scorecardresearch
Thursday, 18 April, 2024
होमदेशकदाचार में निलंबित IAS अधिकारी केवल बेदाग ही नहीं रहते, बल्कि चुपचाप ही हो जाती है बहाली

कदाचार में निलंबित IAS अधिकारी केवल बेदाग ही नहीं रहते, बल्कि चुपचाप ही हो जाती है बहाली

वित्तीय धोखाधड़ी से लेकर शराब पीकर गाड़ी चलाने तक के मामलों में आईएएस अधिकारियों का निलंबन तो खासी सुर्खियां बटोरता है लेकिन बाद में धीरे से बिना किसी शोरशराबे के राज्य सरकारों द्वारा उन्हें बहाल कर देने पर किसी का ध्यान नहीं जाता है.

Text Size:

नई दिल्ली: मार्च 2020 में केरल कैडर के एक युवा आईएएस अधिकारी अनुपम मिश्रा के खिलाफ राज्य पुलिस ने मामला दर्ज किया और और सरकार ने उन्हें क्वारंटाइन निर्देशों का उल्लंघन करने और सिंगापुर से लौटने पर पत्नी के साथ सीधे अपने गृह नगर कानपुर पहुंच जाने के मामले में निलंबित कर दिया था. जुलाई 2020 तक मिश्रा को बहाल कर डिप्टी सब-कलेक्टर बना दिया गया.

उसी माह, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अवैध हथियार लाइसेंस बांटे जाने के घोटाले के सिलसिले में जम्मू-कश्मीर कैडर के आईएएस अधिकारी राजीव रंजन को गिरफ्तार किया था. फरवरी 2021 तक रंजन की सेवाएं भी बहाल हो गईं और राजस्व विभाग में अतिरिक्त सचिव के तौर पर तैनात हो गए.

करीब एक साल पहले अगस्त 2019 में केरल कैडर के ही एक अन्य आईएएस अधिकारी श्रीराम वेंकटरमन पर कथित तौर पर नशे की हालत में गाड़ी चलाते हुए एक पत्रकार को बुरी तरह पीटने का आरोप लगा और फिर उन्हें निलंबित कर दिया गया.

वेंकटरमन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैरइरादतन हत्या की सजा) और धारा 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. हालांकि, मार्च 2020 में केरल सरकार ने उन्हें न केवल बहाल किया बल्कि पत्रकारों और पीड़ित परिवार के विरोध के बीच स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त सचिव भी नियुक्त कर दिया.

ये तीन तो ऐसे तमाम मामलों की बानगी भर हैं जिनमें वित्तीय धोखाधड़ी से लेकर शराब पीकर गाड़ी चलाने तक के मामले में आईएएस अधिकारियों का निलंबन तो देशभर में सुर्खियां बटोरता है, लेकिन बाद में धीरे से और बिना शोरशराबे राज्य सरकारों की तरफ से उनकी बहाली पर किसी का ध्यान नहीं जाता.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

दिप्रिंट से बात करने वाले अधिकारियों ने कहा कि कुछ अपवाद छोड़ दें तो ऐसे मामलों में यही होता है क्योंकि संबंधित अधिकारी को राजनीतिक व्यवस्था और आईएएस लॉबी का वरदहस्त हासिल होता है. यद्यपि आईएएस अधिकारियों की अनुशासनहीनता के खिलाफ नियम मौजूद हैं, लेकिन उनका उपयोग काफी हद तक मनमाने और पक्षपातपूर्ण तरीके से किया जाता है.

गंभीर कदाचार, तर्कहीन दलीलें

मिश्रा ने अपने बचाव में राज्य सरकार के समक्ष दलील दी कि सिंगापुर से लौटने पर उन्हें होम क्वारंटाइन संबंधी नियम का पालन करने का निर्देश दिया गया था, और उन्होंने ‘होम’ शब्द की व्याख्या कानपुर स्थित अपने घर के लिए की थी.

यद्यपि सरकार ने उनके बचाव को संतोषजनक नहीं पाया, लेकिन एक ‘युवा अधिकारी’ होने के नाते उन्हें मौखिक चेतावनी देकर छोड़ने का फैसला किया गया.

अधिकारी की बहाली के संबंध में केरल सरकार की तरफ से जारी आदेश में लिखा है, ‘सरकार ने अधिकारी की ओर से पेश लिखित बयान की जांच के बाद पाया कि उक्त अधिकारी संतोषजनक ढंग से आरोप का बचाव नहीं कर पाए हैं. लेकिन अनुपम मिश्रा एक युवा अधिकारी हैं और यह उनकी पहली गलती है.’

इसमें आगे लिखा है, ‘सरकार ने ऐसी गलती फिर न दोहराने की मौखिक चेतावनी देकर आगे कोई कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया है. अनुपम मिश्रा की सेवाएं बहाल कर दी गई हैं. अधिकारी को सब-कलेक्टर, अलप्पुझा के तौर पर तैनात किया गया है.’

वेंकटरमन ने तर्क दिया था कि गाड़ी वह खुद नहीं चला रहे थे, और यह कि उस समय उनके साथ एक महिला वफा फिरोज मौजूद थी और गाड़ी का चक्का उन्होंने ही थाम रखा था.’

