नई दिल्ली: मध्य प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने पिछले सप्ताह 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था. अब इस मुद्दे पर पार्टी आलाकमान के हाथ बंधे नजर आ रहे हैं.
सीएम उम्मीदवारों की घोषणा जैसे निर्णय आमतौर पर गांधी परिवार ही लेता आया है. लेकिन अचानक से राज्य के नेताओं का कमलनाथ को सीएम का चेहरा घोषित करना उनके अधिकार को कम करने के समान देखा जा रहा है. इसे लेकर फिलहाल तो केंद्रीय नेतृत्व कुछ कहता नजर नहीं आ रहा. इसकी वजह शायद कमलनाथ के साथ उनके समीकरण हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए, कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि वे इस बात से नाराज हैं कि कमलनाथ ने पार्टी आलाकमान को लूप में नहीं रखा, लेकिन उन्होंने किसी भी तरह की कार्रवाई की संभावना से इंकार किया क्योंकि कमलनाथ ‘गांधी परिवार के प्रति वफादार’ हैं.
75 साल के कमलनाथ, मार्च 2020 में अपनी सरकार के बहुमत खोने तक मध्य प्रदेश के सीएम के रूप में काम करते रहे थे. वह गांधी और तथाकथित जी-21 -(मूल रूप से जी -23) वरिष्ठ नेताओं के एक समूह के बीच एक वार्ताकार के रूप में कार्य कर रहे हैं. कांग्रेस के अंदर का विपक्ष कहे जाने वाले इस समूह से जुड़े नेता शुरुआत से ही सामूहिक और समावेशी नेतृत्व की व्यवस्था, हर स्तर पर निर्णय लेने और संगठन में बदलाव की मांग करते आए हैं.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए एआईसीसी के चार प्रवक्ताओं से संपर्क किया तो उन्होंने इस मुद्दे पर किसी भी तरह की जानकारी से इनकार कर दिया.
हालांकि, कई वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं ने कहा कि कमलनाथ की सीएम उम्मीदवारी पर उनके साथ चर्चा नहीं की गई, जबकि अन्य ने कहा कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ही इस संबंध में अंतिम फैसला लेंगी. वैसे राज्य के कुछ नेताओं का दावा ये भी है कि कमलनाथ के सीएम चेहरे पर गांधी परिवार पहले से ही एक अनौपचारिक मुहर लगा चुका है.
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए कमलनाथ से संपर्क करने की कोशिश की, पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
अचानक हुई घोषणा, ‘आलाकमान की सहमति की जरूरत नहीं’
4 अप्रैल को राज्य इकाई में विभिन्न गुटों का प्रतिनिधित्व करने वाले मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं ने अपने मतभेदों को एक तरफ रखते हुए ऐलान किया कि पार्टी पूर्व सीएम कमलनाथ के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगी.
यह फैसला कमलनाथ के आवास पर राज्य इकाई की एक बैठक के दौरान लिया गया. बैठक में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और कांतिलाल भूरिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एन.पी. प्रजापति और विधानसभा की पूर्व डिप्टी स्पीकर हिना कावरे शामिल थीं.
इसके तुरंत बाद अरुण यादव ने ट्वीट किया, ‘मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ की अध्यक्षता में आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई .’
आज मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष आदरणीय कमलनाथ जी की अध्यक्षता में एक अति महत्वपूर्ण बैठक आहूत हुई ।
भाजपा के कुशासन के खिलाफ कांग्रेस पार्टी एकजुट होकर आदरणीय राहुल गांधी जी एवं कमलनाथ जी के नेतृत्व में 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी ।#Mission2023 pic.twitter.com/4JX19A0inB— Arun Subhash Yadav ?? (@MPArunYadav) April 4, 2022
उन्होंने कहा, ‘ कांग्रेस पार्टी भाजपा के कुशासन के खिलाफ राहुल गांधी और कमलनाथ के नेतृत्व में 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी’
दिप्रिंट से बात करते हुए, मध्य प्रदेश कांग्रेस महासचिव के.के. मिश्रा ने बताया कि कमलनाथ को सर्वसम्मति से सीएम उम्मीदवार के रूप में चुन लिया गया है. मध्यप्रदेश के लोग उन्हें एक ‘दूरदर्शी’ नेता के रूप में देखते हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या प्रोटोकॉल तोड़ने वाली एकतरफा घोषणा से शीर्ष नेतृत्व नाराज हो सकता है, मिश्रा ने कहा: ‘कमलनाथ एक राष्ट्रीय नेता हैं. वह पार्टी में चौथे नंबर पर आते हैं… असल में वह दूसरे नंबर पर आते हैं क्योंकि वह उम्र और तजुर्बे में राहुल और प्रियंका गांधी से बड़े हैं. उन्हें पार्टी आलाकमान की सहमति की जरूरत नहीं है.’
राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री और जबलपुर से मौजूदा सांसद तरुण भनोट बैठक में मौजूद वरिष्ठ नेताओं में से एक थे. उन्होंने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा, ‘हमने उन्हें नेता के रूप में चुना है. जाहिर तौर पर इस पर पार्टी आलाकमान की मंजूरी की मुहर है, तभी तो वह राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं.’
यह पूछे जाने पर कि क्या इस कदम को केंद्रीय नेतृत्व की मंजूरी मिली है, अरुण यादव ने कहा कि यह मध्य प्रदेश कांग्रेस की कोर कमेटी का निर्णय है.
उन्होंने बताया, ‘मैंने ही कमलनाथ जी के नाम का प्रस्ताव रखा था. उसके बाद राज्य के सभी वरिष्ठ नेताओं ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि उन्हें पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए.’
