सुलतानपुर: 23 सितंबर की शाम जब डा.घनश्याम तिवारी ई-रिक्शा से लहूलुहान हालत में घर पहुंचे तो उनकी पत्नी निशा को उन्हें पहचानने में समय लग गया. उनकी शर्ट, जो सामने से खुली हुई थी, वह पूरी तरह खून से लथपथ थी और उनके पैरों से बहुत खून बह रहा था. वह दो कदम से अधिक नहीं चल सके, उन्होंने उस दर्दनाक घटना को याद करते हुए दिप्रिंट को बताया.
जब वह उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के सखौली कलां गांव में अपने घर के आंगन में एक कुर्सी पर बैठी थीं, तो उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मुझे लगा कि ये कोई और है.” “वह बस इतना ही कह सके कि अजय नारायण ने उन्हें पीटा है. ई-रिक्शा चालक ने मुझसे झूठ बोला और कहा कि उसने उन्हें बाईपास रोड पर पड़ा हुआ पाया. जब पुलिस ने उसे (रिक्शा चालक) पकड़ा, तो उसने खुलासा किया कि अजय नारायण ने उससे मेरे पति को घर ले जाने के लिए कहा था.
23 सितंबर को, सुल्तानपुर के जयसिंहपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के 55 वर्षीय डॉक्टर तिवारी को एक भूमि विवाद को लेकर अजय नारायण सिंह और उनके सहयोगियों ने कथित तौर पर पीटा और प्रताड़ित किया. पुलिस द्वारा स्वत: संज्ञान से दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के अनुसार, अजय और “दो अज्ञात साथियों” पर हत्या (भारतीय दंड संहिता की धारा 302) का मामला दर्ज किया गया है. दिप्रिंट के पास एफआईआर की कॉपी है.
सुल्तानपुर पुलिस ने अजय के पिता और मामले में सह-आरोपी जगदीश नारायण को गिरफ्तार कर लिया है और अजय की गिरफ्तारी के लिए सूचना देने वाले को 50,000 रुपये का इनाम देने की घोषणा की है, जो फिलहाल फरार है.
इस बीच, डॉक्टर के परिवार ने दावा किया है कि उन्हें ड्रिल मशीन से भी प्रताड़ित किया गया था, और आरोप लगाया कि इसमें तीन अन्य लोग अजय के चाचा गिरीश नारायण और चचेरे भाई विजय और चंदन नारायण शामिल थे.
गिरीश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सुल्तानपुर इकाई के पूर्व जिला अध्यक्ष हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह बीजेपी की राज्य कार्यकारी समिति के सदस्य हैं. चंदन भाजपा की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के जिला अध्यक्ष हैं.
प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने दिप्रिंट से पुष्टि की कि चंदन नारायण BYJM के जिला अध्यक्ष हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि स्थानीय सुल्तानपुर इकाई ही इसकी पुष्टि कर सकती है कि गिरीश नारायण भाजपा राज्य कार्यकारी समिति के सदस्य हैं या नहीं.
घटना के बाद से, स्थानीय अधिकारियों ने निशा को राज्य सरकार द्वारा दिए जा रहे 10 लाख रुपये के मुआवजे को स्वीकार करने के लिए मनाने के लिए तिवारी के घर के कई चक्कर लगाए हैं. लेकिन अब तक उन्होंने ऐसे हर ऑफर को ठुकरा दिया है.
तिवारी परिवार तत्काल गिरफ्तारी, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच, साथ ही निशा के लिए सरकारी नौकरी के साथ 1 करोड़ रुपये का मुआवजा चाहता है.
लेकिन सात साल के बच्चे की मां निशा के लिए न्याय ही सब कुछ है. “मुझे ब्राह्मण दक्षिणा की आवश्यकता नहीं है,” उसने उन अधिकारियों से कहा जो दिप्रिंट के दौरे पर मौजूद थे.
उन्होंने कहा कि “पैसा बहुत मायने रखता है लेकिन यह सब कुछ नहीं है. इतने दिन बाद भी आरोपी गिरफ्तार नहीं हुआ है.”
इस हत्या ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है, जिससे राज्य के ब्राह्मण और ठाकुर एक-दूसरे के खिलाफ हो गए हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में, राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी ब्राह्मण राजनेता अपने साथी जाति के सदस्य के लिए न्याय की मांग करने के लिए एकजुट हुए. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जाति से ठाकुर हैं.
यह हत्या अगले आम चुनाव से एक साल पहले हुई है, जिसमें उत्तर प्रदेश लोकसभा में 80 सांसद भेजेगा, जो भारत के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक संख्या है.
