scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमराजनीति‘मोदी, शाह अजेय नहीं’: उपचुनाव में BJP के हाथों हार के बावजूद TMC की जीत ने उद्धव सरकार का मनोबल बढ़ाया

‘मोदी, शाह अजेय नहीं’: उपचुनाव में BJP के हाथों हार के बावजूद TMC की जीत ने उद्धव सरकार का मनोबल बढ़ाया

महा विकास अघाड़ी के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस की जीत ने यह भी साबित कर दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हराने का एक तरीका क्षेत्रीय बलों और गैर-भाजपा दलों की ताकत को एकजुट करना है

Text Size:

मुंबई : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार ने मौजूदा समय में महाराष्ट्र में सत्तासीन तीन पार्टियों के गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का मनोबल बढ़ा दिया है.

यह तब है जबकि उसी दिन एमवीए को अपने पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों हार का सामना करना पड़ा. भाजपा के समाधान औटाडे ने पंढरपुर-मंगलवेधे विधानसभा सीट पर एमवीए प्रत्याशी भागीरथ भालके के खिलाफ 3,733 वोटों के अंतर से जीत हासिल की है.

हालांकि, एमवीए नेताओं ने कहा कि इस हार को किसी भी तरह गठबंधन सरकार के प्रदर्शन से नहीं जोड़ा जा सकता है, और बंगाल में भाजपा के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड जीत से मनोबल बढ़ने की ओर ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने कहा कि बंगाल चुनाव के नतीजों ने यह दिखा दिया है कि भाजपा क्षेत्रीय दलों को खत्म नहीं कर पाएगी, चाहे कितना भी आक्रामक अभियान क्यों न चला ले.

एमवीए के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस की जीत ने यह भी साबित कर दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हराने का एक तरीका क्षेत्रीय बलों और गैर-भाजपा दलों की ताकत को एकजुट करना है, और इसने एमवीए—राज्य स्तर पर इसी तरह का एक प्रयोग—का आत्मविश्वास और बढ़ाया है.

ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस ने रविवार को घोषित 2021 के विधानसभा चुनाव नतीजों में भाजपा को हरा दिया था. बनर्जी की पार्टी ने पश्चिम बंगाल में 292 सीटों में से 213 सीटें जीतीं, बावजूद इसके कि भाजपा ने इस चुनाव के लिए राज्य में लंबे समय से व्यापक प्रचार अभियान चला रखा था.

शिवसेना के मुखपत्र सामना में सोमवार को प्रकाशित संपादकीय में पार्टी ने कहा है कि हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बता दिया है कि ‘भले ही मोदी और शाह के पास भाजपा की चुनावी जीत के लिए फॉर्मूला और मशीनरी हो, वे अजेय नहीं हैं.’


यह भी पढ़ें : भायपो का उदय- भतीजे अभिषेक बनर्जी के लिए ममता की हैट्रिक का क्या मतलब हो सकता है


संपादकीय में लिखा गया है, ‘पश्चिम बंगाल के लोग (भाजपा की चुनावी बयानबाजियों की) न तो आंधी में खोए, न ही कृत्रिम बयार में बहे. वे अपनी माटी से निकले एक व्यक्ति के गौरव के लिए दृढ़ता से खड़े रहे. देश को पश्चिम बंगाल से सीखना चाहिए.’

एमवीए के अन्य घटक दलों के सदस्यों ने भी भाजपा के साथ डटे रहने के लिए तृणमूल सुप्रीमो की सराहना की है.

‘क्षेत्रीय पार्टी की जीत एमवीए के प्रयोग की सफलता को पुष्ट करती है’

शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस का गठबंधन, नवंबर 2019 में उस समय बना था, जब भाजपा राज्य में 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी लेकिन 144 का जादुई आंकड़ा पूरा कर पाने से पीछे रह जाने के कारण अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं पहुंच पाई.

एनसीपी की राज्य इकाई की उपाध्यक्ष विद्या चव्हाण ने दिप्रिंट को बताया, ‘क्षेत्रीय पार्टी की जीत इस तथ्य को पुष्ट करती है कि एमवीए एक सफल प्रयोग है. यह मतदाताओं को बताती है कि अगर आप भाजपा को नहीं चाहते हैं तो विकल्प के तौर पर क्षेत्रीय दल हैं और वे अब भी बहुत मजबूत स्थिति में हैं.’

