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Tuesday, 12 November, 2024
होमराजनीतिदो ‘बाहरी’ बनाम तेलंगाना की बहू — जेल में बंद ‘गैंगस्टर’ धनंजय सिंह कैसे बुन रहे हैं जौनपुर चुनाव की कथा

दो ‘बाहरी’ बनाम तेलंगाना की बहू — जेल में बंद ‘गैंगस्टर’ धनंजय सिंह कैसे बुन रहे हैं जौनपुर चुनाव की कथा

‘प्रिय’ बाहुबली धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला सिंह, सद्भावना और ठाकुर वोटों पर भरोसा करते हुए बसपा के टिकट पर जौनपुर चुनाव लड़ रही हैं. ‘वे अपने आप में एक पार्टी हैं’.

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जौनपुर: सुबह ठीक 8:30 बजे, घूंघट पहने हुए श्रीकला धनंजय सिंह अपने तीन मंजिला बंगले के ड्राइंग रूम (बाहर से आने वाले लोगों के लिए बने बैठक कक्ष) की सीढ़ियों से उतरती हैं और उनकी काली और सफेद साड़ी से उनके जूते बाहर झांक रहे हैं. लगभग एक दर्जन लोग आंगन में अपनी “भाभी” का इंतज़ार कर रहे हैं. जैसे ही गेट खुलता है, एक महिला फूट-फूट कर रोने लगती है और श्रीकला के पैरों में गिर जाती है.

श्रीकला, जो तेलंगाना के एक धनी व्यवसाय-सह-राजनीतिक परिवार से आती हैं, महिला को टूटी-फूटी हिंदी में बताती हैं, “आचार संहिता हटते ही मैं मामला सुलझा दूंगी, क्या तुम्हें अपनी भाभी पर भरोसा नहीं है? अगर मैंने अब कुछ किया तो वे मुझे भी जेल में डाल देंगे.”

गैंगस्टर-नेता धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला उत्तर प्रदेश के जौनपुर लोकसभा क्षेत्र से उनके स्थान पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर मौजूदा लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं.

निर्वाचन क्षेत्र के बड़े ठाकुर समुदाय के बीच अपने प्रभाव के कारण भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए खतरे के रूप में देखे जाने वाले धनंजय को पिछले महीने गिरफ्तार किया गया था जब एक जिला अदालत ने उन्हें अपहरण, जबरन वसूली और आपराधिक साजिश से जुड़े 2020 के मामले में दोषी पाया था — कुछ दिनों बाद उन्होंने घोषणा की कि वह लोकसभा चुनाव लड़ेंगे.

हालांकि, अब एक छद्म लड़ाई शुरू हो गई है, जिसमें बसपा ने जौनपुर की मौजूदा जिला परिषद अध्यक्ष श्रीकला को निर्वाचन क्षेत्र के लिए अचानक से अपनी उम्मीदवार घोषित किया है, जहां 25 मई को छठे चरण में मतदान होगा.

उनके चुनाव में उतरने की घोषणा धूमधाम से की गई. बसपा द्वारा औपचारिक रूप से उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित करने के दो दिन बाद, श्रीकला सौ से अधिक एसयूवी — चमकदार काली फॉर्च्यूनर, स्कॉर्पियो और थार — के काफिले के साथ निर्वाचन क्षेत्र में घूमीं और सनरूफ पर बसपा के झंडे लहरा रहे थे.

रातों-रात, जौनपुर में चुनाव — जो अब तक भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच सीधा मुकाबला था — त्रिकोणीय हो गया. संदेश जोरदार और स्पष्ट था: सिंह भले ही जेल में हों, लेकिन देश के इस हिस्से में उनका अब भी दबदबा है.


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‘हर घर से धनंजय लड़ेंगे’

गुरुवार की सुबह चिलचिलाती गर्मी में जब श्रीकला अपना अभियान शुरू कर रही थीं, तब एक दलित बहुल गांव में आंबेडकर की मूर्ति के सामने कुछ लोगों की भीड़ जमा हो गई. वे उनसे पूछती हैं, “सब लोग ठीक बा? आशीर्वाद देबो?”

श्रीकला को इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि उनकी लड़ाई धनंजय की लड़ाई है.

