालांकि केंद्र सरकार ने 2018 में आशा वर्कर (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन में वृद्धि की, लेकिन राज्यों की तरफ से इसका उचित ढंग से वितरण नहीं किया गया है. संगठन का कहना है कि ऐसा न करने वाले राज्यों को ‘चेताया’ किया जाना चाहिए.

आरएसएस के सहयोगी संगठन ने कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस-95) का मुद्दा भी उठाया, जिस पर उसने जनवरी में एक विरोध प्रदर्शन किया था. अपनी मांग दोहराते हुए बीएमएस ने कहा कि न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये प्रति माह की जानी चाहिए. साथ ही कहा, इससे सभी 70 लाख पात्र पेंशनभोगियों को लाभ होना चाहिए.

वरिष्ठ नागरिकों को लाभ पहुंचाने की वकालत करते हुए बीएमएस ने बुजुर्गों के लिए सावधि जमा योजना (एफडी) की सीमा 15 लाख से बढ़ाकर 30 लाख रुपये करने और रेलवे यात्रा रियायतों को बहाल करने की मांग रखी.

बीएमएस ने आगे यह प्रस्ताव भी दिया कि आयुष्मान भारत और पीएम-किसान सम्मान निधि जैसी सभी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लिए कानून लाया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी सरकार उन्हें बीच में ही बंद न कर सके.

स्वदेशी जागरण मंच का ‘आत्मनिर्भरता’ बढ़ाने पर जोर

घरेलू व्यापारियों और लघु उद्योगों के हितों को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे आरएसएस के एक अन्य सहयोगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने वित्त मंत्री से चीन से बुनियादी वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करने के लिए सीमा शुल्क बढ़ाने को कहा है. एसजेएम 28 नवंबर को अर्थशास्त्रियों के साथ सीतारमण की परामर्श बैठक का हिस्सा था.

सीतारमण ने बजट-2022 में खास तौर पर छतरियों और नकली आभूषणों सहित ऐसी कई वस्तुओं पर उच्च सीमा शुल्क की घोषणा की थी.

एसजेएम के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने दिप्रिंट को बताया कि निकाय ने इस बात पर जोर दिया कि बजट को ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण को लागू किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘लघु उद्योगों में विनिर्माण बढ़ाने और रोजगार पैदा करने के लिए चीनी आयात को हतोत्साहित करना जरूरी है. चीनी सामानों पर शुल्क बढ़ाया जाना चाहिए.’

स्वदेशी लॉबी ने यह प्रस्ताव भी रखा कि मत्स्य पालन, बागवानी और इससे संबद्ध सेवाओं जैसी गैर-फसल गतिविधियों के लिए अधिक बजटीय प्रावधान करके ग्रामीण क्षेत्र को राहत पहुंचाई जानी चाहिए.

महाजन ने कहा, ‘चूंकि ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी बहुत कम है, इसलिए गांवों से शहरों की ओर बहुत अधिक पलायन होता है. हमें ग्रामीण भारत में रोजगार सृजित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगे.’

उन्होंने बताया कि सीतारमण को दिया गया एक और सुझाव यह था कि कॉरपोरेट क्षेत्र की तरफ से अनुसंधान और विकास पर खर्च के लिए एक अनिवार्य आउटले की व्यवस्था की जाए. महाजन ने कहा, इसे देश के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) कानून की तरह लागू किया जा सकता है, जिसके तहत एक निश्चित राशि से अधिक कमाने वाली कंपनियों के लिए अपने मुनाफे का एक हिस्सा सामाजिक कल्याण पर खर्च करना होता है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा करने से देश में अनुसंधान-आधारित माहौल बनाने की रूपरेखा तैयार होगी.’

‘सेमीफाइनल बजट’

यद्यपि ऐसा लगता है कि भारत महामारी से संबंधित सबसे खराब आर्थिक झटकों से उबरने लगा है लेकिन विकास अब भी कोविड-पूर्व स्तर तक नहीं पहुंच पाया है, जिससे आय और रोजगार को लेकर दृष्टिकोण कुछ हद तक निराशाजनक है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंदी, रूस-यूक्रेन युद्ध, और कर रियायतों के लिए बहुत कम विकल्प होने के बीच सीतारमण को अगले बजट में राजकोषीय खर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच अनिश्चित संतुलन को साधना होगा. साथ ही कर्नाटक, तेलंगाना और हिंदी बेल्ट वाले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में होने वाले चुनावों को भी ध्यान में रखना होगा.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि सरकार अपने सामने मौजूद चुनौतियों से वाकिफ है.

उन्होंने कहा, ‘अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए खर्च बेहद अहम होगा और रोजगार एक ऐसी चुनौती है जिस पर आगामी बजट में विशेष तौर पर ध्यान देने की जरूरत होगी. इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं को (रोजगार मेला योजना के तहत) 71,000 नियुक्ति पत्र वितरित किए…यह बताता है कि सरकार इस समस्या से अवगत है.’

एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि चुनावी राज्यों में महंगाई और बेरोजगारी दोनों ही बड़े मुद्दे बन सकते हैं. उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि 543 लोकसभा सीटों में से 116 ऐसे राज्यों से आती हैं जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं और कहा कहा, ‘पार्टी को यह देखना होगा कि इन प्रमुख राज्यों में रोजगार और बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए बजट आवंटन कैसे किया जा सकता है.’ साथ ही जोड़ा, ‘2024 के आम चुनाव से पहले यह एक सेमी-फाइनल बजट होगा.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)


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