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प्रताड़ना का आरोप
निशा ने बताया कि 23 सितंबर को शाम चार बजे घनश्याम घर आये और 3500 रुपये मांगे. उन्होंने अपने पति को याद करते हुए बताया कि यह पैसा उस व्यक्ति को दिया जाना था जो जमीन के एक टुकड़े पर उनके जल्द ही बनने वाले घर का नक्शा बना रहा था, जिसे उन्होंने अजय नारायण के पिता जगदीश से खरीदा था.
बाद में, उन्होंने कहा कि उन्हें एहसास हुआ कि उनके पति को अजय नारायण से दो कॉल आए थे – एक सुबह 10:28 बजे और दूसरा दोपहर 3:30 बजे – कथित तौर पर अधिक पैसे की मांग करने के लिए.
उनके अनुसार, विवाद की वजह 2 बिस्वा का वह प्लॉट है जो उन्होंने नारायण परिवार से खरीदा था. एक बिस्वा 1361.24 वर्ग फुट भूमि के बराबर होता है.
निशा ने दावा किया कि तिवारी ने प्लॉट के लिए 50 लाख रुपये का भुगतान किया था, लेकिन अजय नारायण उन पर और अधिक भुगतान करने के लिए “दबाव” बना रहे थे.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया,“मेरे पति ने उन्हें अतिरिक्त 50,000 रुपये दिए लेकिन वह लगातार और अधिक के लिए दबाव बना रहे थे और हमें जमीन का कब्ज़ा देने से इनकार कर रहे थे. हम नवरात्रि के दौरान अपने घर का निर्माण शुरू करना चाहते थे.”
परिवार का दावा है कि घनश्याम के हमलावरों ने उसकी जांघों और दोनों पैरों में छेद कर दिया. इसके अलावा, उनके छोटे भाई रवींद्र तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, “उनका दाहिना हाथ टूट गया था.”
वह बताते हैं कि उस दिन जब घनश्याम घर आया, तो उसने जो जूते पहने हुए हुए थे वह पूरीतरह खून से भीगे हुए थे.
उन्होंने कहा, “जब मुझे एहसास हुआ कि यह वास्तव में मेरे पति हैं, तो मैं चौंक गई और उन्हें घर के अंदर आने के लिए कहा, लेकिन एक पड़ोसी ने उनके पैरों से निकल रहे खून और मवाद की ओर मेरा ध्यान दिलाया और यह भी दिखाया कि कैसे जूता खून से सना हुआ है.” इसके बाद पड़ोसियों ने तिवारी को अस्पताल पहुंचाने में मदद की.
कोतवाली पुलिस स्टेशन में, जहां मामले की जांच चल रही है, स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) श्रीराम पांडे ने दिप्रिंट से पुष्टि की कि पोस्टमार्टम के दौरान कुल 10 चोटें पाई गईं, जिनमें एक टूटा हुआ हाथ और दोनों पैरों पर चोटें शामिल थीं.
सुल्तानपुर के पुलिस अधीक्षक सोमेन बर्मा ने कहा कि प्रथम नजर में ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़ित को डंडे से पीटा गया है. उन्होंने यह भी कहा कि शव परीक्षण रिपोर्ट में ऐसी कोई चोट नहीं दिखाई गई है जिससे यह संकेत मिले कि तिवारी को ड्रिल मशीन से प्रताड़ित किया गया था.
उन्होंने कहा, “रिपोर्ट फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल), लखनऊ को भेज दी गई है और विश्लेषण के बाद हमें कुछ और मिल सकता है.”
‘प्रभावशाली परिवार’
निशा के मुताबिक, पुलिस ने एक सादे कागज पर उनके हस्ताक्षर लिए और 24 सितंबर को खुद ही एफआईआर दर्ज कर ली.
जबकि सुल्तानपुर पुलिस की एफआईआर में अजय नारायण और “दो अज्ञात सहयोगियों” का नाम है, निशा नारायण सिंह परिवार में अन्य लोगों – पिता जगदीश, चाचा गिरीश और चचेरे भाई विजय और चंदन का नाम लेते हुए एक नई एफआईआर दर्ज करना चाहती है.
24 सितंबर को – पुलिस एफआईआर के उसी दिन – दर्ज की गई एक नई शिकायत में निशा ने आरोप लगाया कि आरोपी अजय नारायण और चार अज्ञात लोगों ने उसके पति की पिटाई की.
उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा, ”पति की मृत्यु के बाद मैं अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थी और पुलिस द्वारा कोरे कागज पर मेरे हस्ताक्षर लेने और मामले का स्वत: संज्ञान लेने के बाद एफआईआर दर्ज की गई, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है.”
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, लेकिन पुलिस का कहना है कि जांच उसकी अपनी एफआईआर के आधार पर जारी रहेगी और उसकी शिकायत को जांच का हिस्सा बनाया जाएगा.
जब नारायण परिवार के अन्य लोगों के खिलाफ निशा के आरोपों के बारे में पूछा गया, तो एसपी सोमेन बर्मन ने कहा कि यह “(चल रही) जांच का हिस्सा था”.
