चंडीगढ़: पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह एक बार फिर टकराव के रास्ते पर नज़र आ रहे हैं. पूर्व क्रिकेटर ने गुरू पंथ साहिब की बेअदबी से जुड़े मामलों की जांच को लेकर बचाव के संबंध में सरकार की तरफ से ‘ढुलमुल’ रवैया अपनाए जाने पर सवाल खड़े किए हैं.
सिद्धू ने बेअदबी मामले को लेकर आंदोलन कर रहे सिखों पर गोलीबारी के मामले में पिछले शुक्रवार को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की तरफ से पुलिस जांच खारिज कर दिए जाने के बाद सरकार के रुख पर अपनी नाराजगी जताई.
फरीदकोट के गुरुद्वारा बुर्ज जवाहर सिंह वाला, जहां जून 2015 में बेअदबी का पहला मामला सामने आया था, से मंगलवार सुबह जारी किए गए 13 मिनट के वीडियो संदेश में सिद्धू ने सवाल किया कि मामले के ‘दूरगामी नतीजों’ और उनके भावनात्मक महत्व के बावजूद कोर्ट में जांच के बचाव के लिए ‘कमजोर वकीलों’ को क्यों रखा गया था?’
सिद्धू ने कहा, ‘बेकसूर लोगों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है. गलत आदेश का पालन करने वाला दोषी नहीं होता बल्कि दोषी वह होता है जो गलत करने का आदेश देता है…राजा और मंत्री जो आदेश देते हैं, उन्हें बचाया जाता है’
उन्होंने कहा, ‘जून में छह साल हो जाएंगे, जब बेअदबी की पहली घटना हुई थी लेकिन अब तक इस मामले में कोई न्याय नहीं हुआ है…कमजोर वकील सरकार का बचाव क्यों कर रहे थे? हमारी जांच का बचाव करने के लिए अदालत में देश के शीर्ष वकीलों की टीम मौजूद क्यों नहीं थी.’
सिखों के जीवित गुरु माने जाने वाले पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटना 2015 में हुई थी जब प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल-भाजपा की सरकार थी. पंजाब पुलिस दोषियों को पकड़ने में नाकाम रही तो तत्कालीन बादल सरकार ने जांच सीबीआई को सौंप दी. 2017 में जब अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सत्ता में आई तो जांच सीबीआई से वापस ले ली गई और बेअदबी और संबंधित मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया गया.
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सुलह काम नहीं आई
अमरिंदर सरकार को लेकर सिद्धू के इस हमले ने दोनों नेताओं को एक बार फिर आमने-सामने खड़ा कर दिया है जिनके बीच सुलह कराने के लिए कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत को छह महीने कड़ा प्रयास करना पड़ा था.
सिद्धू ने जुलाई 2019 में अमरिंदर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि सीएम ने लोकसभा चुनावों में बतौर प्रचारक उनके खराब प्रदर्शन के कारण उनसे प्रमुख मंत्रालय ले लिए थे.
पिछले साल की शुरुआत में रावत ने दोनों नेताओं के बीच कई बैठकें कराई थी, जिनमें से अंतिम 18 मार्च को हुई थी. इससे सिद्धू के अमरिंदर मंत्रिमंडल में शामिल होने की अटकलों को बल मिला था.
पंजाब कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक अमरिंदर यह ‘फैसला करने में बहुत ज्यादा समय लगा रहे थे’ कि सिद्धू को कौन-सा विभाग दिया जाए.
कांग्रेस सूत्र ने कहा, ‘सिद्धू पूरे धैर्य के साथ मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन जाहिर है कि वह समझ रहे थे कि उन्हें घुमाया जा रहा है और अमरिंदर का शायद अपना वादा निभाने का कोई इरादा नहीं है. इसलिए, उन्होंने अमरिंदर को निशाना बनाने के लिए बहुत सोच-समझकर बेअदबी का मुद्दा चुना है, जो कि छह साल बाद भी पंजाब में एक भावनात्मक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है.’
सूत्र ने कहा, ‘अगर सिद्धू सरकार का हिस्सा नहीं हैं, तो उनका राजनीतिक भविष्य पूरी तरह विपक्ष पर नहीं बल्कि अमरिंदर पर निशाना साधे जाने पर निर्भर करता है.’
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हाई कोर्ट ने एसआईटी से जिन आईजीपी को हटाया, उनकी तारीफ की
सिद्धू ने अपने वीडियो संदेश में अक्टूबर 2015 में बेअदबी की घटनाओं को लेकर प्रदर्शन कर रहे सिखों पर पुलिस फायरिंग की दो घटनाओं की जांच के लिए अमरिंदर सरकार की तरफ से गठित एसआईटी के एक सदस्य पुलिस महानिरीक्षक कुंवर विजय प्रताप सिंह की भी प्रशंसा की. बेहबाल कलां में गोलीबारी के दौरान दो सिख युवकों की मौत हो गई थी.
हाई कोर्ट ने शुक्रवार के अपने आदेश में पंजाब सरकार से कहा था कि कुंवर विजय प्रताप सिंह को सदस्य के रूप में शामिल किए बिना एसआईटी का पुनर्गठन करे. इस मामले के एक आरोपी ने अदालत से इस आधार पर उन्हें हटाने को कहा था कि अधिकारी का रुख ‘पक्षपातपूर्ण’ था और वह ‘राजनीति प्रेरित’ भावना के साथ घटनाओं की जांच कर रहे थे.
आईजीपी अक्टूबर 2018 से गोलीबारी के मामलों की जांच कर रहा थे और उनकी टीम ने निचली अदालतों में नौ चालान पेश किए थे, जहां इन मामलों पर सुनवाई चल रही थी.
हालांकि, सिद्धू ने अपने निर्वाचन क्षेत्र अमृतसर में कुंवर विजय प्रताप सिंह के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव का इस्तेमाल उनकी और पंजाब पुलिस की क्षमता बताने के लिए किया.
उन्होंने कई साल पहले अमृतसर में अपने दोस्त के बटुए की चोरी की घटना के बारे में बताया, जब कुंवर विजय प्रताप पुलिस आयुक्त थे— पुलिस टीम ने कुछ ही घंटों में बटुआ ढूंढ़ निकाला था.
सिद्धू ने कहा, ‘पंजाब पुलिस एक सक्षम (बल) है लेकिन जहां चाह होगी, वहीं राह निकलेगी.’
उन्होंने यह भी मांग की कि आईजीपी की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए.
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अमरिंदर ने आईजीपी का इस्तीफा ठुकराया
हाई कोर्ट के आदेश के बाद कुंवर विजय प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा इस अनुरोध के साथ सौंपा था कि उन्हें भारतीय पुलिस सेवा से समय पूर्व सेवानिवृत्ति की अनुमति दी जाए.
लेकिन मंगलवार को अमरिंदर ने इस्तीफा यह कहते हुए नामंजूर कर दिया कि सीमावर्ती राज्य पंजाब को उनके जैसे सक्षम, कुशल और काबिल अधिकारियों की सेवाओं की जरूरत है.
Punjab CM @capt_amarinder has declined the plea of IPS Kunwar Vijay Pratap Singh for premature retirement from service. Says services of the competent, skilled & efficient officer are needed in the border state. pic.twitter.com/Zc7NuhHVzy
— Raveen Thukral (@RT_MediaAdvPbCM) April 13, 2021
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.
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