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Sunday, 22 December, 2024
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मुस्लिम बहुल 7 वार्डों का केजरीवाल से मोहभंग, दंगा प्रभावित पूर्वी-दिल्ली में कांग्रेस ने मारी बाजी

बिलकिस बानो के बलात्कार के दोषियों की रिहाई, सीएए विरोधी प्रदर्शन, दिल्ली दंगों जैसे मुद्दों पर सीएम केजरीवाल का मौन और देर सी दी गई प्रतिक्रिया से लोगों का मोहभंग हो गया है.

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नई दिल्ली: उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों में रहने वाले मुस्लिम मतदाताओं ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में बड़े पैमाने पर कांग्रेस पार्टी को वोट दिया. इसे राजनीतिक हलकों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित मुद्दों पर खुल के बोलने से इनकार करने की वजह से इस समुदाय के ‘आप’ के साथ मोहभंग के संकेत के रूप में माना जा रहा है.

‘आप’ ने बुधवार को हुए एमसीडी चुनाव में कुल 250 वार्डों में से 134 पर जीत हासिल कर बहुमत हासिल कर लिया था. भाजपा ने 104 और कांग्रेस ने नौ सीटें जीतीं. तीन सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीतीं थीं

हालांकि, खास बात यह है कि कांग्रेस द्वारा जीती गई नौ सीटों में से सात उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में स्थित थीं.आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इन सात में से छह वार्ड मुस्लिम बहुल हैं.

कांग्रेस ने तीन मुस्लिम बहुल वार्डों- चौहान बांगर (शगुफ्ता चौधरी जुबैर), मुस्तफाबाद (सबिला बेगम) और अबुल फजल एन्क्लेव (अरीबा खान) को ‘आप’ से छीन लिया. जिन अन्य मुस्लिम बहुल वार्डों में कांग्रेस ने जीत हासिल की है उनमें ज़ाकिर नगर (नाजिया दानिश), शास्त्री पार्क (समीर अहमद) और कबीर नगर (जरीफ) शामिल हैं.

हालांकि, AAP ने पर्याप्त संख्या में मुस्लिम मतदाता आधार वाले कई अन्य वार्डों में- उदाहरण के लिए, चांद महल, जामा मस्जिद और बल्लीमारान वार्डों में जीत हासिल की, मगर दंगा प्रभावित क्षेत्रों में और दक्षिण-पूर्व दिल्ली में अल्पसंख्यक समुदाय ने कांग्रेस के प्रति अपनी पसंद का इज़हार करते हुए ‘आप’, जो कि भाजपा का मुकाबला करने की अपनी रणनीति के तहत इस समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाने से सावधानी बरतती रही है, के प्रति इसकी बढ़ती हुई बेचैनी और मोहभंग का संकेत दिया है.

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुस्लिम वोटों की एक बड़ी संख्या आप के खेमे से निकलकर कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गई है. केजरीवाल द्वारा दिल्ली दंगों या सीएए-एनआरसी के विरोध पर कड़ा रुख इख्तियार करने से इनकार करने के कारण यह एक प्रतिक्रिया प्रतीत होती है. इसलिए, मुस्लिम आबादी बहुल क्षेत्रों ने कांग्रेस को वोट देने का विकल्प चुना है.’

बिलकिस बानो के बलात्कार के दोषियों की रिहाई पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की चुप्पी तथा शाहीन बाग में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शन, महामारी के दौरान निजामुद्दीन मरकज़ की घटना और साल 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान उनके मौन और देर से की गई प्रतिक्रिया के साथ ऐसा लगता है कि मुस्लिम मतदाताओं को यह सब अच्छा नहीं लगा है.

वे (मुस्लिम मतदाता) कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक हुआ करते थे, लेकिन साल 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद से वह आप के खेमें में चले गए थे. चौहान बांगर (जो जाफराबाद वार्ड को समाहित कर चुका है) और मुस्तफाबाद वार्ड उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र में आते हैं, जो 2020 में दंगों की चपेट में आ गए थे. एक निर्दलीय उम्मीदवार शकीला बेगम, जो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की पूर्व पार्षद हैं, सीलमपुर में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीती हैं. यह वह इलाका है जहां सबसे ज्यादा हिंसा हुई थी.

