नई दिल्ली: आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल करने के मोदी सरकार के फैसले ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर खलबली मचा दी है, जहां इसके उच्च जाति के नेताओं ने इस पर असहमति जताई है, वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के पार्टी नेता इस कदम की सराहना कर रहे हैं.
भाजपा के कई ओबीसी नेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि आने वाले समय में दोनों पक्षों की भावनाओं को संतुलित करना पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि भाजपा के कई नेता अब भारत में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ओबीसी, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने की मांग कर रहे हैं. वह इसके बजाय “जिसकी जितनी आबादी, उतनी उसकी भागीदारी” (जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व) के आधार पर कोटा चाहते हैं.
भाजपा के ओबीसी नेताओं के अनुसार, जाति जनगणना “मंडल राजनीति का एक नया अध्याय खोलेगी और ओबीसी के बीच अधिक आरक्षण और उप-वर्गीकरण की मांग करेगी”. उन्होंने कहा कि पार्टी के सामने उच्च जातियों और ओबीसी दोनों की निराशा को संभालने के लिए कई चुनौतियां होंगी.
दूसरी ओर, उच्च जाति के नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि जाति जनगणना का फैसला “इस समय ज़रूरी नहीं था और इससे कांग्रेस को बढ़त मिलेगी. पार्टी कांग्रेस के एजेंडे में फंस गई”. जाति जनगणना कराने का केंद्र का फैसला इस विचार पर अपने पहले के रुख से यू-टर्न था.
एक उच्च जाति के राज्यसभा सांसद ने पूछा, “इस फैसले की क्या ज़रूरत थी? यह हिंदुत्व एकीकरण को खंडित करेगा और जाति राजनीति का भानुमती का पिटारा खोल देगा. जब हम हिंदुत्व की राजनीति से चुनाव जीत रहे हैं, तो एक और मोर्चा खोलने की क्या ज़रूरत थी? अगर हमें जाति जनगणना से मिलने वाले फायदे के बारे में इतना यकीन है, तो हमने रोहिणी आयोग की रिपोर्ट क्यों नहीं जारी की?”
ओबीसी के उप-वर्गीकरण की जांच के लिए रोहिणी आयोग का गठन किया गया था और जुलाई 2023 में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
भाजपा में नई दरार पहले से ही स्पष्ट हो रही है.
केंद्र द्वारा जाति जनगणना के फैसले की घोषणा के कुछ दिनों बाद, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं और “हिंदू हृदय सम्राट” योगी आदित्यनाथ के प्रतिद्वंद्वियों में से एक हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री पर कटाक्ष किया.
उन्होंने एक्स पर एक लाइन का संदेश पोस्ट किया: “एक-दूसरे का दर्द महसूस करेंगे तो मजबूत बनेंगे और सेफ रहेंगे.”
यह आदित्यनाथ के नारे “बटेंगे तो कटेंगे” का स्पष्ट जवाब था, जिसमें पिछले साल उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों के नुकसान के बाद हिंदुओं के बीच एकता की ज़रूरत का ज़िक्र किया गया था.
सीएम बनने का मौका खो चुके मौर्य की इस पोस्ट के पीछे का संदेश साफ था: योगी-ब्रांड हिंदुत्व की राजनीति हिंदुओं को एकजुट करने का एकमात्र तरीका नहीं है. पिछड़े समुदाय के साथ सत्ता साझा करना दूसरा तरीका है.
ओबीसी समूहों में से एक भाजपा नेता ने कहा, “1990 के मंडल आंदोलन (मंडल आयोग द्वारा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के बाद) ने कल्याण सिंह, उमा भारती, शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं के पार्टी में उभरने का मार्ग प्रशस्त किया. जाति सर्वेक्षण अब अधिक ओबीसी-प्रभुत्व वाली राजनीति का मार्ग प्रशस्त करेगा और छोटे ओबीसी समुदायों को पार्टी में अधिक हिस्सेदारी मिलेगी.”
भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के जाति सर्वेक्षण के फैसले के पीछे एक प्रमुख विचार यह है कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रमुख राज्यों में प्रमुख पिछड़े समुदायों, विशेष रूप से ओबीसी और दलितों के बीच खोई हुई जमीन फिर से हासिल होने की संभावना है.
