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Thursday, 14 November, 2024
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RSS ने कहा- ‘मुस्लिम कट्टरपंथियों’ से लड़ने के लिए आउटरीच का हिस्सा है भागवत का मस्जिद दौरा

दिल्ली की मस्जिद और मदरसे का दौरा करने से पहले संघ प्रमुख ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत की. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उनका मुस्लिमों तक पहुंच बनाने का यह प्रयास प्रतीकात्मकता से परे जाकर जमीनी स्तर पर नजर आना चाहिए.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक (प्रमुख) मोहन भागवत का गुरुवार को मस्जिद का दौरा कोई अकेली घटना नहीं है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, यह एक ‘सुनियोजित आउटरीच’ प्रोग्राम का हिस्सा है, जो पिछले एक साल से ‘मुस्लिम कट्टरपंथियों, अलगाववादियों से लड़ने और देश की रक्षा करने के लिए’ चलाया जा रहा है.

भागवत ने अखिल भारतीय इमाम संगठन (एआईआईओ) के निमंत्रण पर दिल्ली में एक मस्जिद और मदरसे का दौरा किया. दौरे के दौरान आरएसएस प्रमुख ने संघ के पदाधिकारियों कृष्ण गोपाल और इंद्रेश कुमार के साथ कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मस्जिद के अंदर उनके कार्यालय में एआईआईओ प्रमुख उमर अहमद इलियासी के साथ बैठक की. इसके बाद वह उत्तरी दिल्ली के आजादपुर स्थित मदरसा ताजवीदुल कुरान पहुंचे और वहां के छात्रों से बातचीत की.

अगस्त में भागवत ने पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक समूह- पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, राष्ट्रीय लोक दल के नेता शाहिद सिद्दीकी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर ज़मीरउद्दीन शाह और व्यवसायी सईद शेरवानी से भी दिल्ली में मुलाकात की थी.

आरएसएस के पदाधिकारियों के अनुसार, आउटरीच का मकसद ‘अलगाववादियों और कट्टरपंथियों से लड़ना’ है.

आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरसंघचालक जी लंबे समय से कहते रहे हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए और वंश एक ही है. हमारे पूजा करने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन हम सभी भारतीय हैं. यह एक सकारात्मक संकेत है कि मुस्लिम संगठन हमें आमंत्रित कर रहे हैं और हम सकारात्मक तरीके से प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं. यह राष्ट्रहित में काम करेगा.’

पिछले साल जुलाई में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (आरएसएस से संबद्ध) की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा था कि भारत के हिंदू या मुसलमान एक ही डीएनए साझा करते हैं और देश में रहने वाले सभी समुदायों के पूर्वज एक जैसे हैं.

एक साल बाद, इस साल जून में नागपुर में एक अन्य कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने आरएसएस के कार्यकर्ताओं और सहयोगियों से हर मस्जिद के नीचे ‘शिवलिंग’ की तलाश बंद करने को कहा.

यह बयान ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों के इस दावे कि देश में मंदिरों को तोड़कर कई मस्जिदों का निर्माण किया गया है, के बीच आया.

राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि मुस्लिमों के बीच पहुंच बनाने का यह प्रयास सिर्फ ‘प्रतीक’ के तौर पर न हो, बल्कि जमीनी स्तर पर लिए जाने फैसलों में भी नजर आना चाहिए.

पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने दिप्रिंट को बताया, ‘इनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है क्योंकि लगभग सभी बैठक बंद दरवाजे के पीछे की गई. जो लोग मोहन भागवत से मुझसे ज्यादा मिले हैं, उन्हें यह समझना होगा कि आरएसएस की वैचारिक स्थिति सत्ताधारी पार्टी (भाजपा) की राजनीतिक लाइन के साथ है या नहीं. क्या वे तटस्थ, लचीले और बदलाव चाहने वाले हैं? इन मुद्दों पर समय आने पर ही कोई राय बनाई जा सकती है.’

वह आगे कहते हैं, ‘हम जानना चाहेंगे कि आरएसएस की फिलहाल स्थिति क्या है? उनके रुख से हाल-फिलहाल तो ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है जिसे संदर्भ के रूप में लिया जा सके. क्या ऐसा कोई उदाहरण है जब आरएसएस को अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों पर उन्हें सांत्वना देते देखा गया हो? अगर उनका मकसद समुदायों को विभाजित करने के प्रयासों को बंद करना है, तो इससे किसी को भी कोई शिकायत नहीं होगी. लेकिन उसके लिए हमें इंतजार करना होगा. हमें इसे पूर्वाग्रहों से नहीं बल्कि सहजता के साथ देखे जाने की जरूरत है.’


