नई दिल्ली: दिल्ली में कोविड-19 की स्थिति को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) और भाजपा के बीच राजनीतिक घमासान जारी रहने के दौरान ही प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की तरफ से की गई एक समीक्षा बैठक में डेली टेस्टिंग के आंकड़ों में लगातार कमी आने, ऑक्सीजन खरीद में असमर्थता और इसका समान वितरण सुनिश्चित न कर पाने को लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार की खिंचाई की गई है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने भी मंगलवार को ऑक्सीजन सिलेंडर और प्रमुख दवाओं की कालाबाजारी रोकने में ‘नाकाम’ रहने को लेकर आप सरकार की आलोचना की थी और यहां तक कहा था कि अगर राज्य स्थिति को संभाल नहीं पाया तो केंद्र सरकार से गैस रीफिलर यूनिट का नियंत्रण अपने हाथ में लेने को कहा जाएगा.
सोमवार को समीक्षा बैठक के दौरान मामलों में जबर्दस्त उछाल के बीच छतरपुर और दिल्ली छावनी जैसे इलाकों में कोविड-19 स्वास्थ्य देखभाल केंद्र फिर से शुरू करने में देरी के लिए दिल्ली सरकार की निंदा की गई, और पूछा गया था कि क्या टेस्टिंग के आंकड़ों में गिरावट टेस्टिंग किट की कमी की वजह से आ रही है.
बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा ने की और इसमें कुछ समय के लिए दिल्ली के मुख्य सचिव विजय देव (बाद में वह दिल्ली हाई कोर्ट रवाना हो गए थे) भी मौजूद रहे.
बैठक में मौजूद रहे सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार ने टेस्टिंग में गिरावट के लिए टेस्टिंग नतीजे आने में होने वाली देरी का हवाला दिया. दिल्ली, जहां एक दिन में 90,000 से एक लाख के बीच लोगों का टेस्ट हो रहा था, में अब यह आंकड़ा 70,000 से 75,000 के बीच ही रह गया है, जबकि पॉजिटिविटी रेट अब भी 30 प्रतिशत से अधिक बना हुआ है.
बैठक में मौजूद रहे एक अधिकारी ने बताया, ‘सरकार से पूछा गया था कि क्या किट की कमी है. उन्होंने कहा कि टेस्ट नतीजों में देरी की वजह से ऐसा हो रहा है, जिससे बात नहीं बनी. पीएमओ बार-बार लोगों की तरफ से टेस्ट न करा पाने को लेकर उठाई जा रही आवाज से नाखुश था और अधिकारियों ने बताया कि देरी के कारण टेस्ट के नतीजे अटक सकते हैं, लेकिन टेस्ट की वास्तविक संख्या पर असर नहीं पड़ सकता.’
26 अप्रैल को कुल टेस्टिंग का आंकड़ा गिरकर 57,690 के स्तर तक पहुंच गया था.
दिल्ली सरकार की इस बात के लिए भी आलोचना की गई कि उसने ‘अपनी ऑक्सीजन की जरूरत को बढ़ा-चढ़ाकर बताया और ऑर्डर ऐसा दिया जिससे केवल 17 अस्पतालों को ऑक्सीजन मिलेगी और 28 अन्य को नहीं.’
सूत्रों ने बताया कि कैबिनेट सचिव राजीव गौबा, जो खुद भी बैठक में मौजूद थे, ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूट आशीष वर्मा से इस तरह के ऑर्डर के औचित्य पर सवाल पूछा. गौबा को बताया गया कि ऑक्सीजन सिलेंडर का इस्तेमाल करने वाले अस्पतालों को छोड़ दिया गया है, जो कि सूत्रों ने बताया कि कैबिनेट सचिव को संतुष्ट नहीं कर पाया.
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‘ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ा-चढ़ाकर बताई’
बैठक में शामिल अन्य लोगों में गृह सचिव अजय भल्ला, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सुनीत शर्मा, स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव गिरिधर अरमाने शामिल थे.
दिल्ली सरकार से 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग किए जाने के बारे में जवाब मांगा गया.
बैठक में मौजूद रहे एक अधिकारी ने बताया, ‘भारत सरकार के अधिकारियों ने इस और ध्यान आकृष्ट किया कि पिछली बार नवंबर में मामलों में उछाल के समय दिल्ली को 150 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी थी. अब यह 490 मीट्रिक टन हो गई है, जो दोगुने से अधिक है. इससे टैंकरों की कमी और ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्ट के लिए समय पर रेलवे से संपर्क करने में नाकाम रहने के बारे में भी पूछा गया.’
शर्मा ने जवाब दिया कि दिल्ली सरकार ने इस पर भारतीय रेलवे से बात नहीं की थी. राज्य सरकार की इस बात के लिए भी आलोचना की गई कि उसने रविवार को सिर्फ 335 मीट्रिक टन की खरीद की—जो कि पिछले कुछ दिनों से उसकी तरफ से की जा रही 370-380 मीट्रिक टन से काफी कम है. सरकार ने केंद्र से कहा कि उन्होंने ऑक्सीजन टैंकरों के लिए विज्ञापन जारी किए हैं.
दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने पीएमओ को बताया कि ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों से ट्रांसपोर्ट करना काफी जटिल काम है और साथ ही राजस्थान पर दिल्ली के लिए निर्धारित आपूर्ति को ले लेने का आरोप भी लगाया.
सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय अधिकारियों ने जवाब दिया कि ऑक्सीजन उत्पादक पूर्व राज्यों से काफी दूर स्थित होने वाले राजस्थान को गैस का आवंटन दिल्ली से पहले किया गया था लेकिन उसने अपने हिस्से की पूरी खपत नहीं की ही.
दिल्ली सरकार से खाली बेड की स्थिति के बारे में भी पूछताछ की गई जो कि वेबसाइट तब भी खाली दिखाती है जब लोगों को बेड पाने के लिए इधर-उधर मारामारी करनी पड़ रही होती है.
अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि जिन लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं है, वे बेड पर कब्जा न जमाए रहें, क्योंकि इससे कई लोगों की जान बच सकती है.
उन्हें बताया गया कि ‘ऐसे लोगों को कोविड केयर सेंटर में जाना चाहिए.’ सरकार से यह भी पूछा गया कि जब इस तरह के संकेत साफ थे कि मामलों में उछाल आ रहा है तो छतरपुर केंद्र को फिर से शुरू करने में इतना लंबा समय क्यों लगाया गया. बचाव में दिल्ली सरकार का कहना था कि मामलों में वृद्धि से अचानक हुई थी.
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