पटना: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय शिक्षा मंत्री और भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान ने गुरुवार को पटना में हुई एक बैठक के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह आश्वासन दिया कि वह 2025 तक राज्य के मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे और भाजपा बिहार एनडीए के वर्तमान ढांचे को बिगाड़ने के लिए कुछ भी नहीं करेगी. कुमार की पार्टी – जनता दल (यूनाइटेड) या जद (यू) – भाजपा की गठबंधन सहयोगी है और उस एनडीए का हिस्सा है, जो वर्तमान में बिहार में सत्ता में है.
माना जाता है कि केंद्रीय मंत्री प्रधान ने बिहार के मुख्यमंत्री को आश्वासन दिया है कि कुमार के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ सार्वजनिक बयान देने वाले बिहार भाजपा के किसी भी नेता को केंद्रीय नेतृत्व द्वारा फटकार लगाई जाएगी. भाजपा के सूत्रों का कहना है कि प्रधान और कुमार ने बिहार सरकार में भाजपा के मंत्रियों के संभावित फेरबदल के बारे में भी बातें की और साथ ही देश के आगामी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों पर चर्चा की.
भाजपा सूत्रों के अनुसार, प्रधान ने कुमार को यह भी आश्वासन दिया कि आगे चलकर, वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व और बिहार के मुख्यमंत्री के बीच की कड़ी वाले व्यक्ति होंगे –यह एक ऐसी भूमिका है जो पहले दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली द्वारा निभाई जाती थी और जिनके साथ नीतीश कुमार एक करीबी रिश्ता रखते थे.
भाजपा के एक विधायक के अनुसार, प्रधान का गुरुवार शाम का बिहार दौरा और कुमार के साथ दो घंटे की बंद कमरे में हुई उनकी बैठक – जिसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री उन्हें पास के राज्य अतिथि के पास तक छोड़ने गए – ने राज्य के कई भाजपा नेताओं को आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि उनमें से अधिकांश इसके बारे में अंधेरे में थे.
केंद्रीय मंत्री का यह दौरा पिछले महीने हुए बिहार विधान परिषद चुनाव के परिणाम (जिसमें एनडीए ने तो 24 में से 13 सीटें जीती थीं, लेकिन विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद)) ने अकेले जेडी-यू से अधिक सीटें जीतीं थीं) और बोचहां विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच चिंता बढ़ा गया.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘यह धारणा चली गई है कि भाजपा के मूल मतदाता उससे नाराज हैं जिसकी वजह से पार्टी को बोचहां में हार का सामना करना पड़ा. भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इससे काफी चिंतित है और उसने नुकसान कम करने की कवायद की है.‘
भाजपा और जद(यू) के बीच के संबंध भी पिछले महीनों में तेजी से तनावपूर्ण हुए हैं. एक ओर जहां राज्य में भाजपा नेताओं द्वारा नीतीश कुमार सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने की घटनाएं हुई हैं, जैसे कि शराबबंदी कानून पर, वहीं जद(यू) भी स्वतंत्रता सेनानी कुंवर सिंह द्वारा 1857 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के दौरान अंग्रेजों से किला जगदीशपुर पर कब्जा करने की यादगार में पिछले महीने मनाये गए भव्य उत्सव की तैयारी का हिस्सा नहीं रही थी.
पिछले महीने से राजद के साथ कुमार के संभावित पुनर्मिलन के बारे में भी अटकलें लगाई गई हैं, खास तौर पर राजद नेता तेजस्वी यादव द्वारा आयोजित एक इफ्तार पार्टी में बिहार के मुख्यमंत्री की उपस्थिति के बाद से. ऐसी भी अफवाहें हैं कि कुमार नई दिल्ली चले जाएंगे और भाजपा बिहार में अपने खुद के नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी.
बिहार में इथेनॉल उत्पादन कारखाने के उद्घाटन के बहाने बिहार के मुख्यमंत्री पिछले हफ्ते नई दिल्ली में मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे. कुमार पटना स्थित आधिकारिक मुख्यमंत्री के आवास से भी बाहर चले गए हैं – उन्होंने कथित तौर पर उस आवास के रखरखाव के काम के कारण ऐसा किया है.
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कुमार और उनके भाजपाई ‘मित्र’
बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को उस पद से हटाकर 2020 में राज्यसभा सदस्य बनाए जाने के बाद से ही नीतीश कुमार के भाजपा के साथ संबंध खराब से हो गए हैं.
बिहार के वर्तमान भाजपा नेतृत्व को व्यापक रूप से केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का समर्थन माना जाता है, जिनके साथ कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद से सीट बंटवारे पर मतभेदों के कारण असहज संबंध साझा किए हैं.