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‘मुस्लिमों के बीच पहुंच बनाने का ये प्रयास जमीनी स्तर पर नजर आना चाहिए’

आरएसएस के पदाधिकारियों ने भागवत की मस्जिद और मदरसा यात्राओं को ‘दोनों समुदायों के बीच संघर्ष’ को खत्म करने की दिशा में एक कदम बताया और मुसलमानों को भारतीयों की तरह महसूस करने और काम करने की बात कही. वहीं वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों ने मोदी सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास’ नारे को रेखांकित करते हुए कहा कि भागवत के ‘समान डीएनए’ वाला बयान आरएसएस कैडर और हिंदुत्ववादी संगठनों की गतिविधियों में नजर आना चाहिए.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और बेंगलुरू स्थित जैन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर रिसर्च इन सोशल साइंसेज एंड एजुकेशन के निदेशक संदीप शास्त्री ने कहा, ‘यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम है. इसे प्रतीकात्मक दौरों और बैठकों से आगे ले जाना होगा. मुस्लिम समुदाय तक पहुंच बनाने और उसके नतीजे जमीन पर नजर आने चाहिए. इन ‘प्रतीकात्मकता’ प्रयासों को ऐसे कामों के साथ मजबूत किए जाने की जरूरत है, जो नजर आए.’

आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि संघ लंबे समय से इस तरह के आउटरीच कार्यक्रमों की योजना बना रहा है और इसे मुस्लिम समुदाय से ‘सकारात्मक प्रतिक्रिया’ मिली है.

आरएसएस के पदाधिकारी ने कहा, ‘मुसलमान इस देश का हिस्सा हैं. हम उन लोगों का समर्थन नहीं करते हैं जो उन्हें पाकिस्तानी कहते हैं. हम ऐसे फ्रिंज तत्वों को खत्म करने की कोशिश करेंगे जो देश के माहौल को खराब करते हैं. लेकिन हमारे प्रयासों को मुस्लिम संगठनों और समुदाय के नेताओं की ओर से समान रूप से समर्थन मिलना चाहिए और उनकी तरफ से भी ऐसे कदम उठाने चाहिए. अगर ऐसा होता है, तो ही हम आउटरीच को सफल कह सकते हैं.’

हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि आरएसएस की पहुंच ‘अच्छे मुस्लिम, बुरे मुस्लिम नैरेटिव’ पर ‘जनता को बहकाने’ के अलावा और कुछ नहीं है.

लेखक और पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने कहा, ‘लोकतंत्र में संवाद महत्वपूर्ण हैं. लेकिन मोहन भागवत से मिलने वाले मुस्लिम बुद्धिजीवियों और इमामों के प्रतिनिधिमंडल में से कोई भी पूरे भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. किसी भी मामले में हम एक समान चरित्र के नहीं हैं, और इन पांचों (बुद्धिजीवियों) की मुस्लिम बुद्धिजीवियों के अन्य सदस्यों ने आलोचना की है. उनसे पूछा जा रहा है कि क्या दोनों पक्षों ने बैठक के बाद अपनी स्थिति या रुख में बदलाव किया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘क्या भागवत आरएसएस के हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाने की एक इस्लामी साजिश के अस्तित्व के सिद्धांत को छोड़ने के लिए आगे आएंगे? एस वाई कुरैशी की किताब ने पिछले साल बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या पर आरएसएस के सिद्धांत को खारिज कर दिया था. क्या भागवत अपने उसी रुख पर कायम रहेंगे या फिर वह बदल गए हैं? क्या आरएसएस अपने अभियान बंद करने जा रहा है या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे? ये एक ग्रे एरिया हैं. इस आउटरीच प्रोग्राम को लेकर मेरी सोच मिली-जुली हैं. भागवत को अपने खेमे में कट्टरपंथियों को रोकना चाहिए. जब मुसलमानों पर हमला हो तो चुपचाप बैठे रहें और कहें कि ‘ऐसा नहीं होना चाहिए’ काफी नहीं है.’

मुखोपाध्याय के मुताबिक, ‘मोहन भागवत और भाजपा सहित संघ परिवार के उन सभी नेताओं को जो पहले राजनीतिक मुद्दों पर बोलने वाले कई इमामों के आलोचक रहे हैं, उनसे मिलते हुए देखना विरोधाभासी लगा.’

उन्होंने कहा, ‘यह जनता को बहकाने वाला एक और प्रयास है, जो ‘अच्छे’ इमाम और ‘बुरे’ इमाम की बाइनरी बना रहा है. जैसे उन्होंने ‘अच्छे मुस्लिम और बुरे मुस्लिम’ नैरेटिव बनाया है, मुझे इससे बहुत उम्मीदें नहीं हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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