लेकिन निशा का दावा है कि अजय नारायण का परिवार क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मेरे पति की मृत्यु के बाद, हम कई लोगों से मिले जिन्होंने उत्पीड़न की अपनी कहानियां साझा कीं और बताया कि कैसे उनके साथ भी इसी तरह का दुर्व्यवहार किया गया था.” “अजय नारायण का परिवार एक ही संपत्ति को कई बार बेचने और क्षेत्र में होने वाली प्रत्येक बिक्री पर कटौती की मांग करने के लिए कुख्यात है”.
जांच से जुड़े एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने यह भी दावा किया कि लोग परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से “बहुत डरे हुए” थे.
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‘ब्राह्मण बनाम ठाकुर’ विवाद
इस बीच, यह मामला यूपी में सदियों पुरानी ‘ब्राह्मण बनाम ठाकुर’ की लड़ाई को जन्म दे रहा है. 30 सितंबर को, राज्य भर के ब्राह्मण राजनेता तिवारी के लिए एक शोक सभा में सुल्तानपुर के तिकोनिया पार्क में एकत्र हुए.
राजनेताओं के इस प्रेरक समूह में शिवसेना नेता पवन पांडे, भाजपा के देओमणि द्विवेदी, समाजवादी पार्टी के संतोष पांडे और भाजपा के जय नारायण तिवारी शामिल थे.
10,000 की भीड़ को संबोधित करते हुए, अकबरपुर के पूर्व विधायक पवन पांडे ने दावा किया कि वह जानते हैं कि अपनी ही जाति के साथी का बदला कैसे लेना है. उन्होंने दावा किया कि जब उनके परिवारों पर अत्याचार होगा तो ब्राह्मण चुप नहीं बैठेंगे.
गौरतलब है कि सुल्तानपुर जिला प्रशासन ने नारायण सिंह परिवार की तीन संपत्तियों को तोड़ने के लिए इस सप्ताह की शुरुआत में एक विध्वंस अभियान चलाया था. बुलडोज़रों को अक्सर आदित्यनाथ सरकार के तत्काल “न्याय” देने के तरीके के रूप में देखा जाता है.
नष्ट की गई संपत्तियों में चंदन का कार्यालय भी शामिल है, जहां से वह जिला भाजयुमो कार्यालय चलाता था.
लेकिन तिवारी परिवार आश्वस्त नहीं है – घनश्याम के भाई रवींद्र का कहना है कि मामले में आरोपियों को गिरफ्तार करने में सरकार की “असमर्थता” “जातिवाद” का संदेश देती है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “ब्राह्मणों ने हमेशा भाजपा का समर्थन किया है लेकिन ऐसा लगता है कि हमारा समुदाय अनाथ हो गया है. अगर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, तो हम इस त्रासदी से कभी उबर नहीं पाएंगे और उनका (अजय नारायण) साहस बढ़ेगा.”
अपनी ओर से, भाजपा के ब्राह्मण नेता देवमणि द्विवेदी ने दिप्रिंट को बताया कि वह स्थिति पर “बारीकी से निगरानी” कर रहे हैं.
लंभुआ के पूर्व विधायक द्विवेदी ने दिप्रिंट को बताया, “जिस दिन घटना घटी, उस दिन मैंने अस्पताल में परिवार से मुलाकात की. गुस्सा सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि पुलिस के खिलाफ है. अब एक इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया गया है.”
जहां तक सरकार का सवाल है, वह आरोपियों को पकड़ने के प्रयास कर रही है. विपक्ष मांग कर रहा है कि आरोपियों को मुठभेड़ में गोली मार दी जाए, लेकिन मुठभेड़ एक स्थिति पर निर्भर करती है और यह कोई नियम नहीं है.’
उत्तर प्रदेश सरकार के अपने अनुमान के अनुसार, 2017 में योगी सरकार के पहली बार सत्ता में आने के बाद से राज्य की पुलिस के साथ “मुठभेड़ों” में 183 लोग मारे गए हैं.
लेकिन निशा के लिए, इस घटना ने उसे और उसके परिवार को असुरक्षित महसूस कराया है.
जब प्रिंट निशा के पास मौजूद था तो उन्होंने अधिकारियों से कहा. “हम केवल न्याय चाहते हैं,” उन्होंने कहा, “मेरा परिवार स्वतंत्र रूप से घूम नहीं सकता. मेरा स्वतंत्रता का जीवन चला गया. मेरा बेटा अभी सात साल का है और पूछता है कि उसके पिता कब वापस आएंगे. अगर उन्हें (अजय नारायण को) जेल हो जाती तो हमें कम से कम कुछ राहत तो मिलती.”
(संपादन/ पूजा मेहरोत्रा)
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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