एक एम-वाई फेक्टर उत्तर प्रदेश में फिर काम कर गया है, लेकिन ये बीते ज़माने का मुस्लिम-यादव फॉर्मूला नहीं है. इस बार, एम-वाई का मतलब था मोदी-योगी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मंत्री और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का डबल इंजिन, जो प्रशासन की बहुत सी परतों के बीच, कल्याण योजनाओं को ज़ोर से आगे बढ़ा रहा था.
‘विकास’ अब कोई ऐसी अच्छी चीज़ नहीं रह गया है जो कभी आता ही नहीं है, क्योंकि यूपी में फायदे लक्ष्य तक पहुंचे और योजनाएं भ्रष्टाचार की दीवार को भेदने में सफल हो गईं. एक ऐसे राज्य में जहां बड़े गर्व के साथ क़ानून तोड़े जाते हैं, मुख्यमंत्री ने सख़्ती के साथ क़ानून व्यवस्था को लागू किया और मतदाताओं ने उसकी सराहना की है.
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हालांकि, इस असेम्बली चुनाव में उत्तर प्रदेश के लिए, संयोग से एम-वाई के एक और भी मायने हैं- महिला और युवा. अब नज़र आता है कि मतदाताओं के ये दोनों वर्ग, बड़ी संख्या में निकलकर आए और मोदी व योगी को वोट दिए और उनके ऐसा करने के पीछे कई कारण थे. शौचालय से लेकर आवास योजनाओं, गैस सिलिंडर्स और कर्ज़ तक, तुरंत तीन-तलाक़ रोकने से लेकर क़ानून-व्यवस्था लागू करने तक, मोदी सरकार ने अलग अलग वर्गों की महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम किया. आंकड़ों से पता चलेगा कि बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं ने मोदी और योगी को चुना, इसके बावजूद कि उनके परिवार के पुरुषों ने अलग तरह से वोट किया. ये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मतलब होगा, कि महिलाएं अब वोट देने के लिए पुरुषों से सलाह नहीं ले रही हैं, बल्कि अपने हितों को केंद्र में रखते हुए, वो अपने फैसले ख़ुद कर रही हैं.
इसी तरह, युवाओं के विभिन्न वर्ग आश्वस्त हैं, कि मोदी और योगी के पास उन्हें पेश करने के लिए कुछ है. चाहे वो प्रतिष्ठित आईआईटीज़ में पढ़ने वाले हों, या सिक्योरिटी गार्ड जैसी सादी नौकरियों के उम्मीदवार, युवाओं की समझ में आ गया है कि उत्तर प्रदेश में शिक्षा, रोज़गार, और उद्यमिता के लिए वातावरण कप्तान योगी, और कोच मोदी के अंतर्गत ही बना रह सकता है. ऐसा लगता है कि अपनी जाति, वर्ग, जेंडर और धर्म का ध्यान रखे बगैर, युवाओं ने भी बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया है.
एम-वाई का मतलब मीडिया और योजना भी हो सकता है, जहां मीडिया और सोशल मीडिया ने, कोविड संकट के दौरान और उसके बाद भी, मोदी और योगी द्वारा किए गए कार्यों का संदेश फैलाने में, एक बड़ी भूमिका निभाई. लोग सरकार से ख़फा ज़रूर थे लेकिन मायूस नहीं थे, चूंकि मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए वो देख सकते थे, कि हर किसी के जीवन को बचाने के लिए, हर संभव प्रयास किए जा रहे थे. मोदी और योगी सरकारों द्वारा तैयार और लागू की गई योजनाओं ने भी एक अहम भूमिका अदा की. लोगों की समझ में आ गया कि योजनाएं केवल फाइलों के लिए तैयार नहीं की जातीं, और पहले के विपरीत, उनके लाभ दिल्ली तथा लखनऊ से चलकर समय रहते उन तक पहुंच जाते हैं. इन योजनाओं में जेंडर चेतना की बदौलत, आम महिलाओं के रोज़मर्रा जीवन में एक दृश्य बदलाव आया है. एक नया लाभार्थी वर्ग उभरकर सामने आया है, जो चुनावों से पहली रात पैसा या शराब लेने के बावजूद (या उसकी बजाय), ऐसी सरकार को वोट देने के बारे में सोचता है, जो उन्हें पूरे साल फायदे पहुंचाएगी.
इन अर्थों में ग़रीब वर्ग ने एक बार फिर बीजेपी के प्रति निष्ठा दिखाई है. अहम बात ये है कि बीजेपी अब एक मध्यम-वर्गीय, शहरी, उच्च-जाति की पार्टी नहीं रह गई है. आज देश का शांत बहुमत मज़बूती के साथ, मोदी के नीचे पार्टी के साथ खड़ा है.
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केंद्रीय पट्टी की राजनीति में बदलाव
उत्तर प्रदेश चुनाव उस बात की पुष्टि करते हैं, जो बहुत से लोग कुछ समय से कहते आ रहे हैं. केंद्रीय पट्टी की राजनीति में कुछ बहुत बड़ा बदलाव हुआ है. जीत की चाबी अब केवल जाति और धर्म के हाथ में नहीं है. शहरीकरण, वैश्वीकरण, बाज़ार अर्थव्यवस्था, और सामाजिक तथा फिज़िकल इनफ्रास्ट्रक्चर पर भी ग़ौर करने की ज़रूरत है, चूंकि वो पहले से कहीं अधिक गहराई से भारतीय राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं, और उसे एक नया आकार दे रहे हैं, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.
महत्वपूर्ण ये है कि ऐसा लगता है कि अब समय आ गया है, कि पहचान की राजनीति के बारे में नए अर्थों के साथ सोचना शुरू किया जाए, चूंकि जाति और धर्म की पहचान के साथ साथ, महिला सुरक्षा, युवा आकांक्षाएं, कल्याण योजनाएं, और ग़रीबी जैसे मुद्दे भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं. अतीत के लेन-देन करने वाले नेताओं के विपरीत, बीजेपी की बार बार जीत, मोदी को एक परिवर्तनकारी नेता के तौर पर स्थापित कर रही है. ऐसा नेता जो भारतीय राजनीति की पुरानी परंपराओं को- दाएं, बाएं, और केंद्र- हर तरह से ध्वस्त कर रहा है.
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