नई दिल्ली: ओडिशा के सिविल सेवक राजनीतिक विवाद में फंस गए हैं. दरअसल, सिविल सेवकों का एक प्रतिनिधिमंडल बीजू जनता दल को पंचायत और नगरपालिका चुनावों में मिली शानदार जीत के बाद राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को बधाई देने के लिए उनके आवास पर मुलाकात करने पहुंचा था.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राज्य के गवर्नर गणेश लाल के सामने अपना विरोध दर्ज कराया और आईएएस, आईपीएस और वरिष्ठ अधिकारियों को ‘वेश में राजनेता’ बताते हुए इसे राज्य में ‘सेवा आचरण नियमों का घोर उल्लंघन’ करार दिया.
गवर्नर को लिखे पत्र में राज्य की बीजेपी इकाई ने लिखा कि ‘ओडिशा में मौजूदा स्थिति का फायदा उठाते हुए, राज्य में सेवारत नौकरशाह राजनेता के वेश में हैं जो राजनीतिक प्रभाव बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उनकी सत्ताधारी पार्टी के साथ अपवित्र सांठगांठ है. राज्य की राजनीति में उनकी मिलीभगत इस तरह की रही है कि सत्ताधारी बीजेडी के कई नेताओं को पार्टी में घुटन होती है.’
बीजेपी ने ‘ऐसे नौकरशाहों द्वारा शक्ति का गलत इस्तेमाल, वसूली और आय के अलावा संपत्ति को एकत्र करने’ के संबंध में जांच करने की मांग की है.
यह पत्र, ओडिशा के चीफ सेक्रेटरी सुरेश मोहपात्रा, डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस सुनिल कुमार बंसल और डेवलपमेंट कमीशनर पीके जेना के नेतृत्व में सिविल सेवकों और दर्जनभर से ज्यादा सेवा संघ के अफसरों का एक प्रतिनिधिमंडल पटनायक के घर उन्हें चुनाव में जीत की बधाई देने के दो दिन बाद भेजा गया है.
मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने ‘सद्भावना भाव’ को स्वीकार किया और एक प्रेस बयान में अधिकारियों को धन्यवाद दिया. बयान में कहा गया, ‘वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस अधिकारी और कई सेवा संघों के सदस्यों ने आज मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात की और हाल ही में हुए पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में शानदार सफलता के लिए उन्हें बधाई दी.’
ओडिशा वित्तीय सेवा, ओडिशा पुलिस सर्विस असोसिएशन, ओडिशा सेक्रेटीरिएट सर्विस, रिवेन्यू सर्विस और कॉन्सेटेबल और हबिलदार असोसिएशन निकायों के प्रतिनिधित्व में शामिल थी.
हालांकि जब चीफ सेक्रेटरी सुरेश मोहपात्रा से इस विवाद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बात से इनकार किया कि वो मुख्यमंत्री को बधाई देने गए थे.
उन्होंने कहा कि ‘हम मुख्यमंत्री के आवास पर उनसे मिलना चाहते थे. महामारी के कारण लॉकडाउन लगने के बाद से यह सीएम के साथ पहली फिजिकल मीटिंग थी. हम वहां बधाई देने नहीं पहुंचे थे बल्कि उन्हें कुछ विकास परियोजनाओं और प्रशासनिक मामलों के संबंध में सूचित किया था.’
हालांकि इस घटना ने देशभर में सेवा संघ के दायरे में एक बेचैनी पैदा कर दी है, कुछ वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने इसे अनुचित बताते हुए कहा कि यह ‘राजनीतिक लोकतंत्र के मानदंडों में फिट नहीं बैठता है.
वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, जबकि कार्रवाई आचरण नियमों का ‘उल्लंघन’ नहीं थी क्योंकि कोई भी अधिकारी अपनी व्यक्तिगत क्षमता में सीएम को बधाई दे सकता है, लेकिन समूहों में उनके आवास तक जाना और इसे उजागर करना ‘अनुचित’ बनाता है.