वेंकटरमन के मामले में पुलिस ने घटना के बाद छह महीने से अधिक समय तक अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट दायर नहीं की. ऐसे में केरल सरकार ने यह दलील दी कि अगर अधिकारी के खिलाफ कोई नया आरोप नहीं है तो वह निलंबन को छह महीने से आगे नहीं बढ़ा सकती.


यह भी पढ़ें : हिंदू-मुस्लिम एकता भ्रामक, भारत के लोगों का डीएनए एक है: RSS प्रमुख मोहन भागवत


अपना नाम न छापने के अनुरोध के साथ केरल कैडर के एक आईएएस अधिकारी ने कहा कि जिन मामलों में अधिकारियों का निलंबन होता है वे गंभीर किस्म के हो सकते हैं, लेकिन इस मामले में दलील- जो पेश की जाती हैं और अक्सर स्वीकार भी कर ली जाती हैं- वो काफी कमजोर होती हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘बात दरअसल इतनी ही है कि जब तक आपके ऊपर सरकार का हाथ है, तब तक दलीलों को निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता रहता है, और संबंधित अधिकारी न केवल बहाल हो जाते हैं, बल्कि रैंक भी बढ़ा दिया जाता है.’

कोई नया चलन नहीं

डीओपीटी के पूर्व सचिव सत्यानंद मिश्रा कहते हैं कि यद्यपि कदाचार के गंभीर मामलों के बावजूद भी राज्य सरकारों द्वारा अधिकारियों को बहाल करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि यह कोई पूरी तरह से नया ट्रेंड हो.

मिश्रा ने बताया, ‘एक दशक पहले छत्तीसगढ़ के आईएएस अधिकारी बाबूलाल अग्रवाल का मामला खासा सुर्खियों में रहा था, जिनके घर पर आयकर विभाग ने छापा मारा था, और उन पर करोड़ों रुपये की धनराशि जमा करने, सैकड़ों बैंक खाते संचालित करने और कई कंपनियां चलाने का आरोप लगा था. उन्हें कुछ समय के लिए सरकार ने निलंबित कर दिया था लेकिन बाद में बहाल कर दिया गया और वह सचिव तक बनाए गए.’

इसी तरह, 2012 में यूपी कैडर के एक आईएएस अधिकारी प्रदीप शुक्ला को 5,500 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले (एनआरएचएम) में कथित भूमिका के लिए निलंबित कर दिया गया था. शुक्ला को घोटाले में कथित संलिप्तता के कारण जेल भी जाना पड़ा, लेकिन बाद में स्वास्थ्य के आधार पर रिहा कर दिया गया.

इस संबंध में बिना किसी औपचारिक घोषणा के 2015 में उन्हें बहाल किया गया और राजस्व बोर्ड में तैनात भी कर दिया गया.

राजनीतिक संबंध और वरिष्ठों का ‘आशीर्वाद’

मिश्रा ने कहा, ‘सभी राज्यों में ऐसे कई मामले सामने आते हैं. यह अंततः आपके राजनीतिक संबंधों पर निर्भर करता है. और फिर आपके वरिष्ठों का रवैया भी आपके प्रति सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए और जो हर तरह की अनुशासनहीनता को नजरअंदाज करने को तैयार हों.’

मिश्रा आगे कहते हैं, ‘और हर मामले के दो पहलू होंगे. यहां तक कि अगर कभी आप रिश्वत लेते रंगे हाथों भी पकड़े जाते हैं तो भी आप यह तर्क दे सकते हैं कि पैसा आपके हाथ में जबरन थमाया गया था.’

सचिव स्तर के एक आईएएस अधिकारी ने इस बात से सहमति जताई.

अधिकारी ने कहा, ‘आईएएस अधिकारियों के एक-दूसरे के साथ मजबूती से जुड़े होने को देखते हुए कोई भी आरोपी कभी भी इस तरह का राग अलाप सकता है कि किसी भी मामले में फैसला होने पर उन्हें अदालत या विभागीय जांच के जरिये दंडित किया जा सकता है तो उन्हें दोहरा दंड क्यों मिले. अक्सर ही वरिष्ठ अधिकारी उपकृत करने के इच्छुक होते हैं.’

अधिकारी ने कहा कि निलंबन के पीछे छिपा वित्तीय निहितार्थ भी एक अन्य कारण होता है.

अधिकारी ने कहा, ‘नियमों के अनुसार, आपको निलंबित अधिकारी को छह महीने तक 50 प्रतिशत और उसके बाद 75 प्रतिशत गुजारा भत्ता देना होगा. इसलिए यदि कोई मामला इससे अधिक समय तक खिंचता है, तो राज्य सरकार को लगता है कि घर बैठे भुगतान करने के बजाये अधिकारी से काम कराया जाना चाहिए.’

अधिकारी ने कहा कि इस मुद्दे का एकमात्र समाधान यही है कि विभागीय और अदालती जांच दोनों ही स्तर पर मामले निपटाने में तेजी लाई जाए जिससे निर्दोष अधिकारियों को परेशानी नहीं झेलनी पड़ेगी और दोषी अधिकारियों को भी संरक्षण नहीं मिल पाएगा.

उन्होंने कहा, ‘आखिरकार, देश का कानून तो यही है कि दोषी साबित होने तक कोई भी निर्दोष है. लेकिन निश्चित तौर पर नौकरशाही के भीतर कई लोग इसका फायदा उठाने को तैयार रहते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments