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Thursday, 18 April, 2024
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RJD की इफ्तार में CM नीतीश के जाने के क्या हैं राजनीतिक संकेत, BJP बोली- इसमें कोई खास बात नहीं

बिहार के मुख्यमंत्री, जिनके अपने सहयोगी दल भाजपा संग रिश्ते असहज बने हुए हैं, शुक्रवार को तेजस्वी यादव की पार्टी में नज़र आए. नीतीश कुमार आखिरी बार 2016 में राजद नेता की तरफ से आयोजित इफ्तार पार्टी में शामिल हुए थे, जब राजद और जदयू के बीच गठबंधन था.

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पटना: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को अपनी मां और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया और इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अध्यक्ष चिराग पासवान का हिस्सा लेना भाजपा के लिए एक सियासी संदेश माना जा रहा है.

नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) भाजपा की गठबंधन सहयोगी है और दोनों दलों के बीच पिछले कुछ महीनों में संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं. भाजपा ने नीतीश को पूर्व सहयोगी और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी को अपनी कैबिनेट से हटाने के लिए बाध्य कर दिया था और इसके बाद इसी महीने हुए बोचहां विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद सत्तारूढ़ एनडीए के भीतर टकराव तेज हो गया है. रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान भी भाजपा के पूर्व सहयोगी रहे हैं.

नीतीश आखिरी बार 2016 में राजद नेता की तरफ से आयोजित इफ्तार पार्टी में शामिल हुए थे, जब राजद और जदयू बिहार में ‘महागठबंधन’ सरकार का हिस्सा थे. तब पार्टी की मेजबानी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद यादव ने की थी.

शनिवार को एक न्यूज एजेंसी ने तेजस्वी के भाई और लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को यह कहते उद्धृत किया कि उन्होंने पार्टी के दौरान नीतीश कुमार के साथ ‘सीक्रेट बातचीत’ की थी.

हालांकि, भाजपा और जदयू दोनों ने नीतीश कुमार के तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में शामिल होने को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी है.

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सियासी निहितार्थ

बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को उपमुख्यमंत्री पद से हटाए जाने और 2020 में राज्य सभा भेजे जाने के बाद से भाजपा के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ संबंध असहज बने हुए हैं.

वहीं, कभी बिहार में भाजपा के निर्विवाद नेता रहे सुशील मोदी ने भी तबसे राज्य के राजनीतिक मामलों पर चुप्पी साध ली है.

हालांकि, इस हफ्ते के शुरू में मोदी ने बिहार पर अपनी लंबी चुप्पी तोड़ी और वो भी बोचहां उपचुनावों में राजद के हाथों पार्टी की हार पर चिंता जताने के लिए.

मोदी ने कहा, ‘इतने सारे मंत्री और पार्टी विधायक बोचहां में डेरा डाले रहे और हर पंचायत तक गए. फिर भी हमें भारी अंतर से हार का सामना करना पड़ा. चिंताजनक बात तो यह है कि हमारे समर्थक रहे पिछड़ी जातियों और सवर्णों के एक वर्ग ने हमारे खिलाफ मतदान किया. भाजपा को नुकसान की समीक्षा करने और सुधार के लिए उपयुक्त कदम उठाने की जरूरत है.’

लेकिन बिहार का मौजूदा भाजपा नेतृत्व, जिन्हें खास तौर पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का समर्थन माना जाता है, मोदी के दावों का खंडन करने के लिए तैयार है.

बिहार के भाजपा प्रमुख संजय जायसवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम पहले ही बोचहां में हार की समीक्षा कर चुके हैं. भाजपा प्रत्याशी को बुलाया गया और हमने गहन चर्चा की.’

हालांकि, कई स्थानीय भाजपा और जदयू सदस्य मोदी के सुर में सुर मिला रहे हैं.

नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘मोदीजी ने सही मायने में पार्टी की कमियां उजागर की हैं, जिससे केंद्रीय नेतृत्व अनजान है. 1996 से हमें जो जातिगत समर्थन मिलता रहा है, वो अब बिखरने लगा है. कभी लालू के खिलाफ सड़कों पर उतरने वाले सवर्ण भूमिहार हमारे कोर वोटर थे और इस बार (उपचुनाव में) उन्होंने राजद को वोट दिया है. हमने मछुआरा समुदाय के नेता मुकेश साहनी के साथ जिस तरह का व्यवहार किया, उससे यह समुदाय भी हमसे नाराज है. जबकि इसे टाला जा सकता था.’

उन्होंने कहा, ‘पासवान समुदाय का भी भाजपा से मोहभंग हो गया है क्योंकि हमने चिराग पासवान को प्रतीक्षा सूची में डाल रखा है. वे चिराग को ही रामविलास पासवान का उत्तराधिकारी मानते हैं, न कि उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को. दूसरी ओर, हम अपने वोट बैंक में एक भी जाति नहीं जोड़ सके हैं.’

नीतीश कुमार के करीबी सहयोगी और जदयू के मंत्री संजय झा भी सुशील मोदी के बयान को प्रासंगिक मानते हैं. उन्होंने कहा, ‘सुशील मोदी एक अनुभवी राजनेता हैं. बहुत कम नेता बिहार को उनसे बेहतर जानते हैं और उनका हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ लंबा जुड़ाव रहा है.’


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पार्टियों की राजनीति

इस सबके बीच, भाजपा के साथ पहले से ही असहज रहे नीतीश कुमार के रिश्ते हाल के महीनों में और बिगड़े ही हैं. पिछले महीने तो बिहार में विधानसभा के भीतर ही मुख्यमंत्री की स्पीकर और भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा के बीच तकरार हो गई थी.

जदयू इस बार स्वतंत्रता सेनानी कुंवर सिंह द्वारा 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जगदीशपुर किले को अंग्रेजों से मुक्त कराने की वर्षगांठ के मौके पर आयोजित भव्य उत्सव की तैयारी का हिस्सा नहीं रहा.

कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री राज्य को भाजपा के हाथों में सौंपकर सम्मानजनक तरीके से दिल्ली आने का रास्ता खोजने में जुटे हैं.

जदयू के एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अगर ऐसा होता है तो नीतीश ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पुराने सहयोगी सुशील कुमार मोदी को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलना पसंद करेंगे.’

ऐसे में, नीतीश कुमार का तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में शामिल होना राजनीतिक तौर पर और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, भले ही भाजपा और जदयू यह क्यों न कहते रहें कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है.

बिहार भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा, ‘इसका कोई खास महत्व नहीं है. सामाजिक आयोजनों के राजनीतिक निहितार्थ निकालना गलत है. नीतीश फिर कभी राजद के साथ नहीं जाएंगे. उन्होंने एक बार साथ आकर देख लिया है और पाया है कि वह उनके साथ नहीं चल सकते.’

बिहार के डिप्टी स्पीकर और जदयू नेता महेश्वर हजारी ने कहा, ‘इफ्तार एक ऐसा अवसर है जब राजनीतिक मतभेद भुला दिए जाते हैं. कोई भी देख सकता है कि कैसे कट्टर सियासी प्रतिद्वंद्वी भी साथ आ जाते हैं.’ उनका इशारा तेजस्वी की पार्टी में भाजपा के मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन की मौजूदगी की ओर था.

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक याद दिलाते हैं कि नीतीश कुमार पहली बार 2013 में लालू के घर इफ्तार में शामिल हुए थे और उसके बाद ही 2015 में हुए जदयू-राजद गठबंधन की नींव पड़ी थी.

ऊपर उद्धृत जदयू के मंत्री ने कहा कि फिलहाल तो तेजस्वी की इफ्तार पार्टी में शामिल होकर नीतीश कुमार ने भाजपा को यह संदेश दे दिया है कि उनके पास विकल्पों की कमी नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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