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कानून क्या कहते हैं
ऑल इंडिया सर्विस कंडक्ट रूल्स 1968, जो सिविल सर्विस ऑफिसर्स को देश में गाइड करता है, वो ‘राजनीतिक निष्पक्षता’ का उल्लेख करता है जिसका अधिकारियों को पालन करना चाहिए.
नियम विस्तार से बताते हैं कि इस शब्द का क्या अर्थ है, यह कहते हुए कि सेवा के सदस्य को ‘किसी भी व्यक्ति या संगठन के लिए खुद को किसी भी वित्तीय या अन्य दायित्वों के तहत नहीं रखना चाहिए जो उसे अपने आधिकारिक कर्तव्यों के प्रदर्शन में प्रभावित कर सकता है.’
‘राजनीति और चुनावों में हिस्सा लेने’ पर उप-नियम के तहत, नियम कहते हैं कि ‘सेवा का कोई भी सदस्य किसी भी राजनीतिक पार्टी या किसी भी संगठन का सदस्य नहीं होगा, या जुड़ा नहीं होगा, जो राजनीति में हिस्सा लेता है, न ही क्या वह किसी राजनीतिक आंदोलन या राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा लेगा, या सहायता में सदस्यता लेगा, या किसी अन्य तरीके से सहायता करेगा.’
यह एक राजनीतिक पार्टी के लिए प्रचार करने पर कहता है कि ‘सेवा का कोई भी सदस्य किसी विधायिका या स्थानीय प्राधिकरण के चुनाव के संबंध में प्रचार या दखलअंदाजी नहीं करेगा, या अपने प्रभाव का उपयोग नहीं करेगा, या उसमें हिस्सा नहीं लेगा.’
‘अजीब घटना’
सीनियर रिटायर्ड ऑफिसर ने कहा कि यह घटना सीधे तौर पर नियामों का उल्लंघन नहीं करता है लेकिन राजनीतिक लोकतंत्र के मापदंढ़ों में फिट नहीं बैठता है और काफी अभूतपूर्व थी.
रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर वी. रमानी ने कहा कि ‘यह गैर-जरूरी था. व्यक्तिगत तौर पर मुख्यमंत्री को बधाई देना अलग होता है लेकिन प्रतिनिधिमंडल को उनके घर पर ले जाना और उसे उजागर करना अनुचित था. सिविल सेवा के अधिकारी सत्ताधारी दल के प्रति इस तरह की प्राथमिकता नहीं दिखा सकते हैं. यह अनुचित था और यह राजनीतिक लोकतंत्र के मानदंडों में फिट नहीं बैठता था.’
रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर प्रवीण दीक्षित ने कहा ‘मुख्य सचिव, डीजीपी और बाकी वरिष्ठ अधिकारी दिन में कई बार मुख्यमंत्री से मिलते हैं और वो उन्हें कभी भी बधाई दे सकते हैं. इसके लिए अधिकारियों को सीएम के आवास पर लाइन लगाने की जरूरत नहीं होती है. यह अजीब घटना है.’
उन्होंने आगे कहा कि ‘यह सिर्फ चापलूसी की सीमा के बारे में बताता है. एक दर्जन से ज्यादा संघों और सभी वरिष्ठ अधिकारियों ने सीएम से उनके आवास पर मुलाकात की, यह दिखाता है कि कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता. सीएम को इसे गैर जरूरी कहते हुए आपत्ति उठानी चाहिए थी. इसके बजाय उन्होंने एक प्रेस नोट जारी किया.’
एक और रिटायर्ड आईएएस अधिकारी गोपालन बालगोपाल ने कहा कि ‘यह बहुत ही हैरान करने वाला है कि अधिकारियों को सीएम के आवास पर इस तरह से कतार लगानी पड़ी. चुनावी जीत के लिए मुख्यमंत्री को बधाई देना ठीक है लेकिन इसे औपचारिक तरीके से नहीं किया जाना चाहिए था. यह माहौल को खराब करता है और सिविल सेवा की अखंडता पर सवाल उठाता है.
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