वे भीड़ से नरम, गैर-राजनेता जैसी आवाज़ में कहती हैं, “मेरी हिंदी टूटी हो सकती है, लेकिन मेरी भावनाएं आपके भैया (धनंजय सिंह) जैसी ही हैं. वो यह चुनाव लड़ते, लेकिन जो दुष्ट लोग उनसे डरते हैं, उन्होंने उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया है.” वे भीड़ के सिर हिलाते हुए पूछती हैं, “अब हर घर से धनंजय लड़ेंगे…समझ आ रहा है?”

जौनपुर से बसपा प्रत्याशी श्रीकला सिंह. वे इस बात पर संशय छोड़ रही है कि उन्हें दिया गया वोट धनंजय सिंह को दिया गया वोट है | फोटो: सान्या ढींगरा/दिप्रिंट

वे दिप्रिंट को बताती हैं, “उनका काम यहां मायने रखता है. वे इन लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहे हैं — वे कभी किसी से उनकी जाति या धर्म नहीं पूछते, केवल उनकी मदद करते हैं. यह उनके लिए निश्चित रूप से जीतने वाली सीट थी और वे (भाजपा) डर गए थे, इसलिए उन्होंने उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से 70 किलोमीटर से भी कम दूर, जौनपुर में धनंजय सिंह एक पौराणिक व्यक्ति हैं.

यहां के गरीबों के लिए गैंगस्टर, माफिया, बाहुबली जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं है. इसके बजाय, उनके दिमाग में धनंजय न्याय, परोपकार और एक ऐसे व्यक्ति की महत्वाकांक्षा के ऊंचे आदर्शों का प्रतीक है जो अपने लोगों के लिए राज्य में खड़ा हो सकता है.

जौनपुर में किराने की दुकान चलाने वाले 83-वर्षीय लाल चंद कुमार ने कहा, “धनंजय सिंह केवल उन लोगों के लिए माफिया हैं जो संदिग्ध तरीकों से पैसा कमाते हैं…उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी गरीब व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया है. शादी है तो घी, तेल, राशन सब भेजा है. वे कभी भी किसी गरीब व्यक्ति को मदद के बिना नहीं जाने देते.”

जौनपुर निवासी लाल चंद कुमार ने धनंजय सिंह की जमकर की तारीफ | फोटो: सान्या ढींगरा/दिप्रिंट

जौनपुर के पूर्व सांसद भले ही मैदान में नहीं हैं, लेकिन कुमार का कहना है कि उनका वोट “निश्चित रूप से” धनंजय को जाएगा.

यहां तक ​​कि भाजपा नेता भी जनता के बीच धनंजय की “सद्भावना” को स्वीकार करते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने कहा, “वे एक ज़मीनी स्तर के नेता हैं. वे हर समय जौनपुर के लोगों के साथ रहते हैं. कोई सम्मान का भूखा हो या पैसे का, उनके दरवाजे से निराश नहीं लौटता. तो, निःसंदेह, लोग उन्हें ही वोट देंगे.”

हालांकि, श्रीकला चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन ज़मीन पर अधिकांश लोग — राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और समर्थक दोनों — धनंजय को “उम्मीदवार” मानते हैं.

एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अभी भी जेल से शो चला रहे हैं.

पत्रकार ने कहा, “वो हर चीज़ को कंट्रोल कर रहे हैं — किससे मिलना है, किसे पैसा देना है, क्या कहना है, सब कुछ. वे अपने आप में एक दल हैं. किसी भी अन्य पार्टी की तरह, उनके पास चुनाव प्रबंधक, बूथ-स्तरीय कार्यकर्ता, एक चुनाव कोर समिति है…एक मशीनरी है और उनके पास अपने हज़ारों कार्यकर्ता हैं.”

पिछले शनिवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने धनंजय को जौनपुर की जेल से बरेली की जेल में स्थानांतरित कर दिया. ऐसा तब हुआ जब एक विधायक ने कथित तौर पर सरकार से शिकायत की कि धनंजय जेल से लोगों पर चुनाव में श्रीकला का समर्थन करने के लिए दबाव डाल रहे थे.

हालांकि, इसके तुरंत बाद, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धनंजय को ज़मानत दे दी, जिसका मतलब है कि उनके जल्द ही अभियान में शारीरिक रूप से उपस्थित होने की संभावना है.

अपराध, व्यापार, राजनीति

कई बाहुबलियों की तरह, धनंजय सिंह की सार्वजनिक सद्भावना अपराध के इतिहास से जुड़ी हुई है, जो 1990 के दशक की शुरुआत में लखनऊ यूनिवर्सिटी में उनके छात्र जीवन के दिनों से जुड़ी है.

