नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी ने जब ‘आरएसएस में बहुत से अच्छे लोग’ वाला बयान देकर एक राजनीतिक आश्चर्य पैदा कर दिया, उसके कुछ दिन बाद पार्टी में उनके अधिकतर सहयोगी उनके बयान के समर्थन में आ गए हैं.
बनर्जी की टिप्पणियों पर कांग्रेस, सीपीआई(एम), और ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिन्होंने संगठन के समर्थन में की गईं उनकी पिछली टिप्पणियों को भी याद किया.
इस बीच बीजेपी ने कहा है कि पार्टी को उनसे ‘किसी सर्टिफिकेट’ की ज़रूरत नहीं है कि कौन अच्छा है.
आरएसएस भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का वैचारिक स्रोत है, और पिछले कई वर्षों में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति पश्चिम बंगाल सीएम के मज़बूत, मुखर और निरंतर विरोध को देखते हुए, आरएसएस पर उनकी टिप्पणियों से बहुत से लोगों की भौंहें तन गईं.
लेकिन, पश्चिम बंगाल की सीएम के अधिकतर सहयोगी ज़ोर देकर कहते हैं कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक का हमेशा एक ऐसे संगठन के तौर पर ‘सम्मान’ किया है, जो स्वभाव से ‘देशभक्त’ है.
वरिष्ठ तृणमूल संसद सदस्य सौगता रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘एक समय था जब इंदिरा गांधी ने मंदिरों का दौरा करना शुरू कर दिया था. आरएसएस को लेकर ममता के कभी दोहरे मानदंड नहीं रहे. उन्होंने हमेशा कहा है कि आरएसएस एक संगठित और अनुशासित संगठन है. इस संगठन में बहुत से ईमानदार लोग मौजूद हैं’.
उन्होंने आगे कहा: ‘हमारे बीच वैचारिक स्तर पर अंतर या असहमति हो सकती है, लेकिन एक सम्मान भी है. ममता ने कुछ ग़लत नहीं किया. कल से जो आलोचना सामने आ रही है वो राजनीतिक प्रकृति की है’.
लेकिन, पार्टी के भीतर भी कुछ नेताओं को लगता है कि बनर्जी को बातचीत के बीच में आरएसएस को लाने की कोई ‘ज़रूरत नहीं थी’, जबकि कुछ दूसरे लोग अटकलें लगा रहे थे कि क्या पश्चिम बंगाल की सीएम कुछ ‘अच्छे और ईमानदार’ आरएसएस स्वयंसेवकों को लुभाना चाहती थीं, जिनका वर्तमान बीजेपी नेतृत्व से ‘मोहभंग’ हो चुका है.
इस बीच, ख़ुद आरएसएस पदाधिकारियों ने उनकी टिप्पणी को एक संतुलन कार्य का प्रयास क़रार दिया, जिससे कि राज्य में हिंदू मतदाताओं का समर्थन बनाए रखा जा सके. राजनीतिक विश्लेषकों को भी लगता है कि इसका ताल्लुक़ ममता की ‘हिंदू-विरोधी’ और ‘मुस्लिम-तुष्टिकर्ता’ की अपनी छवि को ख़त्म करने की इच्छा से हो सकता है.
बुधवार को राज्य सचिवालय नबाना में एक मीडिया संबोधन के दौरान, बनर्जी ने कहा ‘कुछ लोग आरएसएस का नाम लेकर मीडिया घरानों को डराते हैं. आरएसएस पहले इतनी बुरी नहीं थी, और मुझे लगता है कि वो आज भी बुरी नहीं है. आरएसएस के अंदर बहुत से अच्छे लोग हैं. वो बीजेपी के बुरे कामों का समर्थन नहीं करते. एक दिन वो आगे आएंगे और उनके (बीजेपी) खिलाफ बोलेंगे’.
ये पहली बार नहीं है कि बनर्जी ने संगठन के बारे में कोई सकारात्मक बयान दिया है.
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2003 में, एक पुस्तक विमोचन के दौरान आरएसएस पदाधिकारियों के साथ मंच साझा करते हुए बनर्जी ने उन्हें ‘देशभक्त’ कहा था. इस बीच आरएसएस नेताओं ने उन्हें पश्चिम बंगाल की दुर्गा क़रार दिया था- जो बंगाल में आम तौर पर पूजी जाने वाली हिंदू देवी की ओर इशारा था.
पश्चिम बंगाल की सीएम के कथित रूप से वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थे, जिनमें उसके प्रमुख मोहन भागवत और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी जैसे कुछ दिग्गज बीजेपी नेता तक शामिल थे.
