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Monday, 6 May, 2024
होमफीचरमैसूर पैलेस से लेकर मंदिर, मेट्रो और बड़े शहरों तक- कैसे कर्नाटक की महिलाएं ले रही हैं फ्री बस सेवा का आनंद

मैसूर पैलेस से लेकर मंदिर, मेट्रो और बड़े शहरों तक- कैसे कर्नाटक की महिलाएं ले रही हैं फ्री बस सेवा का आनंद

कर्नाटक की महिलाओं को कोई नहीं रोक सकता. जून से जुलाई के बीच मुफ्त शक्ति बस लेने वाली महिला यात्रियों की संख्या दोगुनी हो गई.

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मैसूरु/बेंगलुरु: मयसूरू पैलेस में सात महिलाएं साड़ी पहने और धूल से सनी चप्पलों में हाथ में बैग लिए बागों को चमेली के गजरों से सजाए चहकती हुई नजर आईं. ये सभी महिलाएं राजसी मैसूरु पैलेस में दो घंटों तक घूमती फिरती रहीं और गोधूलि बेला में यहां से चहकती, हंसती खिलखिलाती ही बाहर आईं.

जब वे पैलेस से बाहर आईं तो सभी ने उत्साह से इधर-उधर देखा, तो उनमें से एक ने पूछा, ‘आगे क्या?’ क्योंकि घूमने-फिरने को लेकर उनकी भूख बढ़ती जा रही थी.

यहां से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर कृष्ण राजा सागर बांध घूमने का एक और मनोहारी विकल्प है. लेकिन इन महिलाओं ने ऑटो रिक्शा लेने के बजाय जल्दी-जल्दी पैदल चलकर नजदीकी बस टर्मिनल की ओर पहुंची.

जब से कर्नाटक में नई सिद्धारमैया सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की घोषणा की है, तब से यह बिना रुके इन महिलाओं की जॉय राइड रुकने का नाम ही नहीं ले रही है. अब बस उनकी बहुत अच्छे दोस्तों में शुमार हो गई है. महिलाओं के समूह सड़क पर हैं – उन्हें अचानक दूर के रिश्तेदारों की याद आ रही है, तीर्थयात्रा और महल घूमने देखने जा रही हैं. रातों-रात, कर्तव्य परायण पारिवारिक महिलाएं बैकपैक कर घर के बाहर निकलने लगी हैं.

Women standing in a queue to get tickets at the Mysore bus stand | Manisha Mondal, ThePrint
मैसूर बस स्टैंड पर टिकट लेने के लिए कतार में खड़ी महिलाएं | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट में अपने घरों से बेंगलुरु तक की 9 घंटे की सड़क यात्रा शुरू करने के बाद से बस, महिलाओं की लगातार साथी रही है. तीन दिन और चार रातों वाली इस बस ट्रिप ने न केवल यात्रा के साधन के रूप में काम किया है, बल्कि रात भर सोने के लिए एक होटल के रूप में भी काम किया है, इन महिलाओं ने अपनी इस यात्रा कार्यक्रम में मंदिर के दौरे और पर्यटन स्थलों को शामिल किया है.

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जून में शुरू की गई कर्नाटक शक्ति योजना, जो राज्य द्वारा संचालित सामान्य बसों में कर्नाटक की महिलाओं और ट्रांस लोगों को मुफ्त यात्रा प्रदान करती है, ने एक अभूतपूर्व और अप्रत्याशित रूप से यात्राओं में बढ़ोतरी देखी है और पैटर्न भी बदला है. महिलाएं एक नई तरह की आज़ादी का स्वाद चख रही हैं, सार्वजनिक स्थानों पर अपना दावा कर रही हैं और पुरुषों के बिना आनंद उठा रही हैं, और सड़क पर महिलाएं अपनी और मित्र बना रही हैं जैसा पहले कभी देखा नहीं गया. मुक्त शक्ति ही स्त्री शक्ति है. यह कोई थेल्मा और लुईस नहीं है, लेकिन यह कम मुक्ति से कम भी नहीं है.

50 साल की लक्ष्मी जो आखिरी बार करीब 20 साल पहले घर से बाहर घूमने निकली थीं, जब उनके पति जिंदा थे. वह कहती हैं, “घर से जुड़ा हर तनाव खत्म हो गया है. मैं बहुत रिलैक्स्ड फील कर रही हूं, यहां तक कि खुश भी बहुत हूं! कुल मिलाकर, मैं खुश हूं.”

Two best friends holding each other while walking on the roads of Bengaluru | Manisha Mondal, ThePrint
बेंगलुरु की सड़कों पर चलते हुए दो सबसे अच्छे दोस्त एक-दूसरे को पकड़े हुए | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

जून और जुलाई के बीच, मुफ्त सरकारी बसों में यात्रा करने वाली महिलाओं की संख्या 10.54 करोड़ से लगभग दोगुनी होकर 19.63 करोड़ हो गई जबकि अगस्त में यह संख्या बढ़कर 20.03 करोड़ हो गई. और महिला यात्रियों का उत्साह इन यात्राओं को लेकर कम नहीं हुआ है.

लक्ष्मी मुस्कुराती हुई कहती हैं, “सवारी मुफ़्त है, इसीलिए आये, नहीं तो न आते. हमने इतने सारे मंदिर कभी नहीं देखे.”

यह पहली बार नहीं है जब कर्नाटक की महिलाएं अपने घरों से बाहर यात्रा कर रही हैं, लेकिन यह पहली बार है जब वे वास्तव में खुद को स्वतंत्र महसूस कर रही हैं. इतना ही नहीं, बेल्लारी के एक बीजेपी कार्यकर्ता वीरपक्ष गौड़ा ने कहा कि महिलाएं आक्रामक तरीके से बसों पर कब्जा कर रही हैं.

विरुपक्षा गौड़ा ने कहा कि “एक बार तो महिला यात्रियों की भीड़ के कारण बस का दरवाज़ा तक टूट गया.”

उन्होंने कहा, “बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों को बसों में बैठने की जगह नहीं मिलती है. एक बार महिला यात्रियों की भीड़ के कारण बस का दरवाज़ा टूट गया. योजना को उचित योजना के बिना लागू किया गया है. ”


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एक यात्रा समूह

लक्ष्मी के पैर सूज गए हैं, गणेश चतुर्थी से एक सप्ताह पहले अपने घर से निकलने के बाद से उन्होंने एकबार भी आराम नहीं किया है. वह इस ट्रैवलिंग ग्रुप की सबसे उम्रदराज़ महिला हैं. उन्होंने अपने अगल-बगल की पड़ोसन, जिनमें से अधिकांश की उम्र 40 और 50 के बीच थी, को यात्रा साथी में बदल दिया और दो महीने के लिए इस यात्रा की योजना बनाई.

उत्तरी कर्नाटक के बिलागी गांव की 58 वर्षीय भी इस ग्रुप का हिस्सा हैं. उनका चेहरा झुर्रियों से ढका हुआ था, लेकिन उनकी मुस्कान उम्र बढ़ने के किसी भी लक्षण पर भारी पड़ रही थी. उन्होंने अपने बालों को पोनी स्टाइल में बांध रखा था और उसकी नाक की पिन, भारी झुमके, सोने की चेन और हरी कांच की चूड़ियां उन्हें खूबसूरत बना रही थीं. ये सभी चीजें उनकी नीली और सफेद पॉलिएस्टर साड़ी को कॉम्प्लीमेंट कर रहा था.

जब से शक्ति योजना को हरी झंडी दिखाई गई है, तब से लक्ष्मी 10 गंतव्यों की यात्रा कर चुकी हैं. वह कहती हैं कि यह पिछले 20 वर्षों में परिवारों के शादी के फंक्शन में जाने और अंत्येष्टि के लिए अपने परिवार के साथ यात्रा करने से बहुत अलग अनुभव रहा है. जैसे-जैसे वह कर्नाटक की खोज कर रही हैं, वैसे-वैसे वह खुद को भी खोज रही है.

लक्ष्मी कहती हैं, “यदि यह यात्रा नहीं कर रही होती, तो मैं हर दिन घरेलू काम करने या सब्जियां और किराने का सामान खरीदने के लिए बाजार जाने के अलावा कुछ नहीं कर रही होती.”

उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि अगर वह खूब पढ़ी लिखी होतीं तो वह और भी जगहें देख और घूम सकती थीं, “मुझे मैसूरु पैलेस देखना बहुत पसंद आया. यह देखने में बहुत सुंदर था! ऐसा नहीं है कि मैं इसमें रहना चाहती हूं. लेकिन मैंने अपने जीवनकाल में इतना सुंदर महल कभी नहीं देखा.”

बेंगलुरु की ऊंची इमारतों के सामने खड़े होकर लक्ष्मी ने कहा, “यदि यह यात्रा नहीं होती, तो मैं नियमित घरेलू काम करने या सब्जियां और किराने का सामान खरीदने के लिए बाजार जाने के अलावा और कुछ नहीं कर रही होती. यह खाना पकाने, खाने, आराम करने और सोना यही कर रही होती. लेकिन मैं उस दिनचर्या से दूर रहकर और नई जगहों की खोज करके खुश हूं,” उन्होंने कहा, “सिद्धारमैया को धन्यवाद, मैं ये नज़ारे देख पाई. यह हमारे लिए काफी है, हम खुश हैं.”