उन्होंने कहा कि भाजपा पिछले दो वर्षों से तृणमूल कांग्रेस का कद घटाने की लगातार कोशिशें कर रही थी, और इसके लिए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को अपने पाले में लाने से लेकर ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत स्तर पर हमला करने तक हर तरह के दांवपेच अपनाए गए.

चव्हाण ने कहा, ‘ममता दीदी ने पूरी ताकत लगा दी. उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने उनकी हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला अपने ही ढंग से हिंदुत्व से दिया. मतदाताओं ने सब कुछ देखा और आखिरकार बंगाली अस्मिता की रक्षा करना ही चुना.’

एमवीए की बात करते हुए और यह बताते हुए कि कैसे यह भी क्षेत्रीय दलों की ताकत का प्रतिबिंब रहा है, चव्हाण ने कहा, ‘महाराष्ट्र में पवार साहब (एनसीपी प्रमुख शरद पवार) ने दो क्षेत्रीय ताकतों (शिवसेना और एनसीपी) को एकजुट करके और कांग्रेस को भी इस मंच पर साथ लाकर एक नई तरह का प्रयोग किया था. तृणमूल कांग्रेस की (बंगाल में) जीत यह दिखाती है कि क्षेत्रीय दल अब भी बहुत मजबूत हैं और उन्हें साथ लाकर भाजपा को हराया जा सकता है.’

शिवसेना एमएलसी मनीषा कयांडे ने भी चव्हाण की राय से ही सहमति जताते हुए दिप्रिंट से कहा कि ‘ये नतीजे (बंगाल में) क्षेत्रीय दलों और एमवीए को मजबूती देने वाले हैं. नतीजे ये साबित करते हैं कि हर बार मोदी मैजिक काम नहीं करता है. भाजपा ने हमेशा क्षेत्रीय दलों को अपनी सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किया और फिर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात को छोड़कर बाकी राज्यों में भाजपा को हमेशा क्षेत्रीय दलों के समर्थन की जरूरत रही है.’

‘उपचुनाव के नतीजे एमवीए के प्रदर्शन पर फैसला नहीं’

हालांकि, निजी स्तर पर रविवार का दिन एमवीए के लिए अच्छा नहीं रहा. पंढरपुर-मंगलवेधे उपचुनाव में मिली हार से गठबंधन को बड़ा झटका लगा था, क्योंकि यह पहला विधानसभा उपचुनाव था जिसमें तीनों सहयोगी दल संयुक्त रूप से चुनाव लड़ रहे थे. यहां पर उपचुनाव एनसीपी विधायक भरत भालके की कोविड के कारण मौत के बाद कराए गए थे.

लेकिन भालके के बेटे और एनसीपी सदस्य भागीरथ भालके भाजपा के समाधान औताडे से चुनाव हार गए.

हालांकि, एमवीए नेताओं ने कहा कि यह हार सरकार के प्रदर्शन का नतीजा नहीं है और इसके लिए विभिन्न स्थानीय परिस्थितियां जिम्मेदार रही हैं.

कायंदे ने कहा, ‘उम्मीदवारी से संबंधित स्थानीय मुद्दे हार का कारण बने. यह किसी भी तरह से एमवीए के प्रदर्शन पर फैसला नहीं है.’

महाराष्ट्र एनसीपी प्रमुख जयंत पाटिल ने भी रविवार को एक बयान में इस हार के लिए पार्टी के भीतर कम्युनिकेशन की समस्या को जिम्मेदार ठहराया था.

उनका कहना था, ‘उपचुनाव में पंढरपुर तालुका और मंगलवेधे तालुका शामिल थे. हम दोनों जगह की टीमों के बीच प्रभावी ढंग से कम्युनिकेशन की व्यवस्था नहीं कर पाए और नतीजा यह हुआ कि हमारे उम्मीदवार भागीरथ भालके एक मामूली अंतर से हार गए.


यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र में एक साल से कोविड से जंग लड़ रहे हैं उद्धव ठाकरे के चुने हुए 11 शीर्ष डॉक्टर


 

share & View comments