दूसरी ओर, अबुल फज़ल एन्क्लेव वार्ड का शाहीन बाग इलाका साल 2019 में सीएए विरोधी आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया था. यहां के बारे में मुख्यमंत्री केजरीवाल की इस टिप्पणी ने अल्पसंख्यक समुदाय को काफी नाराज़ कर दिया था कि अगर दिल्ली पुलिस आप की दिल्ली सरकार के नियंत्रण में होती, तो वह प्रदर्शनकारियों को दो घंटे के भीतर हटा देते.

तुलनात्मक रूप से, आप के पास छह मुस्लिम पार्षद हैं, जिनमें से दो- चांदनी महल से आले मोहम्मद इकबाल और जामा मस्जिद से सुल्ताना आबाद – पहले कांग्रेस से अलग हो गए थे.


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‘एमसीडी चुनाव नतीजे किसी और बड़े चुनाव का संकेतक नहीं’

जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक और राजनीतिक विश्लेषक बद्री नारायण ने कहा कि फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि ‘आप’ के मुस्लिम मतदाताओं का आधार कांग्रेस में स्थानांतरित हो गया है या नहीं, लेकिन अगर रुझान यही रहा तो इससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ही फायदा होगा.

उन्होंने कहा, ‘अगर मुस्लिम वोटर कांग्रेस के पास वापस आते हैं तो यह बीजेपी के लिए फायदेमंद होगा क्योंकि इससे ‘आप’ के वोट कम होंगे, लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि एमसीडी चुनाव किसी और बड़े चुनाव का संकेतक नहीं है. इसके परिणाम अन्य महत्वपूर्ण चुनावों के परिणामों को प्रभावित नहीं करेंगे.’

एमसीडी चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेताओं ने मुस्लिम समुदाय के वर्चस्व वाले वार्डों में वोट बटोरने के लिए आप प्रमुख पर ‘इस समुदाय का समर्थन नहीं करने’के लिए जमकर हमला बोला था. चांदनी चौक की पूर्व विधायक और कांग्रेस पार्टी की स्टार प्रचारकों में से एक अलका लांबा ने अपनी एक जनसभा में कहा था कि भाजपा कम-से-कम अपनी विभाजनकारी राजनीति के बारे में स्पष्ट रही है, जबकि सीएम केजरीवाल ने तो मुसलमानों की पीठ पीछे वार किया है.

उन्होंने जामा मस्जिद वार्ड में कहा था, ‘बिलकिस बानो के बलात्कारियों की गलत तौर पर रिहाई या दिल्ली दंगों और सीएए-एनआरसी (संघर्ष) पर किसने चुप्पी साधे रखी? तबलीगी जमात को किसने बदनाम किया था? ये वही (केजरीवाल) थे.’

इसी तरह, जब चुनाव परिणामों के अनुसार मुस्लिम वोटों के आप से छिटक कर कांग्रेस में जाने की संभावना के बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (डीपीसीसी) के पूर्व अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने सवाल के जवाब में दिप्रिंट को बताया कि अरविंद केजरीवाल से उन लोगों ने जितनी उम्मीद की थी, उससे कहीं कम हुआ है और मुसलमानों के लिए एक भी अच्छा काम नहीं किया गया है.

चोपड़ा ने कहा, ‘विधानसभा चुनाव में, उन्होंने केजरीवाल को वोट दिया और अब जाकर उन्हें एहसास हुआ है कि इस शख्स ने इस समुदाय के लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया है. देखिए, वह इसके बदले मुफ्त बिजली पर सब्सीडी दे रहे हैं- वह पैसा डिस्कॉम को क्यों नहीं देते? वे दोनों (भाजपा और आप) बिना कुछ सकारात्मक दिखाए एक-दूसरे पर हमलावर हो गए और मीडिया ने भी इसे ही चलाया. अगर मीडिया 24 घंटे यही दिखाएगा कि मुख्य लड़ाई भाजपा और आप के बीच है, तो यही बात मतदाताओं के दिमाग में भी दर्ज हो जाएगी.’

(अनुवादः राम लाल खन्ना | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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