Women looking over skyscrapers in Bengaluru | Manisha Mondal, ThePrint
बेंगलुरु में गगनचुंबी इमारतों को देखती महिलाएं | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

लक्ष्मी को अपने दिवंगत पति की पेंशन मिलती है लेकिन वह अपने बड़े बेटे या कॉलेज जाने वाली बेटी के साथ यात्रा करने में झिझक महसूस करती हैं. पिछले महीने, जब उनके पड़ोसियों ने दक्षिणी कर्नाटक के सुदूर जिलों में धर्मस्थल, कुक्के सुब्रमण्यम और अन्नपूर्णेश्वरी मंदिरों की पूरी तरह से महिलाओं की यात्रा का पहला चरण शुरू करने का फैसला किया, तो उन्होंने तुरंत हां कह दी.

यात्रा के दौरान, उन्हें पता चला कि उसके पड़ोसी वास्तव में आदर्श ट्रैवल पार्टनर हैं. वे थकती नहीं हैं, उन्हें भरपूर जीवन जीने का आनंद पता है, साथ ही वो बजट को लेकर भी काफी होशियार हैं – उन्होंने जीवन भर अपने परिवार को मैनेज किया है.

Carrying their bags, women walk towards the bus | Manisha Mondal, ThePrint
महिलाएं अपना बैग उठाकर बस की ओर चल देती हैं | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

लक्ष्मी दूसरे समूह का हिस्सा थीं, जिसने पिछले महीने मंदिर का दौरा किया था. इस दौरान कई महिला समूह के घूमने के लिए कई पैक्स मौजूद हैं जो यात्रा करा रहे हैं. लक्ष्मी की 51 वर्षीय पड़ोसी वंदना ने अपने पड़ोसियों को इस यात्रा का प्रस्ताव दिया था. उनकी भतीजी, चंदा, जो करीब 30 साल की हैं, ब्यूटीशियन का काम करती है और पास के गांव में रहती है, ने फोन पर अपनी चाची को यह बातें बताईं और घूमने का आइडिया दिया.

दो बेटियों की मां चंदा ने कहा, “मैंने कहा कि हमें इस यात्रा पर जाना चाहिए. मैं काम के सिलसिले में अकेले बहुत यात्रा करती हूं, और दोस्तों और परिवार के साथ भी. लेकिन यह पहली बार है जब मैं महिलाओं के एक बड़े समूह के साथ घूमने निकली हूं. ”

वंदना जो प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका के रूप में 4,000 रुपये कमाती हैं और चंदा को छोड़कर, इस समूह में शामिल अन्य महिलाएं अपने पति की आय या पेंशन पर निर्भर हैं. उनके निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार ने उन्हें यात्रा के दौरान कम खर्च करने की सलाह दी. यहां तक कि फूल खरीदना या सुबह की एक कप चाय पीना भी एक कैलकुलेटिव खर्चे में शामिल था. उनके पास होटलों में रात बिताने या यहां तक कि स्ट्रीट फूड खाने की भी सुविधा नहीं थी.
चंदा, शहर के पानी में नेविगेट करने के अपने अनुभव के साथ, यात्रा कार्यक्रम में पर्यटन स्थलों को जोड़कर यात्रा को दिलचस्प बनाना चाहती थी.

First the gang went to have fruits, but they were very expensive. So, they bought peanuts | Manisha Mondal, ThePrint
सबसे पहले गिरोह फल लेने गया, लेकिन वे बहुत महंगे थे। तो, उन्होंने मूंगफली खरीदी | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह से हमारे द्वारा नियोजित यात्रा है, इसमें कोई पुरुष शामिल नहीं है.”

उन्होंने यात्रा की लंबी चौड़ी योजनाएं नहीं बनाई हैं. उनका मुख्य उद्देश्य देवताओं का दर्शन करना और पूजा करना है. यदि रास्ते में कोई लोकप्रिय यात्रा स्थल पड़ता, तो वे चलते-फिरते उसे अपनी सूची में जोड़ लेती हैं.

उनकी यात्रा योजना में आठ गंतव्य शामिल थे – नंदी हिल्स, कोटिलिंगेश्वर मंदिर, नंजनगुड, चामुंडी हिल्स, मैसूरु, श्रीरंगपट्टनम और बेंगलुरु. साड़ियों में घूमने निकलीं इन बैक पैकर्स ने टी ट्रैवल की योजना बनाई है – रात के दौरान बस द्वारा लंबी दूरी तय की करेगी और दिन में मंदिरों और पर्यटन स्थलों का दौरा किया जाएगा. खर्चे में कटौती के लिए दोपहर का खाना हो या फिर रात का खाना मंदिर के भोजन पर भरोसा किया जाएगा और रात में सोने के लिए मुफ्त या सस्ते में मिल रहे घर की खोज भी इसमें शामिल है. 4,000-5,000 रुपये से कम के मामूली बजट में, इन महिलाओं ने तीन दिनों में आसानी से सभी स्थानों को कवर किया.