पिछले 30 साल में उन पर 46 मामले दर्ज किए गए, जिनमें हत्या का प्रयास, आपराधिक धमकी से लेकर जबरन वसूली और दंगे तक शामिल हैं.

जौनपुर के वरिष्ठ पत्रकार कपिल देव मौर्य ने कहा, “कॉलेज के दिनों में ही वे अपराधी बन गए थे. हत्या का पहला मामला 1992 में आया. शुरू से ही यह अपराध और राजनीतिक सक्रियता का मिश्रण था क्योंकि यही वो समय था जब वे मंडल विरोधी प्रदर्शनों में भी बहुत सक्रिय हो गए थे.”

इन्हीं वर्षों के दौरान धनंजय की दोस्ती अयोध्या के अभय सिंह जैसे अन्य उभरते गैंगस्टरों से हुई. मौर्य ने कहा, “उन दिनों वे यूनिवर्सिटी में एक गिरोह की तरह थे.”

धनंजय सिंह | फोटो: फेसबुक/@Dhananjay Singh

लेकिन 1998 में धनंजय पहली बार पुलिस और मौत दोनों को चुनौती देते हुए जौनपुर में एक सत्ता-विरोधी नायक के रूप में उभरे.

यह प्रतिष्ठा तब आई जब उन पर 2007 में लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या में शामिल होने का आरोप लगा, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के डॉ आंबेडकर मेमोरियल पार्क प्रोजेक्ट से जुड़े थे.

जब सिंह फरार हुए तो पुलिस ने उनके सिर पर 50,000 रुपये का इनाम रखा. उसी साल उन्हें चार अन्य लोगों के साथ भदोही में पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में मृत घोषित किया गया. सिवाय इसके कि, चार महीने बाद, वे जीवित थे.

मौर्य ने कहा, “वे उनकी दबंगई का पहला सबूत था. वे निर्वाचन क्षेत्र में तुरंत लोकप्रिय हो गए.”

2002 में प्राण रक्षा के अभियान कथा का उपयोग करते हुए और अपनी ज़िंदगी के लिए एक कथित खतरे पर सहानुभूति हासिल करते हुए, उन्होंने रारी निर्वाचन क्षेत्र से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता — यह सीट उन्होंने 2007 में जेडी (यू) के टिकट पर बरकरार रखी थी.”

2009 में वे बसपा के टिकट पर जौनपुर निर्वाचन क्षेत्र जीतकर लोकसभा में पहुंचे, जबकि उनके पिता राज देव सिंह ने उपचुनाव में विधानसभा सीट पर कब्ज़ा किया.

उसी समय, धनंजय के असंख्य व्यवसाय, जिनमें मुख्य रूप से रेलवे, पीडब्ल्यूडी, खनन आदि के ठेके शामिल थे, खूब फले-फूले.

उनका निजी जीवन भी कम घटनापूर्ण नहीं था. 2007 में उनकी पहली पत्नी को लखनऊ के गोमती नगर स्थित उनके आवास में फांसी पर लटका हुआ पाया गया था. पुलिस ने मौत का कारण आत्महत्या दिया था.

2009 में उन्होंने एक डेंटल जागृति सिंह से शादी की, जिन्हें 2013 में उनके दिल्ली स्थित घर में नौकरानी की मौत के मामले में गिरफ्तार किया गया — एक ऐसा मामला जिसमें सिंह पर भी सबूत नष्ट करने का आरोप लगाया गया. बाद में उन्होंने जागृति को तलाक दे दिया और 2017 में तीसरी बार पेरिस में एक भव्य समारोह में श्रीकला से शादी की.

श्रीकला का दावा है, “यह एक अरेंज मैरिज थी…तेलंगाना में मेरा परिवार भी एक राजनीतिक परिवार है, इसलिए हमारे दोस्त एक जैसे थे.”

श्रीकला के पिता, जितेंद्र रेड्डी, भारत के शीर्ष ड्राई सेल बैटरी निर्माताओं में से एक, निप्पो बैटरी के मालिक हैं और उन्होंने तेलंगाना में एक स्वतंत्र विधायक के रूप में काम किया है. उनकी मां ललिता रेड्डी सरपंच रह चुकी हैं.


