scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमराजनीतिबड़े नेता की कमी, पार्टी का अस्पष्ट संदेश- राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जो समस्या है वही असम में भी है

बड़े नेता की कमी, पार्टी का अस्पष्ट संदेश- राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जो समस्या है वही असम में भी है

असम में 8 चरण के चुनाव शनिवार से शुरू हो रहे हैं लेकिन कांग्रेस का प्रचार अभी भी लड़खड़ाता हुआ लग रहा रहा है. पार्टी को किसी तरुण गोगोई की कमी खल रही है.

Text Size:

कालियाबोर/तीताबोर: जिस समय से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दूसरे कार्यकाल में इसने फिसलना शुरू किया, तब से राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस एक जड़ समस्या से दोचार रही है- एक मज़बूत, केंद्रित और स्पष्ट रूप से परिभाषित नेतृत्व का अभाव.

लेकिन, राज्यों में कहानी कुछ अलग रही है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ से पंजाब, यहां तक कि हरियाणा तक ताकतवर क्षेत्रीय नेताओं ने पार्टी को एक मज़बूत स्थिति में बनाए रखा है.

हालांकि असम में, जहां शनिवार से विधानसभा चुनाव शुरू हो रहे हैं, पार्टी उसी समस्या से दोचार है, जिससे वो राष्ट्रीय स्तर पर ग्रसित है- ऐसे नेतृत्व का अभाव, जो स्पष्ट और पूरी तरह से नियंत्रण में हो.

असम के पूर्व मुख्यमंत्री और अनुभवी नेता, तरुण गोगोई के गुज़र जाने के बाद कांग्रेस, जो सूबे में पहले से ही एक कमज़ोर स्थिति में है, जिसमें ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जिसमें एक बड़े नेता, अनुभवी राजनीतिज्ञ और संगठन खड़ा करने में सक्षम व्यक्ति का मिश्रण हो.

परिणामस्वरूप, ये चुनाव पार्टी बिना किसी सीएम चेहरे के लड़ रही है. इस बीच, कालियाबोर सांसद गौरव गोगोई, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष रिपुन बोरा, पूर्व नेता प्रतिपक्ष देबब्रता साइकिया और नागांव से लोकसभा सांसद प्रद्युत बोरदोलोई, सब पार्टी की अगुवाई करने की कोशिश कर रहे हैं और मुख्य चेहरा बनने की होड़ में हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पार्टी के प्रचार पर एक नज़र डालने से ये बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है- कुछ पॉकेट्स को छोड़कर, कहीं कोई बड़े होर्डिंग्स और बैनर्स नहीं हैं और पार्टी की प्रचार सामग्री में स्पष्ट रूप से किसी एक चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं किया गया है. किसी स्पष्ट नेता के न होने का मतलब है कि चुनावी गहमा-गहमी के शोरगुल में पार्टी का संदेश कहीं हल्का पड़ता जा रहा है.

Congress posters in Assam | Ruhi Tewari | ThePrint
असम में लगे कांग्रेस के पोस्टर्स | रूही तिवारी | दिप्रिंट

उसकी बजाय, कांग्रेस सिर्फ अपने लिए वोट लेने के अलावा बीजेपी के खिलाफ विरोधी लहर तथा उस गठबंधन का सहारा लेने की कोशिश कर रही है, जो उसने बनाया है.

एक कांग्रेस नेता ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘हम जानते हैं कि हमारे पास एक मज़बूत और परिभाषित नेतृत्व, या कोई अकेला चेहरा नहीं है, जिसे हम प्रोजेक्ट कर सकें और इससे हमें नुकसान है. लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो हमारे पक्ष में जा रही हैं- जैसे कि सत्ता-विरोधी लहर और एआईयूडीएफ के साथ हमारा गठबंधन. हम उम्मीद कर रहे हैं कि ये दोनों चीज़ें हमें पार लगाने के लिए काफी होंगी’.


यह भी पढ़ें: ममता ने कट मनी को बढ़ावा दिया, अब उनकी पार्टी प्याज़ व आलू विक्रेताओं को भी नहीं छोड़ रही : बाबुल सुप्रियो


तरुण गोगोई की कमी

आज़ादी के बाद अधिकतर समय, असम में कांग्रेस ने राज किया है, सिवाय उस समय के जब 1980 के दशक में असम गण परिषद एकदम से परिदृश्य में आ गई थी. फिर, 2016 में जब बीजेपी सत्ता में आई, तो उसने न केवल 15 साल से लगातार चले आ रहे कांग्रेस राज को समाप्त किया, बल्कि वो कांग्रेस के जनाधार को काफी हद तक कमजोर करने और उसे एक बीते कल का खिलाड़ी बनाने में भी कामयाब रही है.

इस वजह से ये चुनाव, कांग्रेस के लिए और भी अहम हो जाता है. उसे एक अच्छा प्रदर्शन करना है और अगर वो सूबे में राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहना चाहती है और अपने जनाधार को और अधिक खोने से बचना चाहती है, तो उसे 2016 में 126 विधानसभा सीटों में से केवल 26 पर जीत के शर्मनाक प्रदर्शन से बेहतर करना होगा.