लक्ष्मी ने कहा, “शहर में हम 2,000-2,500 रुपये लेकर आए थे, वह सब लगभग ख़त्म हो गया है. मंदिरों में दर्शन करते समय हम एक समय के भोजन का प्रबंध मंदिर में ही कर पाते थे. हमने नाश्ता अपने पैसे से किया, लेकिन दोपहर का भोजन हमेशा मंदिर में होता था. यहां शहर में ऐसा नहीं है. हमें दिन में दो बार खाना खाना है. इसके अलावा, हमें मेट्रो की सवारी, ऑटो के लिए पैसे की ज़रूरत पड़ी. ”

जब भी किसी स्थान पर आना-जाना अपेक्षाकृत महंगा लगता था या अधिक समय लगता था, तो गेम प्लान उस स्थान को छोड़कर अगले गंतव्य पर जाने का होता था.

इन महिला समूह का ध्यान हल्की फुल्की यात्रा में भी रहा . उनके कॉम्पैक्ट हैंडबैग में कुछ साड़ियां, एक शॉल और कुछ जरूरी सामान थे. यदि किसी मंदिर में भोजन उपलब्ध नहीं था, तो वे घर से मध्यम आकार के डिब्बों – रोटी, चटनी, मुरमुरे और प्याज – में भोजन और स्नैक्स भी पैक कर अपने साथ रखा था. बक्सों को एक बड़े कपड़े में लपेटा गया था, जिससे उन्हें हाथों में ले जाना आसान हो गया. लक्ष्मी एंड कंपनी वे अपना सारा सामान बस स्टैंड के बैगेज काउंटर पर या उस आवास पर रख देती थीं, जहां वे रात भर रुकती थीं. जबकि अपने पैसे और महंगी चीजें अपने ब्लाउज के अंदर छिपा अपना छोटा पर्स लेकर बाहर निकलती थीं.

Travel essentials packed from home, puffed rice, onions, and roti | Manisha Mondal, ThePrint
यात्रा के लिए जरूरी सामान घर से पैक किया गया, मुरमुरे, प्याज और रोटी | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

उनके हाथ में सिर्फ एक स्मार्टफोन और एक रूमाल था. उनमें से दो के पास फ़ोन भी नहीं थे. उनकी दुनिया तकनीक-प्रेमी नहीं है, फोन का उपयोग कॉल करने तक ही सीमित है.

महिलाएं हमेशा मंदिर जाने और अगले गंतव्य की ओर जाने की जल्दी में दिखाई देती रहती हैं. लेकिन श्रीरंगपट्टनम के पास एक नदी के किनारे तीन महिलाएं थोड़ी देर के लिए रुक गईं. उन्होंने एक मंदिर के बाहर तस्वीर खिंचवाई. वंदना उनमें से एक थी, उसके चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी. वह एक लाल साड़ी दिखा रही थी जो उसे एक पुजारी से मिली थी. यह केआरएस बांध तक न पहुंच पाने की पिछले दिन की निराशा को दूर करने का एक अच्छा तरीका था.


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बेंगलुरू की पहली यात्रा

एक शाम पहले, जब महिलाओं का यह ग्रुप डैम पर जाने के लिए मैसूरु पैलेस गेट के बाहर इंतजार कर रहा था, चंदा ने सबसे पहले बुरी खबर सुनाई ने वाली थी. “अरे सुनो! ऑटो रिक्शा महंगा पड़ेगा. आइए हम बस स्टॉप पर जाएं और जांच करें,” उसने महिलाओं से कहा.

बस टर्मिनल पर, उसकी चाची बड़ी उत्सुकता से बस की तलाश कर रही थी. एक ड्राइवर ने कहा, “इलामा (नहीं मैडम), जब तक आप पहुंचेंगे, केआरएस डैम में प्रवेश बंद हो जाएगा.”

सभी निराश थीं लेकिन शोक मनाने का समय नहीं था. महिलाओं ने अपने लिए बनाए गई योजनाओं में बदलाव करने की आजादी भी दे रखी थी. क्योंकि सब कुछ योजना के अनुसार नहीं होता.

सभी श्रीरंगपट्टनम के अपने अगले पड़ाव के लिए निकल पड़ीं, इस उम्मीद में कि उन्हें रात भर रुकने के लिए एक मंदिर का गेस्टहाउस मिल जाएगा. लेकिन नींद उनकी चिंता में शामिल नहीं थी. वे अब उस बस टर्मिनल पर डेरा डालने के लिए भी तैयार थीं, जो रात 9 बजे के आसपास उनके पहुंचने तक लगभग सुनसान हो चुका था.