जदयू को इस बात का पूरा-पूरा विश्वास है कि यादव ने लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को 2020 के विधानसभा चुनावों में जद(यू) उम्मीदवारों के खिलाफ स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने में मदद की, जिसके परिणामस्वरूप राजग समर्थक वोटों का विभाजन हुआ.
सूत्रों के अनुसार, हाल-फिलहाल में कुमार का मानना रहा है कि यादव अपने ‘चेले’ नित्यानंद राय को ‘प्रतीक्षारत मुख्यमंत्री’(सीएम-इन-वेटिंग) के रूप में प्रचारित कर रहे हैं, और इस प्रकार राज्य में उनके प्रभाव को कम कर रहे हैं.
कुमार की पार्टी जद(यू) के एक मंत्री ने कहा, ‘नीतीश जी इतने गुस्से में हैं कि उन्होंने यादव का फोन तक लेने से इनकार कर दिया था. भूपेंद्र यादव के नेतृत्व में नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ सार्वजनिक बयान देने वाले भाजपा नेताओं की कभी खिंचाई नहीं की गई.’
राजनीतिक गलियारों के सूत्रों के अनुसार, कुमार भाजपा नेता स्वर्गीय अरुण जेटली को बेहद याद करते हैं, जिनके बारे में यह माना जाता है कि उन्होंने 2005 के विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में एनडीए के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में कुमार को पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
सूत्रों का कहना है कि ये जेटली ही थे जिन्होंने कुमार को जद(यू)-भाजपा गठबंधन में टूट के बाद साल 2017 में एनडीए में वापस लौटने के लिए मना लिया था. सूत्रों ने यह भी कहा कि दोनों नेताओं के बीच के संबंध पार्टी की सीमा रेखाओं से परे इस हद तक थे कि 2015 से 2017 के बीच कांग्रेस और राजद के साथ ‘महागठबंधन’ का हिस्सा होने पर भी बिहार के मुख्यमंत्री दिल्ली में रहने पर जेटली से मिलते रहते थे.
अगस्त 2019 में जेटली की मृत्यु के बाद, कुमार ने पटना में अपने दिवंगत मित्र की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित करवाई थी.
अब प्रधान – जो 2010 में पार्टी के बिहार प्रभारी थे और जिनके कुमार के साथ अच्छे संबंध रहे हैं – ने बिहार के मुख्यमंत्री को आश्वासन दिया है कि वह जेटली द्वारा पीछे छोड़े गए शून्य को भर देंगे.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘भाजपा को 2024 तक नीतीश कुमार की जरूरत है और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने सोचा कि गठबंधन के टूटने के कगार तक पहुंचने से पहले सुलह-सफाई का यही समय है. इसलिए उन्होंने (भूपेंद्र) यादव को नजरअंदाज करते हुए और प्रधान को भेजा, जिनके नीतीश के साथ व्यावहारिक संबंध हैं- भले ही यह स्वर्गीय अरुण जेटली के समान स्तर का नहीं है.‘
जद(यू) के एक नेता ने याद करते हुए कहा कि ‘प्रधान ने राज्य के भाजपा नेताओं को कभी भी नीतीश कुमार को नीचा दिखाने की अनुमति नहीं दी’.
‘अंधेरे में रखा गया’
इस बीच, प्रधान के गुरुवार को हुए पटना दौरे ने राज्य भाजपा इकाई में कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया.
भाजपा विधायक हरि भूषण ठाकुर (बचौल) ने शुक्रवार को दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे तो इसके बारे में आधी रात को पता चला.’
एक अन्य भाजपा विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू ने कहा कि उन्हें केंद्रीय मंत्री के दौरे के बारे में अगली सुबह समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला.
एक अन्य भाजपा विधायक ने दावा किया कि यहां तक कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल को भी शुक्रवार की सुबह प्रधान को विदा करने के लिए हवाई अड्डे तक दौड़ लगानी पड़ी, क्योंकि उन्हें इस केंद्रीय नेता के दौरे की कोई पूर्व जानकारी नहीं थी.
नितिन नवीन सिन्हा सहित भाजपा के कुछ मंत्रियों ने स्वीकार किया कि हालांकि उन्हें इस यात्रा के बारे में पता तो था, मगर उन्होंने कहा कि प्रधान और कुमार के बीच बैठक तक उनकी भी पहुंच नहीं थी और जो कुछ हुआ उसके बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था.
बिहार भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने याद करते हुए कहा, ‘प्रधान के भाजपा और जद(यू) दोनों के बिहार स्तरीय नेताओं के साथ बहुत पुराने संबंध हैं. जब प्रधान 2010 में भाजपा के बिहार प्रभारी थे, तब एनडीए ने 243 विधानसभा सीटों में से 206 पर जीत हासिल की थी. जद(यू) और भाजपा के बीच तालमेल इतना बेहतरीन था कि (उस समय) दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच अंतर करना मुश्किल था.’
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