भाजपा ने जातिगत आंकड़ों में यह कदम उठाया है क्योंकि उसे उच्च जातियों की संवेदनशीलता और हिंदुत्व के विखंडन के जोखिम का एहसास है, लेकिन उसे विरोधाभासों को संभालने की अपनी आंतरिक संगठनात्मक क्षमता पर पूरा भरोसा है.
भाजपा के राज्यसभा सांसद शंभू शरण पटेल ने केंद्र के इस कदम की सराहना की.
उन्होंने कहा, “सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के लिए सरकार ने सही फैसला लिया है. एक बार जब आंकड़े सामने आ जाएंगे, तो पिछड़ी राजनीति बदल जाएगी. जिन लोगों ने अधिक सत्ता का आनंद लिया है, उन्हें झटका लग सकता है और छोटी जातियों को सशक्त बनाया जाएगा और सत्ता और शिक्षा में उनकी बड़ी हिस्सेदारी होगी.”
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समान आरक्षण की मांग
भाजपा के ओबीसी नेताओं के अनुसार, कई राज्यों में ओबीसी की संख्या काफी अधिक होने के बावजूद आरक्षण आनुपातिक नहीं है और इसकी समीक्षा की ज़रूरत है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन उचित है.
जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर निजी क्षेत्र की शिक्षा में आरक्षण की मांग को भी समर्थन मिल रहा है. विपक्ष-विशेषकर कांग्रेस-भी इसके लिए सरकार पर दबाव बना रही है.
छत्तीसगढ़ भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रमुख राकेश चंद्राकर ने दिप्रिंट से कहा, “हमें 50 प्रतिशत की बाधा को तोड़ना होगा, नहीं तो हम उन पिछड़े समुदायों को कम आरक्षण देने को कैसे उचित ठहराएंगे जिनकी संख्या अधिक है?”
उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ में 40 प्रतिशत से अधिक लोग ओबीसी हैं और वह भाजपा का समर्थन करते हैं, लेकिन उन्हें बहुत कम आरक्षण मिल रहा है. दलितों और आदिवासियों को आरक्षण का हिस्सा मिला है. जनगणना समाज में हर जाति की संख्यात्मक ताकत का एक्स-रे देगी और ओबीसी के लिए अधिक आरक्षण की मांग शुरू होगी.”
राजस्थान भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रमुख चंपालाल गेदर ने भी इसी तरह के विचार साझा किए.
भाजपा ने पिछले साल राज्य में 11 लोकसभा सीटें खो दी थीं, जबकि 2019 में उसे 25 सीटों में से केवल 14 सीटें ही मिल पाई थीं.
उन्होंने कहा, “राजस्थान में 50 प्रतिशत से अधिक ओबीसी हैं, लेकिन उन्हें केवल 21 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है. भाजपा सहित कई सरकारों ने ओबीसी कोटा का मुद्दा उठाया, लेकिन अदालतों ने इसे खारिज कर दिया. अब जाति जनगणना ओबीसी पर अनुभवजन्य डेटा देगी. फिर सरकार इन समुदायों की मांगों पर ध्यान देगी.”
उन्होंने कहा, “जिसकी जितनी आबादी, उतनी उसकी भागीदारी’ सामने आएगी. यहां तक कि निजी शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे सरकारी क्षेत्र पर बोझ कम होगा.”
उत्तर प्रदेश एक और राज्य था जहां भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों में बड़ा झटका लगा. यह 62 सीटों से घटकर 33 पर आ गई, जबकि समाजवादी पार्टी के प्रतिद्वंद्वी अखिलेश यादव ने एक चतुर ओबीसी-दलित रणनीति के माध्यम से भाजपा की कीमत पर बढ़त हासिल की और पार्टी के कुर्मी और कोइरी वोट बैंक में सेंध लगाई.
लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए चुनाव-बाद के सर्वेक्षण के अनुसार, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने ओबीसी में कोइरी-कुर्मी वोटों का 19 प्रतिशत और अन्य ओबीसी में 13 प्रतिशत खो दिया, जबकि विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने इन समूहों में क्रमशः 20 प्रतिशत और 16 प्रतिशत का लाभ कमाया. एनडीए ने गैर-जाटव एससी के बीच भी 19 प्रतिशत समर्थन खो दिया.