वे जानते थीं कि अगर वे एक साथ रहेंगी तो उन्हें सुरक्षा का कोई डर नहीं है. अजीब आदमी इधर-उधर घूम रहे थे, कुछ रुककर महिलाओं को घूर रहे थे. एक आवारा कुत्ता पूरी रात चिल्लाता रहा. लेकिन महिलाओं ने कहा कि वे असुरक्षित महसूस नहीं कर रही थीं उनके पास सभी जरूरी फोन नंबर थे और वो खुद भी सात थीं.

बस टर्मिनल पर उन्हें पता चला कि पास के एक मंदिर में एक गेस्टहाउस चलता है.

पूजा, जो इस समूह का हिस्सा है, को इस साहसिक यात्रा पर निकलने से पहले अपने पति को मनाना पड़ा. उसने उन्हें बताया कि यह सात महिलाओं की जादुई संख्या है, जिसने उसे आश्वस्त किया कि वह सुरक्षित रहेंगी.

उन्होंने कहा, “ मेरे पति ने वास्तव में मुझे नहीं जाने के लिए कहा था. मैंने उनसे कहा कि हम सब साथ जा रहे हैं. अगर हम सब एक साथ यात्रा करेंगे तो कोई समस्या नहीं होगी. कोई भी हमें अकेले इधर-उधर जाने नहीं देगा. वे हममें से केवल 4-5 लोगों को भी मंदिरों में नहीं भेजेंगे. हम एक बड़ा ग्रुप हैं इसलिए हमने यह योजना बनाई.”

महिलाएं बड़े शहर की ओर जा रही थीं. यह बेंगलुरु घूमने का उनका पहला मौका था.

श्रीरंगपट्टनम की बस में वे उत्साह से भरी हुई थीं.

Women hop from one bus to another with their backpacks and luggage packed with food | Manisha Mondal, ThePrint
महिलाएं अपने बैकपैक और भोजन से भरे सामान के साथ एक बस से दूसरी बस तक जाती हुईं/ मनीषा मंडल, दिप्रिंट

वंदना ने कहा, “कल हम बेंगलुरु में होंगे. मैं मेट्रो की सवारी के लिए इंतजार नहीं कर सकती.”

मैसूरू मंदिर की यात्रा के बाद पहली बार आराम करने जा रही अधिकतर महिलाएं थकान महसूस कर रही थीं.

लक्ष्मी ने कहा, “मैं भी इंतज़ार कर रही हूं! मुझे उम्मीद है कि कल बहुत महंगा साबित नहीं होगा. लेकिन मैं शहर को घूमना और इसे देखना चाहती हूं.”

घंटे भर की यात्रा के दौरान ही महिलाओं को झपकी आने लग गई.

उन्होंने दिन की शुरुआत भोर में की और सुबह 7 बजे तक रंगनाथस्वामी मंदिर में पहुंच चुकी थीं. मंदिर के दर्शन के बाद पास की अस्थायी दुकानों पर छोटी खरीदारी का दौर चला. कुछ ने विष्णु, शिव और गणेश की छोटी मूर्तियां खरीदीं, दूसरों को सिन्दूर, सिन्दूर पाउडर रखने के लिए छोटे छोटे डिब्बे मिले.

Women on a small shopping spree | Manisha Mondal, ThePrint
खरीदारी की होड़ में महिलाएं | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

सड़क किनारे एक दुकान पर चाय, सांभर और इडली का नाश्ता करने के बाद, समूह राजधानी को देखने के लिए बस में चढ़ने के लिए तैयार था. महिलाएं डरी हुई थीं, लोगों की भारी संख्या, यातायात और बुनियादी ढांचे ने उन पर दबाव डाला. वे अपनी मंदिर यात्राओं से तुलना करती रहीं लेकिन उन्होंने अपने नये शहरी जीवन को भी खूब इंजॉय किया.

शहर में आकर उनकी बातचीत बंद नहीं हुई. लक्ष्मी लोगों की संख्या देखकर हैरान थीं और ट्रैफिक से दुखी नजर आईं.

उन्होंने बेंगलुरु में मैजेस्टिक बस स्टैंड के रास्ते में कहा.“अइयो (हे भगवान!) हम अभी तक नहीं पहुंचे? हम पिछले दो मिनट से एक ही जगह पर खड़े हैं हिले भी नहीं हैं. मुझे उम्मीद है कि हम बेंगलुरु के सभी स्थानों को देख सकते हैं. ”

चंदा, जिसे शहर की भीड़ से निपटने का अधिक अनुभव था, ने उन्हें शांत करने की कोशिश की.