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चुनावी समीकरण और ठाकुर फैक्टर

ज़मीन पर अपनी लोकप्रियता के बावजूद, धनंजय सिंह को एक दशक से अधिक समय से चुनावी सफलता नहीं मिली है. उनकी विवादास्पद छवि के कारण अधिकांश पार्टियां उन्हें नामांकित करने में अनिच्छुक रही हैं. नतीजतन, 2009 के बाद से उन्होंने हर चुनाव निर्दलीय या जद (यू) के टिकट पर लड़ा है और कभी जीतने में कामयाब नहीं हुए.

श्रीकला-धनंजय अभियान के मुख्य योजनाकार अशोक सिंह का तर्क है, “उन्हें बस आधार वोट की ज़रूरत है. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने मल्हनी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और दूसरे स्थान पर रहे थे. उस वक्त उनकी वजह से बीजेपी की जमानत जब्त हो गई थी. तो, आप कल्पना कर सकते हैं कि वह (बीजेपी) उनसे इतना क्यों डरते हैं और उनके लिए इस चुनाव को खतरे में डालने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.”

हालांकि, जौनपुर में राजनीतिक पर्यवेक्षक एक अलग कहानी बयां करते हैं. उनका दावा है कि कम से कम 2019 से धनंजय भाजपा के टिकट के लिए कोशिश में जुटे थे. उनके अनुसार, जब 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव दोनों में उन्हें एक भी सीट नहीं दी गई, तो वे पार्टी के खिलाफ हो गए.

जौनपुर के मतदाताओं से मुलाकात करती हुईं श्रीकला सिंह | फोटो: सान्या ढींगरा/दिप्रिंट

अब, बसपा के दलित वोट आधार के साथ, सिंह को इस निर्वाचन क्षेत्र को जीतने की उम्मीद है, जिसमें लगभग 19 लाख मतदाता हैं.

श्रीकला कहती हैं, “निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 2.5 लाख दलित वोट हैं. हम इसी से शुरुआत कर रहे हैं क्योंकि वही हैं जो इस तेज़ गर्मी के बावजूद वोट देने के लिए निकलते हैं क्योंकि वे राजनीतिक रूप से बहुत जागरूक हैं. इसके अलावा, 90 प्रतिशत ठाकुर हमारे साथ हैं. इसके अलावा, विभिन्न जातियों में कई अन्य लोग हैं जिनकी उन्होंने (धनंजय सिंह) मदद की है — हमारे पास एक मजबूत समर्थन आधार है. इसमें उनकी गिरफ्तारी पर लोगों का गुस्सा भी शामिल है!”

उनकी गिरफ्तारी के बाद से जौनपुर में सोशल मीडिया पर “भैया” की कथित बेगुनाही और सद्भावना की घोषणा करने वाले पोस्ट की बाढ़ आ गई है.

हालांकि, कोई आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि जौनपुर में ठाकुरों की आबादी लगभग 2 से 2.15 लाख है, लेकिन अपनी संख्यात्मक ताकत के अलावा, ठाकुर समुदाय ने हमेशा निर्वाचन क्षेत्र में चुनावी और राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल किया है. इस सीट पर शुरू से ही कई सांसद ठाकुर रहे हैं.

निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व भाजपा विधायक सुरेंद्रनाथ सिंह ने कहा, “अंग्रेज़ों के समय से इस क्षेत्र के ठाकुर शिक्षित और राजनीतिक रूप से जागरूक रहे हैं. अब, अन्य समुदाय भी जागरूक हो रहे हैं, लेकिन लंबे समय से, यह ठाकुर ही रहे हैं.”

समुदाय पर काफी नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति के रूप में, धनंजय इस चुनाव में भाजपा से ठाकुर वोटों का एक बड़ा हिस्सा छीन सकते हैं, भले ही श्रीकला सीट न जीतें.

सुरेंद्रनाथ सिंह ने कहा,“वे अंततः ठाकुर वोटों को बांट देंगे. आज की स्थिति के अनुसार, ऐसा लगता है कि युवा ठाकुर लड़के धनंजय के साथ जा सकते हैं, जबकि बुजुर्ग लोग भाजपा के साथ रहेंगे.”