जाति जनगणना के आंकड़ों की प्रक्रिया दो साल बाद यूपी विधानसभा चुनाव होने तक पूरी हो सकती है.
दिप्रिंट से बात करते हुए उत्तर प्रदेश के भाजपा के ओबीसी नेताओं ने कहा कि जाति जनगणना के फैसले से ओबीसी के लिए अधिक न्यायसंगत आरक्षण की मांग पैदा होगी.
योगी सरकार में मंत्री और ओबीसी मोर्चा के प्रमुख नरेंद्र कश्यप ने कहा, “मंडल आयोग के अनुसार, यूपी में ओबीसी मतदाताओं का 52 प्रतिशत हिस्सा हैं. पिछले कुछ सालों में उनकी आबादी बढ़ी है, इसलिए आरक्षण में अधिक न्यायसंगत हिस्सेदारी की दरकार होगी. इस सर्वेक्षण से पता चलेगा कि किसे अधिक सकारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है. ओबीसी के बीच पुनर्वितरण होगा.”
आरक्षण का पुनर्वितरण
राज्यों में बिहार अपने निवासियों का जाति सर्वेक्षण करने वाला पहला राज्य था और 2023 में इसके आंकड़े प्रकाशित किए. नीतीश कुमार की जेडी(यू) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार, जिसमें भाजपा भागीदार थी, उसने बाद में आरक्षण के पुनर्वितरण के लिए सर्वेक्षण डेटा का उपयोग किया.
सर्वेक्षण ने स्थापित किया कि ओबीसी और ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) मिलकर बिहार की आबादी का 63 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं — ओबीसी 27.12 प्रतिशत और ईबीसी 36.01 प्रतिशत.
राज्य ने इन और अन्य पिछड़ी श्रेणियों के लिए आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया, जिसका उद्देश्य उनकी जनसंख्या हिस्सेदारी के अनुरूप अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करना था. हालांकि, पटना हाई कोर्ट ने जून 2024 में इस फैसले पर रोक लगा दी, यह वृद्धि असंवैधानिक मानी गई क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित आरक्षण पर 50% की सीमा से अधिक थी.
पिछले साल बिहार में हुए लोकसभा चुनावों में एनडीए को 2019 की तुलना में 9 सीटों का नुकसान हुआ था, जब उसने 40 में से 39 सीटें जीती थीं. लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए चुनाव-बाद के सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला कि कोइरी-कुर्मी ओबीसी में 12 प्रतिशत, अन्य ओबीसी में 21 प्रतिशत, दुसाध और पासी समुदायों में 19 प्रतिशत और अन्य एससी में 18 प्रतिशत वोट का नुकसान हुआ.
ओबीसी समुदाय से बिहार भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र के जाति सर्वेक्षण के तहत नई गणना राज्य सरकार के 65 प्रतिशत आरक्षण के दावे का समर्थन करने के लिए प्रामाणिक संख्या देगी.
कई भाजपा नेताओं ने यह भी कहा कि जाति गणना सर्वेक्षण में शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का आकलन करने वाले सवाल शामिल किए जाने चाहिए ताकि पता चल सके कि कौन समृद्ध हुआ है और कौन पिछड़ा रह गया है, ताकि आरक्षण का उचित पुनर्वितरण सुनिश्चित हो सके.
उत्तर प्रदेश से भाजपा के राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद ने दिप्रिंट से कहा, “जाति जनगणना से हर जाति की संख्यात्मक ताकत का खाका तैयार होगा. उन आंकड़ों के आधार पर सरकार पर सकारात्मक कार्रवाई के लिए दबाव बनेगा. अधिक आबादी वाले और अधिक पिछड़े दर्जे वाले लोग अधिक आरक्षण की मांग करेंगे, जबकि आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति वाले लोगों के लिए आरक्षण में कटौती की मांग भी की जाएगी.”
उन्होंने आगे कहा, “इससे कई पार्टियों की पिछड़ी राजनीति बाधित हो सकती है, जहां तक भाजपा का सवाल है, उसने हमेशा समावेशी राजनीति को बढ़ावा दिया है. 1990 के दशक में भाजपा ने ऐसे प्रयासों का नेतृत्व किया था और अब भी वह ऐसा कर रही है. समाज की वास्तविक तस्वीर को दर्शाने के लिए आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति को आंकड़ों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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