उन्होंने कहा, “अगर समय हो तो मैं आपको चिकपेट (एक प्रसिद्ध शॉपिंग डेस्टिनेशन) भी ले जाना चाहती हूं,”

मैजेस्टिक बस टर्मिनल समूह के लिए मेट्रो तक पहुंचने का एक पिटस्टॉप था – बेंगलुरु के यातायात को रोकने का सबसे अच्छा विकल्प. नादप्रभु केम्पेगौड़ा मेट्रो स्टेशन पर, वे कतार में खड़े हुए और तरोताजा होने के लिए एक छोटे से शौचालय में चले गए. उन सभी ने अपने बालों में कंघी की और अपने पहने हुए फूलों को ठीक किया. कुछ ने तो दूसरी साड़ी भी पहन ली.

The travelling group is ready to take their first metro ride | Manisha Mondal, ThePrint
महिलाएं अपनी पहली मेट्रो यात्रा करने के लिए तैयार | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

यह शहर अब तक का सबसे महंगा पड़ाव साबित हुआ.

बेंगलुरु में प्रवेश करते ही उन्हें पैसे खर्च करने पड़ रहे थे- बस स्टेशन पर अपना सामान रखने के लिए भुगतान करना पड़ रहा था, मेट्रो ट्रेन और ऑटो के किराए का भुगतान करना पड़ा . उनकी पिछली मंदिर यात्राओं के विपरीत शहर में मुफ्त भोजन प्राप्त करना कठिन था.

पूजा ने कहा, “लोग शहर में बहुत पैसा खर्च करते हैं.”

चार लोगों का परिवार चलाने वाली 48 वर्षीय के लिए यह पहली ग्रुप यात्रा थी. यह यात्रा अजनबियों के प्रति उसकी शंका को कम कर रही थी और साथ ही उसे धड़कते शहरी जीवन का गवाह भी बना रही थी. उन्होंने छोटे शहरों और बड़े शहरों में लोगों के पैसे खर्च करने के तरीकों में बड़ा अंतर देखा.

उन्होंने अपनी यात्रा को कुछ इस तरह से कहा, “ठीक है, दोनों (छोटे शहर और बड़े शहर) अपने-अपने तरीके से अच्छे हैं.”

पूजा की लगातार चल रही यात्राओं, जिसमें उनकी पहली बेंगलुरु यात्रा भी शामिल है, ने उन्हें नए पंख दिए हैं. अब, उनके पास लंबी लिस्ट है जिसमें 12वीं सदी के शिव मंदिरों के साथ बेलूर और हलेबिदु की यात्राएं शामिल हैं, जो शक्ति योजना शुरू होने से पहले से उनकी लिस्ट में शामिल थी. उन्होंने कहा कि अब उन्हें कहीं भी जाने के लिए अपने परिवार पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है.

हालांकि, वह जानती है कि उसे अपनी अगली यात्रा शुरू करने में कुछ समय लगेगा. क्योंकि आने वाले दो महीनों में लगातार आने वाले त्योहार – गणेश चतुर्थी, दशहरा, दीपावली – उसे व्यस्त रखने वाले हैं.

उन्होंने कहा, ”मैं दशहरे से पहले कुछ जगहें देखना चाहती थी.”


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गोपनीयता की जमकर रखवाली कर रही हैं

बस स्कीम ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं के लिए यात्रा का आनंद लेने के दरवाजे खोल दिए हैं, जिसके बारे में पहले कभी उन्होंने इसके बारे में सोचा भी नहीं था. इसने उन्हें एक नया आत्मविश्वास, आवाज और जबरदस्त इच्छाएं प्रदान की हैं. लेकिन इस आज़ादी को खोने की भयावह संभावना उनके मन से दूर नहीं हुई हैं.

A woman looks outside the bus window while leaving the Mysuru city centre | Manisha Mondal, ThePrint
मैसूर सिटी सेंटर से निकलते समय एक महिला बस की खिड़की से बाहर देखती हुई | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

मैजेस्टिक बस स्टेशन पर, पांच महिलाएं शहर के लोकप्रिय मंदिर धर्मस्थल पर जाने के लिए बस में चढ़ने का इंतजार कर रही थीं. वे अपनी प्राइवेसी की रक्षा कर रही थीं. वो सभी अपने परिवार की प्रतिक्रिया के डर से सुर्खियों में नहीं आना चाहती है.

बस स्टेशन पर एक महिला ने कहा, “हमें जो भी थोड़ी बहुत आजादी मिली है, अगर हम खबरों में दिखेंगे तो वह भी चली जाएगी.”