तरुण गोगोई एक अत्यंत लोकप्रिय नेता थे और जिन चुनावों में कांग्रेस को हार मिली, उनमें भी वो लोगों के चहेते बने रहे. उनके गुज़र जाने के बाद से कांग्रेस इतने बड़े शून्य को भर नहीं पाई है.

असम में कांग्रेस के एक सबसे अधिक दिखने वाले चेहरे, गौरव गोगोई ने दिप्रिंट से कहा, ‘किसी एक चोहरे को प्रोजेक्ट करने का मतलब है, किसी की निजी आकांक्षाओं को आगे करना. हम अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए इस चुनाव में नहीं हैं, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से, असम इस समय एक बहुत नाज़ुक स्थिति में है. इस चुनाव में, अहम सवाल ये नहीं है कि मुख्यमंत्री कौन होगा, बल्कि ज़्यादा अहम सवाल ये है कि असम का भविष्य क्या होगा’.

गोगोई ने कहा कि 20 साल पहले भी, असम ऐसी ही स्थिति में था, जब कांग्रेस सरकार आई और उसने सूबे को बदलकर रख दिया. उन्होंने आगे कहा, ‘2021 में इतिहास खुद को दोहराएगा’.

Congress posters in Assam | Ruhi Tewari | ThePrint
असम में लगे कांग्रेस के झंडे और पोस्टर्स | रूही तिवारी | दिप्रिंट

लेकिन, नेता इस बात को मानते हैं कि उनके यहां समस्या है.

असम के एक और कांग्रेस नेता ने भी, नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘देखिए, आपको वोटर के पास कुछ आकर्षक लेकर जाना होता है और एक लोकप्रिय चेहरा उसके लिए सबसे अच्छी चीज़ होती है. दुर्भाग्य से, हमारे पास कोई चेहरा नहीं है. किसी के नाम पर वोट मांगना बहुत आसान होता है’.

पार्टी नेताओं का कहना है कि एक समस्या ये भी है कि गोगोई के जीवित रहते हुए पार्टी ने किसी नए चेहरे को तैयार करके सामने लाने की कोशिश नहीं की, ताकि एक सुगम हस्तांतरण सुनिश्चित किया जा सकता.

ऊपर हवाला दिए गए पहले नेता ने कहा, ‘तरुण गोगोई हमारे सबसे बड़े नेता थे और उनके बाद लगभग कोई नहीं बचा. हिमंता बिस्वा शर्मा एक बड़े नेता हैं लेकिन हमने उन्हें ऐसे कारणों के चलते खो दिया, जिन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को संभाल लेना चाहिए था. और तरुण गोगोई ने वास्तव में किसी को तैयार नहीं किया. अगर वो अपने बेटे के लिए कुर्सी को बचाकर रखे हुए थे, तो भी गौरव को इसे बहुत पहले से गंभीरता से लेकर, केंद्रित और मेहनती हो जाना चाहिए था, जैसा कि वो अब कर रहे हैं’.

मतदाता कहते हैं- कोई नेता नहीं है

मतदाताओं को नेतृत्व में फैली अव्यवस्था, साफ तौर पर दिख रही है और उनका कहना है कि इसकी वजह से वो कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.

कालियाबोर से कन्हाई दास ने कहा, ‘कांग्रेस के पास कोई नेता ही नहीं नहीं है. कोई कहता है कि वो रिपुन बोरा हैं, कोई दूसरा कहता है कि वो गौरव गोगोई हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि इनमें से किसी के पास भी, वो कद या साख नहीं है, जो किसी सीएम चेहरे के पास होनी चाहिए’.

ये समस्या इसलिए और भी बढ़ जाता है कि कांग्रेस के लिए ये एक दोहरी मार है- राज्य स्तर पर कोई नेता नहीं है और राष्ट्रीय नेतृत्व से भी इस्तेमाल करने लायक कोई चेहरा नहीं है. बीजेपी के उलट, जो उन राज्यों में जहां कोई स्थानीय नेता नहीं हैं, मोदी फैक्टर को आगे बढ़ाकर उसकी भरपाई कर लेती है, कांग्रेस के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है. राहुल गांधी ऐसे विकल्प के तौर पर नहीं उभर पाए हैं, जिसकी कांग्रेस को ज़रूरत है.

नलबाड़ी के हेमंता तालुकदार ने कहा, ‘तरुण गोगोई के बाद, कांग्रेस के पास कोई नहीं बचा है. कोई भी नेता मुकाबले में नहीं ठहरता. पार्टी के लिए ये एक बड़ी समस्या होने जा रही है, न सिर्फ इस चुनाव में बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भी’.

(मानसा मोहन द्वारा संपादित)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कोविड के बढ़ते मामलों के कारण महाराष्ट्र में 28 मार्च से रात्रि कर्फ्यू, रात 8 से सुबह 7 बजे तक बंद रहेंगे मॉल


 

share & View comments