2011 में सीएम बनने के बाद उन्होंने पश्चिम बंगाल में बहुत सी आरएसएस शाखाएं खोले जाने को भी अनुमति दी है.
नाम छिपाने की शर्त पर एक वरिष्ठ तृणमूल नेता ने कहा कि बनर्जी ने आरएसएस चैनल को हमेशा ‘खुला’ रखा है.
एक दूसरे वरिष्ठ तृणमूल नेता ने नाम छिपाने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘इसके पीछे एक राजनीतिक हिसाब है. दीदी (जिस उपनाम से ममता को आमतौर से बुलाया जाता है) को एक जनादेश मिला हुआ है, और अगर आप संख्या को देखें तो चुनाव जीतने के लिए उन्हें किसी संगठन के समर्थन की ज़रूरत नहीं है. लेकिन ये एक सच्चाई है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आरएसएस का एक जनाधार है, और हिंदू उस पर भरोसा करते हैं. अपने जनाधार के बनाए रखने के लिए दीदी को आरएसएस की ज़रूरत है. वो नहीं चाहतीं कि कम्युनिस्ट लोग किसी भी ज़िले में अपनी ज़मीन फिर से हासिल कर लें’.
‘RSS के ज़रिए हिंदुओं तक पहुंचना’
इस बीच आरएसएस पदाधिकारियों ने उनके बयान को एक ‘संतुलन कार्य’ और ‘नुक़सान नियंत्रण’ का एक औज़ार कहकर ख़ारिज कर दिया.
पश्चिम बंगाल के एक वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी जिश्नु बासु ने आरोप लगाया, ‘वो इस अपराध बोध से पीड़ित रही हैं कि चुनाव के बाद हुई हिंसा (पश्चिम बंगाल पिछले वर्ष के असेम्बली चुनावों के नतीजों की घोषणा के बाद) में उन्होंने इतने हिंदुओं को मारे जाने दिया. बहुत सी हिंदू महिलाओं के साथ गैंगरेप किया गया, और उनकी सरकार मूकदर्शक बनकर खड़ी रही. वो जानती हैं कि लोग उनसे हिसाब ज़रूर चुकाएंगे, अगर अभी नहीं तो कुछ दिन के बाद’.
उन्होंने आगे कहा: नतीजे आ जाने के बाद हमने उनसे मिलने का समय मांगा, जब तृणमूल कार्यकर्ता हिंसा पर उतर आए थे (पिछले साल चुनाव के बाद की हिंसा की ओर इशारा). लेकिन वो हमसे नहीं मिलीं. चुनाव आते जाते रहते हैं, लेकिन हिंदू समाज को जो नुक़सान उन्होंने पहुंचाया, उन घावों के निशान कभी हल्के नहीं होंगे. हमें नहीं मालूम कि अच्छी आरएसएस और बुरी आरएसएस कहने से उनका क्या तात्पर्य है. बुरे लोगों को संघ का हिस्सा नहीं बनने दिया जाता. उन्हें इस बात को समझना होगा’.
राजनीतिक विश्लेषक उनकी टिप्पणी को, आरएसएस के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाए रखते हुए बीजेपी को ‘विलेन’ दिखाने की कोशिश के रूप में परिभाषित करते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक और कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर सैकत सिन्हा रॉय ने कहा, ‘ये सच है कि इस चुनाव (2021 के असेम्बली चुनाव) में उन्हें एक बड़ा जनादेश मिला है. लेकिन कोई इससे इनकार नहीं कर सकता कि उनकी छवि आज भी एक हिंदू-विरोधी की है. एक धारणा है कि ममता बनर्जी मुसलमानों का तुष्टीकरण करती हैं, और उनके साथ एक वोट बैंक जैसा बर्ताव करती हैं. राजनेताओं के लिए जनादेश कभी ख़त्म नहीं होते, और उनके बयानों को चुनाव विशेष से जोड़कर नहीं देखा जा सकता’.
उन्होंने आगे कहा: ‘ये (ममता के बयान) निहित अर्थों वाले बयान हैं, जिनके दूरगामी परिणाम और प्रभाव होंगे. उन्हें अभी भी लगता है कि आरएसएस ने हिंदू समाज में एक अच्छी ख़ासी सेंध लगाई है. आम चुनाव डेढ़ साल (2024) में आ रहे हैं. राजनेता भविष्य के बारे में सोचते हैं. कांग्रेस के अलावा कोई दूसरी राजनीतिक पार्टी आरएसएस को नाराज़ नहीं करना चाहती. हम सब जानते हैं कि प्रणब मुखर्जी (दिवंगत कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रपति) भी नागपुर में आरएसएस मुख्यालय गए थे’.
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