यहां तक कि लक्ष्मी और उनकी इस यात्रा की साथियों ने भी नाम न छापने का अनुरोध किया. लेकिन उनकी चिंताएं पारिवारिक चिंताओं से उपजी नहीं थीं. सभी महिलाएं क्षत्रिय जाति से थीं और उनकी उत्पत्ति शिवाजी महाराज के वंश से हुई थी. उन्हें डर था कि अगर वे अपनी खुशी कुछ ज़्यादा ही व्यक्त करेंगी तो उनके समुदाय को उनके राजनीतिक झुकाव के बारे में पता चल जाएगा. उनके बागलकोट निर्वाचन क्षेत्र में एक कांग्रेस विधायक और एक भाजपा सांसद हैं.

कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम शक्ति योजना से पहले महिला यात्रियों का डेटा नहीं रखता था, मुफ्त सेवा से पहले 84 लाख यात्रियों की कुल संख्या रखने वाले परिवहन विभाग का कहना है कि अब यात्रियों की संख्या बढ़कर 1.12 करोड़ हो गई है. 14 सितंबर तक पूरे कर्नाटक में कुल 59,56,87,059 महिला यात्रियों ने इस सेवा का उपयोग किया है.

Women juggle to take the red bus | Manisha Mondal, ThePrint
लाल बस लेने के लिए जुगाड़ करती महिलाएं | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

शक्ति की अप्रत्याशित सफलता

बसों में महिलाओं की इस जॉय राइड्स में जो बूम आया है उसे लेकर कर्नाटक सरकार भी जोरदार तैयारी कर रही है. राज्य के चारों परिवहन निगमों में कुल 24,000 बसें और लगभग 1.1 लाख कर्मचारी हैं. शक्ति योजना के तीन महीने बाद, सरकार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 5,000 और बसें जोड़ने और 13,000 बस ड्राइवरों और कंडक्टरों की भर्ती करने की तैयारी में है.

परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने कहा कि शक्ति योजना से पहले एक दिन में औसतन 83 लाख लोग सरकारी बसों में यात्रा कर रहे थे. यह संख्या बढ़कर 1.1 करोड़ हो गई, जो दर्शाता है कि लगभग 27-28 लाख से अधिक लोग सार्वजनिक परिवहन ले रहे हैं.

उन्होंने कहा, “लेकिन हमें इतनी उम्मीद नहीं थी. हमें 10-20 फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद थी. लेकिन यह संख्या लगभग 30 लाख है, जिसका मतलब है कि लगभग 25 प्रतिशत अधिक लोग यात्रा कर रहे हैं. अब लोग मंदिरों और पर्यटन स्थलों पर जाने लगे हैं. हमने सोचा था कि यह कुछ समय बाद कम हो जाएगा लेकिन यह कम नहीं हो रहा है.”

मंत्री ने कहा कि संख्या में वृद्धि इसलिए हो रही है क्योंकि लोग सड़क परिवहन बसों की ओर रुख कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जो लोग पहले ऑटो का इस्तेमाल करते थे या निजी तौर पर संचालित बसों या मेट्रो का इस्तेमाल करते थे और यहां तक कि जो लोग पैदल ही छोटी दूरी तय करते थे, वे सभी राज्य निगम की बसों का रुख कर रहे हैं.

The red buses of KSRTC are free for women | Manisha Mondal, ThePrint
KSRTC की लाल बसें महिलाओं के लिए निःशुल्क हैं | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

रेड्डी ने कहा कि सरकार सड़क परिवहन निगमों को रिम्बर्स करेगी. उन्होंने साफ किया, ” सरकार उनका नुकसान नहीं होने देगी बल्कि इसका भुगतान सरकार करेगी.”

कई लोग इस बात से भी आशंकित हैं कि यह योजना जल्द ही वापस ली जा सकती है, जो उन्हें इस सेवा का तुरंत उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहा है .

हम दोबारा सत्ता में आएंगे. इसका मतलब है कि यह कार्यक्रम 10 वर्षों तक रहेगा, परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी

उन्होंने कहा, “योजना जारी रहेगी. हमारा अगला चुनाव 2028 में है और हम फिर से सत्ता में आएंगे. इसका मतलब है कि यह कार्यक्रम 10 वर्षों तक रहेगा.”

लेकिन बेंगलुरु के रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की एसोसिएट प्रोफेसर मेघना वर्मा शक्ति योजना को लेकर आशंकित हैं.

