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Thursday, 19 December, 2024
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मोदी से लेकर पटेल तक गुजरात में 4 मुख्यमंत्री बदले लेकिन CMO में इसी पूर्व IAS का राज चल रहा है

रिटायर आईएएस अधिकारी कुनियाल कैलाशनाथन को गुजरात के नए सीएम भूपेंद्र पटेल का मुख्य प्रधान सचिव नियुक्त किया गया है, जो 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद से उनका 7वां विस्तार है.

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नई दिल्ली: गुजरात में यह बात भले ही कितनी गोपनीय रखी जाती हो लेकिन सत्ता के गलियारों में एक कहावत खासी चर्चित है—के.के. के बिना गुजरात सरकार और काका के बिना भाजपा संगठन चल ही नहीं सकता है.

काका का मतलब है सुरेंद्रभाई पटेल, जो भाजपा कोषाध्यक्ष हैं और उन्हें पार्टी का मनी बैग माना जाता है, वहीं दूसरे सबसे शक्तिशाली इंसान हैं के.के. यानी कुनियिल कैलाशनाथन. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद सिविल सेवकों में से एक हैं.

माना जाता है कि कैलाशनाथन गुजरात में मोदी की आंख और कान हैं, और यह धारणा पिछले हफ्ते उस समय और मजबूत हो गई, जब राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके कहा कि सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी 13 सितंबर से आगे भी नवनियुक्त मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के मुख्य प्रधान सचिव के रूप में कार्यरत रहेंगे—जो पद 2013 में उनके लिए विशेष तौर पर बनाया गया था.

2013 के बाद से यह सातवां मौका है जब 1979 बैच के आईएएस अधिकारी को सेवा विस्तार दिया गया है, जब वह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे.

कैलाशनाथन गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में कार्यकाल के 15 साल भी पूरे कर चुके हैं. 2006 में पहली में बार सीएमओ में तैनाती के बाद से अब तक यह सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी चार मुख्यमंत्रियों—मोदी, आनंदीबेन पटेल, विजय रूपाणी और भूपेंद्र पटेल को अपनी सेवाएं दे चुके हैं.

सूत्रों का कहना है कि मोदी को इस अधिकारी पर इतना भरोसा है कि 2014 में, जब वह प्रधानमंत्री बने तो अपने सभी भरोसेमंद सिविल सेवकों—ए.के. शर्मा, हसमुख अधिया, जी.सी. मुर्मू, संजय भावसार और पी.के. मिश्रा को तो प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ले गए लेकिन कैलाशनाथन को यहां गुजरात में ही बनाए रखा.

गुजरात के सबसे ताकतवर व्यक्ति

कैलाशनाथन ने सूरत और सुरेंद्रनगर में बतौर कलेक्टर कार्य किया था, और 1991 से 2001 तक वह अहमदाबाद के नगर आयुक्त भी रहे.

कई सूत्रों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि गुजरात मैरीटाइम बोर्ड के सीईओ के रूप में उन्होंने बंदरगाहों के निजीकरण का काम देखना शुरू किया था. इसी दौरान वह गौतम अडानी के संपर्क में आए, जिन्होंने तब उनका नाम मोदी के समक्ष आगे बढ़ाया.

मूलत: एक मलयाली परिवार से आने वाले कैलाशनाथन तमिलनाडु में पले-बढ़े जहां उनके पिता ऊटी में डाक विभाग में तैनात थे और उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और वेल्स यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की.

सूत्रों ने बताया कि शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान ही अहमदाबाद की रैपिड बस ट्रांजिट परियोजना विकसित हुई थी.

उन्होंने यह भी बताया कि दो परियोजनाओं ने आईएएस अधिकारी को मोदी की नजर में एक सक्षम सिविल सेवक साबित करने में अहम भूमिका निभाई.

इसमें एक नर्मदा बेसिन के चारों ओर पानी की पाइपलाइन ग्रिड से संबंधित थी, जो अब राज्य की 70 प्रतिशत आबादी की जरूरतों को पूरा करती है, और दूसरी थी राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी सौनी परियोजना है, जिसके तहत नर्मदा के पानी को पानी की कमी वाले सौराष्ट्र तक पहुंचाया गया है.

के.के. के साथ ही सेवारत एक पूर्व सिविल सेवक ने दिप्रिंट को बताया, ‘वर्ष 2000 से पहले सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में पानी की बेहद कमी थी; सूखा पड़ना एक आम बात थी लेकिन मोदी की दूरदृष्टि और उस पर के.के. की तरफ से किए गए काम ने क्षेत्र की सूरत को पूरी तरह बदलकर रख दिया है. उन्होंने जो पाइपलाइन बिछाई, वह 361 किलोमीटर लंबी है और अब इस क्षेत्र में पानी की कोई खास कमी नहीं रह गई है.’

मौजूदा समय में यह सेवानिवृत्त सिविल सेवक मोदी के एक अन्य पसंदीदा प्रोजेक्ट साबरमती आश्रम विकास परियोजना को देख रहे हैं, जिसमें वह कार्यकारी परिषद प्रमुख हैं. 1,246 करोड़ रुपये की यह परियोजना 55 एकड़ भूमि में महात्मा गांधी का स्मारक बनाने से जुड़ी है और इसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने 2019 में की थी.


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मोदी के रणनीतिकार

अपने राज्य के प्रशासनिक कार्यों को अंजाम देने के अलावा के.के. को गुजरात में मोदी के राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में भी देखा जाता है, जो राज्य से संबंधित मुद्दों पर पीएमओ के अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क में रहते हैं.

के.के. के साथ काम कर चुके एक दूसरे सिविल सेवक ने कहा, ‘उनका कौशल अचरज में डालने वाला है. उनका अनुभव और राजनीतिक नजरिया कई राजनेताओं की तुलना में अधिक बेहतर है.’

उन्होंने कहा, ‘वह न केवल प्रशासन, नौकरशाही और सरकार के नीतिगत फैसलों से जुड़े मुद्दे देखते हैं, बल्कि राजनीतिक घटनाक्रम पर भी पूरी पकड़ बनाए रखते हैं चाहे वह पाटीदार आंदोलन हो या चुनाव प्रचार की व्यवस्था करना.’

सेवानिवृत्त सिविल सेवक ने यह भी कहा कि मोदी के दिल्ली जाने के समय कैलाशनाथन ने इमेज बिल्डिंग का भी काम किया.

उदाहरण के तौर पर कैलाशनाथन ने मोदी और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर के बीच मुलाकात की व्यवस्था की, जिन्होंने 2002 के गुजरात दंगों की जांच करने वाले संबंधित नागरिक न्यायाधिकरण की अगुआई की थी. 2013 में हुई बैठक के बाद अय्यर ने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के नाम का समर्थन किया.

सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, ‘मोदी की छवि बनाने में उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. वह राजनीति को समझते हैं और प्रधानमंत्री भी उनके सुझावों को बहुत गंभीरता से लेते हैं. लेकिन वह बिना लाग-लपेट के स्पष्ट और बहुत काम बात करते हैं.’

गुजरात में उनकी अहमियत को इसी बात से समझा जा सकता है कि पहली बार के विधायक भूपेंद्र पटेल के राज्य में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और सात बार के लोकसभा सांसद ने टिप्पणी की, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि गुजरात में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठता है; आखिरकार वहां प्रशासन पर राज करने के लिए के.के. हैं ना.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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