अंदरूनी कलह के बीच नई ‘एकता’ को लेकर संशय
वैसे अंदरूनी कलह से घिरी राज्य कांग्रेस इकाई में यह कदम ‘एकता’ का प्रतीक लगता है. लेकिन हर कोई इससे सहमत नहीं है.
एक केंद्रीय नेता ने दावा करते हुए कहा, ‘सभी जानते हैं कि नाथ के गांधी परिवार के साथ अच्छे संबंध हैं. भले ही राज्य के नेता व्यक्तिगत रूप से नहीं चाहते कि वह नेतृत्व करें, मगर उनके पास इस फैसले पर अपनी स्वीकृति देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. लेकिन जैसे ही उन्हें केंद्रीय नेतृत्व से कोई इशारा मिलेगा, तो उन्हें बदलने में एक मिनट नहीं लगने वाला.’
पार्टी की एमपी इकाई में लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया और 22 कांग्रेस विधायक 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे. इसके बाद राज्य में 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई.
आपसी खींचतान का मसला टला नहीं है. कुछ दिनों पहले, कमलनाथ को उस समय आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से इस महीने रामनवमी और हनुमान जयंती मनाने के लिए एक सर्कुलर जारी किया था. तब कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने इस पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि उन्होंने रमजान मनाने के लिए इस तरह के दिशा-निर्देश क्यों नहीं जारी किए हैं.
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच बढ़ती दूरी के साथ ही अरुण यादव और अजय सिंह के बीच भी अनबन की खबरें आई हैं.
लेकिन सच ये भी है कि राज्य नेतृत्व के एक बड़े वर्ग ने नाथ को अपने मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकृत करने की अपनी मंशा जाहिर की है. अगर कांग्रेस सरकार बनाती है, तो जाहिर तौर पर कमलनाथ के नाम पर आलाकमान की रजामंदी होगी.
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मध्य प्रदेश में आपसी कलह के मुद्दे को हल करने के लिए सामूहिक नेतृत्व को बढ़ावा देने की इच्छुक हैं.
कमलनाथ की अध्यक्षता में पिछले सप्ताह राजनीतिक मामलों की निगरानी के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, यह सोनिया गांधी के इशारे पर किया गया था. कमलनाथ के अलावा कमेटी में 20 वरिष्ठ नेता और दो विशेष सदस्य – राजमणि पटेल और विवेक तन्खा शामिल हैं.
फिर भी, कई केंद्रीय नेताओं का मानना है कि कमलनाथ को लेकर गांधी परिवार के हाथ बंधे नजर आते हैं.
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गांधी परिवार के लिए मुश्किल स्थिति
कांग्रेस के भीतर विरोध के उठते स्वर और असंतुष्ट नेताओं के जी -21 समूह के बनने के बीच, कमलनाथ उन कुछ वरिष्ठ नेताओं में से रहे हैं, जिन्होंने पार्टी को चलाने के लिए गांधी नेतृत्व पर विश्वास जताया है. केंद्रीय पार्टी के एक नेता के अनुसार, इस स्थिति ने आलाकमान को मुश्किल में डाल दिया है.
एक अन्य पार्टी नेता ने बताया , ‘अगर वे चाहें तो भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटा सकते. एक समय में दो युवा नेताओं के नाम चर्चा में थे, लेकिन एक बार फिर इस पर विराम लग गया है. उन्होंने (केंद्रीय नेतृत्व) इस तरह के मामलों को जब तक नजरअंदाज किया जा सकता है, तब तक अनदेखा करने की नीति को अपनाने का फैसला किया है. मध्य प्रदेश में अगले साल के अंत में चुनाव हैं. केंद्रीय नेतृत्व के पास तब तक का समय है.
कई केंद्रीय नेताओं ने गांधी परिवार की इस असमंजस की स्थिति पर अपनी नाराजगी जाहिर की है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं ने कहा कि विधानसभा चुनावों के लिए अभी एक साल से ज्यादा का समय है. ऐसी कोई भी घोषणा करने में नाथ को ‘जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी.’
ऊपर उद्धृत केंद्रीय कांग्रेस नेताओं में से एक ने कहा, ‘केंद्रीय नेतृत्व पिछले कुछ समय से इस मुद्दे को लेकर अपने पैर पीछे की तरफ खींचता रहा है. कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ-साथ सीएम का चेहरा भी हैं. उनके पास पहले से ही दो पद हैं. अन्य नेताओं के पास क्या विकल्प बचा है? इस मुद्दे को ज्योतिरादित्य सिंधिया के समय में ही सुलझा लिया जाना चाहिए था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व चुप रहा और नतीजा सबके सामने है.’
वह आगे कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश में भाजपा से मुकाबला करने और उनकी दोषपूर्ण नीतियों पर सवाल उठाने के बजाय, राज्य इकाई नेतृत्व के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके खुद को व्यस्त रख रही है. हमने देखा है कि कैसे कमलनाथ ने समय पर कार्रवाई नहीं की और सरकार को जाना पड़ा था.’
एक अन्य केंद्रीय नेता ने तर्क दिया कि राज्य नेतृत्व सिर्फ अपने फैसले और विधायकों की इच्छा को सामने लेकर आया है. लेकिन इस पर अंतिम फैसला सोनिया गांधी ही करेंगी.
वह बताते हैं, ‘राज्य नेतृत्व ने अपने फैसले से अवगत करा दिया है. आमतौर पर, कांग्रेस सीएम का चेहरा घोषित नहीं करती है, लेकिन अगर ऐसा किया गया है, तो इस बारे में पार्टी अध्यक्ष को देखना होगा. अंतिम फैसला उन्हीं का होगा.’
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर राज्य का पूरा नेतृत्व कमलनाथ पर जोर दे रहा है, तो इस बात की संभावना नहीं है कि गांधी परिवार को इससे कोई दिक्कत होगी.
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