Students avail the free bus service for weekend trips | Manisha Mondal, ThePrint
छात्र सप्ताहांत यात्राओं के लिए निःशुल्क बस सेवा का लाभ उठाते हैं | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

अपने अध्ययन, इंस्टीट्यूशनलाइज़िंग जेंडर स्मार्ट एंड जेंडर एस्ट्यूट मोबिलिटी में, वर्मा ने पाया कि महिला की समावेशी (इनक्लूसिव) परिवहन नीति की आवश्यकता को महिला विशेष परिवहन नीति के रूप में “गलत नहीं समझा जाना चाहिए”.

उन्होंने कहा,”अगर सरकार वास्तव में हाशिए पर रहने वाली महिलाओं की परवाह करती है, तो उन्हें बसों की फ्रीक्वेंसी (आवृत्ति) बढ़ानी चाहिए और बस को प्राथमिकता वाली लेन देनी चाहिए ताकि उनकी यात्रा का समय कम हो और कार्यस्थल पर उनकी उत्पादकता में सुधार हो, जिसके परिणामस्वरूप में सुधार होगा.”

वर्मा ने कहा कि सीमित प्रकार की बसों पर मुफ्त सेवाएं प्रदान करना इस योजना को लंबे समय में सफल कहने के लिए पर्याप्त नहीं है.

वर्मा ने कहा, ”पहले से लेकर आखिरी मील तक कनेक्टिविटी में सुधार की जरूरत है.”

प्रोफेसर ने कहा कि योजना के प्रभाव को आंकने का एक तरीका यह देखना है कि क्या बसों में मुफ्त यात्रा से मध्यम वर्ग की महिलाओं और व्हाइट-कॉलर जॉब्स करने वालों को मदद मिली.

ख़ुशी की गारंटी

बेंगलुरु में लता अपनी पहली मेट्रो यात्रा के दौरान गगनचुंबी इमारतों को देखने में व्यस्त हैं. यह राजधानी में उसका पहला मौका था और ग्रुप के साथ घूमना भी उनका पहला मौका था. शक्ति योजना की घोषणा के ठीक 2-3 दिन बाद, वह एक अन्य समूह के साथ उडुपी और मंगलुरु की यात्रा पर भी गईं थीं.

कपड़े सिलकर जीविकोपार्जन करनेवाली लता के पास बार-बार निजी यात्राओं के लिए ज्यादा पैसे नहीं बचते. इस बार, वह डैम देखने की उम्मीद कर रही थी, जो उन्हें संभव नहीं लग रहा था. लेकिन अब वह भविष्य में और अधिक यात्राओं के बारे में सोच रही हैं उन्हें इन बसों की असुविधाजनक बस यात्राओं और अनिश्चित रात्रि प्रवास से बिल्कुल भी शिकायत नहीं है.

उन्होंने कहा.“इससे अधिक कुछ भी लग्ज़री नहीं हो सकता.”

इस ग्रुप को इस्कॉन मंदिर में एक अलग ऊर्जा महसूस हुई.

Iskcon temple in Bengaluru, the last stop for women in the city | Manisha Mondal, ThePrint
बेंगलुरु में इस्कॉन मंदिर, शहर में महिलाओं के लिए आखिरी पड़ाव | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

चंदा ने कहा, “यह मंदिर उन सामान्य मंदिरों की तरह नहीं है जिन्हें हममें से अधिकांश लोगों ने देखा है. वहां बहुत सारे लोग और विदेशी भी थे. इतने सारे लोगों को देखना आकर्षक था. ”

उन्हें मंदिर का मुफ़्त प्रसाद मिला, लेकिन उन्होंने पकौड़े और पुलियोगरे (इमली चावल) खरीदने के लिए पैसे भी खर्च किए. जैसे ही बेंगलुरु के आसमान में बादल छाए, ग्रुप की बुजुर्ग महिलाएं बस स्टैंड के लिए रवाना हो गईं. चंदा और दो अन्य लोग श्री कांतिरवा स्टूडियो गए, जहां कन्नड़ अभिनेता पुनीथ राजकुमार का अंतिम संस्कार किया गया था.

First time in Bengaluru, and first time using escalators, they held on to each other. Some of them chose stairs instead | Manisha Mondal, ThePrint
बेंगलुरु में पहली बार, और पहली बार एस्केलेटर का उपयोग करते हुए, उन्होंने एक-दूसरे को पकड़ रखा था। उनमें से कुछ ने इसके बजाय सीढ़ियों को चुना | मनीषा मंडल, दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “जब हम वहां गए तो एक सीरियल चंद्रिका की शूटिंग चल रही थी. बारिश के कारण अभिनेता छुट्टी पर थे और मुझे उनमें से कुछ के साथ सेल्फी लेने का मौका मिला. यह मेरे लिए यात्रा का सबसे अच्छा अनुभव रहा.” .

अनुरोध पर महिला यात्रियों के नाम बदल दिए गए हैं.

(संपादन/ पूजा मेहरोत्रा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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