पूर्व विधायक ने कहा कि बीजेपी लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि नए नियमों के मुताबिक एक व्यक्ति सांसद और जिला परिषद दोनों पदों पर नहीं रह सकता. उन्होंने कहा, “इसके अलावा, हम उन्हें बता रहे हैं कि बसपा सांसद चुनकर उन्हें बहुत कुछ हासिल नहीं होगा…बहन जी को पूरे राज्य में एक या दो सीट से ज्यादा नहीं मिलेंगी.”

दो ‘बाहरी’ और एक बहू

भले ही वे तेलंगाना से आती हैं, श्रीकला एक और शक्तिशाली अभियान कथा पर भरोसा कर रही हैं — अंदरूनी बनाम बाहरी.

जौनपुर के दोनों अन्य उम्मीदवार, भाजपा के कृपाशंकर सिंह और सपा के बाबू सिंह कुशवाह, को निर्वाचन क्षेत्र के लिए “बाहरी” की तरह देखा जाता है.

जबकि 72-वर्षीय कृपाशंकर सिंह जौनपुर के मूल निवासी हैं, उन्होंने 1980 के दशक से अपना पूरा राजनीतिक जीवन महाराष्ट्र में बिताया है — और वो भी कांग्रेस में. उन्होंने कांग्रेस सरकार में राज्य के जूनियर गृह मंत्री की तरह भी काम किया है.

कथित तौर पर 230 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति अर्जित करने के मामलों में फंसे कृपाशंकर 2021 में भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें भाजपा की राज्य इकाई के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया.

उनके जौनपुर में प्रवेश से स्थानीय पार्टी इकाई को झटका लगा, जिसमें टिकट के लिए कई दावेदार थे.

एक स्थानीय भाजपा नेता ने कहा, “पता नहीं कृपा पर किसकी कृपा हुई. पार्टी कार्यकर्ता बहुत हतोत्साहित हैं. जबकि भाजपा एक प्रमुख स्थिति में है, तो उसे स्थानीय नेताओं को आगे बढ़ने देना चाहिए — इससे ग्राउंड पर उसकी ताकत बढ़ेगी, लेकिन उन्होंने ठीक इसके विपरीत किया है.”

ज़ाहिर तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता भी बहुत खुश नहीं हैं. ऐसा कहा जाता है कि उनकी सिफारिश जौनपुर के एक प्रमुख उद्योगपति और परोपकारी ज्ञान प्रकाश सिंह थे. निर्वाचन क्षेत्र के कई लोगों का दावा है कि उन्होंने शहर में नवनिर्मित आरएसएस कार्यालय के लिए एक करोड़ रुपये से अधिक का दान दिया और अयोध्या में राम मंदिर के लिए एक करोड़ रुपये का दान दिया.

एक छोटी किराना दुकान के मालिक हिमांशु अग्रेहनी ने कहा, “अगर ज्ञान प्रकाश वहां होते, तो वे जीत सकते थे. वे धनंजय की तरह एक परोपकारी व्यक्ति हैं. भगवान जाने क्यों (भाजपा ने) इस गगन-विहारी नेता को यहां भेजा है.”

कुछ ऐसी ही कहानी है कुशवाहा की भी है.

मायावती के पूर्व विश्वासपात्र — जिन्हें दशकों तक उनकी परछाई कहा जाता था — कुशवाहा को यूपी में 1000 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम) से संबंधित घोटाले में शामिल होने के आरोपों के बाद 2011 में बसपा से निष्कासित कर दिया गया था. इस मामले में उन्हें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने गिरफ्तार किया था और 2012-2016 तक वे जेल में रहे.

कृपाशंकर की तरह, कुशवाहा को भी सपा के पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा “बाहरी” की तरह देखा जाता है. हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का सुझाव है कि कुशवाहा की उम्मीदवारी से पार्टी को निर्वाचन क्षेत्र में मौर्य समुदाय के वोटों को मजबूत करने में मदद मिल सकती है.

उक्त बीजेपी कार्यकर्ता ने कहा, “यह चुनाव भाजपा के लिए सबसे कठिन है. पार्टी मौर्य वोट खो देगी, जो पिछले चुनाव में थे और ठाकुर वोट का एक हिस्सा धनंजय को जा सकता है. हम भ्रम में नहीं रहेंगे तो ही कुछ कर पाएंगे.”

निश्चित रूप से सुदूर तेलंगाना की रहने वाली श्रीकला को भी एक बाहरी व्यक्ति माना जा सकता है, लेकिन यह सवाल पूछने पर जनता से तुरंत जवाब आता है — “बहु कब से बाहर होने लगी”?

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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