नई दिल्ली: सभी विपक्षी दलों ने संविधान (एक सौ सत्ताईसवां संशोधन) विधेयक 2021, जिसे ‘ओबीसी विधेयक’ के नाम से भी जाना जाता है, का समर्थन करने का फैसला किया है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने सोमवार दोपहर इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया और इसके बाद सदन को दोपहर 12:30 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया.
19 जुलाई को शुरू हुए मानसून सत्र में यह पहला मौका है जब विपक्षी दल किसी मुद्दे पर संसद में चर्चा करने को सहमत हुए हैं, अन्यथा अभी तक यह सत्र पेगासस विवाद और किसानों के मुद्दे पर विपक्ष द्वारा जारी भारी विरोध के कारण गतिरोध में फंसा था.
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसद के बाहर मीडिया कर्मियों से बातचीत मे कहा, ‘यह विधेयक पिछड़े वर्ग के हित में है. इस देश की आधी से ज्यादा आबादी पिछड़े वर्ग में आती है. यह हमारा विश्वास है कि जो भी कानून गरीबों और पिछड़े वर्ग के पक्ष में है उसका समर्थन किया जाना चाहिए.’
खड़गे ने आगे कहा, ‘इसीलिए हम सब एक साथ आए हैं और इस बिल को जल्द से जल्द पास कराने की कोशिश करेंगे.’
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को एक फैसला सुनाया था जिसके अनुसार 102वें संविधान संशोधन के बाद से राज्यों के पास सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने का अधिकार नहीं है. इसके बाद केंद्र सरकार ने उस फ़ैसले को चुनौती देते हुए एक समीक्षा याचिका दायर की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे खारिज कर दिया था.
इसके उपरांत, 4 अगस्त को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी-अपनी ओबीसी सूची बनाने की शक्ति देने का प्रावधान करता है.
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एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा
ज्ञात हो कि विपक्षी दल लगातार यह मांग कर रहे थे कि सरकार पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने संबंधी राज्यों की शक्तियों को पुनः बहाल करने के लिए एक विधेयक पेश करे. खड़गे द्वारा की गई घोषणा उनके कक्ष में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल सहित 15 विपक्षी दलों के नेताओं के बीच मानसून सत्र के अंतिम चरण के लिए विपक्ष की रणनीति पर चर्चा करने के लिए हुई बैठक के कुछ मिनट बाद की गई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी इस बैठक में मौजूद थे.
सूत्रों ने बताया कि इस विधेयक की राजनीतिक रूप से संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए, कोई भी दल अपने आप को पिछड़ा वर्ग विरोधी के रूप में नहीं दर्शाना चाहता, खासकर यह देखते हुए कि अगले साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
कांग्रेस के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह राजनीतिक, और सामाजिक रूप से भी, एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, इसलिए इस विधेयक को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.’
सूत्रों ने यह भी कहा कि विपक्षी दल इस विधेयक पर होने वाली चर्चा का उपयोग ओबीसी कोटा पर 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा के बारे में पर चर्चा करने के एक अवसर के रूप में भी कर सकते हैं, क्योंकि कई ओबीसी संगठनों की ओर से लंबे समय से यह मांग की जा रही है कि और ज़्यादा ओबीसी समूहों को लाभ पहुंचाने के लिए आरक्षण की इस उपरी सीमा को हटाया जाए.
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