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Thursday, 19 December, 2024
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जहूराबाद से ओम प्रकाश राजभर आगे, BJP के कालीचरण राजभर से मिली चुनौती

जहूराबाद के निवर्तमान विधायक राजभर को इस बार भाजपा उम्मीदवार कालीचरण राजभर की तरफ से कड़ी चुनौती मिली, जो कि बसपा के पूर्व नेता थे, जिन्होंने दिसंबर में ही अपना दल बदला था और उसी समुदाय से आते हैं. कालीचरण खुद जहूराबाद क्षेत्र के लिए नए नहीं हैं, उन्होंने 2002 और 2007 में बसपा के टिकट पर दो बार इस सीट पर जीत हासिल की थी.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष और समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख सहयोगी ओम प्रकाश राजभर गाजीपुर जिले की जहूराबाद सीट निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के कालीचरण राजभर से आगे चल रहे हैं.

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रमुख सहयोगी, गाजीपुर जिले के जहूराबाद निर्वाचन क्षेत्र से आगे चल रहे हैं और उन्हें दोपहर 2.40 बजे तक 34,667 से अधिक वोट मिले हैं. भारत निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार, 44 प्रतिशत से अधिक का वोटशेयर मिला है.

जहूराबाद के निवर्तमान विधायक राजभर को इस बार भाजपा उम्मीदवार कालीचरण राजभर की तरफ से कड़ी चुनौती मिली, जो कि बसपा के पूर्व नेता थे, जिन्होंने दिसंबर में ही अपना दल बदला था और उसी समुदाय से आते हैं. कालीचरण खुद जहूराबाद क्षेत्र के लिए नए नहीं हैं, उन्होंने 2002 और 2007 में बसपा के टिकट पर दो बार इस सीट पर जीत हासिल की थी.

वहीं, बसपा ने शादाब फातिमा को मैदान में उतारा था, जिन्होंने 2012 में सपा के टिकट पर इस निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी. उनकी प्राथमिकता क्षेत्र के अधिकांश दलित वोटों को लुभाना था और साथ ही उन्होंने मुस्लिम वोटबैंक को भी साधा, जिस वोटबैंक पर सपा और उसके सहयोगियों, यहां पर ओपी राजभर का सारा दारोमदार टिका था.

इस वजह से, और राजभर वोटों के कालीचरण और ओपी राजभर के बीच बंटने को लेकर ही भाजपा—जिसका अपना मूल वोटबैंक बरकरार रहा, को समुदाय और जाति के आधार पर अपेक्षित विभाजन से खुद को लाभ मिलने की उम्मीदें थीं.

2017 के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर की एसबीएसपी ने भाजपा के साथ मिलकर आठ सीटों पर चुनाव लड़ा और चार पर जीत भी हासिल की. राजभर कैबिनेट मंत्री बने लेकिन जब 2019 के आम चुनावों में राजभर ने लोकसभा का टिकट मांगा तब भाजपा के साथ उनके रिश्तों में खटास आ गई.

2019 में भाजपा से अलग होने के बाद राजभर सपा में शामिल हो गए और 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा के साथ गठबंधन के तहत 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे.


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जहूराबाद में जाति/समुदाय के आधार पर विभाजन

2002 और 2007 में जहूराबाद से बसपा के टिकट पर जीत हासिल वाले कालीचरण 2012 में सपा की शादाब फातिमा और 2017 में ओपी राजभर से चुनाव हार गए थे.

जहूराबाद में भाजपा का चुनावी गणित अन्य जगहों की तरह मतदाताओं में जाति/समुदाय में विभाजन पर टिका था.

पार्टी के अनुमान के मुताबिक, जहूराबाद में दलित मतदाताओं की संख्या करीब 70,000 है, वहीं राजभर भी करीब 70,000 हैं. इसके अलावा करीब 30,000 मुस्लिम वोटर और 45,000 यादव वोटर हैं. साथ ही 30,000 चौहान मतदाता और 30,000 राजपूत मतदाता हैं, और ब्राह्मण और वैश्य मतदाताओं की संख्या क्रमश: 25,000 और 20,000 है.

भाजपा को उम्मीद थी कि कालीचरण के पुराने बसपा कनेक्शन के कारण, उन्हें कुछ दलित वोट मिलेंगे. साथ ही उनके राजभर समुदाय के वोटों का भी एक अच्छा-खासा हिस्सा पार्टी के खाते में आएगा. भाजपा के कोर वोट बैंक में चौहान, ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य मतदाता शामिल हैं.

इसके आलावा, शादाब फातिमा के मैदान में उतरने से भाजपा को मुस्लिम वोटों के बंटने का भी भरोसा था. इन सबको देखते हुए ओपी राजभर के लिए जीतना बहुत मुश्किल माना जा रहा था.

भाजपा ने 1996 को छोड़कर कभी भी जहूराबाद विधानसभा सीट नहीं जीती है, उस समय पार्टी प्रत्याशी गणेश ने जीत हासिल की थी. इसके बाद से यहां मुकाबला काफी हद तक बसपा और सपा के बीच ही रहा है.

हिंदी/उर्दू शायर, उपन्यासकार और पटकथा लेखक राही मासूम रजा (जिन्होंने टीवी धारावाहिक महाभारत की पटकथा भी लिखी थी) की रिश्तेदार फातिमा सपा नेता शिवपाल यादव की करीबी रही हैं. 2017 में अखिलेश यादव-शिवपाल यादव के बीच टकराव के बाद उन्हें पार्टी टिकट से वंचित कर दिया गया था. वह पूर्व में अखिलेश यादव सरकार में मंत्री के तौर पर भी कार्य कर चुकी हैं.

उन्होंने 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में गाजीपुर सदर सीट से सपा की टिकट पर जीत हासिल की थी.

2012 के विधानसभा चुनाव में फातिमा ने जहूराबाद से कालीचरण राजभर को हराया था, जबकि ओम प्रकाश राजभर तीसरे स्थान पर रहे थे. उस चुनाव में फातिमा को 67,012 वोट मिले थे, जबकि कालीचरण को 56,534 वोट मिले थे. राजभर ने 48,865 वोट हासिल किए थे.

इस बार चुनाव में फातिमा को मुस्लिम वोटों के एक बड़े हिस्से के अलावा बसपा का पारंपरिक दलित वोट मिलने की भी उम्मीद थी. उन्होंने यहां ओपी राजभर के खिलाफ लहर पर भी भरोसा जताया था.


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